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ऐश्वर्या रेड्डी की ख़ुदक़ुशी के बहुत पहले ही छात्रों ने सामने रख दिये थे मुद्दे,प्रशासन ने की थी अनदेखी

दिल्ली के एलएसआर कॉलेज के छात्राओं और प्रशासन के बीच हुए ई-मेल से पता चलता है कि वक़्त पर कार्रवाई की गयी होती,तो ऐश्वर्या रेड्डी की आत्महत्या को रोका जा सकता था।
LSR College
फ़ोटो:साभार: lsr.edu.in

दिल्ली विश्वविद्यालय के तहत आने वाले लेडी श्री राम कॉलेज फ़ॉर वूमेन की छात्रा,ऐश्वर्या रेड्डी की आर्थिक तंगी के चलते ख़ुदक़ुशी का मामला सामने आया था। अन्य छात्रों ने ऑनलाइन कक्षाओं, फ़ीस और इसकी वजह से अपने शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर को लेकर प्रशासन और हॉस्टल अधिकारियों को संबोधित करते हुए कई मेल के ज़रिये जानकारी दी थी। इन मेल्स को न्यूज़क्लिक ने एक्सेस किया है।

अपनी ख़ुदक़ुशी वाली चिट्ठी में दूसरे वर्ष की छात्रा, रेड्डी ने इस बात का ज़िक़्र किया था कि उनका परिवार वित्तीय दबाव का सामना कर रहा है, और यह दबाव विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग की तरफ़ से दी जाने वाली इंस्पायर स्कॉलरशिप के वक़्त पर नहीं मिल पाने की वजह से और ज़्यादा बढ़ गया था। कॉलेज के किसी छात्रावास में रहने वाले छात्रों द्वारा वहन किये जाने वाले ख़र्चों का एक सामान्य अनुमान यही बताता है कि उनका परिवार उनकी पढ़ाई पर हर साल कम से कम एक लाख रुपये ख़र्च कर रहा था।

रेड्डी की ख़ुदक़ुशी से पहले छात्रों की ओर से भेजे गये मेल और चिट्ठियों से पता चलता है कि कॉलेज ने छात्र निकाय के उन सुझावों पर ग़ौर नहीं किया था, जिनमें शिक्षण के घंटे और सिलेबस में कटौती करने के साथ-साथ ऑनलाइन कक्षाओं में भाग लेने को लेकर बुनियादी ढांचे को सक्षम बनाने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाले संकटग्रस्त छात्रों को सेमेस्टर फ़ीस माफ़ करने और परेशान छात्रों को पैसे के भुगतान की बात भी शामिल थी।

शुरुआत में 6 सितंबर को एलएसआर स्टूडेंट्स यूनियन के सीनियर को-ऑर्डिनेटर,उन्नीमाया की नुमाइंदगी में विभिन्न विभागों और छात्र संगठनों के छात्रों ने यूनियन के सलाहकार,रुख़साना श्रॉफ़ को एक ई-मेल भेजा था, जिसमें ऊपर बताये गये मुद्दों पर रौशनी डाली गयी थी और आगे की कार्रवाई के लिए सुझाव दिये गये थे।

दूसरी बातों के अलावा इस चिट्ठी में जिस सबसे अहम बात का ज़िक़्र किया गया है,वह कुछ इस तरह है, “इस बात पर ग़ौर किया जाना चाहिए कि वार्षिक फ़ीस में कोई रियायत नहीं दी गयी है या भत्ते के दिये जाने को लेकर भी कोई आश्वासन नहीं दिया जा रहा है। एलएसआर ने फ़ीस के भुगतान को लेकर कोई अधिसूचना जारी नहीं की है। प्रशासन को इस बात का तो अहसास होना ही चाहिए कि वार्षिक फ़ीस में बुनियादी ढांचे से जुड़ी वे सुविधायें और सेवायें भी शामिल हैं, जिनका लाभ हम इस समय नहीं उठा पा रहे हैं और इसलिए इस फ़ीस को निरस्त किये जाने को लेकर छात्रों की उम्मीद मुनासिब ही है...इस अभूतपूर्व स्थिति के मद्देनजर हाज़िरी को लेकर जो  नीति है,वह अब भी अनसुलझी हुई है। यह उम्मीद करना मुनासिब नहीं है कि छात्रों की हाज़िरी रिकॉर्ड पर्याप्त हो,भले ही साज़-ओ-सामान की हालत इसे सीमित कर रही हो।” दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉलेज आमतौर पर सेमेस्टर परीक्षाओं में शामिल होने के लिए कम से कम 75% हाज़िरी के नियम का अनुसरण करते हैं।

चौंकाने वाली बात यह है कि श्रॉफ़ ने पाया कि लेफ़्ट विंग छात्र संगठन,स्टूडेंट्स फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडिया (SFI) के कुछ छात्रों की मंडली के चलते उस चिट्ठी पर विचार नहीं किया जा सका। अपने जवाब में श्रॉफ़ ने लिखा, "बतौर छात्र संघ सलाहकार हम छात्र निकाय की ओर से रखी गयी चिंताओं को सुनने के लिए हमेशा तैयार हैं और आपका मेल हमने पढ़ा है। हालांकि, हमारे लिए आश्चर्य की बात यह थी कि हमने पाया कि ईमेल एसएफ़आई द्वारा हस्ताक्षरित था। हमारा छात्र संघ कभी भी किसी राजनीतिक समूह से जुड़ा हुआ नहीं रहा है और एलएसआर छात्र संघ के सलाहकार के तौर पर हमारा जनादेश हमारा उस छात्र संघ के साथ शामिल होने तक ही सीमित है, जिसे हमारे छात्र निकाय द्वारा छात्रों के विशिष्ट अधिकार के ज़रिये चुना गया है, न कि किसी राजनीतिक समूह के साथ जुड़े होने की वजह से चुना गया है। इसलिए,हम आपके ईमेल और उसमें व्यक्त चिंताओं का जवाब देने की स्थिति में नहीं हैं।”

इस जवाब से दंग छात्रों की ओर से गठित समावेशी शिक्षा समिति ने 9 सितंबर को 1,400 छात्रों के बीच कराये गये सर्वेक्षण के नतीजे जारी कर दिये। इस सर्वेक्षण में पाया गया कि जवाब देने वालों में से 60.6% के पास कक्षाओं में भाग लेने के लिए कोई  स्थायी इंटरनेट कनेक्शन नहीं था। महत्वपूर्ण बात है कि 95.5% छात्रों ने इस बात को स्वीकार किया था कि ऑनलाइन कक्षायें उन्हें शारीरिक और मानसिक तौर पर प्रभावित कर रही हैं। छात्रों का आरोप है कि प्रशासन ने इन निष्कर्षों को पूरी तरह से नज़रअंदाज़ कर दिया था।

तीन दिन बाद,यानी 12 सितंबर को छात्र संघ ने फिर से कॉलेज के प्रिंसिपल और वाइस प्रिंसिपल को चिट्ठी लिखी, लेकिन उन्हें कोई जवाब नहीं मिला। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए अंग्रेज़ी और इतिहास विभागों के छात्रों ने अपने प्रोफ़ेसरों को चिट्ठी लिखकर हाज़िरी के मानदंडों में ढील देने और बधिरों और कम दृष्टि वाले छात्रों के लिए अतिरिक्त उपायों की मांग की थी। इतिहास विभाग के छात्रों की ओर से लिखी गयी चिट्ठियों में से एक चिट्ठी में लिखा गया है, "ख़ास तौर पर टॉकबैक (जैसे आवर्धन- magnification, चुनिंदा टेक्स्ट-टू-स्पीच) के अलावा अन्य पहुंच वाली सुविधाओं का इस्तेमाल करने वाले विकलांग छात्रों और आंशिक रूप से देखने वाले छात्रों को भी ऑनलाइन कक्षाओं में रखा जा रहा है। पहले से ही आंखों की रोशनी कम होने के चलते ये छात्र इस वजह से ज़्यादा दबाव महसूस कर रहे हैं। इससे रेटिना की ख़राबी वाले इन छात्रों की आखों की रौशनी को आगे और नुकसान की आशंका है।”

इस चिट्ठी में आगे लिखा गया है, "जो छात्र सुन नहीं सकते हैं,उन्हें गूगल मीट (जो काम तो करते हैं,लेकिन पूरी तरह कार्यशील और भरोसेमंद नहीं है) से दी जा रही सबटाइटिल को  लेकर समस्यायें पेश आ रही हैं।" 8.45 बजे सुबह से लेकर शाम 4.30 बजे तक, यहां तक कि नोट्स और प्रश्नों के बारे में सहपाठियों से बात करने के बाद भी उन्हें कक्षा में होने वाली पढ़ाई को नोट करने और उसे समझने में कई घंटे लग जाते हैं । शारीरिक और मानसिक आराम के लिए मुश्किल से समय बच पाता है।जिन तनावों का सामना विकलांग छात्र कर रहे हैं,उनके लिए कोई उपाय नहीं किये गये हैं।” हालांकि, यह स्थिति अंग्रेजी विभाग के उन शिक्षकों की शिकायत को भी नहीं रोक पाया,जिन्होंने बाद में दिल्ली विश्वविद्यालय पर दोष मढ़ दिया।

मेल की इस कड़ी में आगे बताया गया है कि सिर्फ़ फ़र्स्ट इयर के छात्रों के लिए हॉस्टल वाली मौजूदा नीति के मुक़ाबले बाहर से आये छात्रों के लिए तीन साल के लिए हॉस्टल की मांग की जाती रही है। हालांकि,हालात तब और ख़राब हो गये,जब हॉस्टल वार्डन ने नियमों का हवाला देते हुए छात्रों को इस साल 31 अक्टूबर तक कमरे ख़ाली कर देने को कह दिया। वार्डन द्वारा अचानक सूचना भेजे जाने से छात्रों के बीच तब बेचैनी पैदा हो गयी,जब उन्हें राष्ट्रीय राजधानी में महामारी के ज़बरदस्त प्रकोप के बीच हॉस्टर ख़ाली करने की संभावना के बारे में पता चला।

अब भी एक मानवीय जवाब की इंतज़ार  

छात्रों के सरोकार को लेकर हमेशा से आवाज़ उठाती रहीं एलएसआर स्टूडेंट्स यूनियन की सीनियर को-ऑर्डिनेटर,उन्नीमाया ने न्यूज़क्लिक को बताया कि छात्रों को अब भी शिक्षण के घंटे और सिलेबस में कटौती करने,फ़ीस में छूट और डिजिटल उपकरणों की ख़रीदारी के लिए भत्ते दिये जाने के सुझावों को लेकर एक मानवीय जवाब का इंतज़ार है। उन्होंने बताया, “ऐश्वर्या रेड्डी की मौत के बाद भी प्रिंसिपल का रवैया टाल-मटोल वाला ही है। यह एक अभूतपूर्व स्थिति है और सभी को इन हालात के मुताबिक़ ही कार्य करना चाहिए।” छात्रों के सामने आ रही इन दबावों को विस्तार से बताते हुए उन्नीमाया ने बताया, “मैं कश्मीर स्थित अपने एक दोस्त को जानती हूं, जो वास्तव में अपनी कक्षाओं को लेकर तनाव में है। वह ऑन लाइन कक्षाओं में शामिल इसलिए नहीं हो सकती, क्योंकि उसके पास न तो लैपटॉप है और न ही इंटरनेट कनेक्शन है। रामजस कॉलेज में पढ़ने वाली एक दूसरे दोस्त ने अपने पिता को कोरोनोवायरस से संक्रमित होने के बाद खो दिया। अब,उसके दोस्त धन जुटाने के लिए एक अभियान चला रहे हैं ताकि वह बीच में ही पढ़ाई न छोड़ दे। हमें महज़ इतनी ही राहत मिली है कि दिल्ली विश्वविद्यालय ने कक्षा में हाज़िर रहने के मानदंडों में ढील दे दी है। शिक्षक कक्षाओं को रिकॉर्ड करने और उन्हें डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर अपलोड करने को लेकर इसलिए सशंकित हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि इसका इस्तेमाल राजनीतिक कारणों से उनके ख़िलाफ़ किया जा सकता है।”

उन्नीमाया ने इस बात पर ज़ोर देते हुए कहा कि छात्रों को जो सबसे बड़ी राहत चाहिए,वह यह कि इस वर्ष का शुल्क नहीं लिया जाये। उन्होंने कहा, “कई माता-पिता ने अपनी नौकरी खो दी है और अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए पैसे दे पाने की चिंता उनकी सबसे बड़ी चिंता है। इसका ख़ामियाज़ा ज़्यादातर महिला छात्रों को उठाना पड़ेगा और ऐश्वर्या की ख़ुदक़ुशी ने इस आशंका पर मुहर लगा दी है। इसके बावजूद कॉलेज प्रशासन को यही लगता है कि उसे अनुचित रूप से दोषी ठहराया गया है। उन्हें समझना चाहिए कि हम सभी को एक मानवीय जवाब का इंतज़ार है।”

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

LSR Students Flagged Issues Long Before Aishwariya Reddy’s Suicide; Admin Didn’t Pay Heed

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