Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

महाराष्ट्र: रेज़िडेंट डॉक्टर्स की हड़ताल और सरकार की अनदेखी के बीच जूझते आम लोग

महाराष्ट्र में लगभग सभी मेडिकल कॉलेज के करीब 5 हजार से अधिक रेसिडेंट डॉक्टर्स हड़ताल पर हैं। उनका दावा है कि वे पिछले छह महीने से सरकार तक अपनी मांगों को पहुंचाने में लगे हैं। लेकिन सरकार उनकी बातों को सुन नहीं रही है।
resident doctors' strike
फोटो साभार : भास्कर

महाराष्ट्र में पिछले कई दिनों से रेज़िडेंट डॉक्टर्स के हड़ताल और प्रदर्शन की खबर सुर्खियों में है। ये अनिश्चितकालीन हड़ताल बीते शुक्रवार, 1 अक्टूबर से जारी है। इसमें राज्य के करीब पांच हज़ार से अधिक रेज़िडेंट डाक्टर शामिल हैं और कोरोना के चलते सरकार की ओर से शैक्षणिक फीस माफी की मांग कर रहे हैं। रेज़िडेंट डॉक्टर्स के संगठन महाराष्ट्र रेज़िडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन (मार्ड) ने कहा है कि इस दौरान ओपीडी की सुविधाएं बंद रहेंगी लेकिन इमरजेंसी सुविधाएं चालू रहेंगी।

हड़ताल पर जाने से पहले रेज़िडेंट डॉक्टर्स ने सरकार के समक्ष अपनी मांगों की एक लिस्ट भी जारी की थी। इसमें सबसे प्रमुखता से फीस माफी की मांग रखी गई थी। इसकी मुख्य वजह कोरोना काल के दौरान करीब दो साल से किसी लेक्चर का न होना और एकेडमिक्स का प्रभावित होना बताया गया। साथ ही बिना किसी तैयारी के कोविड वार्ड की ड्यूटी में तैनाती का भी हवाला दिया गया।

रेज़िडेंट डॉक्टर्स का कहना है कि कोरोना महामारी आई तो उन्होंने सरकार से बिना कोई सवाल पूछे कोविड ड्यूटी की। कोरोना की वजह से एकेडमिक्स प्रभावित हुई। कोरोना काल के दौरान कोई लेक्चर नहीं हुआ। लेकिन अब फीस मांगी जा रही है। तो जब पढ़ाई हुई ही नहीं तो फिर फीस किस बात की दें?

बता दें कि शनिवार, 2 अक्तूबर को इस संबंध में सेंट्रल मार्ड की सरकार के प्रतिनिधि से बात भी हुई थी। इस दौरान सरकार द्वारा ये स्पष्ट किया गया कि अकादमिक शुल्क माफ नहीं होगा, लेकिन कोविड काल के दौरान सेवा के बदले इंसेंटिव दिया जाएगा। यह भी मौखिक आश्वासन है। सेंट्रल मार्ड का कहना है कि जब तक लिखित आश्वासन नहीं मिलता, तब तक हड़ताल जारी रहेगी।

फीस माफी के अलावा हॉस्टल का मुद्दा भी है!

टाइम्स ऑफ इंडिया की एक खबर के मुताबिक, रेज़िडेंट डॉक्टर्स को सत्र 2020-21 में 94,400 रुपए ट्यूशन फीस जमा करनी है। इसके अलावा एडमिशन फीस, हॉस्टल फीस अलग से। फीस माफी के बाद दूसरा मुद्दा हॉस्टल्स का भी है। हड़ताल पर गए रेज़िडेंट डॉक्टर्स का कहना है कि मेडिकल कॉलेज के हॉस्टल्स की हालत बहुत खराब है। कुल 20 कॉलेज में से 10-12 कॉलेज ऐसे हैं, जहां हॉस्टल्स की कंडीशन बिल्कुल ठीक नहीं है।

घाटी मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल औरंगाबाद के डॉक्टर ऋषिकेश कहते हैं, "हम यहां 24 घंटे काम करते हैं। मेडिकल कॉलेज रेसिडेंट डॉक्टर्स के भरोसे ही चलते हैं। लेकिन आप हमें ही परेशान कर रहे हैं। हमारे रहने की जगह ठीक नहीं है। जिसकी वजह से हमें काफी सारी दिक्कतें होती हैं। इसकी वजह से हमारे यहां 375 रेज़िडेंट डॉक्टर कोविड पॉजिटिव भी हुए। हमने अपनी जान दांव पर लगाकर कोविड काल में लोगों का इलाज किया। लेकिन इसके बावजूद हमारी मांगों को नहीं सुना जा रहा है।"

स्टाइपेंड से कटने वाले टैक्स रद्द हो!

रेज़िडेंट डॉक्टर्स की तीसरी डिमांड है स्टाइपेंड से कटने वाले टैक्स को रद्द करने की। साथ ही जिन मेडिकल कॉलेजों में कोरोना काल में ड्यूटी का इंसेंटिव नहीं मिला है, वो भी दिया जाए।

मार्ड के सदस्य डॉ. अक्षय यादव बताते हैं, “बीएमसी के जो तीन कॉलेज हैं, उनमें टैक्स कटता है। आप सोचिए कि हमें स्टाइपेंड के रूप में छोटी सी राशि मिलती है। इसमें भी बीएमसी के जो हॉस्पिटल हैं, टैक्स काट लेते हैं। बाकी किसी कॉलेज में ये सिस्टम नहीं है। हमारी मांग है कि ये बंद होना चाहिए। इसके अलावा गवर्नमेंट कॉलेज के स्टूडेंट्स को अभी तक कोविड ड्यूटी का इंसेंटिव नहीं मिला है। जब कोरोना शुरू हुआ था तब आश्वासन दिया गया था। वो भी हमें मिलना चाहिए।"

सरकार ने आश्वासन दिया, लेकिन अमल नहीं किया

डॉ. अक्षय यादव आगे कहते हैं, "ये जो सारी डिमांड्स हैं, इन पर हमें सरकार ने आश्वासन दिया था। हमारे चिकित्सा शिक्षा मंत्री ने ट्वीट भी किया था और फेसबुक पर भी डाला था कि रेज़िडेंट डॉक्टर्स की फीस माफी को लेकर सकारात्मक बातचीत हुई है। लेकिन अभी पांच महीना बीत गया है और कुछ भी नहीं हुआ। हम छह महीने से इसका फॉलोअप ले रहे हैं। हम स्ट्राइक नहीं करना चाहते, हमें काम करना है। लेकिन सरकार ने हमारी सुनी नहीं। हमें केवल आश्वासन मिला, उसे क्रियान्वयित नहीं किया गया। यही वजह है कि हमें स्ट्राइक करना पड़ा।

इस पूरे मामले में सरकार की ओर से इस मामले में कोई खास प्रतिक्रिया नहीं आई है। महाराष्ट्र के अलग-अलग मेडिकल कॉलेजों में रेज़िडेंट डॉक्टर्स हड़ताल पर हैं, प्रदर्शन कर रहे हैं, सरकार को उनके दिए आश्वासन की याद दिला रहे हैं। लेकिन सरकार फिलहाल उनकी सुनने के मूड में बिल्कुल नज़र नहीं आ रही। हड़ताल की वजह से इलाज के लिए आ रहे लोगों को भी काफी दिक्कतें झेलनी पड़ रही हैं. कई जगह तो दूर-दराज के इलाकों से आए लोगों को वापस लौट जाना भी पड़ा है।

खस्ता चिकित्सा व्यवस्था से जूझते डॉक्टर्स और स्टाफ

गौरतलब है कि कोविड काल के दौरान पूरे देश की खस्ता चिकित्सा व्यवस्था देखने को मिली थी। ताली और थाली के नाम पर जिन कोरोना योद्धाओं का सम्मान किया गया था। बाद में उन्ही के अपमान की खबरें भी सामने आईं थी। कहीं, पीपीई किट नहीं मिल रही थी, तो कहीं जरूरी उपकरण। कहीं डॉक्टरों और स्टाफ का बकाया वेतन नहीं मिल पा रहा था तो कहीं घंटों-घंटें शिफ्ट करने के बाद तनख्वाह का पता नहीं था। अस्पतालों की हालात से लेकर बुनियादी सुविधआओं तक हर जगह सरकार की अनदेखई ही नज़र आई। मेडिकल पेशे से जु़ड़े लोग लगातार सड़क से सोशल मीडिया तक अपनी आवाज़ पहुंचाते रहे लेकिन सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी। अब महाराष्ट्रा में सरकार की अनदेखी का और भयानक रुप देखने को मिल रहा है, जिसकी कीमत आम आदमी को चुकानी पड़ेगी।

पूरे महाराष्ट्र में 20 से ज्यादा मेडिकल कॉलेज है, जिसमें करीब 5 हजार से अधिक रेसिडेंट डॉक्टर्स है। सब हड़ताल पर हैं और उनका दावा है कि वे अचानक से हड़ताल पर नहीं गए हैं और न ही वे इसे जारी रखना चाहते हैं। पिछले छह महीने से वे सरकार तक अपनी मांगों को पहुंचाने में लगे हैं। लेकिन सरकार उनकी बातों को सुन नहीं रही है इसलिए हड़ताल पर जाना उनकी मजबूरी है।

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest