मध्य प्रदेश: सरकार मदरसों का सर्वे तो करना चाहती है लेकिन अनुदान देने पर चुप है
देश भर में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सरकारें लगातार अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ काम कर रही और उन्हें निशाना बना रही है। ताज़ा मामला मध्यप्रदेश का है जहां शिवराज चौहान कि सरकार मदरसों को निशाना बना रही है। उत्तर प्रदेश के बाद अब मध्य प्रदेश में भी मदरसों के सर्वे की बात कि जा रही है। हालांकि मुस्लिम समाज कि तरफ़ से इस सर्वे का समर्थन किया गया और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को मदरसा आकर खुद पढ़ाने का न्यौता दिया गया। दरअसल, देश भर में दक्षिणपंथी हिन्दू संगठनों के एजेंडे के तहत कई प्रदेशों में मदरसों के सर्वे की मांग उठने लगी है और बीजेपी शासित राज्य इसका समर्थन करते भी दिख रही है।
लेकिन मदरसों में हो रही पढ़ाई और उनकी समस्याओं पर चर्चा नहीं हो रही है। मध्यप्रदेश की ही बात करें तो बीते कई महीनों से मदरसों का अनुदान नहीं दिया गया है जिससे वहां पढ़़ने वाले छात्र आधुनिक और बेहतर शिक्षा से वंचित हो रहे हैं। वहीं वहां पढ़़ाने वाले शिक्षक भी कई तरह की परेशानियों का सामना कर रहे हैं।
छह साल से राज्य सरकार ने रोक रखा है मदरसों का अनुदान
मध्यप्रदेश के साढ़े सात हज़ार मदरसों को मिलने वाला सरकारी अनुदान पिछले छह साल से राज्य सरकार ने रोक रखा है। इससे न केवल मदरसों के संचालन में दिक्कत आ रही है बल्कि इन मदरसों में पढ़ाने वाले शिक्षकों को लंबे समय से वेतन के भी लाले पड़े हुए हैं।
मीडिया से बात करते हुए मध्यप्रदेश आधुनिक मदरसा संघ के जनरल सेक्रेटरी और स्कूल का रोज़मर्रा का संचालन करने वाले मो. सुहैब कुरैशी ने कहा कि ये कहना गलत नहीं होगा कि मदरसों को नज़रअंदाज़ किया जा रहा है। क़रीब तीन साल से हमें सरकारी मदद नहीं मिल रही है। क़रीब एक साल से इंफ्रास्ट्रक्चर का पैसा तक नहीं मिला है। टीचर्स को सैलरी नहीं मिली है। पाठ्यपुस्तक आधा सेशन बीत जाने के बाद भी नहीं आती है। वहीं, मिड डे मील योजना के लिए बजट आवंटन के बाद भी हमारे छात्रों को मिड डे मील नहीं दिया जा रहा है।
आगे उन्होंने कहा प्रशासन की ओर से कोई शिकायत नहीं है, लेकिन एजुकेशन सिस्टम बेहतर बनाने की ज़रूरत है। कुरैशी ने सवाल उठाते हुए कहा कि जैसे किसी आश्रम, मंदिर, मस्जिद को लेकर कुछ ग़लत होता है, तो सारे मंदिर-मस्जिद और आश्रम गलत नहीं हो जाते तो किसी एक मदरसे में कोई गड़बड़ी होती है, तो सारे मदरसों पर उंगली क्यों उठाई जाती है?
केंद्र सरकार के मदरसा आधुनिकीकरण योजना के तहत एक, दो और तीन शिक्षकों वाले मदरसों को वेतन के लिए अनुदान देने का प्रावधान है। उन्हें आधुनिक शिक्षा से जोड़ने और व्यावसायिक शिक्षा से जोड़ने के लिए मॉडल के रूप में भी विकसित किए गए। अनुदान मिलने से मदरसों के संचालन, शिक्षकों का वेतन व अन्य संसाधनों के बेहतर संचालन, शिक्षकों का वेतन व अन्य संसाधनों के बेहतर संचालन में मदद मिलती थी लेकिन बीते छह साल से अनुदान नहीं मिलने से उनका संचालन मुश्किल हो गया है।
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव जसविंदर सिंह ने उक्त बयान जारी करते हुए कहा कि इन मदरसों में अल्पसंख्यक समुदाय के दो लाख से ज़्यादा छात्र शिक्षा ग्रहण करते हैं। जाहिर सी बात है कि इनमें जाने वाले छात्र ग़रीब परिवारों के ही होते हैं, जिनके माता पिता निजी स्कूलों की महंगी फीसों का बोझ नहीं उठा सकते हैं। यदि सरकार अनुदान नहीं देती है तो न केवल मदरसे बंद हो जाएंगे बल्कि इनमें पढ़ने वाले छात्रों का भविष्य भी चौपट हो जाएगा।
उल्लेखनीय है कि सरकार से एक शिक्षक वाले मदरसे को सालाना 72हज़ार रुपये, दो शिक्षक वाले मदरसे को एक लाख 11 हज़ार रुपये और तीन शिक्षक वाले मदरसे को 2 लाख 16 हज़ार रुपये अनुदान मिलता है। वर्तमान में इन मदरसों में पढ़ाने वाले शिक्षकों की संख्या 25000 और छात्रों की संख्या क़रीब 2लाख है।
जसविंदर सिंह ने कहा है कि न केवल मदरसों का अनुदान रोका गया है, बल्कि प्रक्रिया को इस तरह उलझा दिया गया है कि सही परिस्थिति को समझना ही मुश्किल हो गया है। मदरसों के अनुसार मदरसा बोर्ड अनुदान नहीं दे रहा है, जबकि मदरसा बोर्ड के प्रशासनिक अधिकारियों के अनुसार लोक शिक्षण संचालनालय के कारण यह अनुदान रुका हुआ है।
वामदल ने मदरसों के शिक्षकों और छात्रों के भविष्य को देखते हुए तुरंत अनुदान जारी करने की मांग की है।
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