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धार बांध : सरकार का दावा कि रिसाव थम गया, मगर क्या संकट टल पाया है?

ग्रामीण अभी भी घर छोड़कर पहाड़ों में, जंगलों में रह रहे हैं। अभी तक उनका हाल जानने कोई प्रशासनिक अधिकारी नहीं आया। कोई सर्वे नहीं किया गया, न ही कोई मुआवज़ा मिला है।
dhar MP

मध्य प्रदेश के धार जिले के कारम नदी पर बन रहे बांध से पानी का रिसाव फिलहाल थम चुका है, सरकार की ओर से ऐसा कहा जा रहा है। सरकार पानी की दिशा मोड़ने में कामयाब रही। लेकिन आदिवासियों के मन में यह डर घर कर गया है कि ये बांध कभी भी टूट सकता है और तबाही मच सकती है। इस दौरान चार दिन के लिए 18 गांव के लोग बेघर हुए। आनन-फानन में आदिवासी महिलाओं, बच्चों समेत सभी को मवेशियों की तरह हकाकर पुलिस ले गई और धामनोद में पटक दिया। इन्हें घरों से बाहर निकालने के लिए स्थानीय प्रशासन पुलिस के अलावा सेना तक बुला ली गई।

तबाही रोकने के लिए 400 लोगों की टीमें और 6 पोकलेन मशीनों से पानी के लिए रास्ता बना दिया गया। लेकिन यह काफी नहीं है। यहां बनाई जा रही नहर की रास्ते कई पत्थर आ रहे हैं जिससे खुदाई में देरी हो रही है और बांध में दरार कायम है और बारिश के कारण पानी का दबाव भी बढ़ रहा है। इसलिए यह नहीं माना जा सकता कि खतरा हमेशा के लिए टल गया। यह तो रही उपर बसे 18 गांव की बात, लेकिन इसी तरह बांध के नीचे करीब 5-6 गांव के आदिवासी अनाथ की तरह रह रहे हैं। उन्हें भी जान-माल का खतरा सता रहा है। उनकी आजीविका पूरी तरह नष्ट हो चुकी है, लेकिन प्रशासन का ध्यान उन तक नहीं गया।

इन्हीं में से एक गांव है धरमपुरी तहसील का भांडा खो। यहां के जयसिंग बताते हैं कि उनकी एक हजार हेक्टेअर जमीन बांध के रिसाव से की फसल पूरी तरह बर्बाद हो गई है। उन्होंने कपास और मक्का बोया था। कारम बांध का पानी आने से करीब 50 हजार रुपए की फसल बह गई यहां तक कि नहीं मिट्टी भी पूरी बह गई है। करीब  2 कच्चे मकान भी टूट गए हैं। उन्होंने कहा, "मेरे खेत में प्रधानमंत्री आवास की कुटी का काम चल रहा था जिसका सामान भी बह गया है। इसी तरह मुन्ना ने बताया उन्होंने 1500 हेक्टेअर में कपास, पक्का, सौंफ, प्याज रोपे थे, एक साथ कारम बांध का पानी आने से 80 फीसदी फसल बर्बाद हो गया।मांगीलाल का 50 कपास, भूरी बाई बेवा की 1000 हेक्टेअर की  100 फीसदी कपास के साथ ही मदन, बालाराम, मन्नू भाई, अम्बाराम, मलिबाई , सागरबाई के भी 100 फीसदी कपास, सौंफ, प्याज मूंगफली, सोयाबीन आदि फसल बर्बाद हो चुकी है। यही हाल जहांगीरपुरी गांव का भी है। यहां के राजेंद्र और बंसीलाल की 60 फीसदी मक्का और कपास की फसलें नष्ट हो चुकी है।राजेंद्र ने बताया कि मिट्टी तो सारे खेतों की बह गई , यहां तक कि जमीन की पाल टूटकर खेत में पत्थर भर गए हैं।  फिर भी सरकार कह रही है कि हमने बिना नुकसान के पानी निकाल दिया है। जबकि वस्तुस्थिति कुछ और ही कह रही है। यहां आदिवासियों के सर पर आजीविका का संकट मंडराने लगा है।"

स्थानीय लोगों का कहना है कि 15-20 दिन पहले ये बांध इतना ऊंचा नहीं था। अचानक इसकी ऊंचाई बढ़ाने का काम शुरू किया गया। बांध तीन से चार साल बन रहा है, लेकिन कुछ दिन पहले तक इसकी इतनी ऊंचाई नहीं थी, जो 15-20 दिन में अचानक बढ़ गई। लोगों ने कहा कि काली मिट्टी का उपयोग अगर ज्यादा किया जाता,  तो यही नौबत नहीं आती। लेकिन लाल मिट्टी भरी गई, जो पानी को रोक नहीं पाई। सरकार को सीमेंट का ही बांध बनाना चाहिए, वर्ना हम लोगों के सिर पर मौत नाचती रहेगी।

नर्मदा बचाओ आंदोलन की मेधा पाटकर ने बताया, "यहां कई गांव संकट में है, जल्दबाजी में बांध नहीं बनना चाहिए। यह आदिवासियों के साथ एक तरह से अन्याय और अत्याचार है। भले ही यह मध्यम बांध परियोजना हो लेकिन हर जान की कीमत एक है। ग्रामीणों के लिए यह बड़ी परियोजना है। इसमें 1500 परिवार विस्थापित हो हुआ है । उनकी आजीविका पर संकट खड़ा हो गया है। सुप्रीम कोर्ट की आदेश की अवहेलना कर उन्हें पूरा मुआवजा नहीं  दिए बिना हटाया गया है यह गंभीर बात है। इस तरह बांध का नक्शा कहीं नहीं देखा गया कि  मेन नदी पर ही 20 फीसदी पक्का बाकी कच्चा बना दिया गया हो।  नीचे रहने वालों को इससे  सूखा और बाढ़ दोनों का सामना करना पड़ेगा; हर परियोजना के नियम है कानून है, पर्यावरणीय स्वीकृति लेनी पड़ती है। फिर भी नियम कानूनों की अवहेलना  करके परियोजनाएं आगे बढ़ती हैं।"

भ्रष्टाचार मिटाने वाली सरकार का भ्रष्टाचारी कारनामा

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव जसविंदर सिंह ने बताया, "सवाल सिर्फ जनता की गाढ़ी कमाई के 305 करोड़ रुपए की नहीं है । परंतु यह कैसा बांध जो पहली ही बारिश में फूट गया। दरअसल यह अनियमितता और भ्रष्टाचार की बात बात है।  दिल्ली की जिस एएनएस कंस्ट्रक्शन कंपनी का लाइसेंस ही 2016-17 में रद्द कर दिया गया था, उसी कंपनी को 305 करोड़ के निर्माण का ठेका देकर, बिना गुणवत्ता जांचे ही भुगतान किया जाता रहा। यह घोटाला सिर्फ प्रशासनिक स्तर पर ही नहीं, बल्कि राजनीतिक संरक्षण में हुआ है, जिसकी समुच्चय जांच की जानी चाहिए।"

उन्होंने कहा है कि कोरोना से पहले सामने आए तीन हजार करोड़ के ई टेंडर घोटाले में भी कारम बांध का जिक्र आया था। जिस ईडी का भाजपा अब अपने विरोधियों के लिए इस्तेमाल कर रही है, उसी ईडी ने इस घोटाले में एक कंपनी की ओर से 93 करोड़ की रिश्वत बांटने की बात कही थी। इस घोटाले में मंत्री और अफसरों के लिप्त होने की बात सामने आई थी। तब कारम बांध परियोजना को लेकर भी राज्य आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ ने प्रकरण दर्ज किया था, जिसे बाद में ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।

हालांकि बांध के डिजाइन को लेकर पहले से ही सवाल उठाए गए ।  मार्च  सरकार ने बांध परियोजना के टेंडर में गड़बड़ी की बात स्वीकार करते हुए विधान सभा में एक सवाल के लिखित जवाब में जल संसाधन मंत्री तुलसी सिलावट ने 10 मार्च 2022 को गड़बड़ी की बात स्वीकार की थी और इसकी जांच आर्थिक अपराध शाखा से कराए जाने की बात कही थी।

बहरहाल इस बीच कई पक्ष-विपक्षी के नेता बांध की विभीषिका देखने पहुंचे। पांच दिन बात ही सही विपक्ष के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ग्रामीणों से मिलने पहुंचे। यहां क्षतिग्रस्त बांध को देखा और धरमपुरी तहसील के दूधी गांव में पहुंचकर प्रभावित आदिवासियों से मुलाकात की। उन्हें भी प्रभावितों ने बताया कि उनकी फसल बह गई, घर बह गया, उनके मिट्टी बह गई। बड़े बड़े पत्थर बहकर खेतों में आ गए हैं। अब वे खेती भी नहीं कर सकते हैं। अभी भी घर छोड़कर पहाड़ों में, जंगलों में रह रहे हैं। अभी तक उनका हाल जानने कोई प्रशासनिक अधिकारी नहीं आया। कोई सर्वे नहीं किया गया, न ही कोई मुआवज़ा मिला है।

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