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एमसीडी चुनाव 2022 : कम मतदान से किसे फ़ायदा, किसे नुकसान?

चुनाव आयोग का कहना है कि मतगणना केंद्रों की संख्या अधिक होने से परिणाम जल्दी आएंगे, क्योंकि केंद्रों पर जगह अधिक होने के कारण मतगणना के चरण कम होंगे।
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फ़ोटो साभार: पीटीआई

दिल्ली नगर निगम चुनाव(एमसीडी) का संघर्ष अब खत्म हो गया है और दिल्ली की जनता ने रविवार को अपना  फैसला दे दिया है। जनता ने हर पार्टी के दावों और नीति को लेकर अपना फैसला ईवीएम में बंद कर दिया है। जिसका ऐलान आने वाली सात तारीख यानी बुधवार को होना है। इस चुनाव में जनता का मतदान को लेकर उत्साह नहीं दिखा। इस चुनाव में दिल्ली में मतदान बहुत कम हुआ। हालांकि पिछले एक सालों में निगम चुनावों में मतदान बहुत बेहतर नहीं होता था लेकिन इससे अधिक ही रहता था।

इस साल लगभग 50 फीसदी मतदान हुआ है। अगर हम पिछले सालों की बात करें तो 2007 में 43.24 फीसदी, 2012 में 53.39 फीसदी और आखिरी चुनाव यानी 2017 में  53.55 फीसदी ही मतदान हुआ था।

इस चुनाव मधमवर्गीय इलाकों में मतदान काफी कम रहा जबकि झुग्गी बस्ती और अनधिकृत इलाकों में इसकी तुलना में अधिक मतदान हुआ। सबसे अधिक मतदान बख्तावरपुर वार्ड मेंं हुआ है। यहां  66.74 प्रतिशत मतदान हुआ है। जबकि पॉश इलाका माने जाने वाले एंड्रयूजगंज वार्ड मेंं सबसे कम 33.74 प्रतिशत ही वोट पड़े। जबकि एक वार्ड के तीन बूथों पर वोट डले ही नहीं। वार्ड नंबर 31 नांगल ठाकरान में 17, 18 और 19  बूथ पर मतदाताओं ने वोट नहीं डाले। यहां लोग अपने क्षेत्र में विकास नहीं होने से परेशान थे।

इस बार पॉश इलाकों मेंं काफी कम मतदान हुआ है। जानकारों की मानें तो इन इलाकों को बीजेपी समर्थित माना जाता है। लेकिन विधानसभा चुनावों में हमने देखा आम आदमी पार्टी को भी भारी समर्थन मिला है। इसलिए यह कहना कि कम मतदान से किसका नुकसान हो रहा है ये काफी मुश्किल है। कम मतदान से किसका फायदा हुआ है? ये उस पर निर्भर करेगा कि कौन अपने वोटरों को बूथ तक लाने में सफल रहा है।

इस पूरे चुनाव में एक बात साफ दिख रही थी कि बीजेपी का कोर कार्यकर्ता भी निगम में बीजेपी के 15 साल के काम से नाराज़ था। चुनाव के शुरुआत में वो खुलकर अपना विरोध दर्ज करता दिखा भी लेकिन इस पूरे चुनावी प्रक्रिया में दूसरा दल संगठनात्मक तौर पर उनकी नाराजगी को अपने पक्ष में नहीं कर सकी। बीजेपी कार्यकर्ता केजरीवाल की पार्टी को वोट देने में सहज नहीं था। यही कारण है कि कई जगह पर उनके कार्यकर्ताओं ने बूथ से खुद को दूर ही रखा। वहीं इस चुनाव में विधानसभा की तरह लोगों में दिल्ली सरकार के काम को लेकर उत्साह नहीं दिखा। दूसरा पार्टी ने जिस तरह से टिकट बँटवार किया उससे भी उसका कार्यकर्ता नाराज़ दिखा और वो भी चुनावी संग्राम में शांत ही दिखा। जबकि कॉंग्रेस खुद को इनके विकल्प के तौर पर नहीं स्थापित करती दिखी। हालांकि कई सीटों पर कॉंग्रेस इन दोनों पार्टियों का खेल बिगाड़ सकती है।

इन सबके आलवा इस बार चुनाव में भारी अव्यवस्था के कारण भी मतदान प्रभावित हुआ। लगभग वार्ड से मतदाताओं ने मतदाता सूची में नाम काटे जाने की शिकायत की। परिसीमन के बाद से मतदाताओं को एक बूथ से दूसरे बूथ तक चक्कर काटना पड़ रहा था। जिसकी वजह से कई लोग मतदान छोड़ घर चले गए। इसके साथ ही अनलाइन से वोटर की डिटेल गलत आ रही थी। क्योंकि चुनाव आयोग ने ऑनलाइन वोटर लिस्ट अपडेट नहीं की थी वो पुरानी जानकारी ही दे रहा था। एक एप जो सही जानकारी दे रहा था वो चल ही नहीं रहा था। सभी पार्टियों के नेताओं ने अपने-अपने हजारों वोटरों के आखिरी समय मेंं वोटर लिस्ट से नाम काटने की शिकायत की और सभी अपने वोटर आईडी कार्ड को लेकर परेशान दिखे। इस बार चुनाव आयोग मतदाता पर्ची भी सभी मतदाताओं के घर नहीं पहुंचा पाया था। हालांकि इसकी वजह से किसी एक राजनीतिक पार्टी को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा, ऐसा नहीं लगता है। क्योंकि नाम काटने की शिकायत लगभग हर पार्टी और वार्ड से आई है।

पिछले एक सप्ताह से दिल्ली में चुनाव के साथ ही शादियों का सीजन भी अपने पीक पर था। जिसकी वजह से बड़ी संख्या में लोग शहर से बाहर थे या शादियों में व्यस्त थे।

निगम के 250 वार्डों की मतगणना बुधवार को 42 केंद्रों पर होगी। सभी जगह कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की गई है। चुनाव आयोग का कहना है कि मतगणना केंद्रों की संख्या अधिक होने से परिणाम जल्दी आएंगे, क्योंकि केंद्रों पर जगह अधिक होने के कारण मतगणना के चरण कम होंगे। इस तरह सभी वार्डों की मतगणना दोपहर से पहले पूरी हो जाएगी।

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