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महोबा: क्वारंटाइन किए गए लोग घूम रहे हैं खुले में, रामनवमी पर निकाला गया जुलूस

इस मामले पर जब महोबा जिले के एसडीएम से बात की गई तो एसडीएम साहब ने पत्रकार से ही कहा कि, 'उनको जरा समझा दीजिए कि घूमें नहीं, आप पत्रकार हैं, ज़िम्मेदारी है।'
महोबा

महोबा (उत्तर प्रदेश) :  दूसरे शहरों से वापस आए लोगों को कोरोना वायरस के बढ़ने की वजह से सुरक्षा के नजरिए से बड़ी संख्या में क्वारंटाइन यानी अलग-थलग किया जा रहा है। बुंदेलखंड के महोबा जिले में वापस आए लोगों को अलग-अलग सरकारी स्कूलों में क्वारंटाइन किया गया है। लेकिन यहां क्वारंटाइन किए लोग गाँव-गाँव में घूम रहे हैं, उन्हें न खुद को लेकर कोई डर है, न दूसरों को लेकर। दरअसल व्यवस्था भी नहीं है और जागरूकता की भी कमी है। इसी तरह यहां बिना किसी अनुमति के रामनवमी का जुलूस भी निकाला गया।

गुरुवार को रामनवमी के अवसर पर यहाँ के मुडहरा क्षेत्र में चौंकाने वाला मंजर देखने को मिला। यहाँ 50 से ज़्यादा लोग क्वारंटाइन किए गए हैं लेकिन स्कूल पहुँचने पर मालूम चला कि सभी क्वारंटाइन किए गए लोग गाँव में घूमने के लिए निकले हैं, केवल एक परिवार है जिसमें नौ लोग शामिल हैं वो लोग खुद को पूरी तरह से क्वारंटाइन किए हुए हैं। इतना ही नहीं, गाँव में रामनवमी के अवसर पर जुलूस भी निकाला गया, जिसमें बड़े-बुजुर्ग बच्चे शामिल थे।

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कोरोना वायरस की वजह से पीएम मोदी ने पूरे देश में लॉकडाउन की घोषणा कर दी। इस घोषणा के बाद प्रवासी मजदूरों में अनिश्चितता की स्थिति बन गई। केंद्र और राज्य सरकारों की तमाम घोषणाओं और आश्वासन के बाद भी वह अपने आपको उन जगहों पर सुरक्षित नहीं महसूस कर पा रहे थे, जहां पर उन्होंने कई सालों तक मेहनत-मज़दूरी की। इसलिए वे अपने उन गांवों की तरफ लौटने को मजबूर हो गए, जहां से वे कुछ इच्छाएं लेकर शहरों की ओर पलायन किए थे।

बुंदेलखंड के महोबा जिले से भी सालों से लोग पलायन करते रहे हैं, ये लोग दिल्ली, मुंबई, झारखंड, पंजाब, मध्य प्रदेश में जाकर कई साल रोजी रोटी कमाए। लॉकडाउन की घोषणा के बाद जिले के अधिकतर मजदूर अपने जिले में लौट आए हैं। यहाँ के एसडीएम के मुताबिक करीब 3500 लोग महोबा वापस आ गए हैं।

मुडहरा के सरकारी स्कूल में अस्थाई रूप से बने क्वारंटाइन सेंटर में रुकी हुई राधा बताई हैं कि, 'हम लोग 30 मार्च से यहाँ पर रुके हुए हैं। जिस दिन आए थे उस दिन खाना मिला था, अपने हाथ से करीब तीन मीटर की दूरी पर इशारे से बताते हुए राधा कहती हैं कि, 'हमें वहीं से फेंककर रोटी दी गई थी। फिर हम लोगों ने मिलकर कहा कि 'हमें सामान दे दीजिए हम बनाकर खा लेंगे।' राधा कहती हैं कि 'करीब चालीस-पचास लोग यहाँ रुके हुए हैं, सभी लोग गाँव घूमने के लिए गए हैं, इस समय केवल मेरा ही परिवार यहाँ पर है।' 

यहीं पर रुके हुए मुन्ना कहते हैं कि, 'यहाँ पर व्यवस्था नाम की कोई चीज नहीं है, जब हम लोग प्रधान से किसी चीज के लिए कहते हैं तो प्रधान कहते हैं कि, हमें कुछ मिला नहीं है बाहर से...अपने  घर से दे रहे हैं। मुन्ना कहते हैं कि, 'जब पुलिस वाले आए और हमने शिकायत की तो वो हमें ही गालियां देने लगे।

क्वारंटाइन सेंटर में रुकी हुई बुजुर्ग गीता बताती हैं कि, 'लोग बाहर घूम रहे हैं, हमें यहाँ पर खाने को नहीं मिल रहा है। यहाँ करीब पचास लोग रुके हुए हैं लेकिन सभी लोग अपने घर जा रहे हैं आ रहे हैं, कोई कुछ कह नहीं रहा है। पुलिस वाले आ रहे हैं तो गालियां दे रहे हैं, हम किसी से कुछ कह नहीं पा रहे हैं।' 

इस गाँव में दूसरे शहरों से आए लोगों को क्वारंटाइन सेंटर में रुकने के लिए कहा गया है लेकिन लोग गाँव में घूमते हुए पाये गए, लोगों से बातें कर रहे हैं। गाँव के एक बुजुर्ग ने बताया कि, 'ये लोग बाहर से बीमारी लेकर आए हैं (हालांकि ऐसा कोई टेस्ट नहीं हुआ है) और गाँव में घूम-घूमकर बीमारी फैला रहे हैं, जब इनसे कहा गया है कि स्कूल में रहें तो आखिर क्यों ये लोग बाहर घूम रहे हैं, पुलिस-प्रशासन क्यों इनपर ध्यान नहीं दे रही है।’

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मुडहरा गाँव के प्रधान से बातचीत की गई तो उन्होने कहा है कि, 'हमें जानकारी है कि सभी लोग बाहर घूम रहे हैं, मुझसे जितना हो सका मैंने किया, अब प्रशासन व्यवस्था नहीं कर रहा है तो हम क्या करें। हम लोगों ने तीन स्कूलों में व्यवस्था की है, जिसमें करीब पाँच दर्जन लोग रुके हैं। इन लोगों को कई बार मना किया गया कि बाहर न निकलें, लेकिन ये लोग मानते ही नहीं, इन लोगों से हम लड़ाई तो नहीं कर सकते, 24 घंटे बैठकर हम उनको देख नहीं सकते।

खाने के मामले में ग्राम प्रधान कहते हैं कि, 'पहले दिन हमने सब्जी-रोटी की व्यवस्था की थी, और कुछ सामान भी दिए थे तो इन लोगों ने पहले ही दिन मना कर दिया बोले, 'ऐसा खाना फेंक देते हैं, हम नहीं खाते हैं। गिरजा नाम की एक औरत है, वो कहती है ऐसा खाना हम फेंक देते हैं, तो हमने कह दिया कि जिसको खाना है खाओ, जिसको नहीं खाना है मत खाओ। हमने ये बात दरोगा को भी बताया।' 

ग्राम प्रधान बताते हैं कि, 'क्वारंटाइन किए गए लोगों ने कहा कि, 'हमें खाना पकाने का समान दे दो, हम पका लेंगे, हमने उनको सामान लाकर दे दिया। फिर उनको कुछ न कुछ चाहिए ही होता है, कभी टमाटर, कभी प्याज, कभी हरी मिर्च। अब मैं रोज-रोज तो इनको सामान नहीं दे सकता।' अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए ग्राम प्रधान कहते हैं कि, 'एक व्यक्ति जो बाहर से आया है, उसे स्कूल में रहने के लिए कहा गया तो उसने कहा कि, 'अगर हमें स्कूल में रहने के लिए कहा जाएगा तो मैं आत्महत्या कर लूँगा, फिर वो पहाड़ी अपने घर रहने के लिए चला गया।' 

इस गाँव में लोग रामनवमी के अवसर पर हर्षोंल्लास के साथ जुलूस निकालते हुए नज़र आए। इस जुलूस में करीब सैकड़ों लोग शामिल रहे। यह जुलूस ढ़ोल-बाजे के साथ निकाला गया। जहां एक तरफ प्रशासन ने लोगों से इकट्ठा होने के लिए मना किया है वही दूसरी तरफ यहाँ लोग जमकर जुलूस निकाल रहे हैं।

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इस मामले पर जब महोबा जिले के एसडीएम से बात की गई तो एसडीएम साहब ने पत्रकार से ही कहा कि, 'उनको जरा समझा दीजिए कि घूमें नहीं, आप पत्रकार हैं, ज़िम्मेदारी है।' जब पत्रकार ने एसडीएम से कहा कि, 'सर! प्रशासन ऐसे लोगों पर नज़र नहीं रख रहा है क्या? तो एसडीएम साहब कहते हैं कि, 'हर जगह तो पुलिस नहीं बैठ सकती ना। ये तो आपस में समझने की बात है कि एक दूसरे से दूरी बनाकर वहीं पर रहें।' 

जब पत्रकार एसडीएम से कहती हैं कि, 'इतने सारे लोग बाहर घूमेंगे तो ये परेशानी हो सकती है, तो एसडीएम गाँव का नाम वापस से पूछकर सवाल टालने की कोशिश करते हैं। जब उनसे गाँव में निकाले गए रामनवमी यात्रा के बारे में बात की गई तो उन्होंने कहा कि, 'लोग मान कहाँ रहे हैं, जिसका जो त्योहार है, चाहे हिन्दू हो या मुसलमान... वो तो सोच रहा है कि हमें भगवान-अल्लाह मियां बचाएगा।' 

जुलूस रोकने के बारे में पूछने पर एसडीएम महोबा कहते हैं कि, 'जुलूस के बारे में हमसे लोगों ने कोई परमिशन तो ली नहीं थी, हमसे परमिशन ली जाएगी तो हम मना कर देंगे।' आपसे परमिशन नहीं ले रहे हैं तो आप मना नहीं करेंगे के सवाल पर एसडीएम कहते हैं कि, 'जब आप बताएँगी तभी तो हम मना करेंगे कि हम कोई भगवान हैं जो चारो तरफ देख रहे हैं।' एसडीएम कहते हैं कि, 'हम इतना समझाते हैं लेकिन लोग मानते कहाँ हैं।' 

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