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ब्राज़ील के राष्ट्रपति पद पर लूला डी सिल्वा की वापसी, बोलसोनारो को चुनाव में दी मात

प्राधिकरण के मुताबिक, आम चुनाव में पड़े कुल मतों में से 98.8 प्रतिशत मतों की गिनती के अनुसार, लूला डी सिल्वा को 50.8 फीसद और बोलसोनारो को 49.2 प्रतिशत मत मिले।
Brazil election
Image courtesy : DW

ब्राजील में हुए राष्ट्रपति पद के चुनाव में वामपंथी ‘वर्कर्स पार्टी’ के लुइज इनासियो लूला डी सिल्वा ने निवर्तमान राष्ट्रपति जायर बोलसोनारो को हरा दिया है। निर्वाचन प्राधिकरण ने रविवार को यह जानकारी दी।

प्राधिकरण के मुताबिक, आम चुनाव में पड़े कुल मतों में से 98.8 प्रतिशत मतों की गिनती के अनुसार, लूला डी सिल्वा को 50.8 फीसद और बोलसोनारो को 49.2 प्रतिशत मत मिले।

बता दें कि लूला डी सिल्वा 2003 से 2010 के दौरान ब्राजील के राष्ट्रपति रह चुके हैं। लूला डी सिल्वा (77) को 2018 में भ्रष्टाचार के मामले में कैद की सज़ा सुनाई गई थी, जिस वजह से उन्हें उस साल चुनाव में दरकिनार कर दिया गया था। इस कारण, तत्कालीन उम्मीदवार बोलसोनारो की जीत का मार्ग प्रशस्त हुआ था।

समाजवादी लूला और दक्षिणपंथी बोलसोनारो के बीच की टक्कर ब्राजील की अपनी राजनीति के अलावा बाकी दुनिया के लिए भी काफी अहम मानी जा रही थी। कई लोग इसे विज्ञान के नजरिये से भी देख रहे थे और इसे एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण और एक अवैज्ञानिक दृष्टिकोण के बीच की टक्कर बता रहे थे। दुनियाभर का वैज्ञानिक समुदाय लूला को विज्ञान-अनुकूल मानता है। यहां दुनिया-भर की अहमियत इसलिए है क्योंकि धरती के फेफड़े कहे जाने वाले एमेजन के जंगलों का बड़ा हिस्सा ब्राजील में है और ब्राजील में सत्ता पर काबिज व्यक्ति की नीतियां एमेजन और इस तरह से दुनिया के पर्यावरण संरक्षण का भविष्य तय करने में भी अहम भूमिका निभाएगी।

लूला जब 2003 से 2010 तक राष्ट्रपति थे तो उनकी सरकार ने विज्ञान में खासा निवेश किया था। साथ ही उन सामाजिक व पर्यावरण नीतियों को बढ़ावा दिया था जिनसे एमेजन के जंगलों की कटाई पर रोक लगी और लाखों लोग गरीबी से बाहर निकले।

बोलसोनारो को एमेजन के जंगलों को बर्बाद करने के लिए भी काफी कुख्याति मिली है। वहीं लूला को दुनियाभर में पर्यावरण प्रेमियों व वैज्ञानिकों के बीच एक ऐसी व्यवस्था खड़ी करने के लिए जाना जाता है जिसने एमेजन के जंगलों की कटाई में 2004 से लेकर 2012 के बीच 80 फीसदी तक कमी की।

इसके उलट बोलसोनारो ने जंगलों के पास खनन और विकास के कामों को बढ़ावा दिया और पर्यावरण कानूनों को ढीला कर दिया। नतीजा यह हुआ कि जंगलों की कटाई खूब हुई, देशभर में पर्यावरण कार्यकर्ताओं व मूल समुदायों के लोगों पर हमले बढ़े। जंगलों की इस कटाई ने वहां संगठित अपराध को भी बढ़ावा दिया।

(समाचार एजेंसी एपी के इनपुट के साथ)

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