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मणिपुर का सबक़ : आज़ादी का मतलब है लोगों को बोलने की आज़ादी मिले 

संसद में अविश्वास प्रस्ताव पर राहुल गांधी के बयान का विश्लेषण करते हुए लगा कि आज़ादी की बेला पर महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू ने जो कहा था, वह उसकी प्रतिध्वनि है।
Manipur

नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के दौरान हुई बहस में 9 अगस्त को कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने लोकसभा में जो बयान दिया वह काफी सख्त और साहसिक था। उन्होंने कहा कि भारत एक आवाज है जिसे लोगों और नेताओं को सुनना चाहिए। बाद में जब संसद के रिकॉर्ड से उनके भाषण को आंशिक रूप से हटा दिया गया, उसके बावजूद उन्होंने अपनी टिप्पणी दोहराई, जिसमें उन्होंने फिर से यह कहकर सत्तारूढ़ दल और भाजपा सरकार पर निशाना साधा था कि 'मणिपुर में भारत माता की हत्या की जा रही है।' वास्तव में, राहुल ने संसद के अंदर और बाहर जो कुछ कहा, वह महात्मा गांधी और प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अपने समय में जो कहा था, उसे झलक थी।  

भारत की आवाज़ पर गांधी और नेहरू

आज़ादी के आंदोलन का नेतृत्व करने वाले नेता ने कहा था कि ब्रिटिश भारत के शासकों ने जाति, पितृसत्ता और आदिम पहचान के वर्चस्व को बढ़ाया है और उनके अंतहीन शोषण के अलावा, दुख, गरीबी, अशिक्षा और औपनिवेशिक शासन की गुलामी में फंसे लाखों/करोड़ों लोगों की आवाज कभी नहीं सुनी। महात्मा गांधी ने 24 दिसंबर 1940 को हिटलर को पत्र लिखकर द्वितीय विश्व युद्ध से मानवता को बचाने की अपील की थी। उन्होंने लिखा था कि जिस तरह से हमेशा वे [भारत में] पीड़ित लोगों की आवाज़ सुनने के लिए बेचैन होते थे ठीक उसी तरह लाखों यूरोपीय लोगों की शांति की मांग को सुन सकते थे। 

28 जुलाई 1947 को, दिल्ली में महात्मा गांधी ने एक प्रार्थना सभा संबोधित करते हुए कहा था कि, क्या कांग्रेस पार्टी भी एक सांप्रदायिक पार्टी/संगठन बन जाएगी और भारत एक हिंदू देश बन जाएगा? वह इसलिए क्योंकि कुछ मुस्लिम नेताओं ने धर्म के आधार पर एक अलग राष्ट्र की मांग की थी। उन्होंने कहा था कि यह सवाल सरासर अज्ञानता को दर्शाता है कि कांग्रेस पार्टी कभी भी हिंदुओं का संगठन नहीं बन सकती है और जो लोग कांग्रेस को इस तरीके से परिभाषित करना चाहते हैं वे भारत और हिंदू धर्म दोनों को नुकसान पहुंचा रहे होंगे। गांधी ने कहा, "भारत लाखों/करोड़ों लोगों का देश है, लेकिन उनकी आवाज नहीं सुनी जाती है।"

ब्रिटिश शासन से भारत को मिली आजादी को चिह्नित करते समय, संविधान सभा में 14 अगस्त 1947 की आधी रात को नेहरू द्वारा दिए गए ऐतिहासिक भाषण 'नियति से मिलने का प्रयास' पर एक नजर डालने से पता चलता है कि उन्होंने भी भारत की आवाज को संबोधित किया था। उन्होंने कहा कि, "एक पल आता है, जो इतिहास में बहुत कम आता है, जब हम पुराने से नए की ओर कदम बढ़ाते हैं, जब एक युग समाप्त होता है, और जब लंबे समय से दबी हुई एक राष्ट्र की आत्मा को अभिव्यक्ति मिलती है।"

भारत की आवाज़ को वश में करने से 'भारत माता' को ठेस पहुंचती है

नेहरू ने कहा था कि लंबे समय से राष्ट्र की आत्मा का शोषण आज़ादी के साथ मुखर होता है। मणिपुर के संदर्भ में, राहुल ने कहा कि भारत की आवाज को असंवेदनशील हुकूमत द्वारा नजरअंदाज किया जा रहा है, यही कारण है कि तथाकथित डबल इंजन सरकार मणिपुर जैसे छोटे राज्य में हत्या, तबाही और बलात्कार को रोक नहीं पाई है। मणिपुर में हिंसा और सामाजिक विभाजन, भीड़ द्वारा शस्त्रागारों की लूट, और राज्य भाजपा नेताओं और मणिपुर के लोगों से मदद और शांति की अपील पर प्रधानमंत्री मोदी की चुप्पी भारत की आवाज़ सुनने के प्रति उनकी अनिच्छा को दर्शाती है।

यहां तक कि मणिपुर के भाजपा सांसद, विदेश और शिक्षा राज्य मंत्री राजकुमार रंजन सिंह के एक पत्र पर भी, जिसमें कहा गया था कि केंद्र सरकार को मणिपुर में जातीय युद्ध को रोकना चाहिए, सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोगों ने कोई ध्यान नहीं दिया। सुप्रीम कोर्ट, जिसने अंततः मामले का स्वत: संज्ञान लिया, और कहा कि मणिपुर की स्थिति कुछ ऐसी है जैसे कि वहां वर्तमान सरकार का शासन करने का वैध अधिकार समाप्त हो गया है। 

मणिपुर यह महत्वपूर्ण सबक सिखाता है कि सरकार लोगों की बात सुने, यह सब निर्वाचित नेतृत्व की संवेदनशीलता पर निर्भर करता है।

गांधीजी ने प्रतिशोधात्मक हिंसा के प्रति आगाह किया था

राहुल ने भारतीय लोगों की आवाज़ के दमन, मणिपुर में प्रतिशोधात्मक हत्याओं और राज्य की उदासीनता को 'भारत माता' के रूप में पहचाने जाने वाले भारत की हत्या से कम नहीं बताया। उनके शब्द 10 जुलाई 1947 को आजादी से पांच दिन पहले महात्मा गांधी के शब्दों से काफी मेल खाते हैं। आर्थर मूर के एक सवाल पर कि क्या लोगों के भीतर प्रतिशोध की भावना बढ़ रही है, गांधी ने कहा था, "मुझे नहीं लगता कि यह भावना ज़िंदा रहेगी।" लेकिन गांधी ने चेतावनी दी: “अगर ऐसा होता है, तो इसका मतलब आज़ादी को अलविदा कहना होगा। भारत आत्महत्या कर लेगा।” दूसरे शब्दों में, यदि प्रतिशोध भारतीय लोगों पर हावी हो गया, तो यह भारत के विनाश का समान होगा, जिसे राहुल गांधी ने 'भारत माता' के रूप में प्रस्तुत किया।

आजादी के दो दिन बाद, 17 अगस्त 1947 को, महात्मा गांधी ने कहा था कि वे भयानक अंधकार के खिलाफ कुछ रोशनी खोजने का संघर्ष कर रहे हैं। उन्होंने कहा था, "ध्यान रखें कि यदि भारत ने अहिंसा का मार्ग अस्वीकार कर दिया तो वह पृथ्वी से नष्ट हो जाएगा।"

आज, भारत के कई हिस्सों में हिंसा एक बढ़ती हुई प्रवृत्ति बन गई है। चूंकि धर्म, जाति और जातीयता के नाम पर कभी पहले इतनी नफरत नहीं फैली थी, और मणिपुर में तो गृहयुद्ध जैसी स्थिति बनी हुई है, भारत की एकजुटता और एकता खतरे में है।

कुछ समय पहले, रेलवे सुरक्षा बल के एक कांस्टेबल ने अपने वरिष्ठ अधिकारी और फिर तीन अन्य रेल यात्रियों की गोली मारकर हत्या कर दी, जिनकी पहचान उसने सबसे पहले की थी। राजधानी से कुछ ही दूरी पर हरियाणा के मेवात में धर्म के नाम पर झड़पें हुई हैं। नफ़रत गहराई तक फैल गई है, और जिन लोगों को आम लोगों की रक्षा करनी थी, वे इसके बजाय लोगों की जान ले रहे हैं।

विजिलैंट समूहों द्वारा मुसलमानों और दलितों की हत्याएं और अल्पसंख्यकों के नरसंहार या उनके सामाजिक और आर्थिक बहिष्कार के आह्वान समाज को सांप्रदायिक आधार पर विभाजित कर रहे हैं। ये भारतीय गणतंत्र के लिए अशुभ संकेत हैं, जिसका जन्म स्वतंत्रता, समानता और गरिमा के संवैधानिक मूल्यों के साथ हुआ था।

नेहरू के लिए भारतीय लोग भारत माता थे

अपनी पुस्तक द डिस्कवरी ऑफ इंडिया में नेहरू ने भारत माता की विस्तृत व्याख्या की है। उन्होंने लिखा, ''...भारत के पहाड़ और नदियां, और जंगल और विस्तृत मैदान, जो हमें भोजन देते हैं...'' यह अंततः भारत के लोग ही हैं जो भारत माता हैं। इसलिए, जैसा कि राहुल गांधी ने कहा, भारत के खिलाफ क्रूरता भारत माता के खिलाफ क्रूरता के बराबर है। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट ने भी राहुल के व्यापक विचार की पुष्टि करते हुए कहा है कि "राज्य की कानून-व्यवस्था और मशीनरी पूरी तरह से चरमरा गई है"। इसलिए, भारत के विचार को बचाने और उसके बचाव के लिए गांधी, नेहरू और राहुल के बयानों पर ध्यान देना एक स्पष्ट अनिवार्यता बन जाती है।

लेखक भारत के राष्ट्रपति केआर नारायणन के ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी रह चुके हैं। व्यक्त विचार निजी हैं।

मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें :

Manipur’s Vital Lesson: Independence Meant People get a Voice

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