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मानेसर: लेबर कोड के ख़िलाफ़ कर्मचारी एकजुट, ठेका कर्मचारी भी बने यूनियन के सदस्य

इस डर से कि श्रम कानूनों में हालिया बदलावों से श्रम का ठेकाकरण होगा, कई ठेका श्रमिक जो एक ऑटो फर्म में काम करते हैं अब यूनियन में शामिल हो गए हैं।
मानेसर
बीएसीआई कर्मचारी यूनियन के आठ पदाधिकारी, गुरुग्राम के मिनी सचिवालय के बाहर आठ घंटे की भूख हड़ताल पर बैठे, वे लेबर कोड को खत्म करने की मांग कर रहे थे। इस भूख हड़ताल में कारखाने के अन्य कर्मचारियों भी दिन भर शामिल होते रहे थे। चित्र सौजन्य– फेसबुक

नई दिल्ली: जैसा कि कहावत है, न जाने से देर बेहतर। एक महत्वपूर्ण घटना में, मानेसर की एक प्रमुख ऑटो कंपोनेंट निर्माण करने वाले कंपनी के ठेका मजदूरों का एक बड़ा हिस्सा स्थायी कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व करने वाली यूनियन में शामिल हो गया है।

यह कंपनी जिसे बेलसनिका ऑटो कंपोनेंट इंडिया प्राइवेट लिमिटेड (BACI) के नाम से जाना जाता है और कार निर्माता मारुति सुजुकी की एक वेंडिंग कंपनी है यानि मारुति को कार के कंपोनेंट बेचती है, जिन कर्मचारियों ने ठेका मजदूर के रूप में पांच से छह साल पूरे कर लिए हैं, उन्हें स्थायी कर्मचारी यूनियन की सदस्यता की पेशकश की गई थी, और उम्मीद है कि उनमें से लगभग 145 लोग यूनियन में शामिल हो गए है।

बेलसनिका ऑटो कंपोनेंट इंडिया प्राइवेट लिमिटेड (BACI) कर्मचारी यूनियन के अध्यक्ष अतुल कुमार ने न्यूज़क्लिक को बताया कि "यह कर्मचारियों की यूनियन के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण दिन है क्योंकि यूनियन कारखाने के मजदूरों के अधिकारों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।" 2014 में गठित यूनियन में पहली बार गैर-स्थायी श्रमिक सदस्य बने हैं। 

हरियाणा के औद्योगिक शहर में मज़दूरों द्वारा केंद्र सरकार द्वारा पारित किए गए चार लेबर कोड के खिलाफ जो एकजुट विरोध प्रदर्शन किया है उसने मजदूरों के भीतर इस आम भावना को भर दिया है कि अपने अधिकारों की रक्षा के लिए केवल सामूहिक लड़ाई ही रास्ता है।

गुरुवार को, बीएसीआई कर्मचारी यूनियन के आठ पदाधिकारीयों ने गुरुग्राम के मिनी सचिवालय के बाहर आठ-घंटे की भूख हड़ताल की, जो हाल ही में संसद द्वारा पारित नए श्रम कानूनों की को खारिज करने की मांग कर रहे थे। पूरे दिन शिफ्ट का काम पूरा करने के बाद मजदूर भूख हड़ताल में शामिल होते रहे। 

एक बयान में, यूनियन ने कहा कि वह उन श्रम कानूनों को "कमजोर" करने का विरोध कर रही है जो "श्रमिकों के शोषण" की "खुली छूट" देते हैं। 

कुमार ने फोन पर न्यूजक्लिक को बताया कि इन लेबर कोड के तहत, "औद्योगिक श्रमिकों का अनुबंध यानि ठेकाकरण अधिक बढ़ेगा।"

फैक्ट्री में समान काम के लिए ठेका प्रथा लागू करना मजदूरों के अधिकारों को छीनने के अलावा कुछ नहीं है। इस प्रणाली को जल्द ही समाप्त किया जाना चाहिए- यह कई वर्षों से देश भर की सभी ट्रेड यूनियनों की प्रमुख मांग रही है।

विभिन्न रिपोर्टों का हवाला देते हुए जिनमें पाया गया है कि नए श्रम कानूनों की वजह से ठेकाकरण में वृद्धि की आशंका बढ़ जाती है, कुमार ने कहा कि यूनियन को ठेके पर काम कर रहे श्रमिकों को आधिकारिक तौर पर अपनी तह में लाने और एक लंबे राजनीतिक संघर्ष की तैयारी करने की "बड़ी जरूरत" महसूस हुई है। उन्होंने कहा, "यूनियन में शामिल होने से बीएसीआई में हमारी मांगों के प्रति सामूहिक लड़ाई में मदद मिलेगी।"

यूनियन ने बताया कि कंपनी के स्थायी और ठेके के कर्मचारियों के कुल 1,200 कार्यबल के मुताल्लिक तीन साल का वेतन समझौता पिछले 20 महीनों से लागू होने के लिए लंबित पड़ा है। बीएसीआई प्रबंधन कथित रूप से इस पर बातचीत नहीं कर रहा है, यूनियन ने कहा कि पहले उन्होंने "मंदी" को कारण बताया और अब महामारी से हुए लॉकडाउन के दौरान उत्पादन में आई कमी को बहाना बना रहे है।

बीएसीआई के मानेसर स्थित कारख़ाने में मानव संसाधन प्रबंधक को जब कॉल किया तो उन्होने जवाब नहीं दिया। 

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बीएसीआई के कर्मचारी गुरुवार को शाम को रैली निकालते हुए।| चित्र सौजन्य – फेसबुक

पिछले महीने जिन तीन लेबर कोडों को अधिसूचित किया गया था, उनमें ऐसे प्रावधान शामिल हैं जिनकी आलोचना मजदूर यूनियनों और विशेषज्ञों ने इसलिए की है कि इनके माध्यम से ठेका रोजगार को बढ़ावा दिया जाएगा और प्रबंधन को जब चाहे काम पर रखने और जब चाहे काम से हटाने की छूट होगी। 

श्रम विशेषज्ञों का कहना है कि ठेका मजदूर श्रम कानूनों के सुरक्षात्मक प्रावधानों के दायरे से वैसे ही बाहर हैं, और इन लेबर कोड के तहत भी यह असुरक्षा बनी रहेगी। मुख्य रूप से 'व्यापार करने में आसानी' की आड़ में, औद्योगिक प्रतिष्ठानों में ठेका कर्मचारियों की संख्या में वृद्धि हुई है। हालांकि, ठेके की अस्थायी प्रकृति के कारण नौकरी की असुरक्षा के कारण ऐसे श्रमिकों के बीच यूनियन में भागीदारी भी कम रही है।

यह एक वास्तविकता है जिसे बीएसीआई कर्मचारी यूनियन ने महसूस किया है कि स्थिति चुनौतीपूर्ण है, और मानेसर की अन्य कर्मचारी यूनियनों से भी एकजुट होने की अपेक्षा की जा रही है।

2015 से बीएसीआई के एक ठेका कर्मी अशोक कुमार, जिन्होंने यूनियन की सदस्यता ली है ने न्यूज़क्लिक को बताया कि उन्हें अब कंपनी में स्थायी कर्मचारियों की तरह समान अधिकार मिलने की उम्मीद है। "अब जब हम यूनियन के सदस्य हैं, तो हमारे मुद्दों को सुना जाएगा," अशोक ने कहा।

कंपनी ने हमेशा कर्मचारियों को विभाजित करने का प्रयास किया है, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। ठेका और स्थायी कर्मचारी अब एक ही बैनर तले रहेंगे और मुझे विश्वास है कि यूनियन हमारे लिए प्रबंधन से समान काम और समान अधिकारों की मांग करेगा, “गुरुग्राम के औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान (आईटीआई) से स्नातक ने उक्त बात कही।

कुमार वर्तमान में समान काम के एवज़ में स्थायी कर्मचारी से लगभग 20,000 रुपये कम कमाते हैं और उन्हे कोई अतिरिक्त लाभ भी नहीं मिलता है।

हरियाणा राज्य के सीटू के उपाध्यक्ष सतबीर सिंह ने बीएसीआई में ठेका कर्मचारियों के यूनियन में आने का स्वागत करते हुए कहा कि यह "समय की जरूरत" थी।

"लेबर कोड के लागू होने से उद्योग में ठेका मजदूरों की संख्या बढ़ेगी और इसलिए यूनियनों के लिए यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि उन्हें इन मजदूरों को इसकी तह में कैसे लाया जाए। वेतन में कमी और नौकरी छूटने के खतरे से ठेका मजदूर भी अब संगठित होने की जरूरत महसूस कर रहे हैं।

सिंह ने कहा कि एक बार ठेका मजदूर यूनियन में शामिल हो गए उसके बाद, सरकार द्वारा उनके अधिकारों पर किए जा रहे "हमलों" के खिलाफ सभी मजदूरों/कर्मचारियों के संघर्ष को बल मिलेगा।

मानेसर में सक्रिय एक क्षेत्रीय यूनियन, ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री कॉन्ट्रैक्ट वर्कर्स यूनियन (AICWU) के अनंत वत्स, हालांकि, एक अलग राग आलाप रहे थे। गुरुवार की भूख हड़ताल के पीछे के इरादे की सराहना करते हुए, उन्होंने इसके "राजनीतिक महत्व" पर सवाल उठाया। उनके अनुसार, इससे ठेका कर्मचारियों की किसी भी तरह की सौदेबाजी की ताक़त को बढ़ाने में सफलता नहीं मिलेगी। 

 “कई सालों से उत्पादन प्रक्रिया कई कारखानों में बंट रही है, जिससे गैर-जिम्मेदार मजदूरों की बड़ी सेना तैयार हो गई है, जिसे किसी भी विशेष औढयोगिक प्रतिष्ठान के भीतर सफलतापूर्वक संगठित नहीं किया जा सकता है। मेरा ये कहना नहीं है कि ऐसा नहीं किया जाना चाहिए। हालांकि, जिस चीज की जरूरत है, वह कि क्षेत्र-आधारित या सेक्टर-आधारित यूनियन की जो ठेका श्रमिकों के हितों का प्रतिनिधित्व करती हो, ”वत्स ने कहा। 

उन्होंने कहा कि इस तरह की यूनियन के अभाव में ठेका श्रमिकों की मालिकों के सामने सौदेबाजी की ताक़त कम रहेगी। 

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Manesar: Protest Against Labour Codes Sees Unionisation of Contract Staff

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