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ख़बरों के आगे-पीछे: क्या 6 महीने में ही गिर जाएगी महाराष्ट्र की नई सरकार?

हर हफ़्ते की तरह इस सप्ताह की जरूरी ख़बरों को लेकर फिर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन
Shinde
फ़ाइल फ़ोटो- PTI

सरकार बनते ही गिरने की चर्चा शुरू 

महाराष्ट्र में नई सरकार बने अभी एक हफ्ता ही हुआ है और सरकार गिरने की चर्चाएँ शुरू हो गई हैं। पहले एनसीपी के नेता शरद पवार ने छह महीने में सरकार गिरने की भविष्यवाणी करते हुए अपनी पार्टी के नेताओं को मध्यावधि चुनाव की तैयारी करने को कहा। इसके एक दिन बाद शिव सेना के नेता उद्धव ठाकरे ने भी कहा कि सरकार छह महीने से ज्यादा नहीं चलेगी। शिव सेनाएनसीपी और कांग्रेस यानी महा विकास अघाड़ी के तीनों घटक दलों को लग रहा है कि मंत्रिमंडल बनने के साथ ही सरकार का पतन शुरू हो जाएगा। एक वायरल वीडियो के सहारे अघाड़ी के नेता बता रहे है कि कैसे देवेंद्र फड़नवीस ने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के हाथ से माइक छीना और कैसे उनको दोयम दर्जे का नेता बना दिया। हो सकता है कि महा विकास अघाड़ी के नेताओ की यह सदिच्छा पूरी हो जाए क्योंकि भाजपा में भी ज्यादातर नेता मान रहे है कि गठबंधन की यह सरकार बृहन्नमुंबई नगर निगम यानी बीएमसी के चुनाव से आगे नहीं चलने वाली है। भाजपा अगर बीएमसी के चुनाव में जीतती है तो खुद ही समय से पहले विधानसभा भंग करा कर चुनाव में जाएगी। दूसरी ओर कुछ नेता मान रहे है कि सरकार हर हाल मे लोकसभा चुनाव तक चलेगी और संभव है कि समय से छह महीने पहले लोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव हो। बहरहाल जो भी होयह दुर्भाग्य है कि पिछली बार उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में महा विकास अघाड़ी की सरकार बनते ही उसके गिरने की चर्चा शुरू हो गई थी। फिर भी सरकार ढाई साल चली। अब फिर नई सरकार बनते ही इसके गिरने की चर्चा शुरू हो गई है।

केंद्रीय मंत्रिपरिषद में फ़ेरबदल का वक्त!

केंद्रीय मंत्रिपरिषद में विस्तार हुए को एक साल पूरा हो गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने दूसरे कार्यकाल में लंबे इंतजार के बाद सात जुलाई 2021 को अपनी मंत्रिपरिषद का पहला विस्तार और उसमें फेरबदल किया था। मोदी दूसरी बार 30 मई 2019 को प्रधानमंत्री बने थे। उसके 25 महीने के बाद पहला फ़ेरबदल हुआ था। लेकिन दूसरा फ़ेरबदल जल्दी ही यानी राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति के चुनाव के बाद कभी भी हो सकता है। पिछले साल जुलाई में हुआ फ़ेरबदल चौंकाने वाला था और जानकार सूत्रों का कहना है कि इस बार उससे भी ज्यादा धमाकेदार बदलाव होगा। कहा जा रहा है कि इस बार केंद्रीय मंत्रिपरिषद में गुजरात सरकार की तर्ज पर बदलाव हो सकता है। यानी ज्यादातर मंत्रियों की छुट्टी हो सकती है। कुल मिला कर 2024 की तैयारियों के लिहाज से मंत्रिपरिषद में फ़ेरबदल होने की चर्चा है। बताया जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी के साथ पहली सरकार में यानी मई 2014 में या उसके चार महीने बाद यानी सितंबर 2014 में हुए विस्तार के समय जो लोग मंत्री बने थे उनमें से ज्यादातर कि विदाई हो सकती है। फिलहाल दो मंत्रियों- मुख्तार अब्बास नकवी और आरसीपी सिंह ने मंत्रिपरिषद से इस्तीफा दे दिया है। जिन लोगों ने सात या आठ साल मंत्रिमंडल में बीता लिए हैं उनको संगठन में भेजा जा सकता है और संगठन से नए चेहरे सरकार में लाए जा सकते है। इस बार बदलाव का दो आधार होगा। पहला आधार सात या आठ साल का कार्यकाल है और दूसरा आधार परफॉरमेंस होगा। 

राज्यपालों की नियुक्ति भी होनी है

अगले कुछ दिनों में केंद्रीय मंत्रिपरिषद में फेरबदल के साथ ही कई राज्यपालोंउप राज्यपालों और प्रशासकों की नियुक्ति होनी है। बताया जा रहा है कि केंद्रीय मंत्री पद से हटने के बाद मुख्तार अब्बास नकवी को राज्यपाल बनाया जा सकता है। हालांकि अभी उनका नाम उप राष्ट्रपति पद के लिए भी चर्चा में है। अगले कुछ दिनों में अगर कैप्टन अमरिंदर सिंह पार्टी का विलय भाजपा में हो जाता है तो उन्हें भी राज्यपाल बनाया जा सकता है। यह भी कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी मंत्रिपरिषद में फ़ेरबदल करेंगे तो हटाए जाने वाले कुछ मंत्रियों को राज्यपाल बनाया जा सकता है। इस साल सितंबर में मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक रिटायर होंगे। उसके अगले महीने अक्टूबर में अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल बीडी मिश्रा और असम के राज्यपाल जगदीश मुखी रिटायर हो जाएंगे। किरण बेदी को हटाए जाने के बाद से ही पुड्डुचेरी के उप राज्यपाल का पद खाली है और तेलंगाना की राज्यपाल तमिलिसाई सौंदर्यराजन के पास इसका अतिरिक्त प्रभार है। नगालैंड में भी राज्यपाल का पद खाली है और जगदीश मुखी वहां का अतिरिक्त प्रभार संभाल रहे हैं उधर दादर व नागर हवेली और लक्षद्वीप दोनों के प्रशासक प्रफुल्ल खोड़ा पटेल हैं। पूर्व आईपीए अधिकारी दिनेश्वर सिंह के निधन के बाद लक्षद्वीप के प्रशासक का पद खाली हुआ था। बताया जा रहा है कि 15 अगस्त के बाद राज्यपालोंउप राज्यपालों और प्रशासकों की नियुक्ति की जाएगी।

स्वामी के मोदी पर अब ज्यादा तीखे हमले

राज्यसभा की अपनी सदस्यता खत्म होने के बाद सुब्रह्मण्यम स्वामी अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर ज्यादा सीधा और तीखा हमला करने लगे हैं। उन्होंने पिछले एक हफ्ते के दौरान कई मुद्दों को लेकर मोदी पर हमला किया है। अपने पसंदीदा विषय चीन को लेकर स्वामी ने मोदी पर हमला करते हुए ट्विट करके कहा कि मोदी बताएं कि चीन ने भारत की कितनी जमीन कब्जाई है और अगर मोदी में हिम्मत नहीं है तो वे चीन से जमीन छुड़ाने का जिम्मा किसी और को दें। उन्होने मोदी की मजबूत नेता वाली छवि को खारिज करते हुए देश को एक मजबूत नेता की जरूरत बताई और कहा कि इस सरकार ने कतर के सामने समर्पण कर दिया और उदयपुर में हिंदू दर्जी की हत्या के बाद भी बहुत ढीली ढाली प्रतिक्रिया दी। गौरतलब है कि कतर ने ही सबसे पहले नूपुर शर्मा के बयान का मुद्दा उठाया थाजिसके बाद उनको प्रवक्ता पद से हटाया गया था और पार्टी से निलंबित किया गया था। जी-7 की बैठक में हिस्सा लेने के लिए मोदी के जर्मनी जाने पर भी उन्होंने सवाल उठाया और कहा कि भारत की उसमें कोई भूमिका नहीं थीइसलिए प्रधानमंत्री को तमाशबीन बनने के लिए जर्मनी नहीं जाना चाहिए था। उन्होंने उद्धव ठाकरे की इस बात का भी समर्थन किया है कि अगर भाजपा ने उनका प्रस्ताव मान लिया होता तो आज स्वाभाविक रूप से भाजपा का मुख्यमंत्री होता।

आंख मूंद कर सदस्य बनाने में फंसी है भाजपा

भारतीय जनता पार्टी दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा करती है। दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बनने के लिए भाजपा ने मिस्ड कॉल से सदस्य बनाए थे। उसके बाद जैसे जैसे पार्टी का विस्तार हुआ पार्टी के नेता आंख मूंद कर भर्ती करने लगे। किसी भी पार्टी से आने वाले नेताओं का गले लगा कर स्वागत हुआ और उनको अच्छे पद भी दिए गए। आज उसका खामियाजा पार्टी भुगत रही है। उदयपुर में हिंदू दर्जी कन्हैयालाल की हत्या करके वीडियो बनाने वाले रियाज अख्तरी के भी भाजपा से जुड़े होने की खबर आई है तो उधर जम्मू कश्मीर के राजौरी के द्राज गांव में लोगों ने दो आतंकवादियों को पकड़ाजिसमें एक भाजपा का नेता था। लश्कर--तैयबा का आतंकवादी तालिब हुसैन शाह जम्मू क्षेत्र में भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चे के आईटी सेल का प्रमुख था। भाजपा के कई पुराने नेता इस तरह की घटनाओं से निराश और दुखी हैं। उनका कहना है कि विस्तार करने के चक्कर में पार्टी ने आंख बंद कर ली और इधर-उधर से नए लोगों की भर्ती शुरू कर दिया। उसका नतीजा यह हुआ है कि पार्टी को बार बार शर्मिंदा होना पड़ रहा है। पार्टी के पुराने नेता इस बात से भी नाराज हैं कि बाहर से आए नेताओं को पद और प्रतिष्ठा दोनों दिया जा रहा है और पुराने नेताओं की अनदेखी की जा रही है। गौरतलब है कि 2017 में मध्य प्रदेश एटीएस ने अवैध टेलीफोन एक्सचेंज का पर्दाफाश करते हुए आईएसआई के जिन 11 संदिग्धों को गिरफ्तार किया थाउनमें भी एक ध्रुव सक्सेना भाजपा के आईटी सेल का पदाधिकारी था।

आम आदमी पार्टी की राजनीति चमका रही है भाजपा

आम आदमी पार्टी को भाजपा की बी टीम यूं ही नहीं कहा जाता है। दोनों पार्टियां इस बात को समय-समय पर साबित भी करती रहती हैं। अगले चार-पांच महीने में हिमाचल प्रदेश और गुजरात में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं और इन दोनों राज्यों में आम आदमी पार्टी के पास न तो संगठन है और न ही कोई चेहरा। वह चुनाव के समय किसी चेहरे को आगे करेगीलेकिन उस पर किसी को भरोसा नहीं बनेगा। इसके बावजूद भाजपा के नेता ऐसा दिखा रहे है जैसे इन दोनों राज्यों में उनकी सीधी लड़ाई आम आदमी पार्टी से है। भाजपा के तमाम बड़े नेता हर मुद्दे पर आम आदमी पार्टी को घेर रहे हैजबकि दोनों राज्यों में कांग्रेस मुख्य विपक्षी पार्टी है और कांग्रेस से ही भाजपा का मुकाबला होना है। गौरतलब है कि दिल्ली के बाद आम आदमी पार्टी पंजाब में जीती तो उसके पीछे आठ साल की राजनीति है। पंजाब में उसने 2014 के लोकसभा चुनाव में चार सीटें जीती थीं और 2017 के विधानसभा चुनाव में 19 सीटें जीत कर मुख्य विपक्षी पार्टी बनी थी। तब जाकर 2022 में उसकी सरकार बनी। हिमाचलगुजरात या राजस्थान में तो उसका खाता भी नहीं खुला है। लेकिन भाजपा उसका प्रचार करके उसको मुकाबले में लाने की कोशिश कर रही है। इसका मकसद भाजपा विरोधी वोट का बंटवारा कराना है।

मनोनीत श्रेणी में अब नेताओं की जरूरत नहीं 

हालांकि राज्यसभा में भाजपा और उसका गठबंधन अभी भी बहुमत के आँकड़े से दूर हैलेकिन इसके बावजूद उसे अब अपनी संख्या को लेकर ज्यादा चिंता नहीं है। इसलिए मनोनीत कोटे में ऐसे लोगों को सदस्य बनाया जा रहा हैजो पूरी तरह से अराजनीतिक है और सांसद बनने के बाद भी शायद ही अपने को भाजपा का सदस्य घोषित करेंगे। पिछले दिनों मनोनीत श्रेणी के जो सांसद रिटायर हुए हैंउनमें से दो को छोड़ कर बाकी सभी ने अपने को भाजपा का सदस्य घोषित कर दिया थाजिससे राज्यसभा में भाजपा की संख्या बढ़ी थी। सुब्रह्मण्यम स्वामीस्वपन दासगुप्तारूपा गांगुलीसुरेश गोपी आदि भाजपा के सदस्य थे। नरेंद्र जाधव और मैरीकॉम ही ऐसे सांसद थेजिन्होंने अपने को पार्टी से अलग रखा था। बहरहाल मनोनीत श्रेणी की सात खाली सीटों में से चार पर जिन लोगों को मनोनीत किया गया हैउनमें से शायद कोई भी ऐसा नहीं हैजो भाजपा की सदस्यता लेगा। ये चारों लोग पूरी तरह से अराजनीतिक हैं। फिल्मों से जुड़े दो लोग- इलैयाराजा और केवी. विजयेंद्र प्रसाद ने अपने काम से पहचान बनाई है और राजनीति से जुड़ने का कोई संकेत नहीं दिया है। इसी तरह महान एथलीट पीटी उषा भी राजनीति से कोसों दूर हैं और दशकों से धर्माधिकारी की भूमिका निभा रहे वीरेंद्र हेगड़े का भी राजनीति से मतलब नहीं है। यह अलग बात है कि ये चारों दक्षिण भारत के चार अलग-अलग राज्यों के प्रतिनिधि चेहरे हैं और प्रतीकों की राजनीति में माहिर भाजपा के बहुत काम आ सकते हैं।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं, व्यक्त विचार निजी हैं) 

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