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लॉकडाउन सर्वे : ग्रामीण भारत में 50 फीसदी परिवारों को नहीं मिल रहा पेटभर खाना

प्रवासी मज़दूर बड़े शहरों को छोड़कर गांवों की तरफ पलायन कर रहे हैं लेकिन गांवों की हालत भी कुछ बहुत बेहतर नहीं है। एक सर्वे के मुताबिक ग्रामीण भारत में 50 फीसदी परिवार कम खाना खा रहे हैं।
  survey: 50% of households in rural India are not getting enough food

प्रवासी मज़दूरों के लिए ये कोरोना संकट बड़ी 'त्रासदीलेकर आया है। शहरों में फंसे प्रवासी मज़दूरों के सामने रहने और खाने-पीने का संकट है। कोरोना से बच भी जाएं तो कहीं भूख से न मर जाएंयही सोचकर मज़दूर पैदल ही सैकड़ों-हजारों किलोमीटर के सफर पर अपने घरों के लिए निकलते जा रहे हैं। लेकिन जिस ग्रामीण भारत में ये लौट रहे हैं वहां भी संकट कम नहीं। एक सर्वे के मुताबिक 50 फीसदी परिवार कम खाना खा रहे हैं।

देश के 12 राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों में 5,000 घरों को लेकर किए गए एक सर्वेक्षण में खुलासा हुआ है कि कोरोना वायरस महामारी को रोकने के लिए लागू बंद के बीच इनमें से आधे परिवार कम खाना खा रहे हैं।

 इस सर्वेक्षण का नाम कोविड-19 इंड्यूस्ड लॉकडाउन-हाउ इज हिंटरलैंड कोपिंग’ यानी कोविड-19 की वजह से लागू बंद में दूरदराज के इलाके कैसे जीवनयापन कर रहे हैं।

यह सर्वेक्षण 47 जिलों में किया गया है। बंद लागू होने के बाद ग्रामीण इलाकों में 50 फीसदी ऐसे परिवार हैं जो पहले जितनी बार भोजन करते थे उसमें कटौती कर दी है ताकि जितनी भी चीजें उपलब्ध हैंउसी में किसी तरह से काम चलाया जा सके।

 वहीं 68 फीसदी परिवार ऐसे हैं जिनके खाने की विविधता में कमी आई है यानी उनकी थाली में पहले के मुकाबले कम प्रकार के भोजन होते हैं।

 अध्ययन के अनुसार इनमें से 84 फीसदी ऐसे परिवार हैं जिन्होंने सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिए खाद्य पदार्थ हासिल किया और 37 फीसदी ऐसे परिवार हैं जिन्हें राशन मिला।

वहीं, 24 फीसदी ऐसे हैं जिन्होंने गांवों में अनाज उधार लिया और 12 फीसदी लोगों को मुफ्त में खाद्य पदार्थ मिला। बुधवार को वेबिनार में यह सर्वेक्षण जारी किया गया। अध्ययन में यह खुलासा हुआ कि ये परिवार रबी की तुलना में खरीफ भंडार पर ज्यादा निर्भर हैंलेकिन यह भंडार भी अब तेजी से समाप्त हो रहा है।

अध्ययन में कहा गया कि ये परिवार अब कम खाना खा रहे हैं और पहले की तुलना में कम बार खाना खा रहे हैं तथा इनकी निर्भरता पीडीएस के जरिए हासिल किए गए अनाज पर बढ़ गई है। सर्वेक्षण में यह निकलकर सामने आया है कि खरीफ फसल 2020 के लिए तैयारी अच्छी नहीं है और बीज तथा नकदी राशि के लिए मदद की जरूरत है।

अध्ययन में कहा गया है कि बंद और अफवाह की वजह से डेयरी और पॉल्ट्री क्षेत्र पर विपरीत प्रभाव पड़ा है। लोग अपने खाने की आदतों में बदलाव कर रहे हैं और खर्चे कम कर रहे हैं।

यह अध्ययन असमबिहारछत्तीसगढ़गुजरातझारखंडकर्नाटकमहाराष्ट्रमध्य प्रदेशओडिशाराजस्थानउत्तर प्रदेशपश्चिम बंगाल में किया गया है। यह अध्ययन नागरिक संगठन प्रदानऐक्शन फॉर सोशल एडवांसमेंटबीएआईएफट्रांसफॉर्म रूरल इंडिया फाउंडेशनग्रामीण सहारासाथी-उप्र और आगा खां रूरल सपोर्ट प्रोग्राम ने किया है।

गौरतलब है कि सरकार ने एक बड़े आर्थिक पैकेज का ऐलान किया है लेकिन दुर्भाग्य से  सड़कों पर पैदल जा रहे लोगों और दूसरे जरूरतमंद लोगों को तत्काल मदद की जरूरत है लेकिन सरकार उनकी तकलीफों के लेकर संवेदनशील नहीं है। उम्मीद थी कि कामकाजी वर्ग और प्रवासी मज़दूरों को तत्काल राहत दी जाएगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ है। ऐसे में यह संकट और भी गहराता जा रहा है।

 

(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)

 

 

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