नया शहीदनामा: भगत सिंह चाहिए सबको मगर ग़ैरों के ही घर में

नया शहीदनामा
जिये जाते हैं सब अपने लिए, अपनों के ही डर में
भगत सिंह चाहिए सबको मगर ग़ैरों के ही घर में
सभी को चाहिए अम्बेडकर नारों में, भाषण में
मगर कोई नहीं चाहे कोई बैठे बराबर में
बड़े बे-आबरू गांधी, किसी को ना ज़रूरत है
हां इक तस्वीर या इक मूरती हो अपने दफ़्तर में
‘मियां’ अशफ़ाक़ तो पहले से ही दुश्मन यहां ठहरे
जगह उनकी नहीं बाक़ी किताबों में, मिरे घर में
जो ‘बिस्मिल’* हैं उन्हीं को है तमन्ना सरफ़रोशी की
तमन्ना सरफ़रोशी की नहीं बाक़ी किसी सर में
सभी बस मांगते हैं ख़ून, आज़ादी से क्या मतलब
हुआ आज़ादी का नारा भी ख़तरा बोस* के घर में
वो रानी लक्ष्मीबाई हों कि हों हज़रत महल बेगम
या दुर्गा भाभी हों कोई ना चाहे अपने ही घर में
जवाहर लाल का तो नाम बस बरबादियों में है
नए साहिब नए हाकिम सजे हैं लाल ओ गौहर में
अकेले ‘वीर’ सावरकर हैं, नाथू राम मतवाले
यही बस आज का सच है, यही बातें हर इक घर में
डरें हम क्रानती से भी, डरें इस शानती से हम
न जाने कौन सा है डर समाया सबके ही सर में
नया भारत बनाना है बचाना है सजाना है
तो उठिए आइए, मत सोचिए क्या होगा महशर में
.....
*बिस्मिल- क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल, घायल
*बोस- नेताजी सुभाष चंद्र बोस
*महशर- क़यामत का दिन, क़यामत का मैदान
— मुकुल सरल
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