मनीषा आत्महत्या मामला: "शिक्षिका से लेकर महिला पहलवानों तक एक ही सवाल- How Dare You"
पौड़ी से लगे नरेंद्र नगर में 25 मई को जी-20 एंटी करप्शन वर्किंग ग्रुप की बैठक में ‘जेंडर एंड करप्शन’ विषय पर चर्चा चल रही थी। केंद्रीय विदेश एवं संस्कृति राज्यमंत्री मीनाक्षी लेखी महिला सशक्तिकरण को लेकर चर्चा कर रही थीं। बैठक में कहा गया कि भ्रष्टाचार से महिलाएं ही सबसे ज्यादा प्रभावित होती हैं। उसी रोज ‘वायरलेस कम्यूनिकेशन’ जैसे तकनीकी विषय पढ़ाने वाली एक असिस्टेंट प्रोफेसर ने मुश्किलों से हार मानकर आत्महत्या कर ली और अस्पताल में दम तोड दिया। अब उनकी करीब 6 साल की बच्ची को कई मुश्किलें झेलनी होंगी जिनसे वह बच सकती थी।
मनीषा की मौत महिलाओं की मानसिक सेहत और व्यवस्था से जुड़े सवाल खड़े करती है।
मौत के एक दिन बाद उनके पति संदीप भट्ट ने श्रीनगर कोतवाली में एफआईआर दर्ज कराई।
एक शिक्षिका की मौत
वर्ष 2019 में पौड़ी के घुड़दौड़ी में गोविंद बल्लभ पंत इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नॉलजी में इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्यूनिकेशन इंजीनियरिंग विभाग में स्थायी नियुक्ति पाने वाली असिस्टेंट प्रोफेसर मनीषा भट्ट संस्थान के वरिष्ठ अधिकारियों के व्यवहार से परेशान चल रही थीं। एफआईआर में संस्थान के दो वरिष्ठ अधिकारियों निदेशक डॉ वाई सिंह और विभागाध्यक्ष डॉ एके गौतम पर प्रोफेसर के मानसिक उत्पीडन का आरोप लगाया गया है।
एफआईआर के मुताबिक वर्ष 2022 के आखिरी महीनों में गर्भावस्था के दौरान दोनों प्रोफेसर प्रसव से पहले तक महिला का मानसिक उत्पीड़न कर रहे थे। इसके मुताबिक “बार-बार कहा जा रहा था कि आपका प्रसव अवकाश तभी स्वीकृत होगा, जब तक वह अपने स्थान पर वैकल्पिक प्रोफेसर को नियुक्ति करने के लिए उपलब्ध नहीं कराएंगे और अपना सारा पाठ्यक्रम पूरा करके नहीं देंगे”।
संदीप भट्ट के मुताबिक अवकाश न मिलने और प्रसव पीड़ा अधिक होने पर उनकी पत्नी ने आकस्मिक अवकाश ले लिया। मनीषा अपनी बेटी की देखरेख कर रही थीं लेकिन मई के पहले हफ्ते में करीब 6 महीने की बेटी की मौत हो गई।
इस दुख से उबरने की कोशिश करते हुए मनीषा 12 मई को अपने संस्थान वापस लौटीं। यहां पता चला कि संस्थान में उपस्थिति रजिस्टर से उनका नाम हटा दिया है। इसी दौरान प्रमोशन की प्रक्रिया भी चल रही थी। उनके साथी असिस्टेंट प्रोफेसर विभागाध्यक्ष से अपने दस्तावेज वेरिफाई करा रहे थे। इनमें से कुछ उनके जूनियर भी थे।
मनीषा भी प्रमोशन के लिए अपने दस्तावेज लेकर गईं लेकिन विभागाध्यक्ष डॉ एके गौतम ने उनके दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया। उनके पति संदीप के मुताबिक विभागाध्यक्ष ने यह तक कहा कि “तुम चाहो तो नौकरी छोड़ दो या आत्महत्या कर लो, मैं आपका प्रमोशन नहीं होने दूंगा”।
25 मई को मनीषा ने फोन पर यह सब बात संदीप को बताई। संदीप के मुताबिक उस अधिकारी ने मनीषा को अपमानित किया और अश्लील शब्दों का भी इस्तेमाल किया। उसी दिन संस्थान से घर लौटते समय मनीषा ने आत्महत्या का फैसला लिया।
बेटी की मौत, प्रमोशन का तनाव
मनीषा के विभाग के ही एक अन्य सहकर्मी (नाम नहीं जाहिर करना चाहते) कहते हैं “वह बेहद शांत स्वभाव की थीं और अपने काम से ही मतलब रखती थीं। बेटी की मौत के बाद संस्थान वापस लौटने पर बातचीत में उन्होंने मुझसे कहा था कि अब मुझे अपनी बड़ी बेटी के लिए जीना है। मुझे उनसे बात कर ये बिलकुल महसूस नहीं हुआ कि वो किसी तनाव या डिप्रेशन में होंगी”।
इस सहकर्मी के मुताबिक प्रमोशन के लिए जब सभी लोग अपने कागज पूरे कर रहे थे और ज्यादातर लोगों के दस्तावेज पर हस्ताक्षर हो गए थे लेकिन मैडम के कागज पर हस्ताक्षर नहीं हो रहे थे। “मैडम विभागाध्यक्ष के कमरे से बाहर निकलीं, उनसे क्या बात हुई, ये हमें नहीं पता लेकिन उन्होंने बताया कि मेरे कागजों पर वह साइन नहीं कर रहे हैं। उस समय वह बहुत अपसेट थीं”।
“अगले दिन भी (25 मई को) उन्होंने कहा कि ज्यादातर लोगों के प्रमोशन के कागज पर हस्ताक्षर हो गए लेकिन मेरे कागजों पर अब तक हस्ताक्षर नहीं हुए। लेकिन उनसे बात करते हुए यह नहीं लगा कि वह आत्महत्या जैसा कदम उठा लेंगी”, वह आगे कहते हैं।
सहकर्मी के मुताबिक पहले बेटी की मौत, फिर प्रमोशन को लेकर अड़चन, कई चीजें एक साथ हो गईं।
संदीप भट्ट ने संस्थान पर अपनी पत्नी के मानसिक उत्पीड़न का आरोप लगाया है।
अब तक क्या हुआ
मीडिया में आई रिपोर्टों के मुताबिक दोनों वरिष्ठ अधिकारियों ने अपने उपर लगे आरोपों से इंकार किया है।
इस दौरान एके गौतम को पिथौरागढ के सीमांत प्रौद्योगिक संस्थान और डॉ वाई सिंह को अल्मोडा के कुमाऊं प्रोद्योगिकी संस्थान से सम्बद्ध कर दिया गया है।
घटना से अचंभित घुड़दौड़ी इंजीनियरिंग कॉलेज के असिस्टेंट प्रोफेसर और छात्र-छात्राओं ने कैंडल मार्च निकालकर मनीषा को न्याय दिलाने की मांग की।
गढ़वाल विश्वविद्यालय छात्र संगठन की पूर्व छात्रा प्रतिनिधि शिवानी पाण्डेय समेत अन्य छात्र प्रतिनिधियों ने इस मामले में एसएसपी श्वेता चौबे को ज्ञापन दिया। शिवानी कहती हैं “जब संस्थान के दो वरिष्ठ अधिकारियों पर मानसिक प्रताडना के गंभीर आरोप लगे हैं तो इन्हें जांच चलने तक निलंबित क्यों नहीं किया गया। ऐसी जांच में तो 2-4 साल भी लग सकते हैं। तबादला करने का तो कोई मतलब नहीं है”।
न्यूज़क्लिक से बातचीत में एसएसपी श्वेता चौबे घटना की जांच की बात कहती हैं। “हमने टीम बनाई है। जब तक जांच चल रही है हम इसकी डिटेल्स साझा नहीं कर सकते”।
क्या मनीषा की मदद की जा सकती थी?
सवाल है कि जब शिक्षिका मनीषा भट्ट मानसिक तौर पर इतनी परेशान हुईं कि आत्महत्या जैसा कदम उठाया, उससे ठीक पहले की स्थिति में क्या उनकी मदद की जा सकती थी?
मानसिक स्वास्थ्य सेवा
शिवानी कहती हैं कि संस्थान में उन्हें प्रताडित किया जा रहा था तो घर में लोगों को उन्हें शांत कराना चाहिए था। यदि घर से उन्हें हौसला मिलता तो शायद वह इस स्थिति को संभाल लेतीं। उनका मानसिक तनाव घर से दूर किया जा सकता था।
वहीं, उत्तराखंड मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण के समीक्षा बोर्ड में सदस्य और मनोचिकित्सक डॉ पवन शर्मा कहते हैं “ऐसा देखा गया है कि जब भी एक व्यक्ति के मन में आत्महत्या से जुड़े विचार आते हैं, वह तनाव में होते हैं, वह एक बार अपने नजदीकी लोगों से इस बारे में जरूर बात करते हैं। उस समय यदि आप उनको नहीं सुनते और रोक देते हैं या इस तरह की बातें बंद कर देते हैं तो यह सही नहीं है। निराशा से जूझ रहा व्यक्ति अपने मन की बात कह लेने के बाद हल्का महसूस करता है। इसलिए उसकी बात सुनना और उस समय मदद करना जरूरी है”।
पर्वतीय जिलों में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी सुविधाओं पर डॉ. पवन कहते हैं “पहाड़ों में अभी मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं नहीं हैं लेकिन इस दिशा में मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण कार्य कर रहा है”।
गैर-सरकारी संस्था आसरा भी मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मामलों में मदद मुहैया कराती है। उनकी निशुल्क हेल्पलाइन (91-9820466726) सेवा पर फोन कर बात की जा सकती।
विमन हेल्प लाइन
आधिकारिक वेबसाइट पर श्रीनगर महिला थाने के विमेन हेल्पलाइन नंबर 9258199231 पर जब इस संवाददाता ने फोन किया तो संदेश मिला कि यह नंबर अस्थायी रूप से सेवा में नहीं है। इस बारे में जब महिला थाने की एसओ प्रमिला बिष्ट से बात की तो उन्हें यह जानकारी नहीं थी कि विमन हेल्प लाइन नंबर सेवा में नहीं है।
ये पूछने पर कि महिला थाने में रोजाना कितनी शिकायतें दर्ज होती होंगी, प्रमिला बताती हैं “कभी एक दिन में 2-3 केस आते हैं तो कभी 2-3 दिनों तक एक भी केस नहीं आता”।
क्या एक महीने में 10 से ज्यादा केस आते हैं, इसका जवाब प्रमिला हां में देती हैं।
कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीडन से संरक्षण की समितियां कितनी कारगर?
कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (निवारण, निषेध एवं निदान) अधिनियम, 2013 के मुताबिक कार्यस्थल पर महिलाओं को लैंगिक सुरक्षा देने के लिए समिति गठित होनी चाहिए। जिसकी जानकारी कार्यस्थल पर पोस्टर व अन्य माध्यमों से चस्पा होनी चाहिए। नियमित बैठकों के साथ कर्मचारियों को इसके लिए जागरुक किया जाना चाहिए।
घुड़दौड़ी इंजीनियरिंग कॉलेज के दो असिस्टेंट प्रोफेसर (दोनों ही पुरुष) ने इस तरह की किसी समिति और उससे जुड़ी बैठकों की जानकारी से इंकार किया।
इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्यूनिकेशन इंजीनियरिंग विभाग के अध्यक्ष डॉ राजेश कुमार के मुताबिक विश्वविद्यालय में ग्रीवांस सेल है जहां इस तरह की शिकायतें सुनी जाती हैं। उनकी जानकारी में कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीडन से संरक्षण के लिए समिति नहीं गठित है।
लैंगिक समानता के लिए कार्य कर रही दीपा कौशलम कहती हैं सुप्रीम कोर्ट की विशाखा गाइडलाइन्स के तहत गठित समितियों का सर्वेक्षण किया जाना चाहिए। ये किस तरह कार्य कर रही हैं, कार्य कर भी रही हैं या नहीं। मेरे अनुभव में ज्यादातर मामलों में यह एक औपचारिकता भर है। ऑडिट में दिखाने के लिए इनका गठन किया गया है।
दिल्ली में उत्पीड़न के खिलाफ संघर्ष कर रही महिला पहलवानों के उदाहरण से लेकर असिस्टेंट प्रोफेसर की आत्महत्या तक के मामले के उदाहरण से दीपा कहती हैं “घर से लेकर दफ्तर तक महिलाओं पर एक किस्म का मनोवैज्ञानिक दबाव बनाया जाता है कि एक दिन टूटकर वह अपने घर लौट जाएंगी। अच्छी शिक्षा हासिल कर असिस्टेंट प्रोफेसर जैसी सशक्त महिला खुद को सामाजिक तौर पर इतना कमजोर महसूस कर रही थी कि उसने अपनी जान दे दी। क्योंकि गलत करने वालों पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। मामले को अंदर ही अंदर दबा दिया जाता है। चाहे गांव से आई लड़की हो, एक महिला असिस्टेंट प्रोफेसर हो या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतने वाली महिला खिलाड़ी, इन सबके लिए अब भी मानसिकता एक ही तरह की है “हाऊ डेयर यू” (तुमने बोलने की हिम्मत कैसे की)”।
भारत में आत्महत्या दर वर्ष 2017 में 9.9% से बढकर 2021 में 12% हो गई।
संभलना है हमें
अंतरराष्ट्रीय पत्रिका लैंसेट में प्रकाशित एक शोध रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2020 में 100,000 जनसंख्या पर 11.3 आत्महत्या दर के साथ, भारत में आत्महत्या की दर वैश्विक औसत से अधिक है। वर्ष 2017 की मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम (MHCA 2017) के तहत भारत में आत्महत्या को अपराध मुक्त किया गया। आत्महत्या की रोकथाम के लिए 21 नवंबर, 2022 को अपनी राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति (NSPS) की शुरुआत की गई। इस नीति का उद्देश्य आत्महत्या रोकथाम को एक सार्वजनिक स्वास्थ्य प्राथमिकता बनाना है। साथ ही वर्ष 2020 की तुलना में 2030 तक आत्महत्या मृत्यु को 10% तक कम करना है।
उत्तराखंड की बात करें तो मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण ही अब तक कागजों से बाहर धरातल पर नहीं उतर सका है।
एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2020 की तुलना में 2021 में जिन राज्यों में आत्महत्या में अधिक प्रतिशत वृद्धि रिपोर्ट की गई, उत्तराखंड (24.0%) भी उनमें से एक है। यहां आत्महत्या की संख्या अन्य राज्यों की तुलना में जरूर कम है लेकिन औसत वृद्धि अधिक। जबकि देश में 2017 से 2021 तक आत्महत्या दर लगातार बढ़ी है।
(लेखिका देहरादून स्थित स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
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