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फ्लाई ऐश के अनुचित डिस्पोज़ल के कारण स्थानीय लोग बुरी तरह प्रभावित!

“फ्लाई ऐश का अनुचित डिस्पोज़ल अक्सर जल स्रोतों को प्रदूषित कर खड़ी फसलों को नुक़सान पहुंचाता है जिससे स्थानीय समुदायों की आजीविका पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है।”
Fly Ash
फ़ोटो: Wikimedia Commons

नई दिल्ली: लंदन स्थित एक ग्लोबल एनर्जी थिंक टैंक ने पिछले हफ़्ते एक रिपोर्ट जारी की जिसमें कहा गया कि पिछले सात वर्षों में भारत में प्रति व्यक्ति कोयला बिजली उत्सर्जन में 29% की बढ़ोतरी हुई है। हालांकि, थर्मल पावर प्लांट्स से होने वाला उत्सर्जन, देश के कोयला आधारित बिजली उत्पादन उद्योग को प्रभावित करने वाला एकमात्र मुद्दा नहीं है।

विशेषज्ञों का कहना है कि फ्लाई ऐश (Fly Ash) के अनुचित डिस्पोज़ल ने पावर प्लांट्स के पास रह रहे कई स्थानीय समुदायों पर नकारात्मक प्रभाव डाला है। आपको बता दें फ्लाई ऐश, कोयला दहन से उत्पन्न एक ज़हरीला बायप्रोडक्ट है, जो अक्सर सरकारी मानदंडों का उल्लंघन करता है।

मार्च में प्रकाशित भारत के केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (CEA) की नवीनतम फ्लाई ऐश यूटिलाइज़ेशन रिपोर्ट के अनुसार, थर्मल पावर प्लांट, अप्रैल से सितंबर 2022 तक उत्पन्न ज़हरीले बायप्रोडक्ट के 22 फ़ीसदी से ज़्यादा का उपयोग नहीं कर सके।

G20 शिखर सम्मेलन से पहले, 5 सितंबर को थिंक टैंक एम्बर द्वारा जारी उत्सर्जन रिपोर्ट के अनुसार, ज़्यादातर देश "स्वच्छ ऊर्जा की ओर बढ़ने के कारण प्रति व्यक्ति कोयला उत्सर्जन में कमी" देख रहे हैं।

हालांकि, भारत और पांच अन्य G20 देशों - चीन, जापान, तुर्की, रूस और इंडोनेशिया में 2015 और 2022 के बीच प्रति व्यक्ति कोयला उत्सर्जन अधिक था। अध्ययन में पाया गया कि सभी G20 देशों के लिहाज़ से देखें तो ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण कोरिया प्रति व्यक्ति कोयला उत्सर्जन में शीर्ष प्रदूषक हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है, “भारत ने सात वर्षों में 29% की बढ़ोतरी का अनुभव किया। दोनों (चीन और भारत) देशों में बिजली की मांग तेज़ी से बढ़ रही है, जो हाल के वर्षों में बड़े पैमाने पर नवीकरणीय विस्तार को भी पीछे छोड़ रही है। इसके परिणामस्वरूप, इस अवधि के दौरान उनका कोयला आधारित उत्पादन भी बढ़ा है।”

रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि जहां दुनिया भर के 75 देशों ने बिजली उत्पादन के लिए कोयले पर अपनी निर्भरता को धीरे-धीरे ख़त्म करने या नए कोयला-संचालित पावर प्लांट्स का निर्माण नहीं करने की प्रतिबद्धता दिखाई है, वहीं भारत उन सात G20 देशों में शामिल है, जिन्होंने अभी तक अपनी कोयला फेज़-डाउन रणनीतियों के बारे में नहीं बताया है। इस लीग में अन्य प्रमुख देश हैं - अमेरिका, चीन, जापान और ब्राजील।

भारत में कोयला उत्सर्जन में बढ़ोतरी का एक बड़ा कारण थर्मल पावर प्लांट्स से ज़हरीले सल्फर ऑक्साइड की रिलीज़ पर नियंत्रण के लिए ज़रूरी नियमों को लागू करने में केंद्र सरकार की एजेंसियों की ढिलाई को माना जा सकता है।

कोयला दहन के दौरान सल्फ्यूरस ऑक्साइड के उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिए कोयला आधारित पावर प्लांट्स में फ़्लू-गैस डिसल्फराइजेशन (FGD) उपकरण स्थापित करने के लिए केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) द्वारा निर्धारित डेडलाइन, नियमों का पालन नहीं होने के कारण नियमित रूप से बढ़ाई जाती रही है।

मंत्रालय द्वारा जारी नई डेडलाइन के अनुसार, सभी थर्मल पावर प्लांट्स को दिसंबर 2025 तक अनिवार्य रूप से FGD सिस्टम स्थापित करना होगा।

वहीं, CEA द्वारा अगस्त में जारी आंकड़ों से पता चलता है कि देश के 600 थर्मल पावर स्टेशनों में से केवल 23 में ही FGD सिस्टम स्थापित हैं। विभिन्न राज्य सरकारों के स्वामित्व वाले 221 थर्मल पावर स्टेशनों में से किसी भी इकाई ने FGD उपकरण स्थापित नहीं किए हैं। केंद्र सरकार के 168 स्टेशनों में से केवल 8 ने सिस्टम स्थापित किए हैं, जबकि निजी संस्थाओं के स्वामित्व वाले 211 स्टेशनों में से महज़ 15 इकाइयों ने FGD सिस्टम स्थापित किए हैं।

देश में थर्मल पावर उत्पादन की कुल स्थापित क्षमता 2,11,519.50 मेगावाट (MW) में से केवल 9,940 मेगावाट के लिए FGD सिस्टम स्थापित किए गए हैं।

एक स्वतंत्र अनुसंधान संगठन 'सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर' के विश्लेषक सुनील दहिया के अनुसार, "जहां तक पर्यावरण प्रदूषण का सवाल है, कोयला दहन से ज़हरीली गैसों का उत्सर्जन भारत में थर्मल पावर प्लांट्स के लिए एकमात्र मुद्दा नहीं है।"

उन्होंने आगे कहा, “कोयला जलाने से बायप्रोडक्ट के रूप में उत्पन्न फ्लाई ऐश के अनुचित डिस्पोज़ल से भारत में थर्मल पावर प्लांट्स के आसपास रहने वाले समुदायों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।”

175 थर्मल पावर स्टेशनों से डेटा संकलित कर मार्च की CEA रिपोर्ट के अनुसार, 401.15 मीट्रिक टन कोयले के दहन से 142.07 मिलियन टन (एमटी) फ्लाई ऐश उत्पन्न हुई थी। हालांकि, केंद्र सरकार के मानदंडों के तहत उत्पन्न फ्लाई ऐश का केवल 78.14% (111.01 मीट्रिक टन) ही बिजली संयंत्रों द्वारा उपयोग किया गया था।

यह पिछले तीन अर्धवार्षिक CEA अध्ययनों में दर्ज की गई फ्लाई ऐश की सबसे कम प्रतिशत यूटिलाइज़ेशन रेट दर है।

दहिया बताते हैं, “आर्थिक प्रभावों के संदर्भ में, फ्लाई ऐश का स्थानीय समुदायों की आजीविका पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है क्योंकि इसका अनुचित डिस्पोज़ल अक्सर जल स्रोतों को प्रदूषित करके और खड़ी फसलों को नुक़सान पहुंचाकर खेती पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। भारत उन देशों में से एक है जहां वन्यजीवों, जंगलों और प्राकृतिक जल निकायों पर फ्लाई ऐश का सबसे बुरा प्रभाव देखा गया है।”

अक्सर ऐसा हुआ है कि थर्मल पावर प्लांट के पास रहने वाले स्थानीय समुदाय अनुचित फ्लाई ऐश डिस्पोज़ल की वजह से अपनी आजीविका को होने वाले नुक़सान को लेकर अधिकारियों के आमने-सामने आ गए।

अगस्त में, तमिलनाडु के आठ गांवों के मछली पकड़ने वाले समुदायों ने ये आरोप लगाते हुए विरोध प्रदर्शन किया कि बंगाल की खाड़ी के तट के साथ लगे एन्नोर क्रीक में थर्मल पावर प्लांट्स द्वारा फ्लाई ऐश के अंधाधुंध डिस्पोज़ल से उनकी आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा था।

ये आरोप लगाए गए कि फ्लाई ऐश के कारण खाड़ी ज़हरीली हो गई थी। इसके परिणामस्वरूप मछलियों की आबादी भी कम हो गई, जिस वजह से मछली श्रमिक समुदायों की आजीविका प्रभावित हुई।

देश के विभिन्न हिस्सों से समय-समय पर मानव बस्तियों और कृषि क्षेत्रों में फ्लाई ऐश से आई बाढ़ की घटनाएं सामने आती रही हैं। थर्मल पावर प्लांटों के भीतर फ्लाई ऐश तालाबों के बांध टूटने के कारण ये बाढ़ आई। संयोग से, मजबूत बांधों के निर्माण और संचालन के लिए कोई तंत्र नहीं है।

मध्य प्रदेश के सिंगरौली जिले से फ्लाई ऐश बाढ़ की कई घटनाएं सामने आई हैं, जिसने स्थानीय समुदायों पर कहर बरपाया है। आपको बता दें, यह एक ऐसा क्षेत्र है जहां कई सार्वजनिक और निजी थर्मल पावर प्लांट हैं।

आपको बता दें, इससे पहले झारखंड के बोकारो जिले से भी फ्लाई ऐश बाढ़ की सूचना मिली है।

इसके अलावा, सीमेंट या ईंट निर्माण उद्योगों में इस्तेमाल किए जाने वाले बिजली संयंत्रों से फ्लाई ऐश के लापरवाह ट्रांसपोर्टेशन के परिणामस्वरूप भी वायु और जल प्रदूषण होता है। जुलाई में, पश्चिम बंगाल सरकार ने आरोप लगाया कि सुंदरबन के माध्यम से, भारत से बांग्लादेश तक फ्लाई ऐश ले जाने वाली नौकाएं न केवल आर्द्रभूमि को प्रदूषित कर रही हैं, बल्कि आर्द्रभूमि क्षेत्र के भीतर द्वीपों के तटों को भी नष्ट कर रही हैं।

राज्य के आपदा प्रबंधन मंत्री जावेद खान ने कथित तौर पर एक वर्कशॉप के दौरान बताया कि केंद्र सरकार की एजेंसियों को इन फ्लाई ऐश नौकाओं से होने वाले प्रदूषण का जायज़ा लेने की ज़रूरत है। बांग्लादेश के सीमेंट विनिर्माण उद्योगों के लिए फ्लाई ऐश ले जाने वाली औसतन 40 नौकाएं पारिस्थितिक रूप से नाज़ुक माने जाने वाले सुंदरबन से होकर गुज़रती हैं।

पश्चिम बंगाल के मछली श्रमिकों के मंच, 'दक्षिणबंगा मत्स्यजीवी फोरम' के सदस्यों का आरोप है कि भारत से बांग्लादेश तक फ्लाई ऐश ले जाने वाली नौकाओं के बार-बार पलटने से सुंदरबन की पारिस्थितिकी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।

नौकाओं के पलटने से हज़ारों पारंपरिक मछली श्रमिकों के परिवारों की आजीविका प्रभावित हुई है और इसके परिणामस्वरूप पानी में ज़हरीली फ्लाई ऐश छोड़े जाने से सुंदरबन की नदी पारिस्थितिकी पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।

फिश वर्कर्स फोरम के एक सदस्य मिलन दास ने कहा, "सुंदरबन के माध्यम से फ्लाई ऐश ट्रांसपोर्टेशन के लिए केवल पुरानी और ख़राब नौकाओं का ही नियमित रूप से उपयोग किया जाता है। वहीं अतीत में, ज़िम्मेदार एजेंसियों ने पलटी हुई नौकाओं को पानी से बाहर निकालने की ज़हमत तक नहीं उठाई।"

दास आगे बताते हैं, "हमारी शिकायतों के बाद पलटी हुई नौकाओं को बाहर निकाला जा रहा है। लेकिन जब भी कोई भरी हुई नाव पलट जाती है तो पानी में छोड़ी गई फ्लाई ऐश को हटाने के लिए कोई क़दम नहीं उठाया जाता है। ज़हरीली राख से मछलियों की आबादी कम हो जाती है और समुद्री पारिस्थितिकी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। जिस जगह भरी हुई नाव पलट जाती है, उस क्षेत्र के विशाल दायरे में मछली पकड़ने की कोई संभावना नहीं होती है।"

यह आरोप लगाया गया है कि फ्लाई ऐश के ट्रांसपोर्टेशन के लिए पुरानी और ख़राब नौकाओं का उपयोग करना परिवहन नियमों का उल्लंघन है। दिसंबर 2013 में, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने जलमार्गों के माध्यम से परिवहन सहित फ्लाई ऐश के ट्रांसपोर्टेशन के लिए दिशानिर्देशों का एक विस्तृत सेट जारी किया।

इन दिशानिर्देशों के मुताबिक़, फ्लाई ऐश ट्रांसपोर्टेशन के लिए केवल 'डेडिकेटेड' नौकाओं का उपयोग किया जाना चाहिए। दिशानिर्देशों में आगे कहा गया है कि फ्लाई ऐश के ट्रांसपोर्टेशन के लिए 'स्वचालित लोडिंग और अनलोडिंग सिस्टम के साथ विशेष रूप से डिज़ाइन की गई जेटी' भी विकसित की जानी चाहिए।

'दक्षिणबंगा मत्स्यजीबी फोरम' द्वारा दायर एक याचिका में मांग की गई है कि तटों से फ्लाई ऐश के ट्रांसपोर्टेशन के लिए केवल उपयुक्त और समुद्र में चलने योग्य जहाज़ों या नौकाओं का उपयोग किया जाए।

(लेखक एक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

Improper fly ash Disposal by Thermal Power Plants Hits Local Communities

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