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लीबिया में वक़्त हमारे साथ नहीं है

संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने वास्तविकता को स्वीकार कर लिया है। लीबिया पर उनके हालिया बयान में उन्होंने असैनिकीकरण प्रयासों को सूचीबद्ध किया, इनमें एक संभावित "असैनिक क्षेत्र" बनाने की भी बात थी, जो सिर्ते शहर के पास कहीं बनाया जा सकता है। इसके ज़रिए प्रभावी तरीके से लीबिया को दो हिस्सों में बांट दिया जाएगा।
लीबिया में वक़्त हमारे साथ नहीं है

लीबिया के त्रिपोली में रहने वाले अहमद ने मुझसे संदेश में कहा कि शहर में अब पहले से ज़्यादा सन्नाटा है। जनरल हफ़्तार की सेना का पूर्वी लीबिया के बड़े हिस्से पर कब्ज़ा है, लेकिन अब उसने राजधानी त्रिपोली के दक्षिणी हिस्से से अपनी सेना हटा दी है। वह अब सिर्ते और जुफरा हवाई अड्डे तक काबिज़ है। लीबिया की ज़्यादातर अबादी भूमध्यसागर के तटीय इलाकों में रहती है। इसी इलाके में त्रिपोली, सिर्ते, बेंघाजी और तोबरुक शहर बसे हैं। 

कभी अमेरिकी खुफ़िया संस्था "सेंट्रल इंटेलीजेंस एजेंसी (CIA)' के खास रहे हफ़्तार ने अब लीबिया की अमेरिका समर्थित और उससे मान्यता प्राप्त, 'गवर्नमेंट ऑफ नेशनल एकॉर्ड (GNA)' के खिलाफ़ खूनी संघर्ष छेड़ रखा है। त्रिपोली स्थित इस सरकार का प्रतिनिधित्व प्रधानमंत्री फायेज़ अल सर्राज करते हैं। लेकिन हफ़्तार को तोबरुक स्थित एक दूसरी सरकार से मान्यता मिली है। वह सरकार 'हॉउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव (HOR)' से बनाई गई है।

अहमद का कहना है कि यह सन्नाटा एक छलावा है। नागरिक सेना (मिलिशिया) लगातार सलाह-अल-दीन रोड के इलाके में गश्त लगाती है, यहीं अहमद रहता है। गोलीबारी की संभावना हमेशा बनी रहती है।

8 जुलाई को संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने एक वक्तव्य ददिया, जो पिछले दशक में कभी भी दिया जा सकता था। उन्होंने कहा, "वक़्त लीबिया में हमारे साथ नहीं है।" उन्होंने लीबिया में कई समस्याएं गिनाईं, जिनमें सैन्य टकराव, GNA और HOR के बीच राजनीतिक यथास्थिति, देश के भीतर हुआ विस्थापन (70 लाख की आबादी में से 4 लाख विस्थापित), विस्थापितों द्वारा भूमध्यसागर को पार करने की लगातार कोशिशें, कोरोना महामारी से ख़तरा और 'विदेशी हस्तक्षेप' से 'अभूतपूर्व ख़तरा' शामिल है।

संयुक्त राष्ट्र संघ मानवाधिकार परिषद ने एक प्रस्ताव पास कर लीबिया में तथ्य जांच समिति भेजने का फ़ैसला लिया, जो युद्ध में मानवाधिकार उल्लघंनों की जांच करेगा, जिसके तहत तारहोउना में पाई गई बड़ी कब्रों की जांच भी शामिल है। लेकिन इस परिषद की साख पर शक है। 2012 में भी लीबिया पर एक जांच दल बनाया गया था। इसका मक़सद 2011-12 में हुए युद्धअपराधों की जांच करना था। उस जांच के ज़्यादातर हिस्से को बंद कर दिया गया, क्योंकि NATO ने उसके साथ सहयोग करने से इंकार कर दिया। इसके बाद मार्च 2015 में एक और जांच दल बनाया गया, जिसने जनवरी 2016 में राजनीतिक समझौते के साथ ही अपना काम बंद कर दिया। इस राजनैतिक समझौते से ही गवर्नंमेंट ऑफ नेशनल एकॉर्ड बनाई गई थी। 

गुटेरेस ने 2011 में नाटो युद्ध की बात को शामिल नहीं किया। मुझे बताया गया है कि वह अफ्रीकन यूनियन के साथ ज्वाइंट स्पेशल रिप्रेंजेंटेटिव की नियुक्ति करना चाहते हैं और वे यूएन मिशन पर पूर्ण समीक्षा करना चाहते हैं। यह सब सही है। लेकिन यह जितना जरूरी है, उससे कम है। जरूरी है कि नाटो युद्ध की समीक्षा की जाए, आखिर इसी युद्ध से तो देश टूटा है और कई तरह के विवाद खड़े हुए हैं, जिनका कोई अंत नज़र नहीं आता।

विदेशी हस्तक्षेप

लीबिया के बारे में दिए गए वक्तव्य में कई चीजें छुपाने की कोशिश की गई। "विेदेशी हस्तक्षेप" और "बाहरी देशों समर्थित प्रयास" जैसी शब्दावलियों का वक्तव्य में इस्तेमाल किया गया, लेकिन यह कुछ भी साफ़ नहीं करते। लेकिन हर कोई जानता है कि वहां चल क्या रहा है।

मैंने बेंघाज़ी मे रहने वाली रिदा से इन शब्दावलियों का मतलब पूछा। उसने कहा, "यहां हम सभी जानते हैं कि क्या चल रहा है। त्रिपोली की सरकार को तुर्की और दूसरे देशों का समर्थन प्राप्त है। जबकि हफ़्तार को इजिप्ट और बाकी देशों का समर्थन है।"

वह कहती हैं कि मूल रूप से यह दो क्षेत्रीय ताकतों (तुर्की और इजिप्ट) के साथ-साथ मुस्लिम भाईचारे (तुर्की) और उसके विरोधियों (इजिप्ट और यूएई) के बीच का संघर्ष है। इन सबके बीच में पूर्वी भूमध्यसागर में "ऑफशोर ड्रिलिंग" के कांट्रेक्ट हैं, जिसके चलते सायप्रस और ग्रीस भी इस लपेटे में आ गए हैं।

यह कहना पर्याप्त नहीं है कि यह एक क्षेत्रीय टकराव है। इस बात के कई सबूत मौजूद हैं, जो बताते हैं कि जनरल हफ़्तार को हथियारबंद लड़ाकों (रूस और सूडान से आने वाले) का समर्थन प्राप्त है। साथ में फ्रांस से जहाज़ों के ज़रिए हथियारों की आपूर्ति भी है। वहीं अमेरिका विवाद में शामिल दोनों पक्षों पर दांव लगा रहा है और दोनों को ही मदद कर रहा है।

पिछले साल जनरल हफ़्तार की सेना ने तेजी से त्रिपोली की ओर चढ़ाई की थी। लेकिन उन्हें तुर्की के हस्तक्षेप के चलते रोक दिया गया। तुर्की ने त्रिपोली सरकार को सैन्य मदद के साथ-साथ सीरियाई और तुर्की लड़ाके उपलब्ध कराए।

दिसंबर के आखिर में तुर्की ने औपचारिक तरीके से त्रिपोली स्थित GNA सरकार के साथ सैन्य और सुरक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए। इससे तुर्की को त्रिपोली को सैन्य हार्डवेयर की आपूर्ती करने की छूट मिली। यह समझौता यूएन रेज़ोल्यूशन 2292 (2016) का उल्लंघन है, जिसे हाल में यूएन रेज़ोल्यूशन 2526 (2020) द्वारा पुष्ट किया गया है। वहीं इजिप्ट और यूएई खुलकर हफ़्तार का समर्थन कर रहे हैं।

अब त्रिपोली सरकार की फौज़ें सिर्ते शहर के नज़दीक पहुंच चुकी हैं, जो तटीक इलाके के मध्य में स्थित है। सिर्ते इस विवाद में अहम केंद्र बनकर उभरा है।

तोबरुक सरकार और हफ़्तार समर्थक जनजातीय परिषद ने सिर्ते को हारने की स्थिति में इजिप्ट में जनरल अब्दुल फतह अल सीसी से पूरी ताकत के साथ हस्तक्षेप करने की मांग की है। इसी दौरान इजिप्ट की सेना ने हस्म 2020 नाम से सैन्य अभ्यास किया है, वहीं तुर्की की नौसेना ने भी लीबिया के तट पर नेवटेक्स नाम से युद्धाभ्यास की घोषणा की है। 

यह बेहद ख़तरनाक स्थिति है, जब तुर्की और इजिप्ट के बीच शब्दों की जंग तेज हो चुकी है, इजिप्ट अब अपने सैन्य उपकरणों को लीबिया की सीमा के पास पहुंचा चुका है।

तेल

पूरे समीकरण में तेल की बेहद अहम भूमिका है। लीबिया के पास कम से कम 46 बिलियन मीठा तेल है। इस तेल की यूरोप के लिए बेहद अहमियत है, क्योंकि इसे निकालने और ढोने में कम खर्च करना होता है। यूएई जैसे देश, लीबियाई तेल पर प्रतिबंध लगाना चाहते हैं। इन्होंने लीबिया, ईरान और वेनेजुएला के हटने के बाद दबाव में मौजूद तेल बाज़ार में वैसे ही बहुत फायदा उठाया है। लीबिया की नेशनल ऑयल कॉरपोरेशन (NOC) ने जनवरी के बाद से ही तेल निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है। लीबिया का तेल उत्पादन करीब़ 11 लाख दस हजार बैरल प्रति दिन से घटकर 70,000 बैरल प्रतिदिन पर आ गया है।

ना तो हफ़्तार और ना ही त्रिपोली स्थित नेशल एकॉर्ड की सरकार तेल के निर्यात पर समझौता कर सकते हैं। करीब़ 6 महीने से निर्यात बंद है। NOC के मुताबिक़, इस दौरान करीब़ 6.74 बिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान हुआ है। पूर्व में स्थिति बड़े तेल अड्डे जनरल हफ़्तार के कब्ज़े में हैं। इनमें एस सिदेर, शारारा और कुछ अहम ऑयल फील्ड्स शामिल हैं। 

कोई भी पक्ष नहीं चाहता कि तेल के निर्यात से दूसरे पक्ष को लाभ मिले। संयुक्त राष्ट्रसंघ ने हस्तक्षेप कर विवाद को सुलझाने की कोशिश की थी, लेकिन अब तक बहुत कम सफलता हासिल हो पाई है। पूरा विवाद दोनों पक्षों के इस यकीन पर आधारित है कि वे सैन्य जंग जीतकर पूरे देश पर कब्ज़ा कर लेंगे। इसलिए कोई भी समझौता करने को तैयार नहीं है। क्योंकि ऐसे समझौते में देश का अघोषित तौर पर दो हिस्सों में बंटवारा हो जाएगा और तेल के कुएं भी अलग-अलग हो जाएंगे।

असैनिक क्षेत्र 

संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने वास्तविकता को स्वीकार कर लिया है। लीबिया पर उनके हालिया बयान में उन्होंने असैनकीकरण प्रयासों को सूचीबद्ध किया, इनमें एक संभावित "असैनिक क्षेत्र" बनाने की भी बात थी, जो सिर्ते शहर के पास कहीं बनाया जा सकता है। इसके ज़रिए प्रभावी तरीके से लीबिया को दो हिस्सों में बांट दिया जाएगा।

ना तो अहमद और ना ही रिदा यह चाहते हैं कि उनके देश का विभाजन हो जाए और इसके बाद वहां का तेल यूरोप चला जाए, फिर दोनों विभाजित हिस्सों के कुलीन लोग देश की संपदा लूट लें। उन्हें 2011 में मुअम्मर गद्दाफ़ी की सरकार के बारे में गलतफ़हमी थी। लेकिन अब दोनों पछताते हैं कि उस जंग ने लीबिया को टुकड़ों में बांट कर रख दिया।

इस लेख को इंडिपेंडेंट मीडिया इंस्टीट्यूट के प्रोजेक्ट Globetrotter ने प्रकाशित किया है।

विजय प्रसाद भारतीय इतिहासकार, संपादक और पत्रकार हैं। वे ग्लोबट्रोटर के मुख्य संवाददाता और राइटिंग फैलो हैं। विजय प्रसाद लेफ़्टवर्ड बुक्स के मु्ख्य संपादक होने के साथ-साथ ट्राईकॉन्टिनेंटल: इंस्टीट्यूट फॉ़र सोशल रिसर्च के निदेशक भी हैं। उन्होंने 20 से ज़्यादा किताबें लिखी हैं। इनमें The Darker Nations और The Poorer Nations भी शामिल हैं। उनकी हालिया किताब वाशिंगटन बुलेट्स है, जिसका परिचय इवो मोराल्स आयमा ने लिखा है। 

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

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