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महाराष्ट्र: किसानों की बड़ी जीत, आंदोलन स्थगित लेकिन जीत नहीं थी आसान!

"पांच अप्रैल को दिल्ली में लाखों की संख्या में किसान-मज़दूर जुट रहे हैं और जैसे हमने अभी महाराष्ट्र की बीजेपी सरकार को झुकाया है ठीक वैसे ही दिल्ली की मज़दूर विरोधी मोदी सरकार को भी झुकाएंगे।"
Kisan long march

महाराष्ट्र में किसानों ने बड़ी जीत हासिल की है। सरकार ने उनकी मांगों को मान लिया है जिसके बाद किसान सभा के नेताओं ने अपने इस किसान लॉन्ग मार्च को समाप्त कर आंदोलन को स्थगित कर दिया है। किसान नेता जेपी गावित ने प्रशासनिक अधिकारियों के सामने वाशिंदी के ईदगाह मैदान में एक जनसभा को संबोधित करते हुए इसकी घोषणा की लेकिन ये जीत इतनी आसान नहीं थी। ये जीत को हासिल करने के दौरान किसानों को बेहद दर्द और पीड़ा झेलनी पड़ी है।

बेहद कठिन संघर्ष और पीड़ा की इसी कड़ी में नासिक में डिंडोरी के पास के एक गांव के रहने वाले 58 वर्षीय किसान पुंडलिक अंबो जाधव की मौत हो गई। जाधव की मौत के बाद मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने मृत किसान के घरवालों को पांच लाख रूपये मुआवज़ा देने की घोषणा की है।

किसानों और किसान नेताओं ने इस जीत को उन्हें समर्पित करते हुए उन्हें अमर शहीद बताया।

किसान नेता और सीपीआईएम के पूर्व विधायक जेपी गावित ने कहा कि, "सरकार ने हमारी सभी मांगें मान ली है। कुछ सवाल जो शासन से जुड़े थे उसके लिए एक समिति बना दी गई है जो एक निश्चित समय के भीतर अपनी रिपोर्ट देगी कि किसानों की मांग को कैसे पूरा किया जाना है।"


गावित ने कहा, "जो सरकार और पुलिस हमें शुरू में मार कर भगाने का प्रयास कर रही थी। बाद में वही पुलिस हमारी संख्या और संघर्ष की ताकत को देखते हुए सरकार का संदेश लेकर हमारे पास आई और बोली कि आप पैदल मत चलिए सरकार आपसे बात करना चाहती है। इसके बाद सरकार ने भी हमारी मांगें मान ली हैं जिसके लिए हम उसका धन्यवाद करते हैं।"

बता दें कि किसानों की वापसी के लिए सरकार ने वाशिंद से नासिक तक स्पेशल ट्रेन चलाने का फ़ैसला किया है।

किसान नेता जितेंद्र चोपड़ा इस जीत से बेहद खुश थे। वो कहते हैं, "हमें किसान सभा पर विश्वास था कि वो हमारे लिए कुछ बेहतर निर्णय लेगी। हम आज यहां से जीतकर जा रहे हैं लेकिन अगर सरकार ने हमें धोखा दिया तो हम छह महीने बाद इससे भी बड़ा मोर्चा लेकर आएंगे और सरकार को घेरेंगे।"

मज़दूर नेता और सीटू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बीएल कराड़ भी इस लॉन्ग मार्च का हिस्सा थे और लगातार सरकार से हो रही वार्ता का भी हिस्सा रहे हैं। उन्होंने न्यूज़क्लिक से ख़ास बातचीत में कहा कि ये किसान-मज़दूर एकता की जीत है।

वो आगे कहते हैं, "सरकार ने किसानों की मांग के साथ-साथ मज़दूरों के सवाल पर भी सकारात्मक पहल की है। उन्होंने आशा आंगनवाड़ी वर्कर्स के मानदेय में 1500 रूपये की बढ़ोतरी के साथ ही ठेका कर्मियों को उनकी सैलरी सीधे उनके बैंक अकाउंट में डालने का वादा किया है।

इसके साथ ही उन्होंने कहा कि, "ये उनकी राज्य स्तरीय मांगें थीं जिसे वे इस सरकार से लड़कर ले रहे हैं वहीं इसके अलावा उनकी और भी बड़ी मांगे हैं जिन्हें लेकर देश के मज़दूर-किसान 5 अप्रैल को दिल्ली घेरने जा रहे है। इसमें महाराष्ट्र से भी लगभग 10 से 15 हज़ार मज़दूर, किसान और खेत मज़दूर जा रहे हैं। इसके लिए तैयारियां जारी हैं जिसके तहत अभी से टिकट बुक की जा रही हैं। वहीं इसके अलावा गांव और ब्लॉक स्तर पर मीटिंग हो रही है। देश का मज़दूर-किसान अब अपने हक़ो को लेकर जागरूक है और वो किसी भी सरकार को अपना शोषण नही करने देगा।"

शुक्रवार 17 मार्च को किसानों की मांगों पर सहमति जताते हुए मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने विधानसभा पटल पर यह जानकारी रखी। शिंदे ने विधानसभा में सूचित किया कि वन पर अधिकार, वन भूमि पर अतिक्रमण, मंदिर न्यासों और चारागाह की ज़मीन किसानों को हस्तांतरित करने समेत 14 सूत्रीय मांग पर उनकी बात किसानों के प्रतिनिधियों से हुई है।

किसानों से विरोध प्रदर्शन रोकने की अपील करते हुए शिंदे ने कहा कि लिए गए फैसलों को तत्काल लागू किया जाएगा।

उन्होंने कहा कि बेमौसमी बारिश और कम कीमत की वजह से नुकसान का सामना कर रहे प्याज उत्पादकों को प्रति क्विंटल 350 रुपये की दर से वित्तीय राहत दी जाएगी।

किसानों की सबसे बड़ी मांग पर मुख्यमंत्री ने कहा कि कैबिनेट की एक उप-समिति गठित की जाएगी जो किसानों के कब्जे में मौजूद चार हेक्टयर तक वन भूमि के दावे संबंधी मांग की निगरानी करेगी। उन्होंने कहा कि समिति एक महीने में रिपोर्ट तैयार करेगी और वन अधिकार अधिनियम के तहत लंबित दावों की भी निगरानी करेगी।

इस समिति में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के पूर्व विधायक जीवा पांडु गावित और मौजूदा विधायक विनोद निकोले शामिल होंगे। हालांकि किसान संगठन ने कल अपने पत्ते नहीं खोले थे लेकिन आज दोपहर में अपनी सभा में इसे लेकर अपनी राय किसानों के बीच रखी। सूत्रों की माने तो सरकार ने जानबूझकर किसान सभा के राज्य महासचिव अजीत नवले को समिति का हिस्सा नहीं बनाया है क्योंकि माना जाता है कि देवेंद्र फड़नवीस नहीं चाहते थे कि वो कमेटी का हिस्सा हों।

इन सबके बीच किसानों का ये संघर्ष इतना आसान भी नहीं था। सरकार को अपनी बात मनवाने के लिए किसानों ने कड़ा संघर्ष किया और बहुत तकलीफ़ झेली है।

आपको बता दें कि महाराष्ट्र के किसानों का लॉन्ग मार्च दो दिनों से वाशिंद में ठहरा हुआ है। यहां पर किसानों ने अपने अस्थाई गांवो का निर्माण किया है। नासिक-मुंबई हाईवे पर किसानों ने एक टेंट सिटी बनाई है या यूं कहें कि इसे सिटी नही गांव कहना अधिक उपयुक्त है।


ये किसान 12 मार्च 2023 से नासिक से पैदल चलकर 16 मार्च को वाशिंद के ईदगाह मैदान पर पहुंचे है। अपनी ज़मीन पर मालिकाना हक़ नहीं मिलने से इन किसानों में भारी गुस्सा है। सुकराम पवार कहते हैं, "मेरी दो पीढ़ी अपनी ज़मीन के मालिकाना हक़ के लिए संघर्ष करते हुए ख़त्म हो गई है। मैं नहीं चाहता कि मेरा बच्चा भी इसके लिए लड़ता हुआ मर जाए इसलिए ये संघर्ष महत्वपूर्ण है।"

ये केवल सुकाराम नही बल्कि यहां पहुंचे हज़ारों आदिवासी किसानों की मांग है कि वो वन ज़मीन जिस पर वो खेती करते हैं वो सरकारी दस्तावेज़ में उनके नाम हो जाए।

ईदगाह मैदान में पहुंचे किसान पूरी तैयारी के साथ आए हैं। यहां भी दिल्ली की सीमाओं पर चले किसान आंदोलन जैसी तस्वीर दिख रही है। यहां अलग-अलग गांवो और तहसील के किसान अपने साथ अनाज, सब्जी, दाल और बर्तन लाए हैं। इसके साथ ही किसान खाना पकाने के लिए लकड़ियां भी अपने साथ लाए हैं।

70 वर्षीय जिदाबाई गायकवाड़ जो नासिक जिले से पैदल चलकर आई है वो आज सुबह का खाना पकाने के लिए लहसुन छील रही थीं। वो एक आदिवासी किसान है जो 28 लोगों के एक समूह के साथ यहां आईं हैं। ये सभी लोग अपने साथ एक छोटा टैम्पू लाए हैं।

जिदाबाई कहती हैं, "सब लोग अपने-अपने घर से थोड़ा-थोड़ा अनाज लेकर आए हैं और एकसाथ मिलकर खाना पकाते हैं और खाते हैं।


इसी तरह इस मैदान में सैकड़ों चूल्हे चल रहे हैं जहां हज़ारों की संख्या में आए किसान खाना पकाते और खाते हैं।

किसानों के कई समूह जिनकी लकड़ियां ख़त्म हो गईं वो पास के जंगल से लकड़ी बीनकर ला रहे हैं।

इसी तरह से हमारी नज़र पड़ी नासिक सुरगान से आए एक जत्थे पर जो भोजन कर रहा था। ये सभी ज़मीन पर डिस्पोज़ल प्लेट में खाना कह रहे थे। इस समूह के सदस्य भास्कर जाधव, जिनकी उम्र लगभग 50 साल है, एक आदिवासी किसान हैं।

वो कहते हैं, "हमारी इसी मेहनत और संघर्ष के आगे सरकार झुकी है। हमारी सभी मांगों को मोटे तौर पर मान लिया गया है। अब हम लोग जल्द ही अपने घर लौट जाएंगे। हालांकि इस बारे सच क्या है इसकी जानकारी हमारे नेता जेपी गावित साहब हमें बताएंगे और उनके कहने के बाद ही हम यहां से लौटेंगे।"

डिंडोरी जिले से आई लता राव केदार अपने दो अन्य साथियों के साथ, गांव के लोगो के लिए अपने सिर पर पानी की बोतल लेकर जा रही थीं। किसान संगठन की ओर से पीने का ये पानी दिया जा रहा था। बता दें कि किसान संगठनों को ये पानी नागरिक समाज के लोगों ने उपलब्ध कराया। कई नागरिक समाज के लोग किसानों के इस लॉन्ग मार्च और उनके संघर्ष में सहयोग कर रहे हैं। इसके अलावा सैकड़ों की संख्या में छात्र भी इस संघर्ष में शामिल हैं और किसानों की मदद कर रहे हैं।

यहां जो टेंट या गाडियां मौजूद हैं वो दस हज़ार से अधिक किसानों को शरण देने के लिए काफ़ी कम हैं इसी कारण बड़ी संख्या में किसान खुले आसमान के नीचे सोने को मजबूर हैं। इनका संघर्ष देखकर किसी का भी दिल पिघल सकता है। मौसम भी लगातार इनकी परीक्षा ले रहा है। पहले तो ये किसान बेहिसाब गर्मी में गर्म गिट्टी की सड़कों पर चलते हुए वाशिंदी पहुंचे और 16 मार्च की रात को यहां ज़ोरदार बारिश शुरू हो गई और इस दौरान इनके पास सिर छिपाने के लिए भी जगह नहीं थी। ये किसान खुले आसमान के नीचे, गीले मैदान में भीगते रहे लेकिन हौसला ऐसा कि यहीं मैदान में डटे रहे। यहां बिजली की भी व्यवस्था नही थी। कल रात को ही बिजली मिली और कुछ टेंट लगे हैं।

रोहित जो एक छात्र नेता हैं और महाराष्ट्र में स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया के राज्य सचिव हैं, वे अपने साथियों के साथ किसानों की मदद करने आए हैं। उनके साथी किसानों को उनके काम में लगातार मदद कर रहे हैं।

इसके अलावा मज़दूर संगठन सीटू के लोग भी यहां मौजूद हैं और लगातार किसानों के संघर्ष के सहभागी हैं। किसान नेताओं ने भी अपनी मांगों में इनका (मज़दूर) ध्यान रखा है। किसान अपनी मांगों के साथ-साथ आशा वर्कर्स के उचित मानदेय और सरकारी कर्मचारियों के लिए ओल्ड पेंशन स्कीम की मांग भी कर रहे हैं।

वाशिंद के इस मैदान में, पैरों में छाले, घाव, उल्टी, डीहाईड्रेशन और बदन दर्द के इलाज के लिए सरकारी एम्बुलेंस के आगे लंबी लाइने लगी हुई हैं।


यहां मौजूद किसानों को अखिल भारतीय किसान सभा और उनके नेताओं पर पूरा विश्वास है कि वो उनके लिए बेहतर निर्णय लेंगे। ये सभी ख़ुद को किसान सभा का अनुशासित सिपाही बताते हैं। लाल टोपी पहने 25-50 समूह यहां अपनी बैठकें करते हैं, रणनीतियां तैयार करते हैं वहीं इसके अलावा जब इनके नेता आते हैं और सभा की घोषणा होती हैं, तो ये सभी महज़ कुछ मिनटों में धूप-छांव देखे बिना मैदान में एक अनुशासन के साथ बिल्कुल शांति से बैठ जाते हैं। यहां हर गांव के लोग टेंपो या छोटी कार में अपना ज़रूरी सामान लेकर आए हैं।

युवा किसान नेता जगदीश ने कहा कि, “2018 में भी हमने एक लॉन्ग मार्च निकाला था। तब राज्य और देश में किसानों का मुद्दा गौण हो गया था इसके बाद भी हम अपने संघर्ष की बदौलत किसान और किसानी के सवाल को सत्ता के केंद्र में लाए थे जिसके बाद देश ने एक साल से अधिक वक्त तक किसानों का संघर्ष देखा था और अब एक बार फिर हम लॉन्ग मार्च लेकर आए और जीते। ये देशभर में मेहनतकशों के संघर्षों को बल देगा। इसी कड़ी में पांच अप्रैल को दिल्ली में लाखों की संख्या में किसान मज़दूर जुट रहे हैं और जैसे हमने अभी महाराष्ट्र की बीजेपी सरकार को झुकाया है ठीक वैसे ही दिल्ली की मज़दूर विरोधी मोदी सरकार को भी झुकाएंगे।"

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