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लखनऊ लुलु मॉल विवाद: नफ़रत की राजनीति के बीच प्रदेश का विकास कैसे संभव है?

लुलु प्रमुख यूसुफ़ अली ने यूपी में 2500 करोड़ रुपये के निवेश का प्रस्ताव दिया है। हालांकि लखनऊ के मॉल में जो विवाद देखने को मिला, उससे डर है कि सांप्रदायिकता के ज़हर में कहीं विकास की गाड़ी पटरी से न उतर जाए।
Lulu Mall
Image courtesy : Jagran

लखनऊ का लुलु मॉल अपने उद्घाटन के साथ ही विवादों में आ गया है। मॉल पर इस्लाम को बढ़ावा दिए जाने से लेकर लव जिहाद फैलाने तक कई आरोप लग रहे हैं, तो वहीं मॉल में कुछ नमाज़ियों का नमाज़ अदा करते हुए एक वीडियो खूब वायरल हो रहा है, जिसका कुछ धार्मिक संगठनों ने विरोध करना शुरू कर दिया है। दक्षिणपंथी संगठन अखिल भारतीय हिंदू महासभा के कुछ सदस्यों ने बीते बृहस्पतिवार को लुलु मॉल के गेट पर धरना-प्रदर्शन भी किया। साथ ही लुलु मॉल के बॉयकॉट की अपील भी की। शुक्रवार, 16 जुलाई को सुंदरकांड पढ़े जाने को लेकर एक बार फिर से हंगामा हुआ। इसके बाद पुलिस ने चार लोगों को गिरफ्तार कर लिया और उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया।

बता दें कि लुलु मॉल को लखनऊ का सबसे बड़ा मॉल बताया जा रहा है और इसका उद्घाटन खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पांच दिन पहले 10 जुलाई को किया था। अब तक इसे लखनऊ के विकास के रूप में प्रचार-प्रसार किया जा रहा था लेकिन अब ये सांप्रदायिकता के निशाने पर आ गया है। खुद सीएम योगी इस मॉल को लेकर घिरते नज़र पर आ रहे हैं। उपद्रवियों पर बुलडोजर चलाने की बात करने वाले सीएम से अब हिंदूवादी संगठन लुलु मॉल पर बुलडोजर चलाने की मांग कर रहे हैं।

उधर, प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अपने ट्विटर अकाउंट पर इस पूरे विवाद को राज्य के विकास के लिए बाधाकारी बताते हुए लिखा है कि व्यावसायिक गतिविधियां यदि षड्यंत्रों और साज़िशों की राजनीति का शिकार होने लगेंगी तो निवेश करने कौन आएगा।

क्या है पूरा मामला?

जानकारी के मुताबिक पिछले साल, योगी आदित्यनाथ सरकार ने सार्वजनिक इलाक़ों में धार्मिक गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया था। ये फ़ैसला सड़क पर नमाज़ पढ़े जाने को लेकर हुए विवाद के बाद लिया गया था। इसी तर्ज पर अब लुलु मॉल के खिलाफ कार्रवाई की बात कही जा रही है। मॉल के वीडियो में दिख रहा है कि सात या आठ लोग मॉल के कोन में बैठकर नमाज़ पढ़ रहे हैं, वहीं लोग उनके पास से होकर गुज़र रहे हैं।

बढ़ते विवाद के बीच मॉल के जनरल मैनेजर समीर वर्मा ने एक वीडियो के ज़रिए अपने बयान में कहा, "लुलु मॉल सभी धर्मों का आदर करता है। किसी भी प्रकार का संगठित धार्मिक कार्य या प्रार्थना की अनुमति यहां नहीं दी जाती है। हम अपने फ्लोर स्टाफ, सिक्योरिटी स्टॉफ को कड़ी ट्रेनिंग देते हैं कि ऐसी गतिविधियों पर कड़ी और पर्याप्त नजर रखी जाए। इस मॉल को हम अंतरराष्ट्रीय स्तर का शॉपिंग डेस्टिनेशन बनाना चाहते हैं और हम अपने मीडिया के दोस्तों से ये आग्रह करते हैं कि आप सभी हमारा इस चीज में सहयोग करें।"

हालांकि, नमाज को लेकर विवाद बढ़ने के बाद इसे लेकर एफ़आईआर दर्ज कर ली गई है। हिंदी अख़बार हिंदुस्तान के मुताबिक सुशांत गोल्फ सिटी थाने में ये शिकायत दर्ज हुई है। लुलु मॉल मैनेजमेंट की तरफ़ से ही पुलिस को तहरीर दी गई है कि वायरल वीडियो में दिख रहे नमाज पढ़ते हुए लोगों से उनका कोई संबंध नहीं है। वह मॉल के कर्मचारी भी नहीं हैं।

योगी आदित्यनाथ दक्षिणपंथी संगठनों के निशाने पर

अंग्रेज़ी अख़बार द टेलिग्राफ़ के अनुसार लुलु मॉल के उद्घाटन के बाद से ही योगी आदित्यनाथ इसे लेकर दक्षिणपंथी संगठनों की आलोचना का सामना कर रहे हैं। एक मुसलमान कारोबारी और विशेषतौर पर अधिकतर मुसलमानों को नौकरी देने वाले कारोबारी का मॉल होने के चलते वो निशाने पर हैं।

महासभा के शिशिर चतुर्वेदी ने मॉल के लिए ज़मीन आवंटित करने और इसकी योजना में अनियमितता होने का आरोप भी लगाया। उन्होंने कहा, ''हम बाबा जी (योगी आदित्यनाथ) से पूछना चाहते हैं कि वो बिल्डिंग को गिराने के लिए आदेश कब देने वाले हैं।''

शिशिर चतुर्वेदी ने मॉल के बाहर मीडिया से कहा, ''हमें पता चला है कि बुधवार, 13 जुलाई को मॉल के सार्वजनिक इलाक़े में नमाज़ पढ़ी गई है। अगर ऐसा है तो हम वहां सुंदरकांड और हनुमान चालीसा पढ़ना चाहते हैं।''

उन्होंने आरोप लगाया, ''हमें ये भी पता चला है कि मॉल के 70 प्रतिशत कर्मचारी मुसलमान और 30 प्रतिशत हिंदू हैं। मॉल मुसलमानों और इस्लाम को बढ़ावा दे रहा है।'' इसके अलावा अखिल भारत हिंदू महासभा के प्रवक्ता शिशिर चतुर्वेदी ने अपने पत्र में दावा किया है कि लखनऊ के लुलु मॉल को बनाने में काफी मात्रा में काला धन लगा है। पत्र में सनातन धर्म के लोगों से मॉल का बॉयकॉट करने की अपील भी की गई है।

पत्र में लुलु मॉल पर कथित लव जिहाद को लेकर भी कई गंभीर आरोप भी लगाए हैं। पत्र के मुताबिक, “लखनऊ के विवादित लुलु मॉल में कुछ लोगों द्वारा नमाज पढ़ी गई है। यह सर्वविदित है कि इस मॉल के बारे में उद्घाटन से पहले ही सोशल मीडिया पर चल रहा था कि यहां लव जिहाद को बढ़ावा दिया जाता है। मॉल में साजिशन 70% एक धर्म के लड़के व अन्य धर्म की लड़कियों की भर्ती की जाती है...हिंदू महासभा मांग करती है कि सरकार अपने पूर्व के आदेशों का पालन कराए, जिनके तहत सार्वजनिक स्थल पर नमाज नहीं पढ़ी जा सकती। अगर इस मॉल में दोबारा नमाज पढ़ी जाएगी तो हिंदू महासभा के लोग विवश होकर मॉल में आकर विरोध प्रदर्शन करेंगे और सुंदरकांड का पाठ करेंगे।"

हालांकि इसे लेकर मॉल प्रबंधन के अधिकारियों का कहना है कि उन्होंने वॉक इन इंटरव्यू के आधार पर लोगों को नौकरी दी है और इस बारे में लगाए गए तमाम आरोप गलत हैं। लुलु मॉल के प्रबंधन ने लगातार हो रहे विवाद के बाद मॉल में कई जगहों पर नोटिस लगा कर कहा है कि यहां किसी भी तरह की धार्मिक प्रार्थना करने की इजाजत नहीं है।

यूपी का विकास और सांप्रदायिकता का ज़हर

गौरतलब है कि लुलु अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ मोती होता है। कोच्चि, तिरुवनंतपुरम और बेंगलुरु के बाद अबू धाबी स्थित लुलु ग्रुप ने लखनऊ के सुशांत गोल्फ सिटी में अपना यह मॉल खोला है। इस मॉल को लखनऊ ही नहीं पूरे उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा मॉल बताया जा रहा है। यह 2.2 मिलियन वर्ग फुट में बना है। मॉल में 15 रेस्तरां और कैफे हैं। 25 ब्रांड आउटलेट के साथ फूड कोर्ट भी है, जिसमें 1600 लोग एक साथ बैठ सकते हैं। इसके अलावा यहां 11 स्क्रीन वाला पीवीआर सुपरप्लेक्स भी जल्द ही शुरू होने वाला है। यह केरल के एक कारोबारी एम.ए. यूसुफ़ अली का है जो लुलु ग्रुप के प्रमुख हैं। यूसुफ़ अली ने केरल में भी देश के दो सबसे बड़े मॉल बनाए हैं। यूसुफ़ अली ने यूपी में 2500 करोड़ रुपये के निवेश का प्रस्ताव दिया था और उन्हें 4 जून को लखनऊ में आयोजित इंवेस्टर समिट में बुलाया गया था।

बहरहाल, देश और प्रदेश में बढ़ते सांप्रदायिकता के जहर में कहीं विकास की गाड़ी पटरी से न उतर जाए, ये सबसे बड़ी चिंता है। उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्य के लोग बड़ी संख्या में रोज़गार की कमी के चलते पलायन का संकट झेल रहे हैं। कोरोना महामारी में इसकी स्याह सच्चाई सभी ने देखी है। फिलहाल जो विकास के बड़े दावे और वादे हैं वो ऐसे नफरती माहौल में कहीं ध्वस्त न हो जाएं।

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