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मध्यप्रदेश: आशा कार्यकर्ताओं की लड़ाई के पीछे नियमित वेतन और स्थायी कर्मचारी के रूप में मान्यता दिये जाने की मांग

आशा कार्यकर्ता सालों से स्थायी कर्मचारी, नियमित वेतन और सामाजिक सुरक्षा के रूप में मान्यता दिये जाने के लिए संघर्ष कर रही हैं, कोविड-19 महामारी के दौरान दिन में आठ से बारह घंटे काम करने के बावजूद मध्य प्रदेश में आशा कार्यकर्ताओं को मानदेय के रूप में महज़ 3000 रुपये ही मिलते हैं।
मध्यप्रदेश के सीहोर में आशा कार्यकर्ताओं की हड़ताल।
मध्यप्रदेश के सीहोर में आशा कार्यकर्ताओं की हड़ताल।

आशा कार्यकर्ता दैनिक आधार पर जो कुछ करती हैं,उसे लेकर मध्य प्रदेश (MP) के आशा उषा आशा सहयोगी एकता यूनियन की सहायक महासचिव पूजा कनौजिया बताती हैं, “हम 24 घंटे ड्यूटी पर ही होते हैं ! हमें हर समय तैयार रहना होता है,क्योंकि किसी गर्भवती महिला को दिन में कभी भी प्रसव पीड़ा हो सकती है। हम अपनी ड्यूटी पूरी लगन से करते हैं और सुनिश्चित करते हैं कि किसी भी गर्भवती महिला को हमारी वजह से कोई समस्या न हो। हम यह भी सुनिश्चित करते हैं कि हमारी मौजूदगी में ही उनका इलाज किया जाये और वह बच्चे को भी जन्म दे।”

वह आगे कहती हैं, "सरकार डेटा संग्रह के अपने सभी कार्य हमसे ही करवाती है। हम यह सुनिश्चित करते हैं कि जैसे ही हमें आदेश मिले, हम उसे पूरा कर दें, लेकिन सरकार  की दिलचस्पी न तो हमें स्थायी श्रमिकों के रूप में मान्यता देने में है और न ही हमें न्यूनतम वेतन देने में है। ”

2005 में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के तहत स्थापित मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (ASHA) स्वास्थ्य और इसके सामाजिक निर्धारकों पर सामाजिक जागरूकता पैदा करने को लेकर लोगों के भीतर स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के रूप में कार्य करती हैं। वे स्थानीय स्वास्थ्य योजना और मौजूदा स्वास्थ्य सेवाओं के इस्तेमाल में बढ़ोत्तरी किये जाने के लिहाज़ से उस समुदाय को संगठित करती हैं। अगर सीधे शब्दों में कहा जाये, तो आशा कार्यकर्ता समुदाय और स्वास्थ्य प्रणाली के बीच एक कड़ी का काम करती हैं। ये मां एवं शिशु के स्वास्थ्य परिणामों में सुधार लाने में अहम भूमिका निभा रही हैं। कोविड-19 महामारी के दौरान आशा कार्यकर्ताओं को सर्वेक्षण करने, लोगों के बीच कोविड-19 लक्षणों वाले लोगों का पता लगाने और परीक्षण करने और उन्हें परामर्श देने का काम सौंपा गया था। उन्होंने क्वारंटाइन सुविधाओं के निर्माण और उन्हें बनाये रखने और गंभीर संक्रमण के मामले में उन्हें स्वास्थ्य सुविधाओं के सिलसिले में उनकी सहायता करने में भी भूमिका निभायी थी।

मध्यप्रदेश में हज़ारों (आशा) कार्यकर्ता अपने मासिक मानदेय के बढ़ाये जाने और स्थायी कर्मचारियों की हैसियत दिये जाने की मांग को लेकर जून 2021 में अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चली गयी थीं। मध्यप्रदेश के सहयोगी एकता यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष पद्मनाभन कहते हैं, “आशा कार्यकर्ताओं का यह संघर्ष ऐतिहासिक रहा है। मध्यप्रदेश के इतिहास में पहली बार किसी ख़ास क्षेत्र की सभी महिला श्रमिक अपने अधिकारों के लिए लड़ने के लिहाज़ से एक साथ आयी हैं। 53 ज़िलों में से क़रीब 40 से 42 ज़िलों में यह हड़ताल की गयी है।”

उनकी मांगों में स्थायी कर्मचारियों के रूप में मान्यता दिये जाने और मानदेय के बदले 18,000 रुपये प्रति माह नियमित वेतन दिये जाने की मांगें शामिल हैं। यह राशि सातवें वेतन आयोग के मुताबिक़ केंद्र सरकार के कर्मचारियों को दिये जाने वाला शुरुआती वेतन मानदंड है। इस समय तक आशा कार्यकर्ता अपनी नियमित गतिविधियों के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत 2000 रुपये प्रति माह के मासिक मानदेय की हक़दार हैं। ग़ौरतलब है कि इस मासिक पारिश्रमिक को वर्ष 2018 में 1,000 रुपये से संशोधित कर 2,000 रुपये कर दिया गया था। इस मासिक मानदेय के अलावा इन्हें जननी सुरक्षा योजना, गृह आधारित नवजात शिशु देखभाल (HBNC), आदि जैसे अतिरिक्त कार्यों के आधार पर प्रोत्साहन राशि मिलती है।

आशा कार्यकर्ताओं को महामारी के दौरान किये गये उनके सभी कार्यों के लिए उनके इस मासिक मानदेय 2,000 रुपये के अलावा उन्हें 1,000 रुपये की मामूली राशि का भुगतान किया गया है।

ऊपर से यूनियन की मांग है कि आशा सहयोगिनी को 7,500 रुपये महीने के मानदेय की जगह 24,000 रुपये वेतन दिया जाये। सहयोगिनी की भूमिका आशा कार्यकर्ताओं की निगरानी और उनका मार्गदर्शन करना है। इनकी ज़िम्मेदारी स्वास्थ्य विभाग को आशा कार्यकर्ताओं के किये गये कार्यों की प्रगति की रिपोर्ट करने की भी होती है।

न्यूज़क्लिक से बात करते हुए पद्मनाभन कहते हैं, “24 जून को भोपाल में एक प्रदर्शन के बाद संयुक्त मोर्चा का प्रतिनिधिमंडल राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, मध्यप्रदेश के मिशन निदेशक के पास गया था। वह आशा कार्यकर्ताओं को प्रति माह 10,000 रुपये के मानदेय का प्रस्ताव देने और राज्य सरकार और यूनियनों को इस प्रस्ताव के भेजे जाने पर सहमत हुई थीं। उन्होंने इस शर्त पर सहयोगियों के मानदेय में बढ़ोत्तरी किये जाने का भी वादा किया था कि उनके कार्य दिवस 25 दिन से बढ़ाकर 30 दिन कर दिए जायेंगे। उन्होंने ड्यूटी के दौरान कोविड-19 के कारण मरने वाली आशा कार्यकर्ताओं के परिवारों को 50 लाख रुपये का मुआवज़ा देने का भी वादा किया था। ”

5 जुलाई को एक चर्चा के दौरान राज्य के स्वास्थ्य मंत्री ने यूनियन नेताओं से अपनी हड़ताल वापस लेने का आग्रह किया था और उन्हें इस बात का भरोसा दिलाया था कि मुख्यमंत्री ख़ुद ही इस मामले को देख रहे हैं। इसके बाद यूनियन नेताओं ने हड़ताल स्थगित करने का फ़ैसला कर लिया। आख़िरकार, सरकार ने सहयोगिनियों के दिये जाने वाले मानदेय को 7,500 रुपये से बढ़ाकर 9,000 रुपये करने और उनके कार्य दिवसों को 25 दिनों से बढ़ाकर 30 दिन करने की घोषणा कर दी है। हालांकि, आशा कार्यकर्ताओं को दिये जाने वाले मानदेय में बढ़ोत्तरी नहीं की गयी है।

कई राज्य सरकारें इन आशा कार्यकर्ताओं को केंद्र से दिये जा रहे मानदेय पर अतिरिक्त पारिश्रमिक का भुगतान करती हैं। केरल और तेलंगाना ने आशा कार्यकर्ताओं के वेतन में 7,000 रुपये प्रति माह की बढ़ोतरी की है, जबकि कर्नाटक और आंध्र प्रदेश ने उन्हें प्रति माह 10,000 रुपये का निश्चित वेतन दिया है। मध्यप्रदेश में राज्य सरकार आशा कार्यकर्ताओं को अपनी ओर से कोई अतिरिक्त पारिश्रमिक नहीं देती है।

आशा कार्यकर्ता दिन में औसतन आठ घंटे काम करती हैं। रिसर्च से पता चलता है कि कोविड-19 के दौरान आशा कार्यकर्ताओं पर काम का बोझ काफ़ी बढ़ गया था; लगभग 24 घंटे के लिए ड्यूटी निभाने के लिए तैयार रहने के दौरान इन कार्यकर्ताओं ने प्रति दिन लगभग 12-15 घंटे काम किया था।

महामारी के प्रकोप से पहले आशा कार्यकर्ताओं की ड्यूटी में हर छह महीने में सर्वेक्षण करना और हर घर से गर्भावस्था, जन्म, मृत्यु, विवाह, घर के प्रत्येक सदस्य की स्वास्थ्य स्थिति का पंजीकरण आदि जैसे आंकड़े इकट्ठा करना शामिल था। एक आशा कार्यकर्ता इस सिलसिले में औसतन एक दिन में 20 घरों का दौरा करती हैं। सर्वेक्षण के दौरान वे उस समय उन स्वास्थ्य समस्याओं के बारे में सदस्यों को सलाह भी देती हैं,जिसका सामना वे कर सकते हैं। आशा कार्यकर्ताओं की सबसे अहम ड्यूटी में किसी गर्भवती महिलाओं को बच्चे के जन्म के लिए तैयार करना, सुरक्षित प्रसव के महत्व, स्तनपान आदि के बारे में परामर्श देना और उन्हें उपलब्ध स्वास्थ्य से जुड़ी सेवाओं तक पहुंच बनाने में मदद करना शामिल है।

कोविड-19 के दौरान आशा कार्यकर्ताओं की ड्यूटी के बारे में बताते हुए आशा उषा आशा सहयोगी एकता यूनियन, एमपी की कार्यकारी अध्यक्ष कविता सोलंकी कहती हैं, “उन्होंने यह जांच करने के लिए दैनिक आधार पर 30 से 40 घरों का सर्वेक्षण किया था कि कहीं कोई कोविड-19 का रोगी तो नहीं है। हमने लक्षणों की जांच की, लोगों की जांच कराने में मदद की, मरीज़ों की काउंसलिंग की और यहां तक कि क्वारंटाइन सुविधाओं के निर्माण और उन्हें बनाये रखने में लोगों की मदद की थी। यह सब तब था, जब सार्वजनिक परिवहन बंद था और हमें काम के लिए यात्रा करनी पड़ी थी। हमें कार्य स्थल पर छोड़ने के दौरान हमारी कुछ आशा कार्यकर्ताओं के पतियों को पीटा भी गया था।”

सोलंकी आगे कहती हैं, “इन आशा कार्यकर्ताओं को बाद में इस साल जनवरी से टीकाकरण केंद्रों पर भी तैनात किया गया था, जहां उनकी ड्यूटी में जागरूकता अभियान चलाना और समुदाय के लोगों को टीकाकरण केंद्रों तक ले जाना भी शामिल था।  हमें उसके लिए आज तक कुछ भी भुगतान नहीं किया गया है। वाउचर जारी ज़रूर किये गये हैं, लेकिन हमें अभी तक कोई राशि नहीं मिली है।”

आशा कार्यकर्ताओं को हफ़्ते में चार दिन- सोमवार, बुधवार, गुरुवार और शनिवार को टीकाकरण केंद्रों पर रिपोर्ट करना होता है। कई बार तो रविवार को भी टीकाकरण शिविर आयोजित किये जाते हैं। 18 जुलाई से 18 अगस्त के बीच आशा कार्यकर्ताओं को दस्तक अभियान के तहत भी सर्वेक्षण करने के लिए कहा गया है, जिसका उद्देश्य गंभीर एनीमिया, गंभीर तीव्र कुपोषण, गंभीर रूप से बीमार बच्चों और निमोनिया से पीड़ित बच्चों की जांच करना है। इस दस्तक अभियान के तहत अपने ड्यूटी निभाने के लिए आशा कार्यकर्ताओं से किसी भी तरह की प्रोत्साहन राशि के दिये जाने का वादा नहीं किया गया है।

अतिरिक्त कार्य करने के लिए आशा कार्यकर्ताओं द्वारा प्राप्त होने वाली कुछ प्रोत्साहन राशियों की सूची निम्नलिखित है :

गर्भवती महिलाओं को गर्भावस्था के नौ महीनों के दौरान चार चेक-अप कराने में सुविधा उपलब्ध कराना- 200 रुपये।

किसी गर्भवती महिला को सरकारी अस्पताल में अपने बच्चे को जन्म देने में सहायता करना- 200 रुपये (आशा कार्यकर्ता इस प्रोत्साहन राशि पाने की तभी हक़दार होती है, जब उसकी उपस्थिति मां के दस्तावेज़ों में दर्ज होती है)।

शहरी स्वास्थ्य पोषण दिवस (UHND) से जुड़े काम– 150 रुपये

बच्चों के लिए अलग-अलग टीकाकरण- 50 रुपये से 100 रुपये के बीच

प्रसव के बाद 42 दिनों तक सभी नवजात शिशुओं और उनकी माताओं के पास जाना [नवजात शिशु की देखभाल की गृह आधारित देखभाल (HBNC)] - 250 रुपये

इसके अलावा, उन्हें समुदाय के भीतर परिवार नियोजन को बढ़ावा देने, टीबी से पीड़ित रोगियों के स्वास्थ्य लाभ की निगरानी आदि के लिए भी प्रोत्साहन राशि की पेशकश की जाती है।

सोलंकी कहती हैं, “अपनी ड्यूटी पूरी लगन से निभाने के बावजूद वे (सरकारें) अक्सर हमारी प्रोत्साहन राशियों में कटौती कर देती हैं। वे इसके पीछे के कारण धन की कमी, अमान्य प्रविष्टियां आदि को बताती हैं। यही वजह है कि हम प्रोत्साहन राशि की इस व्यवस्था के बजाय नियमित वेतन के लिए लड़ रहे हैं। नियमित नौकरी वाले किसी अकुशल कर्मचारी को भी हमसे कहीं ज़्यादा भुगतान किया जाता है, उन्हें भविष्य निधि, बीमा और एक नियमित वेतन मिलता है,जबकि कहीं ज़्यादा शिक्षित, कुशल और प्रशिक्षित आशा कार्यकर्ताओं को इनमें से कुछ भी नहीं मिलता है।”

इस मुद्दे पर विस्तार से बात करते हुए पद्मनाभन कहते हैं, "प्रोत्साहन की यह व्यवस्था किये गये काम के लिए कम से कम भुगतान और अधिक से अधिक काम लेते हुए शोषण को सक्षम बनाने का सबसे आदर्श व्यवस्था है।"

देश भर के आशा कार्यकर्ता पिछले कुछ सालों से उच्च वेतन, काम के नियमितीकरण और सामाजिक सुरक्षा के लिए आंदोलन कर रही हैं। अगस्त 2020 में छह लाख आशा कार्यकर्ताओं की देशव्यापी हड़ताल हुई थी। मई 2021 में एक शिकायत का संज्ञान लेते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने राज्यों के मुख्य सचिवों को उन समस्याओं पर रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा था,जिनका सामना आशा कार्यकर्ता कर रही हैं।

आशा कार्यकर्ताओं की निभायी जा रही भूमिका पर ज़ोर देते हुए पद्मनाभन कहते हैं, “आशा कार्यकर्ताओं की कड़ी मेहनत का ही नतीजा है कि लोग आज की स्थिति और वायरस से अवगत हैं। स्वास्थ्य विभाग ने भूमिका ज़रूर निभायी है, लेकिन ज़मीन पर असली काम तो आशा कार्यकर्ताओं ने ही किया है। स्वास्थ्य विभाग के कई अधिकारियों को राज्य में स्वास्थ्य की स्थिति में सुधार को लेकर चिह्नित और सम्मानित किया गया है, लेकिन उनके(आशा कार्यकर्ताओं के) काम को कभी भी मान्यता नहीं दी गयी है या पुरस्कृत नहीं किया गया है। उन्हें तो गुज़ारा भत्ता भी नहीं दिया जाता है। यही वजह है कि हम उनके लिए लड़ रहे हैं।"

मध्यप्रदेश के डिंडोरी में प्रदर्शन करतीं आशा कार्यकर्ता और सहयोगिनी।

मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में प्रदर्शन करतीं आशा कार्यकर्ता

मध्यप्रदेश के होशंगाबाद में आशा कार्यकर्ताओं का प्रदर्शन।

मध्यप्रदेश के मंदसौर में प्रदर्शन करतीं आशा कार्यकर्ता।

मध्यप्रदेश के रतलाम में आशा कार्यकर्ताओं का प्रदर्शन।

टिप्पणीकार लेखिका हैं और न्यूज़क्लिक में रिसर्च एसोसिएट हैं। इनके विचार निजी हैं। इनसे ट्विटर एकाउंट @ShinzaniJain पर संपर्क किया जा सकता है।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

MP: Behind the ASHA Workers' Fight for Regular Salaries and Recognition as Permanent Workers

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