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LIC आईपीओ: सोने की मुर्गी कौड़ी के भाव लगाना

जैसा कि मोदी सरकार एलआईसी के आईपीओ को लांच करने की तैयारी में लगी है, जो कि भारत में निजीकरण की अब तक की सबसे बड़ी कवायद है। ऐसे में आशंका है कि इस बेशक़ीमती संस्थान की कीमत को इसके वास्तविक मूल्य से काफी कम आंका जा सकता है।
LIC
प्रतीकात्मक चित्र- PTI

एलआईसी पर तीन किश्त की श्रृंखला के पहले हिस्से में, हम इस बात की जाँच करने जा रहे हैं कि एलआईसी के मूल्यांकन की पूरी प्रक्रिया कैसे दुनिया के सबसे बड़े जीवन बीमाकर्ताओं के बीच सबसे अद्वितीय संस्थान को कम आंकने के गंभीर जोखिमों से भरा हुआ है

दूसरे भाग में इस बात की जांच की जाएगी कि एलआईसी का निजीकरण कैसे इस अनूठे संस्थान के चरित्र को बदल कर रख देगा, और लाखों पॉलिसी धारकों के हितों की बलि दे दी जायेगी

तीसरे और अंतिम हिस्से में एलआईसी के निजीकरण से होने वाले व्यापक आर्थिक एवं सामाजिक दुष्प्रभावों का आकलन किया जायेगा

अगले कुछ दिनों में नरेंद्र मोदी सरकार भारत के सबसे अनोखे और मूल्यवान वित्तीय संस्थान, भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) के मूल्य का खुलासा करने जा रही है बाजार पूरी तरह से गुलजार है क्योंकि वो इस संस्थान के मूल्यांकन की प्रतीक्षा में है, जिसके परिणामस्वरूप भारत का अब तक का सबसे बड़ा आईपीओ (प्रारंभिक सार्वजनिक पेशकशआने की उम्मीद है लेकिन इससे फर्क नहीं पड़ता कि यह कैसे होने जा रहा है, और इसके लिए जो भी कीमत जिम्मेदार है, यह विवादास्पद होने जा रहा है, जैसा कि भारत में निजीकरण के नतीजे में होने वाले मूल्यांकन के प्रत्येक उदाहरण में देखने को मिला है

इस प्रकार के मूल्यांकन की दिशा में पहला कदम LIC से जुड़े मूल्य (ईवी) की गणना करने का था 2020 के अंत में, सरकार ने ईवी की गणना का काम मिलिमैन एडवाइजर्स इंडिया को सौंपा, जो अमेरिका स्थित बीमांकिक कंसल्टेंसी, मिलीमैन की भारतीय शाखा है ईवी को समूचे आईपीओ प्रक्रिया के लिए आधार तैयार करना है, खासतौर पर मूल्य के निर्धारण को लेकर, जिसके आधार पर एलआईसी शेयरों का आईपीओ जारी किया जायेगा यह काफी महत्वपूर्ण है, भले ही इसमें कई गुरुत्वहीन हों

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सरकार ने अभी तक इस बात का खुलासा नहीं किया है कि एलआईसी में से उसकी कितनी हिस्सेदारी निवेशकों को बेचीं जानी है; हालाँकि, जो बात फिलहाल स्पष्ट है वह यह है कि इस आईपीओ में कम से कम 5 फीसदी हिस्से को ऑफलोड किया जायेगा। आईपीओ का आकार अभी तक कोई बड़ा मुद्दा नहीं है इसके बजाय, जो बात सबसे अधिक शोचनीय है वह यह है कि किस आधार पर ईवी को निर्धारित किया जायेगा मिलीमैन के ईवी के आकलन के आधार पर सरकार आईपीओ के जरिये पेश किये गए एलआईसी के शेयर की कीमत पर पहुँचने के लिए गुणन कारक को लागू किये जाने की संभावना है

डेलोआयट और एसबीआई कैप्स को आईपीओ पूर्व के लेनदेन सलाहकारों के तौर पर नियुक्त किया गया है दस व्यापारिक बैंकरों में गोल्डमन सैक्स (इंडिया) सिक्योरिटीज प्राइवेट लिमिटेड, सिटीग्रुप ग्लोबल मार्केट्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड और नोमुरा फाइनेंसियल एडवाइजरी एंड सिक्योरिटीज (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड को इस मुद्दे को प्रबंधित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है

आईपीओ की ओर तेजी से बढ़ते कदम 

आने वाले दिनों में औद्योगिक एवं आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (डीपीआईआईटी) के द्वारा एलआईसी के आईपीओ में विदेशी निवेशकों की भागीदारी को सक्षम बनाने के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) नियमों में बदलाव करने के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल से संपर्क किया जायेगा। वैसे तो मौजूदा नियम बीमा कंपनियों में स्वतः एफडीआई की अनुमति देते हैं, लेकिन ये एलआईसी पर लागू नहीं होते हैं, जिसे सरकार के द्वारा एलआईसी अधिनियम के प्रावधानों के जरिये शासित किया जाता है

यह मंजूरी अनुमानतः एक औपचारिकता मात्र है क्योंकि भारतीय बीमा की दुनिया 1956 में काफी भिन्न थी, जब एलआईसी की स्थापना हुई थी चूँकि अधिनियम में एफडीआई को लेकर कोई विशेष संदर्भ नहीं दिया गया हैइसलिए सरकार में यह सोच रही होगी कि विदेशी भागीदारी के साथ आईपीओ को सक्षम बनाने के लिए कानून में ऐसे किसी संशोधन की कोई आवश्यकता नहीं है

आईपीओ की ओर अगला कदम होगा भारतीय बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (आईआरडीएआई) से मंजूरी हासिल करना और पूंजी बाजार नियामकों, भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय आयोग (सेबी) से मंजूरी हासिल करना ईवी गणना, जो कि सबसे महत्वपूर्ण है को इन क़दमों को उठाये जाने से पहले उपलब्ध होना चाहिए

सरकार की ओर से सेबी को यह खुला सुझाव है कि वह अपने ड्राफ्ट हेरिंग प्रॉस्पेक्ट्स (डीएचआरपी) की मंजूरी में तेजी लाये, जो कि काफी अनियमित है सरकार के लिए यह कितना उचित है कि वह पूंजी बाजार नियामक को खुले तौर पर आईपीओ की मंजूरी को तेज गति से करने के लिए निर्देश दे?

एक बार जब इन मंजूरियों को हासिल कर लिया जायेगा, तो विदेशी एवं संस्थागत निवेशकों को आकर्षित करने के लिए विदेशों के साथ-साथ भारत में रोड शो आयोजित करने की जरूरत होगी पहले चरण में “एंकर” निवेशकों के बीच में प्रचार किया जायेगा, जिसके बाद आईपीओ के एक हिस्से को योग्य संस्थागत बोलीदाताओं (क्यूआईबी) को प्रस्तावित किया जायेगा

एलआईसी अधिनियम, जैसा कि इसे पिछले साल संशोधित किया गया था, निवेशकों के किसी भी ऐसे समूह को अकेले या सामूहिक रुप से इश्यू को जारी कर देने के बाद 5% से अधिक शेयरों को अपने पास रखने की इजाजत नहीं देता है

निजीकरण के प्रति आचरण एवं रवैये को देखते हुए, बाद में किसी सही मौके पर इसे बदले जाने की संभावना बनी हुई है

इस बारे में सरकार के भीतर पहले से ही 2023-24 में फॉलो-ऑन पब्लिक ऑफर (एफपीओ) के बारे में चर्चा चल रही है सरकार में मौजूद वरिष्ठ अधिकारियों ने पहले से ही इस बात की पुष्टि कर दी है कि इस वर्ष 31 मार्च से पहले-पहले आईपीओ निकल जायेगा ईवी के निर्धारण से शुरू होकर आईपीओ के लॉन्च तक की समूची प्रक्रिया को इस प्रकार लगभग 50 दिनों के भीतर संपन्न किया जाना है सरकार किस हद तक एलआईसी के आईपीओ को जल्द से जल्द पूरा करने को लेकर बैचेन है यह इस बात का संकेत है सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सरकार ने जिस तेजी से इसके मूल्यांकन की कवायद में हड़बड़ी दिखाई है, वह बेहद गौर करने वाली बात है  

एलआईसी के मूल्य निर्धारण को तय करने वाला जोखिम भरा सौदा 

जिस प्रकार से एलआईसी के मूल्य को निर्धारित किया जा रहा है वह दो कारणों से अत्यंत महत्वपूर्ण है पहली बात इस तथ्य से संबंधित है कि ईवी जो खुद हाल के दिनों में एक बीमा कंपनी के मूल्य का आकलन करने के लिए मात्रात्मक उपकरण के तौर पर विकसित की गई थीवह किसी भी तरह से बीमा कंपनी के वास्तविक मूल्य के ठीक-ठीक अनुमान को लगाने की स्थिति में कहीं से भी तैयार नहीं है

दूसरा, इस वास्तविकता को जानते हुए कि एलआईसी वित्त की दुनिया में अद्वितीय है और दुनिया में कहीं भी इसके जैसा कोई मौजूद नहीं है, को न सिर्फ अवमूल्यन के गंभीर जोखिम से दो-चार होना पड़ रहा है बल्कि इसके द्वारा लाखों पॉलिसीधारकों के हितों को भी ताक पर रख दिया जा रहा है, जिन्होंने इसके एसेट बेस को निर्मित करने का काम किया है

इस बात पर जोर देना महत्वपूर्ण होगा कि एलआईसी ने कभी भी अपने पास मौजूद विशाल परिसंपत्तियों के वास्तविक बाजार मूल्य का अंदाजा नहीं लगाया है इसके बजाए, इसने उन्हें सिर्फ बुक वैल्यू पर लिया है इसके लिए तर्क यह था कि इसकी संपत्तियों के मूल्य का एक रुढ़िवादी अनुमान इसकी भविष्य की अप्रत्याशित देनदारियों के जोखिम के खिलाफ एक बीमा प्रदान करता है; जो कि इसके दीर्घावधि वाले अनुबंधों के संदर्भ में विशेष रूप से अहम था जो आमतौर पर जीवन बीमा उत्पादों की खासियत होती है

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इस तथ्य के अवलोकन में कह सकते हैं कि इसकी परिसंपत्तियों का एक बड़ा हिस्सा सरकारी प्रतिभूतियों एवं अन्य गिल्ट्स में लगा हुआ है इसके साथ ही यह भी हकीकत है कि एलआईसी संभवतः भारत का सबसे बड़ा रियाल्टार है, जो देश के भीतर सभी शहरों और कस्बों में प्रमुख स्थानों में संपत्ति का मालिक है, जिसका स्वाभाविक अर्थ है कि इसके मूल्यांकन की कवायद कहीं न कहीं गंभीर जोखिमों से घिरी हुई है इस विचार से भी मस्तिष्क चकरा जाता है कि क्या वास्तव में मिलिमैन और इसके सहयोगीमहामारी के दौरान इनमें से प्रत्येक अचल संपत्ति के बाजार भाव का मूल्यांकन कर पाने में सक्षम रहे होंगे

उपाय के तौर पर जुड़े हुए मूल्य की सीमाएं 

लेकिन एलआईसी जैसी बीमा कंपनी के कुल मूल्य का मूल्यांकन करने के साधन के रूप में सिर्फ ईवी को इस्तेमाल में लाने से और भी कई मूलभूत समस्याओं से दो-चार होना पड़ सकता है इस सामान्य व्यक्ति की धारणा के विपरीत यह एक सारांश बजट अनुमान किसी बीमा कंपनी के वास्तविक कीमत का सबसे अच्छा उपाय है, जबकि उपलब्ध साहित्य से पता चलता है कि सिर्फ दो दशकों से ही ईवी के इस्तेमाल को व्यापक उपयोग में लाया गया है, विशेष तौर पर बीमा कंपनियों के पतन के बाद, सबसे अधिक विशेस रूप से 2008 में आये महान वित्तीय संकट के बाद से

इस सारांश उपाय का अधिकाधिक उपयोग विशेष रूप से ग्रेट क्रेश के बाद बीमा व्यवसाय में विलय और अधिग्रहण की घटनाओं के कारण किया जाने लगा ये उपाय स्पष्टतया उन कम्पनियों के हितों से संचालित होते हैं, जो अपने लक्ष्यों का तब मूल्यांकन कर रहे थे जब वे धराशाई हो रहे थे या पतन की कगार पर थे वास्तविकता यह है कि ईवी शेयरधारकों के लिए रिटर्न्स की संभावनाओं का पता लगाने की कोशिश करता है, जो उस सीमित उद्देश्य को दर्शाता है जिसके लिए इस अवधारणा को अपनाया गया था

भारत में निजी जीवन बीमा कंपनियों के तीन महत्वपूर्ण समूह हैं आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल लाइफ (2016), एचडीएफसी लाइफ (2017) और एसबीआई लाइफ (2017) - ये सभी मूल प्रवर्तकों को आईपीओ के जरिये अपनी-अपनी हिस्सेदारी के एक हिस्से को कम करने में सक्षम बनाती हैं संयोग से मिलिमैन ने इनमें से दो निजी जीवन बीमा कंपनियों, आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल लाइफ और एचडीएफसी लाइफ की ईवी को अनुमानित किया था

जो बात एलआईसी की फ्लोट को सबसे अलग बनाती है, वह सिर्फ यह तथ्य नहीं है यह बाकियों की तुलना में बहुत बड़ा है, और इसके बीमाधारक का बाजार में बहुत बड़ा हिस्सा है, बल्कि यह है कि इसके पास मौजूद परिसंपत्ति आधार बाकियों से बहुत-बहुत बड़ा है इसके साथ यह तथ्य भी बेहद अहम है कि सरकार स्पष्टतया हिस्सेदारी के एक हिस्से को त्यागने के लिए बेकरार है, जिसकी वजह से होने वाला अवमूल्यन का दुष्परिणाम न सिर्फ सरकार बल्कि इसके लाखों पॉलिसी धारकों के हिस्से में भी दूरगामी परिणामों का जोखिम पैदा करता है

आइये अब इस बात का पता लगाते हैं कि ईवी क्या है और क्या नहीं है। हालाँकि बीमांककोंलेखा परीक्षकों और चार्टर्ड अकाउंटेंट की दुनिया हमें यह भरोसा दिलाएगी कि इस प्रकार के सारांश आंकड़े किसी भी संस्था और उसके व्यवसाय के वास्तविक मूल्य के बारे में एक यथार्थपरक अनुमान होते हैं, लेकिन यह स्पष्ट तौर पर सही नहीं है 2006 में एक कनैडियाई बीमांकिक, फ्रेडरिक ट्रेम्बले के द्वारा प्रकाशित एक शोध में पाया गया था कि, “एम्बेडेड वैल्यू सिर्फ एक सटीक अनुमान है यह भविष्य की सिर्फ एक दृष्टि है

ट्रेम्बले ने चेताया, “इस बात को ध्यान में रखना महत्वपूर्ण होगा कि एम्बेडेड मूल्य का बेहद सावधानीपूर्वक इस्तेमाल किया जाना चाहिए, इसकी गणना में अंतर्निहित मान्यताओं को हमेशा ध्यान में रखना होगा” उन्होंने आगे लिखा है, “इसके लाभ और हानियों के साथ, इसकी एम्बेडेड मूल्य संपूर्ण का एक हिस्सा है और इसे इसी रूप में लिया जाना चाहिए” 

मूलतः, ईवी दो घटकों से बना हैपहला, लाभ का शुद्ध मौजूदा मूल्य कंपनी की धारा से निकलकर शेयरधारकों के हिस्से में जाता है, और दूसरा कंपनी की पूँजी और अधिशेष का शुद्ध संपत्ति मूल्य विशेषकर, जीवन बीमा कंपनी के मामले में देखें तो पहले घटक का मूल्य संभावित दावों (उदाहरण के लिए, पालिसीधारकों की मृत्यु) और बीमाधारक द्वारा अपने जीवनकाल के दौरान पॉलिसी को बनाये रखने के लिए कितनी लागत लगाई थी, के लेखांकन के बाद लागू पॉलिसियों से अर्जित लाभ से उत्पन्न होता है ध्यान रखें कि अवधारणात्मक रूप से, शुद्ध संपत्ति मूल्य संपत्ति अतीत में ऐतिहासिक रूप से जमा की गई संपत्तियों और पूंजी के मूल्य से आती है, जिसके लिए यदि एलआईसी के मामले में देखें तो, इसमें शेयरधारकों के द्वारा एक नया पैसा भी योगदान नहीं किया हो, ऐसा संभव है एलआईसी के मामले में यह बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है, इस मुद्दे पर हम थोड़ी देर बाद विस्तार से चर्चा करेंगे

लेकिन इससे भी कहीं अधिक गंभीर मुद्दा, विशेषकर एलआईसी के मामले में, जिसने पिछले छह दशकों से भारत में जीवन बीमा क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभाई है, इस बात को मान्यता देना महत्वपूर्ण है कि ईवी अनुमानों में इसे नहीं पकड़ा है सबसे पहले, ईवी ने व्यवसाय के भविष्य के विकास को ध्यान में नहीं रखा है, जो कि एलआईसी के मामले में, जिसका खुद का एक लंबा ट्रैक रिकॉर्ड रहा है, इसने भविष्य में इसके संभावित विकास की संभावनाओं को अपने आकलन में शामिल नहीं किया है

दूसरा, जो कि इससे भी अधिक महत्वपूर्ण है, वह यह कि इसने कंपनी को हासिल प्रतिष्ठा के लिए कोई मूल्य नहीं निर्धारित किया है, जो कि इसके अतीत के प्रदर्शन का परिणाम है जहाँ तक एलआईसी का संबंध है, यह एक गंभीर चूक है चूँकि जीवन बीमा पालिसीयां दीर्घावधि अनुबंध वाली होती हैं जो कि दो से तीन दशकों तक विस्तारित होती हैं, ऐसे में पॉलिसी की समयावधि के दौरान दावों और सेवा पॉलिसी के दावों के निपटान के मामले में बीमाकर्ता का पिछला इतिहास बेहद अहम मायने रखता है, जिसे ईवी ने अपनी गणना में पूरी तरह से छोड़ दिया है

किसी उपाय पर भरोसा कर लेना सिर्फ इसलिए पर्याप्त नहीं है क्योंकि इसे एक भरोसेमंद उपाय के तौर पर एक जीवन बीमा कंपनी के मूल्य के निर्धारण के लिए अनुमोदित किया गया है, जो कि एक बेहद अलग संदर्भ में और एक ऐसी दुनिया में है जो एलआईसी के संचालन से सर्वथा अलग है। इंग्लैंड स्थित ब्रांड फाइनेंस की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, एलआईसी भारत का सबसे मूल्यवान ब्रांड है; इसकी ब्रांड वैल्यू करीब 8.66 बिलियन डॉलर (लगभग 65,000 करोड़ रूपये) आंकी गई है

ब्रांड वैल्यू को छोड़ देना या “साख” के मूल्य को भुला देना एक जीवन बीमा कंपनी के मामले में बेहद महत्वपूर्ण चूक है क्योंकि संभावित ग्राहक आधार दीर्घाकालिक अनुबंध को निर्धारित करते समय बीमाकर्ता की प्रतिष्ठा को महत्व देता है कोई ग्राहक जानना चाहता है कि क्या इस मामले में प्रतिकूल घटना, इस मामले में मृत्यु वास्तव में होने पर बीमाकर्ता आसपास होगा या नहीं इसे गणना से बाहर रखने के लिए, सिर्फ इसलिए क्योंकि यह मूल्यांकन “फार्मूला” में फिट नहीं बैठता है, इसका नतीजा महत्वपूर्ण कम मूल्यांकन में होगा, विशेष रूप से एलआईसी जैसी संस्था के मामले में

मूल्यांकन की टाइमिंग और अंतर्निहित धारणाएं 

इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि ईवी गणना की टाइमिंग ही अपने आप में इस मूल्यांकन की कवायद में एक बड़ा फर्क ला सकता है उदाहरण के लिए, चूँकि नए व्यवसाय का मूल्य (वीओएनबी) ईवी के अनुमान के आंकड़ों में स्पष्ट रूप से दिखता है, जबकि सच्चाई यह है कि इस तरह की कवायद महामारी के बीच में की जा रही थी, जब न सिर्फ भारतीय बीमा उद्योग बल्कि वैश्विक जीवन बीमा व्यवसाय में तेजी से गिरावट आ रही थी, जिसके चलते किसी भी बीमा कंपनी के मूल्यांकन को कम आँका जा सकता है। आईआरडीएआई के मुताबिक, 2020-21 में प्रीमियम आय की वृद्धि की रफ्तार काफी धीमी हो गई थी

सबसे महत्वपूर्ण, एलआईसी की पहले साल की प्रीमियम आय, नई बीमा पॉलिसी को जारी करने का एक उपाय, 2020-21 में लगभग 41% घट गया था (इसमें एकल प्रीमियम वाली पॉलिसी शामिल नहीं हैं, जिकी वृद्धि 2020-21 में काफी तेजी से बढ़ी) वास्तविकता यह है कि एलआईसी भारत की एकमात्र आम जन-आधारित जीवन बीमाकर्ता बनी हुई है, जिसे इस तथ्य से समझा जा सकता है कि इसकी पॉलिसी का औसत “टिकट साइज़” करीब 16,000 रूपये है, जबकि इसकी तुलना में निजी जीवन बीमा कंपनियों की राशि 89,000 रूपये है यह इस तथ्य की ओर इशारा करता है कि इसका लोकप्रिय ग्राहक आधार, महामारी से बुरी तरह से प्रभावित था, जिसने संकट में बीमा कवर को छोड़ दिया था ऐसे समय में वीओएनबी को शामिल करके एलआईसी के मूल्य का निर्धारण करने से इसके मूल्य को महत्वपूर्ण ढंग से कम मूल्यांकन का जोखिम हो सकता है

इसके अलावा भी कई और भी समस्याएं हैं सभी ईवी गणनाएं अनुमानों पर आधारित हैं और इनमें जिन कार्यप्रणालियों को अपनाया गया है उनके प्रति संवेदनशील हैं इसके लिए ब्याज दरों, मुद्रा स्फ़ीति और कई अन्य कारकों जैसे “आर्थिक” अनुमानों की आवश्यकता पड़ती है वास्तव में, यदि मिलिमैन ने इस काम को 2021 की शुरुआत में अपने कार्यभार संभालने के फौरन बाद शुरू कर दिया होता, तो ब्याज दरों को लेकर इसका पूर्वानुमान इसके अब की गई कवायद से काफी हद तक भिन्न होता हकीकत यह है कि मार्च से ब्याज दरों में बढ़ोत्तरी की अमेरिकी फेडरल रिज़र्व के प्रतिबद्धता के चलते ब्याज दरें अब उच्च स्तर पर हैं, जो कि एक उदहारण है कि कैसे आर्थिक अनिश्चितताएं एलआईसी के मूल्यांकन को प्रभावित कर सकती हैं। इस प्रकार आप इस वर्ष एक ऐसे ईवी पर पहुँच सकते हैं और अगले साल इसे बहुत अलग पा सकते हैं इस तरह से “निवेशकों” को इसका एक हिस्सा बेचने के लिए एलआईसी जैसे संस्थान को आंकना बेहद जोखिम-भरा है

बीमा धारकों के साथ धोखाधड़ी 

यह हमें एलआईसी के मूल्यांकन में दूसरी महत्वपूर्ण समस्या की ओर ले आता है, क्योंकि अपने चरित्र में यह पूर्णतया अद्वितीय है एलआईसी दुनिया में अपनी तरह की अनोखी कंपनी है क्योंकि यह ऐसी एकमात्र जीवन बीमाकर्ता कंपनी है जो अपने बीमा धारकों को अपने शेयरधारकों अर्थात भारत सरकार की तुलना में कहीं ऊँचे पायदान पर रखती है

एक बेहद सम्मानित बीमांकिक, और एलआईसी के पूर्व मुख्य बीमांकिक, आर. रामकृष्णन जिनका हाल ही में निधन हो गया, ने 2019 में इस ओर इशारा किया था कि एलआईसी अधिनियम इस मायने में विलक्षण है कि इसमें “भाग लेने वाले पॉलिसी धारकों को शेयरधारकों के समान व्यवहार किया जाता है और वास्तविक शेयरधारकों की तुलना में अधिशेष कहीं अधिक उच्च प्रतिशत पर दिया जाता है

एलआईसी अधिनियम, जब तक कि इसे पिछले वर्ष 2021 के वित्त अधिनियम के माध्यम से संशोधित नहीं कर दिया गया था, तब तक इसके द्वारा पॉलिसी धारकों को प्रति वर्ष होने वाले अधिशेष के 95% को बोनस के तौर पर चुकता करने के प्रति आश्वस्त किया गया था, जबकि सरकार को मात्र 5% से ही संतोष करना पड़ता था संशोधनों के माध्यम से अब यह अर्थ निकाल सकते हैं कि पॉलिसी धारकों को अब वार्षिक अधिशेस का एक छोटा अंश प्राप्त होने जा रहा है, हालाँकि एलआईसी ने अभी भी इसे लागू नहीं किया है

इसके अलावा यह भी बता दें कि रामाकृष्णन कहीं से भी विनिमेश के विरोधी नहीं थे वास्तव में, उन्होंने मल्होत्रा कमेटी में एक सदस्य के तौर पर अपनी सेवाएं दी थीं, जिसने 1994 में बीमा क्षेत्र में सुधारों की सिफारिश की थी, और इंगित किया था कि एलआईसी की समूची करदान क्षमता रिज़र्व, जिसे आमतौर पर प्रवर्तकों के द्वारा मुहैय्या कराया गया, को पॉलिसी धारकों के योगदान से निर्मित किया गया था

हकीकत यह है कि सरकार के द्वारा एलआईसी के पूंजी आधार में सिवाय 5 करोड़ रूपये की प्रारंभिक इक्विटी पूंजी के योगदान के अलावा 1956 से लेकर 2011 के बीच में कोई योगदान नहीं किया गया, जब इक्विटी बेस का आधार बढ़कर 100 करोड़ रूपये हो गया था, तो इसने गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए थे कि एलआईसी के इस विशाल संपत्ति आधार का असली मालिक कौन है आईपीओ को शुरू करने के उद्देश्य से सरकार ने हाल ही में इसके इक्विटी बेस को बढ़ाकर 6325 करोड़ रूपये कर दिया था, जिसमें 10 रूपये के अंकित मूल्य के साथ 635.50 करोड़ इक्विटी शेयर हैं इस विस्तार को आंशिक रूप से एलआईसी से प्राप्त देय लाभांश के माध्यम से पिछले दो वर्षों के दौरान सुगम बनाया गया (जिसे सरकार ने एलआईसी को अपने पास रखने के लिए कहा था)

ऐसे में हवा में झूलता महत्वपूर्ण प्रश्न यह है: किसी कंपनी का परिसंपत्ति आधार एक ऐसी कार्यप्रणाली के द्वारा मूल्यांकन किया गया है जो व्यवस्थित रूप से एलआईसी को खड़ा करने वालों को बाहर कर देता है, खुद में कैसे निष्पक्ष हो सकता है? एक इसी से संबंधित प्रश्न यह है: कैसे पॉलिसी धारकों के हितों को सुरक्षित रखा जायेगा, जिन्होंने इन वर्षों के दौरान एलआईसी की समूची ऋण चुकाने की क्षमता रिज़र्व को प्रदान किया हो, जिसने इसके परिसंपत्ति आधार के विशाल विस्तार को अपना समर्थन दिए रखा हो, को अब मूल्यांकन से कैसे वंचित किया जा सकता है? मूल्यांकन इस प्रकार देखने वाले की आँखों में होता है जबकि सरकार यहाँ अपनी वैचारिक पूर्वाग्रहों से प्रभावित होकर संस्था के मूल्य को एक खास तरीके से महत्व दे सकती है, जबकि पॉलिसी धारक इसके मूल्य को बेहद अलग तरीके से समझ सकते हैं

जो लोग वर्तमान में एलआईसी आईपीओ के लिए चिल्लपों कर रहे हैं, उन्होंने पॉलिसी धारकों को मिलने वाले लाभों की ओर इशारा किया है विशेषकर वे इस तथ्य की ओर इशारा करते हैं कि आईपीओ के खुदरा हिस्से का लगभग 10% हिस्सा पॉलिसी धारकों  के लिए आरक्षित रहने वाला है यह सिर्फ चतुराई भरा ही नहीं है, बल्कि यह पूरी तरह से बदनीयती भरा है, क्योंकि सामान्य तर्क में यह बात पूरी तरह से स्पष्ट हो जाती है कि पॉलिसी धारकों  की दुनिया, संभावित शेयर धारकों की दुनिया से कहीं बड़ा है जो आईपीओ में अपने लिए आवंटन प्राप्त करने में सफल हो सकते हैं

वर्तमान में, एलआईसी के पास 9.3 करोड़ ग्रुप बीमा पॉलिसी के अलावा 28.6 करोड़ व्यक्तिगत पॉलिसी हैं यहाँ तक कि यदि कोई व्यक्ति इन विविध पॉलिसी के लिए 20% का छूट का कारक अपनाता है, तो इसका अर्थ यह है कि सभी भारतीयों में से हर पांचवा व्यक्ति अधिक एलआईसी के द्वारा जारी बीमा पॉलिसी के तहत कवर है इस तथ्य से जो छोटी सी बात उभर कर आती है, वह यह कि एक वर्ग के तौर पर पॉलिसी धारकों  को कहीं अधिक नुकसान होने जा रहा है जबकि कुछ चुनिंदा अमीर पॉलिसी धारकों के पास आईपीओ के बाद शेयर धारक बनकर लाभ कमाने के मौके हैं दूसरे शब्दों में कहें तो 10% आरक्षण, जिसमें कुछ छूट भी मिल जाये इसकी संभावना है, उसके बावजूद यह आईपीओ के लिए उनका समर्थन हासिल करने के लिए एक रिश्वत से अधिक कुछ नहीं है

एलआईसी का मूल्यांकन 

अब, देखना है कि आईपीओ कैसा होने जा रहा है ईवी को लेकर जो सभी अटकलबाजी चल रही हैं उसके साथ, हो सकता है कि इसमें अंदाजे का तत्व भी हो, बहरहाल हम इसे वैसे भी आजमा सकते हैं नवंबर 2021 में किये गए सबसे शुरूआती अनुमान में से एक के मुताबिक, एलआईसी का ईवी कथित तौर पर 150 बिलियन डॉलर (11.25 लाख करोड़ रूपये) आँका गया था। इसके बावजूद बाद में इन्हें महत्वपूर्ण रूप से 5 लाख करोड़ रूपये के साथ काफी कम कर दिया गया

धारणाएं:

1.    शेयरों का अंकित मूल्य अपरिवर्तनीय रहने वाला है

2.    शेयरों के नए निर्गम के बिना आईपीओ के जरिये 5 प्रतिशत हिस्सेदारी को बेचा जायेगा

3.    सरकार 31.625 करोड़ शेयरों की बिक्री करने जा रही है, जो कि 632.50 करोड़ शेयरों के इक्विटी बेस का 5 प्रतिशत है

4.    पॉलिसी धारकों और एलआईसी कर्मचारियों के लिए कोई छूट का प्रावधान नहीं किया गया है

यह मानकर चलते हैं कि स्टॉक में कोई विभाजन नहीं है, यानी शेयरों का अंकित मूल्य 10 रूपये ही रहने जा रहा है, और यह मानकर चलते हैं कि ईवी पर कोई गुणन कारक लागू नहीं होता है, तो ऐसे में एलआईसी में 5% हिस्सेदारी की बिक्री के लिए ईवी के अपने निचले स्तर पर 792 रूपये/शेयर से लेकर उच्च अनुमान पर 1,779 रूपये/शेयर होगी

पहले मामले में, सरकार को 25,050 करोड़ रूपये की प्राप्ति का अनुमान है और यदि शेयर की कीमत ईवी के उच्चतम छोर होती है तो इसके आईपीओ से 56,250 करोड़ रूपये जुटाए जा सकते हैं करीब 3 के रुढ़िवादी गुणक को मानते हुए, निजी जीवन बीमाकर्ताओं के इससे पहले के फ्लोट्स के अनुरूप निचले स्तर पर सरकार को 75,000 करोड़ रूपये से कुछ अधिक की प्राप्तियां हो सकती हैं

मोदी सरकार द्वारा शेयर की कीमत को नीचे बनाये रखने के लिए इसके अंकित मूल्य को विभाजित करने की भी संभावना है, ताकि यह खुदरा निवेशकों को और अधिक आकर्षित लगे ऐसा करने पर, यह निश्चित तौर पर पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर के द्वारा गढ़ी गई “लोकलुभावन पूंजीवाद” के नारे के साथ सड़क पर यात्रा करने सरीखा होगा, जिसके परिणाम हम सभी को देखने होंगे

इस बात की पूरी-पूरी संभावना है कि मोदी सरकार हाल के दिनों में काफी उपर-नीचे हिचकौले खा रहे शेयर बाजार के मूड को उठाने के लिए ईवी को कम या ईवी को गुणात्मक रूप से कम रखकर या दोनों को कम रखकर सौदे को मीठा बनाने का प्रयास करे हकीकत यह है कि एलआईसी के बाजार पूंजीकरण के इशू प्राइस में यह रिलायंस इंडस्ट्रीज को छूने वाली दूरी तक पहुंचा दिया जायेगा, तब इसे मोदी सरकार द्वारा इसे अपनी विनिमेश मुहिम की सफलता के संकेतक के तौर पर परेड कराया जाये जबकि तथ्य यह है कि यह “सफलता” लाखों पॉलिसी धारकों को धोखा देकर छोड़ देगी, जो कि इस शासन के प्राथमिकताओ का सिर्फ एक संकेतक है

इस बात को समझना महत्वपूर्ण है कि एलआईसी का आईपीओ न सिर्फ अभी के मूल्यांकन को कम कर देगा बल्कि बाद के शेयरों के इश्यू के लिए भी इसके निहितार्थ हैं बाद के इश्यू एक गुणन कारक पर निर्भर करेंगे जो शेयर की कीमत पर निर्भर करता है और चूँकि सिर्फ़ 5% शेयर इस बार फ्लोट किये जा रहे हैं, बाद के इश्यू की कीमत उस समय की कीमत से तय होगी जिस मूल्य पर वे तब बिक रहे होंगे तब यह एक छोटी पूँछ की तरह होगा जो एक विशालकाय कुत्ते के आगे लहरा रही होगी तब मौजूदा मूल्यांकन को मूल पाप के रूप में देखा जायेगा

लेकिन मोदी सरकार जो कुछ भी करती है, और कैसे भी करती है, एलआईसी के संदिग्ध मूल्यांकन के नतीजे के तौर पर कई लोगों की कीमत पर, कुछ लोगों को भारी मुनाफा होगा निजीकरण के वार्षिक क्रमिक इतिहास में, एलआईसी की बिक्री ऐसी पहली बिकवाली होने जा रही है, जो प्रत्यक्ष तौर पर और त्वरित परिणाम में दसियों लाख लोगों को नुकसान पहुंचाएगी

(आगे जारी है..)

(लेखक ‘फ्रंटलाइन’ के पूर्व एसोसिएट संपादक हैं, इन्होंने तीन दशकों से अधिक समय तक द हिन्दू ग्रुप के लिए काम किया है वे सार्वजनिक क्षेत्र एवं सार्वजनिक सेवाओं पर जन आयोग के सदस्य हैं व्यक्त विचार निजी हैं।)

अंग्रेज़ी में प्रकाशित इस मूल लेख को पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें: 

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