एमपी: खरगोन दंगे के एक सप्ताह बाद पहली मौत का मामला सामने आया
इंदौर: 10 अप्रैल को खरगोन में रामनवमी के जुलूस के दौरान हुए सांप्रदायिक झड़प के बाद से लापता चल रहे 23 वर्षीय इब्रीस सद्दाम के शव को मध्य प्रदेश पुलिस ने 18 अप्रैल (सोमवार) को तड़के परिवार को सौंप दिया था, जो इसे इस झड़प में पहली मौत के तौर पर दर्ज कराता है।
खरगोन पुलिस के अनुसार, इब्रीस जो कि इस्लामपुरा इलाके का रहने वाला था, को करीब 1 बजे रात के वक्त उसके घर से 300 मीटर की दूरी पर कपास मंडी के पास खून में लथपथ पाया गया था। इस बाबत मंडी के अधिकारी प्रकाश यदुवंशी और सुरक्षा गार्ड कमल साल्वे के द्वारा पुलिस कर्मियों को इत्तिला दी गई थी कि आठ से नौ लोगों के एक समूह ने एक अकेले आदमी पर हमला कर दिया है। जैसे ही पुलिस घटना स्थल पर पहुंची तो वे वहां से भाग खड़े हुए।
खरगोन के पुलिस अधीक्षक रोहित केशवानी ने फोन पर सूचित किया “घायल व्यक्ति को लेकर पुलिस खरगोन जिला अस्पताल पहुंची, लेकिन डॉक्टरों के आने पर उसे मृत पाया गया। एक छोटे से पोस्टमार्टम के बाद, हमने उसके शव को इंदौर के एमवाय अस्पताल में शव-परीक्षण के लिए भेज दिया था।”
पुलिस ने दावा किया है कि उन्होंने मृतक की पहचान करने के लिए घटना की सीसीटीवी फुटेज की जाँच की थी, लेकिन इस सबका कोई नतीजा नहीं निकला। केसवानी ने कहा “चूँकि यह एक अज्ञात शव था, ऐसे में हमने इसे इंदौर के एमवाई अस्पताल भिजवा दिया था।” इसके साथ ही उनका कहना था कि शव परीक्षण रिपोर्ट के निष्कर्षों के आधार पर 14 अप्रैल को 11:30 बजे आईपीसी की धारा 302 (हत्या) और 34 (कई व्यक्तियों द्वारा एक साझे इरादे को पूरा करने के लिए किया जाने वाला आपराधिक कृत्य) के तहत हत्या करने के तथ्य को स्थापित करने के उपरांत प्रथिमिकी दर्ज कर दी गई थी।
पुलिस के अनुसार, “शव परीक्षण रिपोर्ट से पता चलता है कि किसी भोथरी वस्तु से उसके सिर के बायें हिस्से पर प्रहार किया गया था जिससे उसकी खोपड़ी टूट गई थी और काफी खून बह जाने के कारण उसकी मौत हो गई थी।”
पुलिस द्वारा जब 14 अप्रैल को हत्या का मामला दर्ज किया जा रहा था, उससे तकरीबन 12 घंटे पहले इब्रीस के परिजन जो उसे प;पिछले चार दिनों से तलाश करने के लिए भटक रहे थे, ने आख़िरकार रात 10 से 12 बजे के बीच दो घंटे के लिए कर्फ्यू में मिली के दौरान उसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करा दी थी। इब्रीस के बड़े भाई इखलाक ने अपनी शिकायत में कहा है कि इब्रीस आनंद नगर में शाम 7:30 बजे मस्जिद में नमाज पढ़ने के लिए गया हुआ था और उसके बाद से ही वापस घर नहीं लौटा। परिवार ने उसके दोस्त और रिश्तेदारों के घरों में पता किया, लेकिन उसका कोई सुराग न मिल सका।
जैसा कि पुलिस ने इब्रीस की गुमशुदगी की रिपोर्ट और एक अज्ञात व्यक्ति की हत्या का मामला उसी दिन दर्ज किया था, उसके परिवार को कई दिनों तक जेलों, नदी, नालों और मुर्दाघरों की तलाशी करने के लिए दर-दर भटकने के लिए छोड़ दिया गया था।इब्रीस की 65 वर्षीय बूढ़ी माँ और उसके परिवार के सदस्य कर्फ्यू के दौरान पैदल ही उसकी तलाश में निकल पड़े थे।
जब कुछ पत्रकारों और मीडिया रिपोर्टों ने अगले दिन सद्दाम की गुमशुदगी की शिकायत को सार्वजनिक कर दिया, तब जाकर कहीं पुलिस हरकत में आई। उसके बड़े भाई इखलाक खान ने कहा, “शाम के करीब 7:00 बजे कोतवाली पुलिस स्टेशन के एक सिपाही ने मेरे दरवाजे पर दस्तक दी, और मेरे भाई के बारे में कुछ प्राथमिक जानकारियां मांगी। जब वह वापस जा रहा था, तो मैंने धमकी दी कि यदि पुलिस इस बात के लिए तैयार है तो मैं मीडिया के सामने जाता हूँ। इसके बाद जाकर कहीं फोन पर बात करने के बाद, उसने हमें इंदौर आकर शव की पहचान करने के लिए कहा।”
तीन पुलिस वाहनों के काफिले के साथ परिजन तड़के करीब 3 बजे सुबह एमवाई हॉस्पिटल पहुंचे और शव की शिनाख्त की। इसकी पुष्टि हो जाने पर पुलिस ने शव को परिवार को सौंप दिया, जिसने 18 अप्रैल को सुबह 8:00 बजे के करीब खरगोन में अंतिम संस्कार किया।
शव देखने के बाद इखलाक ने कहा, “उसके सिर पर एक गहरा निशान बना हुआ था जिससे इस बात का अंदाजा लग रहा था कि उस पर तलवार से वार किया गया था। उसके माथे पर भी एक गहरा घाव है।”
उसका शव जब सुबह इस्लामपुरा इलाके में पहुंचा तो उसके बाद खरगोन में दहशत फ़ैल गई, जिसके चलते जिला प्रशासन को कर्फ्यू के दौरान दी गई चार घंटे की ढील को रद्द करने के लिए मजबूर होना पड़ा। इसके साथ ही, कृषि मंत्री कमल पटेल, जो खरगोन जिले के प्रभारी भी हैं, को भी अपना आधिकारिक दौरा रद्द करना पड़ा था।
बहरहाल, इब्रीस के परिवार के पास पुलिस से कुछ अलग कहानी मौजूद है।
पुलिस के इस दावे कि उसे कपास मंडी के पास 1 बजे रात को पाया गया था, को ख़ारिज करते हुए उसकी माँ मुमताज़ ने कहा, “वह घर से शाम 7 बजे के आसपास आनंद नगर मस्जिद में इफ्तार करने के लिए गया हुआ था, जो कि घर से कुछ ही मीटर की दूरी पर है, जब मोहल्ले में झड़प हुई थी।”
पुलिस के द्वारा उनके बेटे को मार डालने का आरोप लगाते हुए सुबकते हुए मुमताज याद करते हुए कहती हैं, “कुछ मिनटों के बाद ही हमने देखा कि पुलिस के साथ-साथ दंगाइयों ने उस पर हमला कर दिया था, और इससे पहले कि हम कुछ हस्तक्षेप कर पाते, पुलिस एक जीप में उसे घसीट कर पुलिस स्टेशन ले गई। इब्रीस के दोस्तों जिन्हें पुलिस के द्वारा हिरासत में रखा गया था ने भी इस बात की पुष्टि की कि सिर पर चोट लगे होने के बावजूद पुलिस उसे पुलिस थाने ले आई थी, लेकिन उन लोगों के साथ उसे जेल नहीं भेजा गया था। उसके बाद से वह लापता था।”
मुमताज ने आरोप लगाया, “ हम पुलिसकर्मियों के सामने मिन्नतें करते रहे, लेकिन किसी ने हमें कुछ नहीं बताया। उन्होंने हमारी शिकायत के बजाय अपने तथ्यों के आधार पर गुमशुदगी की शिकायत दर्ज की थी।”
इब्रीस जिसकी सिर पर चोट लगने से मौत हो गई थी, को तीन साल पहले एक गंभीर सड़क दुर्घटना का शिकार होना पड़ा था। ऑपरेशन के बाद डॉक्टरों ने उसे सिर की चोट के बारे में सावधान रहने के लिए हिदायत दी थी।
रुंधे गले से इखलाक ने कहा, “इब्रीस के पीछे परिवार में उनकी पत्नी और आठ महीने का एक नन्हा बच्चा है। इब्रीस के बेटे ने हाल ही में उसे अब्बू बोलना सीखा था, और उसकी पत्नी सभी बाधाओं के बावजूद इस उम्मीद में थी कि उसका पति पूरी तरह से भला-चंगा और तरोताजा होकर से वापस लौट आएगा।”
परिवार के आरोपों पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए पुलिस अधीक्षक केसवानी ने कहा, “यदि पुलिस ने उसे हिरासत में लिया होता तो उसका नाम रजिस्टर में दर्ज होता। दुर्भाग्य से, ऐसा नहीं है।”
दफनाने की प्रकिया के बाद, जिला प्रशासन ने परिवार को 4 लाख रुपए की अनुग्रह राशि देने की घोषणा की, जिसमें उसकी पहचान सांप्रदायिक झड़पों में एक शिकार के तौर पर की गई है।
अंग्रेजी में मूल रूप से लिखे गए लेख को पढ़ने के लिए नीचे के लिंक पर क्लिक करें
MP: First Death in Khargone Riot Surfaces Week After Incident
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