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मनरेगा: ग्रामीण विकास मंत्रालय की उदासीनता का दंश झेलते मज़दूर, रुकी 4060 करोड़ की मज़दूरी

ग्रामीण विकास मंत्रालय की ओर से ताजा जारी किए गए एक रिपोर्ट के मुताबिक 4,060 करोड़ रूपए की मज़दूरी का भुगतान नहीं हो सका है।
MNREGA
Image courtesy : DownToEarth

मजदूरों, गरीब श्रमिकों को रोजगार देने के लिए यूपीए की पहली सरकार ने 2005 में महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) को लागू किया था। लेकिन तब से लेकर अबतक के सफर में इस योजना ने केवल और केवल सत्ता के उदासीनता का दंश ही झेला है।

भारत सरकार की ग्रामीण विकास मंत्रालय इस योजना के क्रियान्वयन के लिए जिम्मेदार है। ग्रामीण विकास मंत्रालय की ओर से ताजा जारी किए गए एक रिपोर्ट के मुताबिक 4,060 करोड़ रूपए की मजदूरी का भुगतान नहीं हो सका है। यह बेहद चिंताजनक स्थिति है, और भारत सरकार के गरीबों के प्रति उदासीन रवैये का एक प्रत्यक्ष प्रमाण भी है। तमाम आर्थिक विश्लेषकों का भी यही मानना है कि भारत में बेरोजगारी दर के रिकॉर्ड नीचले स्तर पर पहुंचने का कारण सही समय पर पारिश्रमिकी का नहीं मिलना है।

भारत में लगातार नीचे आती बेरोजगारी दर –

देश में बेरोजगारी दर में बड़ी गिरावट देखने को मिल रही है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के मुताबिक, जनवरी 2022 में देश में बेरोजगारी दर गिरकर 6.57 फीसदी पर पहुंच चुकी है। यह मार्च 2021 के बाद भारत में बेरोजगारी का सबसे निचला स्तर है।

शहरी क्षेत्रों में जनवरी में बेरोजगारी दर 8.16 फीसदी रही, वहीं ग्रामीण अंचल में बेरोजगारी दर अब तक के अपने सबसे कम 5.84 फीसदी पर पहुंच चुकी है। सीएमआईई के रिपोर्ट के मुताबिक, दिसंबर में भारत की बेरोजगारी दर 7.91 फीसद थी। तब नगरीय क्षेत्रों में बेरोजगारी दर 9.30 फीसद और ग्रामीण क्षेत्रों में 7.28 फीसद थी।

जाहिर है कि ग्रामीण इलाकों में बेरोजगारी दर अबतक के अपने सबसे निचले पायदान पर है, मनरेगा मजदूर तेजी से घटती बेरोजगारी और लगातार बढ़ती महंगाई के कारण दोहरी मार झेल रहे हैं । ऐसे हालात में सोचिए अगर सरकार से पारिश्रमिक भी ना मिले तो गरीब बेसहारा मजदूरों पर क्या गुजरेगी।

मशहूर शायर अज़हर इकबाल का शेर है –

नींद आएगी भला कैसे उसे शाम के बाद
रोटियां भी न मयस्सर हो सके जिसे काम के बाद।।

मनरेगा के वार्षिक बजट में 25000 करोड़ की भारी कटौती-

चालू वित्त वर्ष में सरकार की ओर से मनरेगा के लिए 73000 करोड़ का ही बजट दिया गया है, जो पिछले साल के 98000 करोड़ से 25000 करोड़ कम है। उसके भी पिछले साल यानी कि 2020 में जब देश में आर्थिक संकट कोरोना महामारी के कारण चरम पर था और रोजगार की कमी थी तब एक लाख करोड़ के बजट और नियमित काम मिलने के कारण ही ग्रामीण मजदूर शायद इतने बड़े महामारी को झेल सकें थें। तमाम राज्यों से बड़े मात्रा में मजदूर अपने अपने क्षेत्र में पलायन को मजबूर थे। इस दौरान कुल 11 करोड़ ग्रामीण मजदूरों का सहारा मनरेगा ही बना था। इसलिए सवाल ये उठता है कि क्या ग्रामीण विकास मंत्रालय देश में पैदा हुए आर्थिक और रोजगार के संकट की सुध लेते हुए एक बार फिर से  मनरेगा के बजट में इजाफा करेगा ?

पिछले पांच साल में श्रम भागीदारी में 6 फीसदी गिरावट- सीएमआईई

सीएमआईई के ही एक अन्य रिपोर्ट की बात की जाए तो भारत में पिछले 5 साल अर्थात वर्ष 2017 से 2022 के बीच में देश में कुल श्रम भागीदारी में 6 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है, पहले यह 46 फीसदी थी लेकिन मौजूदा समय में 40 फीसदी पर आ चुकी है। रिपोर्ट के मुताबिक 2.1 फीसदी मजदूरों ने काम छोड़ा है। रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि भारत में 90 करोड़ लोग काम करने के योग्य हैं लेकिन हताशा,निराशा और बेहद कम वेतनभत्ता जैसे कारणों के वजह से 45 करोड़ लोग अब रोजगार की तलाश भी करना बंद कर चुकें हैं।

लंबित भुगतान के कारण मानवदिवस में भी कमी –

महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम(मनरेगा) के तहत सरकार को अधिक से अधिक बेरोजगार आबादी का रोजगार सृजन करने के लिए प्रतिबद्ध है। मनरेगा के नियम के अनुसार एक श्रमिक को वर्ष में 100 दिन का मानवदिवस दिया जाना चाहिए लेकिन देश के अधिकतर राज्यों में केंद्र से आर्थिक मदद सही समय पर नहीं मिलने के कारण विवशतावश मजदूरों को काम नहीं दे पा रहीं हैं राज्य सरकारें।

ग्रामीण विकास मंत्रालय ने इन हालातों को लेकर सफाई भी दिया था। लेकिन ग्रामीण विकास मंत्रालय को घेरते हुए कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि “केंद्र सरकार कहती है कि मनरेगा के लिए पैसे की कमी नहीं है, लेकिन अब मनरेगा के तहत लोगों को तय अवधी तक काम नहीं मिल रहा है। गरीबों और मजदूरों को नुकसान हो रहा है, 2021 में लोगों को औसतन 11.66 दिन का काम मिल सका है।

कब बढ़ाई जाएगी मनरेगा मजदूरों की पारिश्रमिक

इसी साल अप्रैल से मनरेगा मजदूरों को एक मानवदिवस के भत्ते में कुल 9 रूपये की वृद्धी की गई, मतलब अब एक मानवदिवस का भत्ता 204 प्रति दिवस से बढ़ाकर 213 रूपये कर दिया गया है। लेकिन क्या मौजूदा दौर में 213 रूपये में एक मजदूर अपना और अपने परिवार का गुजर बसर कर सकता है ? ये एक बड़ा सवाल है। अगर खुले बाजार में एक दिन के मजदूरी भत्ते की बात करें तो यह छोटे शहरों या ग्रामीण इलाकों में भी कम से कम 300 रूपये है, वहीं बड़े शहरों में तो कहीं कहीं 500 रूपये तक मजदूरी श्रमिकों मिलती है। ऐसे में मनरेगा जॉबकार्ड धारकों को खुले बाजार में जाकर मजदूरी करने विवश हैं। इसमें काम लगातार मिलने का जोखिम तो है लेकिन कम से कम काम के बाद पैसा समय से मिलने की गारंटी लगभग जरूर है। लिहाजा इस स्थिति के पैदा होने के कारण इस वर्ष आधा अप्रैल बीत जाने के बाद भी मानवदिवस सृजन के लक्ष्य को हासिल करने में कोसों दूर है।

अबतक लंबित भुगतान को लेकर क्या कार्रवाई हुई ?

मनरेगा श्रमिकों के चिंताजनक हालात और हाशिए पर आ जाने के कारण इस स्थिति के निवारण के लिए प्रशांत भूषण के सामाजिक संस्था स्वराज अभियान  की ओर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी, जिसके सुनवाई के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने याचिका को स्वीकार कर लिया है । इस याचिका में दावा किया गया है कि देश के ज्यादातर राज्यों में श्रमिकों के लंबित भुगतान को नकारात्मक राशी के साथ 30 दिनों के भीतर मजदूरों को दिया जाए। साथ ही साथ 26 राज्यों के कुल बकाया 9682 करोड़ की राशी को भी राज्यों को केंद्र की ग्रामीण विकास मंत्रालय की ओर से जारी किया जाए।

मनरेगा मजदूरों के स्थिति निवारण के इस याचिका की सुनवाई भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन्ना के अध्यक्षता में की जाएगी। एनजीओ के ओर से याचिका में यह भी कहा गया है कि 100 दिन के अलावा लाभार्थियों को 50 दिन का अतिरिक्त काम मुहैया कराने की भी मांग की गई है।

मनरेगा को लेकर भारतीय पीएम नरेंद्र मोदी क्या सोच रखते हैं-

राष्ट्रपति के अभिभाषण के बाद लोकसभा में पीएम मोदी ने मनरेगा को लेकर एक बार कहा था कि “लोग इस योजना के तहत कुदाल चलाते जाएंगे और इससे कांग्रेस की 60 साल की नाकामी उजागर होती जाएगी उन्होंने अपने संबोधन में मनरेगा को कांग्रेस की विफलता का स्मारक करार दिया था।

सवाल –

आखिर आप क्या सोच रखते हैं मनरेगा को लेकर जिसने कोरोना काल में ग्रामीण इलाकों के ज्यादातर अकुशल मजदूरों की आजीविका को बनाए रखा ?

आपको बतादें की इस योजना के लागू होने के समय यूपीए सरकार के पक्ष में या विपक्ष दोनों ही धाराओं में लिखने वाली तमाम पत्र-पत्रिकाओं और समाचार समूहों ने जमकर तारीफ की थी। आज मनरेगा की यह अथक यात्रा 17वें साल में पहुंच चुकी है, और अब भी अपने हालातों से जूझ रही है।

एक आरटीआई में ये खुलासा किया गया है कि केंद्र सरकार पिछले 7 साल में अबतक लगभग 11 लाख करोड़ का कॉरपोरेट कर्ज माफ कर चुकी है।

क्या भारत सरकार देश की आत्मा वाले अपने ग्रामीण या किसानी क्षेत्रों में एक सकारात्मक पहल करते हुए इस योजना को और अधिक मजबूती प्रदान करने के लिए कोई ठोस कदम उठाएगी अथवा नहीं ? ये आप खुद से तय करें।

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