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तथाकथित ‘लव जिहाद’ के ख़िलाफ़ मध्य प्रदेश लाएगा क़ानून

मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार द्वारा लाए जा रहे प्रस्तावित विधेयक में ‘लव जिहाद‘ ग़ैर-ज़मानती अपराध होगा और पांच साल तक की कड़ी सज़ा का प्रावधान है।
लव जिहाद

भोपाल: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली मध्य प्रदेश सरकार ने मंगलवार को घोषणा की है वह राज्य में ‘लव-जिहाद’ के मामलों में कथित उछाल की आ रही रिपोर्ट के बाद विधानसभा के शीतकालीन सत्र में ‘लव जिहाद’ के ख़िलाफ़ एक विधेयक पेश करेगी। प्रस्तावित क़ानून में ‘लव जिहाद’ को गैर-जमानती अपराध और पांच साल तक के कठोर कारावास का प्रावधान है।

सत्ताधारी पार्टी के किसी भी राजनीतिक नेता या संगठन को ‘लव जिहाद’ के अस्तित्व के बारे में या इसके मामलों में आई वृद्धि को साबित करने के लिए आंकड़े की पेश करना बाकी है।

प्रस्तावित मसौदे के बारे में बात करते हुए, राज्य के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कहा, "हम आगामी विधानसभा सत्र में मध्य प्रदेश ‘धर्म स्वतंत्र विधेयक 2020' के माध्यम से ‘लव जिहाद’ के बारे में एक मसौदा लाएंगे, ताकि विवाह के मामले में धर्म परिवर्तन को मजबूर करने के मामलों को रोका जा सके।"

उन्होंने आगे कहा, "इस क़ानून में जबरन शादी, प्रलोभन देने और जबरन धर्म परिवर्तन के मामले में लिप्त पाए जाने पर पांच साल तक का कठोर कारावास का प्रावधान होगा। विधेयक में यह भी प्रस्ताव है कि अपराध संज्ञेय और गैर-जमानती की श्रेणी में आएगा। इसी क़ानून में विवाह को गैर-वाजिब ठहराने के प्रावधान भी किए जाएंगे।”

मसौदे के अनुसार, अपराध में साथ देने वाले सहयोगी पर भी मुख्य अभियुक्त के रूप में मुकदमा चलाया जाएगा। जिस व्यक्ति का धर्म परिवर्तन किया गया है उसके माता-पिता या  भाई-बहन को कार्रवाई की मांग करने के लिए शिकायत दर्ज करनी होगी। 

मिश्रा ने मसौदे का हवाला देते हुए कहा, "अगर कोई भी धर्मांतरण करना चाहता है, तो धर्मांतरण करने वाले धर्मगुरु/पादरी/मौलाना को एक महीने पहले कलेक्टर के समक्ष आवेदन देना होगा।"

घोषणा के कुछ घंटों बाद, भाजपा विधायक और राज्य विधानसभा के प्रोटेम स्पीकर, रामेश्वर शर्मा ने आगे बढ़कर दावा किया कि राज्य सरकार क़ानून में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदाय से उन महिलाओं के आरक्षण या कोटा को खारिज करने के प्रावधानों को जोड़ने के बारे में भी सोच रही है, यदि वे अपना धर्म बदलती हैं या फिर मुस्लिम या ईसाई समुदाय के लोगों से से शादी करते/करती हैं। 

समाचार एजेंसी एएनआई से बात करते हुए उन्होने बताया कि, "हम ऐसे प्रावधानों पर भी चर्चा कर रहे हैं, जिसमें अगर एससी/एसटी समुदाय की कोई महिला मुस्लिम या ईसाई व्यक्ति से शादी करती है तो उस केस में वह एससी।एसटी लाभ की हकदार नहीं होगी।"

प्रस्तावित बिल के जवाब में टिप्पणी करते हुए कांग्रेस नेता और पूर्व क़ानून मंत्री पी॰ सी॰ शर्मा ने कहा कि, “यह भाजपा की राजनीतिक नौटंकी है। सरकार को पहले विधानसभा सत्र बुलाना चाहिए और पूर्णकालिक स्पीकर का चुनाव करना चाहिए, फिर इस क़ानून के फायदे और नुकसान पर चर्चा की जा सकती है।”

गृह मंत्री के कथित ‘लव जिहाद’ के ख़िलाफ़ क़ानून बनाने की घोषणा का उद्देश्य हिंदू महिलाओं को अन्य धर्मों, विशेष रूप से इस्लाम में परिवर्तित करने के प्रयास के रूप में अंतरजातीय विवाह पर दक्षिणपंथी समझ की मुहर लगाना है। केंद्र में भाजपा सरकार के सत्ता में आने के बाद से ही अंतरजातीय विवाह पर अंकुश लगाने की कोशिश की जा रही है।

बावजूद इसके, मिश्रा जी ‘लव जिहाद’ की परिभाषा नहीं बता पाए जबकि उनकी राज्य सरकार इसके ख़िलाफ़ क़ानून बनाने जा रही है। 

मध्य प्रदेश में पहले से जबरन धर्म परिवर्तन विवाह के ख़िलाफ़ क़ानून है

जबरन शादी, प्रलोभन और जबरन धर्म परिवर्तन के ख़िलाफ़ मध्य प्रदेश में क़ानून का होना कोई नई बात नहीं है। इस तरह के क़ानून को 1968 में पारित करने वाला यह पहला राज्य था। इस प्रकार, राज्य को 1968 में 'मध्यप्रदेश धर्मतंत्र संहिता', या 'मध्य प्रदेश स्वतंत्रता धर्म अधिनियम' क़ानून मिल गया था। 

1968 के क़ानून का प्रारूप 1954 में नियोगी समिति की सिफारिशों पर कांग्रेस सरकार ने तैयार किया था। इस समिति का गठन इस आरोप की जांच करने के लिए किया गया था कि ईसाई मिशनरियां राज्य के भीतर एक अलग राज्य बना रही थीं। ’समिति के निष्कर्षों के आधार पर, कांग्रेस सरकार ने मसौदा तैयार किया था और इसे दो बार विधानसभा में प्रस्तावित किया था। लेकिन राज्य विधानसभा ने क्रमशः 1958 और 1963 में दो बार फ्रीडम ऑफ रिलीजन बिल को अस्वीकार कर दिया था।

हालांकि, 1968 में, मुख्यमंत्री गोविंद नारायण सिंह की अध्यक्षता में संयुक्ता विधायक दल के बैनर तले पहली गैर-कांग्रेसी सरकार ने विधेयक पारित किया और क़ानून बनाया गया।

फ्रीडम ऑफ रीलीजन एक्ट 1968 के अनुसार, "जबरन" या "प्रलोभन" या "धोखे के साधन" के इस्तेमाल से किया गया धार्मिक परिवर्तन निषेध होगा और यह एक संज्ञेय अपराध भी होगा। 

"प्रलोभन" को किसी भी तरह उपहार देने जिसमें नकद या किसी भी किस्म का समान देना, यानि भौतिक लाभ के अनुदान को प्रलोभन के रूप में परिभाषित किया गया है। "जबरन" का अर्थ है किसी भी तरह की हिंसा के माध्यम से, जिसमें ईश्वरीय नाराजगी या सामाजिक बहिष्कार का खतरा बताना शामिल है, और "धोखाधड़ी" का मतलब है गलत बयानी या किसी भी तरह की धोखाधड़ी का आरोप शामिल है।

क़ानून के तहत, उल्लंघन करने वाले को एक वर्ष (जबरन धर्म परिवर्तन के मामले में दो साल तक कारावास की सजा दी जाएगी) या 5,000 रुपए जुर्माना (अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति, नाबालिगों या महिलाओं के मामले में यह 10,000 रुपए तक जुर्माना होगा) या दोनों।

1968 में बने क़ानून के अनुसार, जिला अधिकारियों को इस तरह के धर्म परिवर्तन के बाद सूचित किया जाना चाहिए। यह क़ानून वर्तमान मसौदा क़ानून के विपरीत पूर्व अनुमति की जरूरत का जिक्र कहीं नहीं करता है।

1968 के क़ानून में कहा गया है कि: "जो कोई भी किसी भी व्यक्ति को उसकी धार्मिक आस्था से दूसरे धर्म में परिवर्तन करने के धर्मांतरण का जरूरी काम करता है या सीधे या परोक्ष रूप से इस तरह के समारोह में भाग लेता है, वह इस समारोह के बाद की अवधि के बाद जो किसी भी व्यक्ति को एक धार्मिक आस्था से दूसरे में परिवर्तित करता है वह इसके बारे में जिले के जिला मजिस्ट्रेट को एक सूचना भेज सकता है जिसमें इस तरह का धर्मांतरण समारोह किया गया है।”

कठोर क़ानून बनाने के पहले के प्रयास

दिग्विजय सिंह की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार के 10 साल के शासन के बाद 2003 में भाजपा के सत्ता में आने के बाद से मौजूदा क़ानून को सख्त बनाने पर जोर दिया जा रहा है। 2006 में, भाजपा सरकार ने इसे और अधिक कठोर बनाने के लिए 1968 के अधिनियम के प्रावधानों में संशोधन करने की कोशिश की थी। संशोधन विधेयक में नए प्रावधानों के माध्यम से यह अनिवार्य किया गया कि धर्मांतरण समारोह होने के एक महीने पहले, शुद्धि (संस्कार) के बारे में एक पूर्व-रिपोर्ट धर्माचार्य/पुजारी/पादरी/मौलाना का विवरण, समारोह, तिथि, समय का विवरण आदि जिला मजिस्ट्रेट के सामने प्रस्तुत किया जाना चाहिए तथा स्थान, नाम और उस व्यक्ति का पता जो परिवर्तित करना चाहता है।

जिला मजिस्ट्रेट को पुलिस अधीक्षक को सूचना देनी होती है, जो प्रस्तावित धर्म परिवर्तन के संबंध में कोई आपत्ति होने पर, स्थानीय जांच के माध्यम से पता लगाने की कोशिश करेंगे। 

जब बिल तत्कालीन राज्यपाल बलराम जाखड़ के पास पहुंचा, तो उन्होंने सरकार से राज्य में पिछले पांच वर्षों में हुए धार्मिक धर्मांतरण की स्थिति पेश करने को कहा था, लेकिन सरकार कोई भी डेटा इसके समर्थन प्रस्तुत नहीं कर पाई। इससे पता चला कि कोई अवैध धर्मांतरण नहीं हुआ था। तत्कालीन सॉलिसिटर जनरल जीई वाहनवती ने विधेयक को असंवैधानिक करार दिया था। विधेयक को मंजूरी के लिए भारत के राष्ट्रपति के पास भेज दिया गया था और इसे 2009 में राष्ट्रपति कार्यालय से वापस (अस्वीकृत कर) भेज दिया गया था।

भाजपा सरकार यहीं नहीं रुकी। 2013 में विधानसभा चुनाव से महीनों पहले, इस मुद्दे को फिर से गरमाने के लिए विधानसभा में बिल का प्रस्ताव रखा। कांग्रेस विधायकों ने एक संक्षिप्त सी चर्चा के बाद वॉकआउट किया, विधेयक को भाजपा के बहुमत होने की वजह से पारित कर दिया गया था।

विधेयक में जबरन, प्रलोभन या किसी भी अन्य धोखाधड़ी के माध्यम से धर्मांतरण किए जाने के मामले में तीन साल तक की जेल या 50,000 रुपये तक का जुर्माना या दोनों का प्रावधान है। अगर परिवर्तित किया गया व्यक्ति नाबालिग, महिला या एससी/एसटी है, तो जेल की अवधि चार साल तक और जुर्माना 1 लाख रुपये तक होगा।

नए प्रस्तावित क़ानून पर विवाद

हालांकि, आस्था आधारित संगठनों, धर्मनिरपेक्ष संगठनों और राज्य के विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा व्यापक विरोध के कारण, इसे फिर से राष्ट्रपति के कार्यालय भेज दिया गया, जहां यह अब तक लंबित पड़ा है। इसका मतलब है कि 1968 वाला अधिनियम अभी भी लागू है।
मप्र हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता और राज्य कांग्रेस नेता साजिद अली ने कहा, "हालांकि विधेयक का मुख्य मसौदा अभी तक सार्वजनिक नहीं हुआ है लेकिन गृह मंत्री की टिप्पणी के अनुसार, यह धर्म के अधिकार का उल्लंघन है।" उन्होंने कहा, "सरकार नागरिकों से शादी करने की अनुमति के बारे में कह सकती है, लेकिन किसी को भी अपना धर्म बदलने से रोक नहीं सकती है," उन्होंने कहा।

उन्होंने पूछा कि "सरकार बिल में 'लव जिहाद' शब्द को कैसे परिभाषित करेगी?" जिहाद का सीधा सा अर्थ है कि बुराइयों के ख़िलाफ़ लड़ना जिसमें स्वयं की आंतरिक बुराइयों से लड़ना भी  शामिल हैं। "जिहाद एक शुद्ध शब्द है जिसे व्यापक रूप से खराब परिभाषा के साथ इस्तेमाल किया जाता है," उन्होंने कहा।

जबकि सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश सीएस तिवारी ने कहा है कि, "जब तक सरकार उक्त मसौदे को सार्वजनिक नहीं करती, तब तक विधेयक पर कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी।"

उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश मोहम्मद अनवर सिद्दीकी ने दावा किया कि अगर सरकार जबरन विवाह या बलपूर्वक धर्मांतरण के ख़िलाफ़ क़ानून तैयार कर रही है तो इसमें कोई बुराई नहीं है। उन्होंने कहा, "शादी के लिए जबरन धर्म परिवर्तन न केवल भारतीय संविधान के अनुसार, बल्कि इस्लाम में भी अवैध है।"

हालांकि मध्य प्रदेश में धर्मांतरण पर प्रतिबंध नहीं है, लेकिन फ्रीडम ऑफ रिलीजन एक्ट के प्रावधानों के अनुसार, धर्मांतरण की अनुमति प्रशासन से लेनी होगी। हालाँकि, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 (1) में "स्वतंत्र रूप से किसी भी धर्म को मानने उसका प्रचार और प्रसार" करने का अधिकार है। कई लोगों का कहना है कि मौजूदा क़ानून नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय नियम, मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा और नस्लीय भेदभाव उन्मूलन पर अंतर्राष्ट्रीय कन्वेन्शन के ख़िलाफ़ जाता है, जिस पर भारत ने हस्ताक्षर किए हुए हैं।

मध्य प्रदेश में लव-जिहाद के कोई मामले नहीं 

14 सितंबर को सतना पुलिस ने कॉनमैन सम्मर सिंह उर्फ अतीक मंसूरी उर्फ समीर खान के ख़िलाफ़ चार मामले दर्ज किए थे जिन्होंने कथित तौर पर 16 वर्षीय हिंदू लड़की से शादी की थी और दो साल बाद उसे तलाक दे दिया था। पुलिस को उसके पास से राजनीतिक नेताओं के कई पैन कार्ड और लेटर पैड भी मिले हैं।

पुलिस ने उनके ख़िलाफ़ चार मामले दर्ज किए, लेकिन इनमें से कोई भी मध्य प्रदेश फ्रीडम ऑफ रिलीजन एक्ट, 1968 के तहत दर्ज़ नहीं है। राज्य के भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा ने इसे "लव जिहाद" का मामला बताना शुरू कर दिया है। 

इसके अलावा, राज्य के गृह विभाग के सूत्रों के अनुसार, राज्य ने पिछले कुछ वर्षों में फ्रीडम ऑफ रिलीजन एक्ट, 1968 के तहत जबरन धर्म परिवर्तन का कोई मामला रिपोर्ट नाही किया है और न ही अदालत द्वारा दोषी ठहराए जाने की कोई घटना दर्ज की है।

सबसे ताज़ा मामला 23 मई, 2017 को दर्ज किया गया था, जब राज्य पुलिस ने झाबुआ और अलीराजपुर क्षेत्र के आदिवासी बच्चों को ईसाई धर्म में परिवर्तित करने के लिए 10 लोगों को गिरफ्तार किया था। उनके मुताबिक 71 बच्चों को बचाया गया और 1968 अधिनियम की धारा 3/ 4-4 के तहत गिरफ्तारी दर्ज की गई।

हालांकि, रतलाम की एक सत्र अदालत ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया था क्योंकि माता-पिता और बच्चों में से किसी ने भी अभियोजन पक्ष की कहानी का समर्थन नहीं किया था। 

30 अगस्त 2014 को जबरन धर्म परिवर्तन की एक और घटना सामने आई थी। जिसमें शिवपुरी के दो दलित युवक- 30 वर्षीय मनीराम जाटव, और 19 वर्षीय तुलाराम जाटव-जिन्होने इस्लाम काबुल किया था और तुलाराम अपनी पत्नी को भी धर्म बदलने के लिए मजबूर कर रहे थे, के ख़िलाफ़ फ्रीडम ऑफ रिलीजन एक्ट, 1968 क़ानून की धारा 4 एवं 5 के तहत मामला दर्ज किया गया था। 

मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, पुलिस ने कहा था कि शिवपुरी के खानिदाना गांव के निवासी मनीराम जाटव ने दो साल पहले इस्लाम अपना लिया था, उन्होंने अपना नाम अब्दुल्ला रख लिया था और क्षेत्र में एक छोटा सा व्यवसाय शुरू कर दिया था। मनीराम ने बिना किसी क़ानूनी औपचारिकता को पूरा किए अपनी पत्नी को भी धर्मांतरित करवा लिया था।

बाद में, मणिराम ने अपने मज़दूर साथी तुलाराम जाटव को भी धर्म परिवर्तन के लिए मना लिया। तुलाराम ने 2013 में अपना नाम बदलकर अब्दुल करीम रख लिया था। हालांकि, धर्म परिवर्तन के बाद उन्हें उनके परिवार ने घर से निकाल दिया था। यह मामला तब सामने आया जब उसकी पत्नी ने इस्लाम धर्म को माँनने से इंकार कर दिया और उसे ऐसा करने के लिए एक महीने तक यातना दी। परिणामस्वरूप, उसने अपने परिवार को इस मामले की सूचना दी जिसने बाद में एक संगठन से संपर्क किया और शिकायत दर्ज की। मामले की वर्तमान स्थिति अज्ञात है।

कई कॉल और मेसेज भेजने के बावजूद, गृह विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव, राजेश राजोरा ने राज्य में जबरन धर्म परिवर्तन या विवाह के लिए धर्म परिवर्तन करने पर मजबूर करने के मामलों पर किसी भी तरह का आधिकारिक डेटा साझा नहीं किया है।

अंग्रेजी में प्रकाशित मूल लेख पढ़ने  के लिए इस लिंक पर क्लिक करें

MP to Bring in Anti ‘Love Jihad’ Bill Despite Existing Law against Forced Conversion

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