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लॉकडाउन में ‘इंडिया’ तो ऑनलाइन पढ़ लेगा लेकिन ‘भारत’ का क्या होगा?

लॉकडाउन में कई छात्र ऑनलाइन क्लासेस का लाभ उठा रहे हैं लेकिन उन छात्रों का क्या जो ग़रीब परिवार से आते हैं, जिनके पास स्मार्ट फोन, लैपटॉप या इंटरनेट की सुविधाएं नहीं है। इसके साथ ही महत्वपूर्ण सवाल ग्रामीण शिक्षा व्यवस्था का भी है जहां शिक्षक और छात्र दोनों ही इंटरनेट और आधुनिक तकनीक से कोसो दूर हैं।
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प्रतीकात्मक तस्वीर

“जानते हैं सरकार नेट पर बच्चों को पढ़ा रही है, लेकिन हम गरीब आदमी हैं, छोटा-मोटा काम करके गुजारा करने वाले। हमारे पास लैपटॉप और स्मार्टफोन कहां से आएगा, हमारा बच्चा कैसे पढ़ेगा?”

ये चिंता दिल्ली-एनसीआर (ग़ाज़ियाबाद) के इंदिरापुरम के रमेश की हैं। रमेश आनंद विहार बस अड्डे के पास एक दुकान में काम करते हैं। लॉकडाउन के चलते इस वक्त उनकी दुकान बंद है, अब जैसे-तैसे वो अपना घर चला रहे हैं। परिवार में उनके दो बच्चे और पत्नी हैं, जो उनके साथ ही रहते हैं। रमेश का बड़ा बेटा EWS कोटे के तहत एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ता है जबकि छोटा सरकारी स्कूल में जाता है। ऐसे में जब उनसे बच्चे की पढ़ाई के बारे में पूछा तो रमेश का जवाब हमारी सरकार, प्रशासन और व्यवस्था पर कई सवाल खड़े कर गया।

रमेश की तरह ही सुनीता की आठवीं कक्षा में पढ़ने वाली बच्ची राधा भी ऑनलाइन क्लास के लिए रजिस्ट्रेशन नहीं करवा पाई है। सुनीता पश्चिमी दिल्ली के सुभाष नगर में घरेलू सहायिका का काम करती हैं, उनके पास कामचलाऊ स्मार्टफोन तो है लेकिन वो इस महामारी में कमाई बंद होने के कारण उसका टॉकटाइम रिचार्ज करवाने तक की हालत में भी नहीं है, ऐसे में इंटरनेट पैक डलवाना तो दूर की बात है।

सुनीता कहती हैं, “बिना काम के पैसे थोड़े न मिलते हैं, अब जब काम ही नहीं है तो पैसे कहां से आएंगे। अपनी बचाई हुई कमाई से घर का खर्चा चला रही हूं, अगर फोन और इंटरनेट में पैसे लगा दिए तो खाएंगे क्या?”

लॉकडाउन के बीच ऑनलाइन शिक्षा एक अच्छा और ज़रूरी कदम है। कई स्कूलों के छात्र इसका लाभ भी उठा रहे हैं लेकिन उन छात्रों का क्या जो गरीब परिवार से आते हैं, जिनके पास स्मार्ट फोन, लैपटॉप या इंटरनेट की सुविधाएं नहीं है। इसके साथ ही महत्वपूर्ण सवाल ग्रामीण शिक्षा व्यवस्था का भी है जहां शिक्षक और छात्र दोनों ही इंटरनेट और आधुनिक तकनीक से कोसो दूर हैं।

कमज़ोर आधारभूत ढांचा

पटना के एक सरकारी  इंटर कॉलेज  के प्रिंसिपल कहते हैं, “प्राइवेट स्कूलों में ऑनलाइन क्लासेज शुरू हो गई हैं। वहां व्यवस्था बेहतर है, शिक्षकों और बच्चों के पास भी सुविधाएं हैं लेकिन सरकारी स्कूलों का स्तर अलग है। हमारे अधिकतर शिक्षक तो पहले से ही हड़ताल पर हैं कब लौटेंगे, पता नहीं। अधिकांश बच्चों के पास भी स्मार्टफोन की सुविधा नहीं है, ऊपर से कंप्यूटर के शिक्षक स्कूलों में न के बराबर ही मान के चलिए। स्कूलों में ही कंप्यूटर की ठीक व्यवस्था नहीं हैं, घर की तो बात ही छोड़ दीजिए। ऐसी स्थिति में ई-क्लासेस जैसे प्रयोग यहां सफल कैसे हो सकते हैं।”

उत्तर प्रदेश के बलिया में एक सरकारी स्कूल की प्रधान अध्यापिका ऊषा सिंह बताती हैं, “हम भले डीजिटल इंडिया होना का दावा कर लें, लेकिन आज भी हकीकत यही है कि ग्रामीण इलाक़ों में प्रति सौ लोगों पर केवल 21.76 व्यक्ति के पास ही इंटरनेट है। जिनके पास ये सुविधा है भी, वो लोग भी उसका इसतेमाल ठीक से करना जानते हों ये कहा नहीं जा सकता। ऐसे में हम ई-क्लास की व्यवस्था कैसे कर सकते हैं।”

जम्मू-कश्मीर में बच्चों के ऑनलाइन पढ़ने में स्लो नेटवर्क भी एक बड़ी बाधा बना हुआ है। फिलहाल राज्य में 4जी इंटरनेट सेवा बंद है। टूजी नेटवर्क में न तो कुछ ठीक से डाउनलोड हो पाता है और न ही वीडियो आसानी से चल ही पाते हैं।

जम्मू-कश्मीर टीचर्स फोरम के कुलदीप सिंह बंदराल का कहना है कि ऑनलाइन शिक्षा अच्छा कदम है। लेकिन इसमें सबसे बड़ी समस्या बच्चों के पास स्मार्टफोन न होना और नेटवर्क का स्लो होना भी है। शिक्षक रोज व्हाट्सएप ग्रुप में असाइनमेंट डाल रहे हैं, लेकिन समस्या उन बच्चों की है जिनके साथ संपर्क नहीं हो पा रहा है।

क्या है भारत सरकार की रणनीति?

20 मार्च को मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अधिकारी अमित खरे ने प्रमुख सचिव को चिट्ठी लिखकर डिजिटल लर्निंग को प्रोत्साहन देने की बात कही। उन्होंने मंत्रालय की ओर से ऑनलाइन एजुकेशन के लिए मुहैया कराए जाने वाले प्रमुख ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म की जानकारी भी दी।

इसके बाद सीबीएसई और आईसीएसई बोर्ड के कई स्कूलों ने ऑनलाइन लर्निंग मोड से अगले अकादमिक (2020-2021) सत्र की पढ़ाई भी शुरू कर दी। 15 अप्रैल को सीबीएसई और फिट इंडिया मिशन ने मिलकर छात्रों को न्यूट्रीशियन, योगा और बेसिक एक्सरसाइज के बारे में जानकारी के लिए ऑनलाइन क्लासेज़ की शुरुआत भी की। कुछ राज्य सरकारें भी अपने यहां ऑनलाइन क्लासेस की व्यवस्था में लगी हुई हैं।

ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म

दीक्षा: इस ऐप पर पहली से 12वीं कक्षा तक के लिए सीबीएसई, एनसीईआरटी, और स्टेट/यूटी की ओर से बनाई गईं अलग-अलग भाषाओं में 80 हज़ार से ज़्यादा ई-बुक्स हैं।

ई-पाठशाला: इस वेब पोर्टल में कक्षा पहली से 12वीं तक के लिए एनसीईआरटी ने अलग-अलग भाषाओं में 1886 ऑडियो, 2000 वीडियो, 696 ई-बुक्स डाली गई हैं।

नेशनल रिपोसिटरी ऑफ ओपन एजुकेशनल रिसोर्सेस (NROER) : इस पोर्टल में अलग-अलग भाषाओं में ऑडियो, वीडियो, डॉक्यूमेंट, तस्वीरें, इंटरेक्टिव फाइल्स हैं। जिनकी कुल संख्या लगभग 14527 हैं।

स्वयं: इस नेशनल ऑनलाइन एजुकेशन प्लेटफॉर्म पर 11वीं-12वीं कक्षा और अंडर ग्रेजुएट-पोस्ट ग्रेजुएट दोनों ही तरह के छात्रों के लिए सभी विषयों में 1900 कोर्स हैं।

क्या है जानकारों का कहना?

कई सालों से शिक्षा क्षेत्र से जुड़े शिक्षाविद् संदीप अवस्थी ने न्यूज़क्लिक से बातचीत में सरकार द्वारा ऑनलाइन शिक्षा को बढ़ावा देने की बात को एक अच्छा कदम बताया लेकिन इसके साथ ही उन्होंने सभी छात्रों तक इसकी पहुंच को लेकर सवाल भी खड़े किए।

संदीप कहते हैं, “ये निश्चित ही अच्छी पहल है लेकिन हमें अभी ये समझने की ज़रूरत है कि इस तरह हम सिर्फ़ 20 से 30 प्रतिशत आबादी तक ही शिक्षा को पहुंचा सकेंगे। हम बार-बार भूल जाते हैं कि आज भी हमारे यहां हर किसी के पास स्मार्टफोन और इंटरनेट कनेक्टिवी की सुविधा नहीं है। आप किताबों को डिजिटलाइज़ कर सकते हैं, वेबसाइट, वीडियो और ऑडियो जैसे तमाम माध्यमों से शिक्षा का डीजिकरण कर सकते हैं लेकिन क्या इसकी पहुंच समाज के आखिरी व्यक्ति तक होगी। अगर नहीं होगी तो हम इस तरीके से गांव-देहात के गरीब बच्चों के भविष्य को और पीछे ढकेल देंगे।”

शिक्षा के क्षेत्र में अपने योगदान के लिए राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित केंद्रीय विद्यालय की शिक्षिका सरिता सिंह बताती हैं, “दिल्ली सरकार ने टीवी चैनल के माध्यम से बच्चों तक शिक्षा पहुंचाने की बात कही थी, मुझे लगता है ये एक कारगर कदम साबित हो सकता है। रेडियो और टीवी जनसंचार के बहुत प्रभावी माध्यम हैं। अगर शिक्षक अपने लेक्चर को छोटे और मजेदार कार्यक्रम की तरह प्रस्तुत करें तो घर में बच्चों तक आसानी से पहुंचा जा सकता है। इसके अलावा जिन छात्रों के पास कोई सुविधा नहीं है, उन्हें चयनित करके कोई एजुकेशनल किट की व्यवस्था भी की जा सकती है।”

हालांकि कुछ एक्सपर्ट्स का मानना है कि ऑनलाइन टीचिंग कतई क्लासरूम टीचिंग की जगह नहीं ले सकती। क्योंकि अभी टीचर्स को भी ऑनलाइन ट्यूटर बनने के लिए ट्रेनिंग की जरूरत है।

इस संबंध में हमने एचआरडी मंत्रालय से संपर्क करने की कोशिश की है, लेकिन ख़बर लिखे जाने तक हमें कोई जवाब नहीं मिला है।

गौरतलब है कि यूनेस्को ने भारत जैसे ज्यादातर देशों में कोरोना संकट के कारण स्कूलों में भारी ड्रॉपआउट की आशंका जताई है। देश में इस समय लगभग 26 करोड़ छात्र स्कूल जाने वाले हैं। ऐसे में ऑनलाइन क्लासेस शहरों और प्राइवेट स्कूलों में बहुत हद तक कारगर साबित हो सकती हैं लेकिन आर्थिक रूप से कमज़ोर और ग्रामीण इलाक़ों में रहने वाले छात्रों के भविष्य का क्या होगा, ये भी सरकार को सोचना होगा।

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