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भाईचारिक सांझ का प्रतीक पंजाब का ज़िला मालेरकोटला

पंजाबियों व सिखों का मालेरकोटला के साथ एक अनोखा रिश्ता है, यह पंजाब की ऐतिहासिक विरासत का शानदार हिस्सा है। पंजाब की इस ऐतिहासिक भाईचारिक सांझ के बारे में योगी की टिप्पणी गैर-जरूरी व भद्दी है।
भाईचारिक सांझ का प्रतीक पंजाब का ज़िला मालेरकोटला

तारीख थी 16 फ़रवरी 2020, पंजाब के मालेरकोटला में सीएए, एनआरसी व एनपीआर के खिलाफ राज्य के जन संगठनों ने रैली आयोजित की थी जिसमें किसान, मजदूर, औरतें, नौजवान व बच्चे जोशीले नारे लगा रहे थे, "भाई-भाई नूं लड़न नहीं देणा, सन 47 बणन नहीं देणा" (भाई-भाई को लड़ने नहीं देंगे, सन 47 बनने नहीं देंगे)।

मालेरकोटला निवासी विनय का कहना था, “मैं बेशक हिन्दू धर्म से संबंध रखता हूं लेकिन केन्द्र सरकार के सीएए जैसे काले कानून के विरुद्ध अपने मुसलमान भाईयों के साथ खड़ा हूं क्योंकि यह एक धर्म की नहीं बल्कि हम सबकी सांझी लड़ाई है। मैं अपनी दुकान बंद करके इस रैली में आया हूं।”

भठिंडा से आए एक अधेड़ उम्र के सिख वेशभूषा पहने नाजर सिंह ने पूरे जोश में और भावुक होते हुए कहा, “मैं मालेरकोटला की धरती का कर्ज़ चुकाने के लिए यहां पहुंचा हूं। आज से 300 साल पहले जब मेरे गुरु के छोटे बच्चों को सरहिंद के नवाब ने दीवारों में चिनवाने का हुक्म दिया था तो मालेरकोटला के नवाब ने मेरे गुरु के बच्चों के हक में ‘हाअ का नारा’ मारा था (आह भरी थी)।”

अब करीब डेढ़ साल बाद मालेरकोटला राष्ट्रीय स्तर पर फिर चर्चा में आया। कारण था पंजाब की कप्तान अमरिंदर सरकार ने इसे पंजाब का 23वां जिला बना दिया। जिला बनने की घोषणा होते ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस बारे ट्वीट किया कि इस समय मालेरकोटला का गठन कांग्रेस की विभाजनकारी नीति को दर्शाता है। योगी ने इसे मुस्लिम तुष्टीकरण बताते हुए गैर-संविधानिक करार दिया है। योगी अपने ट्वीट में कहते हैं कि धर्म के आधार पर किसी भी तरह का सम्मान संविधान की मूल भावना के उलट है। पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने योगी के ट्वीट को भड़काऊ बताते हुए कहा कि योगी को पंजाब की नैतिक कद्र-कीमतों, मालेरकोटला के इतिहास के बारे  कुछ नहीं पता। योगी के इस ट्वीट का भाजपा के पूर्व सहयोगी अकाली दल ने भी सख्ती से नोटिस लिया। अकाली दल के नेता दलजीत सिंह चीमा ने कहा, "योगी को अपने राज्य का फ़िक्र करनी चाहिए वे पंजाब के मामलों में दखलंदाजी न करें।"

पंजाब में भाजपा को छोड़कर पंजाब की हर एक पार्टी व आम लोगों ने योगी के इस बयान की तीखी आलोचना की। मालेरकोटला के पंजाबी साहित्यकार नूर मोहम्मद नूर का कहना है, "योगी जी का बयान तथ्यों पर आधारित नहीं है। मालेरकोटला में शामिल दो तहसीलें अहमदगढ़ और अमरगढ़ में गैर-मुस्लिम आबादी ज्यादा है इसलिए मुस्लिम तुष्टिकरण की बात निराधार है। मालेरकोटला के लोगों द्वारा इसे जिला बनाने की मांग काफी लम्बे समय से की जा रही थी क्योंकि हमें संगरूर जिला काफी दूर पड़ता है। मालेरकोटला में सदियों से सभी समाज के लोग आपसी प्रेम से रहते आ रहे हैं यहां कभी कोई साम्प्रदायिक फसाद नहीं हुआ। योगी जी का बयान भाईचारिक सौहार्द को बिगाड़ने वाला है।"

मालेरकोटला निवासी सुरेंदर पाल सिंह जोश और नाराजगी से कहते हैं, "शहरों के प्राचीन मुस्लिम नामों को बदलने वाला योगी जब भारतीय संविधान की बात करे तो इस पर हंसा ही जा सकता है। जो खुद नफरत से भरा हो उसे इंसानी मुहब्बत और भाईचारे की सांझ का कोई इल्म नहीं हो सकता। मालेरकोटला सिर्फ सिख व मुस्लिम सांझ ही नहीं यह पंजाबियों की एकता का प्रतीक है। योगी जी को समझ लेना चाहिए कि यूपी में बैठकर पंजाब को समझना बहुत मुश्किल है जो कि योगी जैसे साम्प्रदायिक नेता के लिए तो बिल्कुल ही असम्भव है।"

2011 की जनगणना के अनुसार मालेरकोटला की आबादी 1 लाख 35 हज़ार है जिसमें 70 फीसदी से अधिक मुस्लिम आबादी रहती है।

मालेरकोटला को नवाबों का शहर भी कहा जाता है। इस शहर को बसाने वाली हस्ती शेख़ सदरूदीन थे जिन्हें बाबा हैदर शेख़ के नाम से जाना जाता है। शहर में उनकी मजार भी बनी हुई है जहां हर वीरवार को इलाके के सब हिन्दू, मुस्लिम, सिख लोग सजदा करने आते हैं। शेख़ सदरूदीन का संबंध मध्य एशिया के शहर खुरासान से बताया जाता है। वे इस्लाम का प्रचार करने के लिए पंजाब आए थे और यहीं रहने लगे (जहां आज मालेरकोटलाशहर बसा हुआ है)। सन् 1454 में हिंदुस्तान के बादशाह बहलोल लोधी ने अपनी बेटी ताज मुरस्सा बेगम का विवाह शेख़ सदरूदीन के साथ किया था और एक बड़ी जागीर अपनी बेटी को दहेज में दी, इस जागीर में राजपूत महलेर सिंह का बसाया एक गांव महलेर भी शामिल था, जो बर्बाद हो चुका था। शेख़ सदरूदीन ने इसे ‘मलेर’ नाम से फिर आबाद किया। सदरूदीन के ही कुल में पैदा हुए राजा बैज़ीदखान ने सन् 1658 में ‘कोटला’ नाम की नई आबादी बनायी। इस तरह ‘मलेर’ और ‘कोटला’ इलाके मिलकर मालेरकोटला नाम से प्रसिद्ध हुए।

बैज़ीदखान औरंगजे़ब का समकालीन था और उसे मुगल दरबार में आदर की निगाह से देखा जाता था। सन् 1659 में बैज़ीदखान की मौत के बाद उसका बड़ा बेटा गद्दी पर बैठा जिसने सन् 1672 तक राज किया। उसकी मौत के बाद गद्दी शेर मुहम्मद खां के हाथ आई, वह दूरदर्शीशासक था।

औरंगज़ेब के समय बिहार की बगावत को दबाने के लिए फौज़ के एक हिस्से की कमान उसे सौंपी गई। बिहार जीतने के बाद उसकी बहादुरी की कद्र करते हुए औरंगज़ेब ने उसे 70 गांव जागीर में दे दिए। बदायूं बगावत को दबाने के लिए भी उसकी बड़ी भूमिका रही।

शेर मोहम्मद खां के समय ही मुगलों और सिखों की लड़ाईयां शुरु हुईं। शेर मोहम्मद खां ने मुगलों का साथ दिया। चमकौर की लड़ाई में सिखों के साथ लड़ते हुए उसने अपने भतीजे नाहर को गंवाया पर सन् 1704 में चमकौर की लड़ाई के बाद जब गुरु गोबिंद सिंह के छोटे साहिबजादों को सरहिंद के नवाब वजीद खां ने नीवों में चिनवाने का हुक्म दिया तो शेर मोहम्मद खां ने इसका जोरदोर विरोध किया। यहां तक कि जब वजीद खां ने शेर मोहम्मद खां को उकसाते हुए कहा कि गुरु गोबिंद सिंह ने तुम्हारे भतीजे को कत्ल किया है अब तुम इन बच्चों द्वारा अपना बदला ले लो, तो इस पर मालेरकोटला नवाब शेर मोहम्मद खां ने जबाव दिया कि दूध पीते मासूम बच्चों को कत्ल करना इस्लाम के खिलाफ है। इसे सिख मालेरकोटला नवाब के ‘हाअ के नारे’ के रूप में देखते हैं और आज भी सिख मालेरकोटला की रियासत को बहुत सत्कार से देखते हैं। मालेरकोटला में इस याद में ‘हाअ दा नारा गुरुद्वारा’ भी बना हुआ है और इस गुरद्वारे के लिए जमीन मालेरकोटला के आखिरी नवाब इफ्तिखार अली खान ने सिख भाईचारे को दी थी। यह गुरद्वारा हिन्दू, मुस्लिम और सिख तीनों समुदायों के लिए श्रद्धा का स्थल है।

गुरप्रताप सूर्यग्रंथ में लिखा हैं, “दशम् गुरु जी ने फरमाया है ‘इक मलेरियन की जड़ हरी’” यानी मालेरकोटला व इसके लोग सदा बसते रहेंगे। सन् 1947 में जब साम्प्रदायिक कत्लेआम हुआ तो मालेरकोटला में एक भी मुसलमान का कत्ल नहीं हुआ बल्कि पंजाब के अन्य गांवों के जो भी मुसलमान यहां आ गये उनकी जान बच गई। इतिहास में बहुत सारी कड़वी घटनाएं हुई लेकिन मालेरकोटला में भाईचारिक सांझ बनी रही। उदाहरण के तौर पर सन् 1762 में मालेरकोटला के नज़दीक ‘बड़ा घल्लुघारा’ हुआ जिसमें अफगानी दुरानी सेना ने भारी संख्या में सिखों का कत्ल किया, अंग्रेजी साम्राज्य के समय ‘कूका शहादत’ हुई। कुछ साल पहले विधू जैन नामक बच्चे का कत्ल हुआ जिसके बाद हिन्दू कट्टरपंथियों ने मालेरकोटला में भाईचारिक सांझ खंडित करने की कोशिश की लेकिन शहर के लोगों ने उनकी चाल को कामयाब नहीं होने दिया।

इस तरह इतिहास की ऐसी बहुत सारी कड़ियां हैं जो पंजाबियों को भाईचारिक सौहार्द बनाए रखने के लिए प्रेरित करती है। पंजाब के नामवर समाजशाष्त्री प्रोफेसर बावा सिंह कहते हैं, "मालेरकोटला को पंजाब का 23वां जिला बनाने के फैसले की प्रशासनिक आधार पर आलोचना की जा सकती है पर जिस तरह योगी आदित्यनाथ ने इसे साम्प्रदायिक रंग देने की कोशिश की वह दुर्भाग्यपूर्ण है। पंजाबियों व सिखों का मालेरकोटला के साथ एक अनोखा रिश्ता है, यह पंजाब की ऐतिहासिक विरासत का शानदार हिस्सा है। पंजाब की इस ऐतिहासिक भाईचारिक सांझ के बारे योगी की टिप्पणी गैर-जरूरी व् भद्दी है"।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें।

Why Malerkotla is a Symbol of Brotherly Ties in Punjab

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