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'लहू दी आवाज़' : आंतरिक स्त्री-द्वेष, स्लट-शेमिंग से भरा सिमरन कौर ढाढली का गाना

इस गाने को यूट्यूब पर रिलीज़ हुए 8 दिन हो गए हैं। अब तक इस गाने को 35 लाख से ज़्यादा लोग देख चुके हैं, क़रीब 5 लाख लोग इसे पसंद कर चुके हैं। पसंद की यह संख्या याद रखिये, इतने लोग महिलाओं से, उनकी मर्ज़ी से, और उनके वजूद से यक़ीनन नफ़रत करते होंगे।
Lahu Di Awaaz
Image courtesy : LyricsRaag

'साहिबा' और 'बरूद वरगी' जैसे गानों से बेहद मशहूर हुईं पंजाबी गायिका सिमरन कौर ढाढली का 13 सितंबर को नया गाना रिलीज़ हुआ है। गाने का नाम है 'लहू दी आवाज़', जो सीधे तौर पर, बिना किसी लाग-लपेट के सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर वीडियो बनाने वाली लड़कियों को टारगेट कर के लिखा गया है। सिमरन के इस गाने में अपनी मर्ज़ी के कपड़े पहनने वाली, आज के ज़माने की लड़कियों को 'बदकार' बताया गया है। इस गाने को 8 दिनों में 35 लाख से ज़्यादा लोग देख चुके हैं और इसपर 65 हज़ार से ज़्यादा लोग कमेंट कर चुके हैं। गाने में क्या कहा गया है और यह क्यों ग़लत है, आइये जानते हैं...

गाने के बोल और वीडियो

सिमरन कौर ढाढली द्वारा लिखे और गाये गए इस गाने की शुरूआत में सिमरन कह रही हैं कि उनके सपने में कुछ लड़कियाँ आईं, जिन्होंने पारंपरिक पंजाबी कपड़े पहने हैं यानी सूट पहना है, चोटी की हुई है। इन लड़कियों के बारे में गाने के शुरूआती हिस्से में ऐसे बताया गया है कि यह लड़कियाँ सभ्य हैं, अपने भाइयों को देख कर सर झुका लेती हैं, अंधेरा होने से पहले घर जाती हैं, अगर घर नहीं जा पातीं, और उनके पिता ग़ुस्सा करते हैं तो पिता के सामने कुछ कहती नहीं हैं और चुप हो जाती हैं। गाने के हिसाब से इसके बाद सिमरन की 'आँख खुल गई' और जब उन्होंने वर्तमान के समय को देखा तो उन्हें दुख हुआ और सपने वाली 'सादगी' मिट्टी में मिलती हुई दिखी। इसके बाद सिमरन वाहेगुरु से मुख़ातिब हो कर कह रही हैं कि तेरी दुनिया कहाँ जा रही है! सिमरन कहती हैं,

'मेरा दिल दुखदा ऐ देख के तेरी दुनिया नूं,

मैं नूं लगे दिमाग़ी तौर ते अजकल कुड़ियां ने बीमार

जो मशहूर होण लई लीड़े लौंदियां फिरदियाँ ने

लग गए हथ कनां नूं रब्बा कलयुग कैसी पाई मार'

अनुवाद:

'मेरा दिल दुखता है तेरी दुनिया को देख कर,

मुझको लगता है लड़कियां दिमागी रूप से बीमार हैं,

जो मशहूर होने के लिए अपने कपड़े उतारती हैं

रब! कलयुग की ये कैसी मार है, मैंने तो कान पकड़ लिए'

सिमरन कौर का एक गाना है, नाम है 'साहिबा' : मिर्ज़ा-साहिबा की कहानी वाली साहिबा। ये पहला गाना है, पंजाबी साहित्य के इतिहास में पहला उदाहरण है जब साहिबा के दिल की आवाज़ को इतनी बेबाकी और इतनी ख़ूबसूरती से सामने लाया गया है। गाना बात करता है कि साहिबा मिर्ज़ा से कह रही है कि मैं मजबूर थी, मगर बेवफ़ा नहीं थी। साहिबा की तरफ़ से सिमरन कौर ढाढली ने पहली बार लिखा है कि वह दुनिया से सवाल पूछ रही है कि मैं बेवफ़ा क्यों हूँ? मेरा गुनाह क्या था?

'लहू दी आवाज़' के बोल किसी दक़ियानूसी मर्द ने नहीं लिखे हैं, बल्कि उसी सिमरन कौर ढाढली ने लिखे हैं जिसने 'साहिबा' जैसा ख़ूबसूरत गाना लिखा है।

गाना आगे बढ़ता है, और उसके बाद शुरू होता है हालिया दौर में स्लट-शमिंग का सबसे भद्दा प्रदर्शन। दरअसल गाने में सिमरन उन लड़कियों की बात कर रही हैं जो उनके हिसाब से अपने बदन को कुछ ज़्यादा 'प्रदर्शित' करती हैं, सोशल मीडिया पर वीडियोज़ बनाती हैं और मशहूर होने के लिए 'कपड़े उतारती हैं'। सिमरन अपनी मर्ज़ी के कपड़े पहनने वाली लड़कियों के बारे में कहती हैं कि ये लड़कियां मानसिक तौर पर बीमार हैं, और उन्हें डूब कर मर जाना चाहिये। सिमरन का कहना है कि वो इन लड़कियों को ऐसा मारेंगीं कि उन्हें समझ में आ जाएगा कि वो सिमरन के एक हाथ के बराबर (जी नहीं, ये सनी देओल का डायलॉग नहीं है) भी नहीं हैं।

इसके बाद गाना आगे बढ़ता है और सिमरन कौर ढाढली 'फ़ेक फ़ेमिनिस्ट' की बात करती हैं। सिमरन कुल दो उदाहरणों की बात करती हैं जब महिलाओं ने पुरुषों को प्रताड़ित किया है। वीडियो में 2 वीडियो चलाये गए हैं, जिसमें से एक उदाहरण एक सरदार पुरुष का है जिन पर एक लड़की ने यौन शोषण का झूठा आरोप लगाया था, और दूसरा वीडियो लखनऊ का है जो हाल ही में वायरल हुआ था जिसमें एक लड़की एक कैब ड्राइवर को थप्पड़ मार रही थी। कुल 2 वीडियो हैं सिमरन की बात को साबित करने के लिए कि लड़कियाँ 'छद्म नारीवादी' होती हैं।

वीडियो के आख़िरी हिस्से में सिमरन अपने साथ-साथ पंजाब और सिख क़ौम के अन्य पुरुष-महिला शख्सियत का उदाहरण देते हुए बताती हैं कि एक लड़की को ऐसा होना चाहिये। अंत में सिमरन कहती हैं कि आजकल जिस्म का प्रदर्शन हो रहा है और जनता मज़े ले रही है।

अब सवाल है, कि क्यों?

सिमरन कौर ढाढली के गाने के बारे में क़रीब 500 शब्द लिखने के बाद मेरा सवाल यही है कि 'क्यों'? सिमरन की यह बात कोई क्यों माने? और इस गाने-इस वीडियो का मतलब ही क्या है? ख़ैर, मज़ाक़ से हटके बात करते हैं इस वीडियो में कूट-कूट कर आंतरिक स्त्री द्वेष की। सिमरन का यह कहना कि वही लड़कियां 'सादगी' से भरी हैं जो सूट पहनती हैं, अपने भाई के सामने नज़रें झुका कर रहती हैं, अंधेरा होने से पहले घर आ जाती हैं, और बाप से ऊँची आवाज़ में बात नहीं करतीं, यह एक पुरुषवादी, स्त्री-विरोधी, दक़ियानूसी सोच का उदाहरण है जो हमारे समाज में कालांतर से हर लिंग के लोगों के दिमाग़ में भरी गई है।

इस वीडियो का समर्थन मर्दों (ज़ाहिर तौर पर) और महिलाओं दोनों ने किया है। दावा किया जा रहा है कि इस वीडियो ने समाज के 'कड़वे सच' को उजागर किया है। कौन सा कड़वा सच? कि लड़कियों की अपनी कोई चॉइस है? कौन सा कड़वा सच, कि लड़कियाँ आख़िरकार इतनी आज़ाद हो पा रही हैं कि अपने हिसाब से, अपनी मर्ज़ी से बिना किसी के दबाव में आ कर कुछ कर रही हैं?

हालांकि इस वीडियो का लोगों ने विरोध भी किया। सिमरन कौर ढाढली के इंस्टाग्राम एकाउंट को इतनी बार रिपोर्ट किया गया कि उनका एकाउंट बंद कर दिया गया है। इसके बाद 4 दिन पहले उन्होंने अपना दूसरा एकाउंट बनाया।

आंतरिक स्त्री द्वेष और सामाजिक पितृसत्ता की ही वजह से सिमरन औरत हो कर औरतों में भेदभाव ला रही हैं और संस्कृति, संस्कार की आड़ में लड़कियों के ख़िलाफ़ शाब्दिक हिंसा कर रही हैं।

पंजाबी म्यूज़िक में यह नया नहीं

पंजाबी म्यूज़िक इंडस्ट्री के लिए ऐसे गाने कोई नई बात नहीं हैं। थोड़ी सी हैरानी सिर्फ़ सिमरन कौर ढाढली के मुँह से यह गाना सुन कर हुई है। वरना तो पंजाबी संगीत में लड़की को 'होर' यानी वैश्या' बनने की हिदायत देने से लेकर, उसके कपड़े, उसके बदन, उसके रंग हर चीज़ पर बद से बदतरीन गाने बनाये गए हैं।

सिमरन जब इन वीडियोज़ को संस्कृति के ख़िलाफ़ बताती हैं, तो अपने बाक़ी गानों में 'गन कल्चर' को प्रमोट करने के बारे में वह क्या कहेंगी? या पंजाबी इंडस्ट्री अपने 90 प्रतिशत गानों के बारे में क्या कहेगी जिसमें हर गाने में लड़की को एक 'चीज़' से ज़्यादा कुछ नहीं कहा जाता, एक चीज़ जो या तो काली है, या गोरी है, या मोटी है, या छोटी है, या बंदूक चलाती है, या जीन्स पहनती है, या रात को पार्टी करती है, या गुरुद्वारे जाती है, या जूती मांगती है, या पैसे मांगती है, यह सब कुछ करती है बस वह एक इंसान नहीं है।

यह गाना 'लड़कियों पर इल्ज़ाम' लगाए जाने का उदाहरण है। यह वही सोच के तहत लिखा गया गाना है जो कहती है कि लड़की को लड़के इसलिये छेड़ते हैं क्योंकि वह कपड़े छोटे पहनती हैं, या रात को बाहर रहती हैं, या कुछ भी 'असंस्कारी' करती हैं। और लड़के तो कुछ भी कर सकते हैं।

सिमरन कौर ढाढली के 'साहिबा' जैसे गाने के बाद उम्मीद जगी थी कि अब आख़िरकार पंजाबी संगीत में महिलाओं की बातें महिलाओं के मुँह से सुनने को मिलेंगीं। एक आस थी कि अब शायद ये गाने झांझर, सूट, जूती से ऊपर उठ कर बड़े मुद्दों के बारे में बात करेंगे। मगर लहू दी आवाज़ में जिस तरह से लड़कियों को स्लट-शेम किया गया है, वह उम्मीद उसी तेज़ी से चूल्हे में जल कर राख हो गई जिस तेज़ी से इस वीडियो पर व्यूज़ बढ़े।

बहरहाल, सुनते हैं कि सिमरन कौर ढाढली इस गाने का दूसरा हिस्सा भी रिलीज़ करने वाली हैं।

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