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मैरी रॉय ने अपने पीछे संघर्ष की एक विरासत छोड़ी है, जो मर्द और औरत में फ़र्क़ नहीं करती

सीरियाई ईसाई परिवारों की औरतों को संपत्ति में बराबर का हक दिलाने वाली मैरी रॉय हमेशा एक ख़ुद्दार और विद्रोही सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में हमारे दिलों में ज़िंदा रहेंगी।
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Image courtesy : Onmanorama

अरुंधति रॉय की बुकर-विनिंग किताब 'द गॉड ऑफ़ स्मॉल थिंग्स' की अम्मू को शायद ही कभी कोई भूल पाएगा। अम्मू का किरदार अरुंधति की मां मैरी राय को फोकस में रखकर गढ़ा गया था। अम्मू की तरह ही मैरी भी एक ख़ुद्दार, विद्रोही, तलाकशुदा माँ थीं। बीते दिनों 1 सितंबर को जब उनका निधन हुआ तो, मानो महिला अधिकारों की लड़ाई का एक मज़बूत स्तंभ ढह गया। वो स्तंभ जो महिलाओं को संपत्ति में बराबर का हक दिलाने की लड़ाई में बिना डगमगाए मजबूती से खड़ा रहा। हालांकि मैरी से जब एक इंटरव्यू में पूछा गया कि वो कोर्ट संपत्ति में हक़ के लिए कोर्ट क्यों गईं तो उन्होंने जवाब दिया कि वो बहुत गुस्से में थीं। उनके पास कोई और कारण नहीं था। वो जनता की भलाई के लिए ऐसा नहीं कर रही थीं। वो बस गुस्सा थीं कि उन्हें अपने पिता के घर से निकाला जा रहा है क्योंकि इसमें उनका हिस्सा नहीं है।

बता दें कि आजादी के समय जब रियासतों के संघ में शामिल होने की प्रक्रिया चल ही रही थी। तभी त्रावणकोर साम्राज्य को कोचीन साम्राज्य में मिला दिया गया लेकिन त्रावणकोर उत्तराधिकार एक्ट का मामला यहां भी फंसा। इस एक्ट के तहत, सीरियाई ईसाई समुदाय की महिलाओं को प्रॉपर्टी में विरासत का कोई अधिकार नहीं था। एक्ट के मुताबिक, एक बेटी को संपत्ति में बराबर अधिकार नहीं था। उसका हक़ केवल एक-चौथाई या 5,000 रुपये (दोनों में जो भी कम हो) पर होता था। इसी सक्सेशन एक्ट के तहत मैरी को अपने मृत पिता की संपत्ति में बराबर अधिकार नहीं मिला। तो उन्होंने अपने भाई जॉर्ज इज़ैक पर मुकदमा कर दिया। मैरी ने दलील दी कि त्रावणकोर उत्तराधिकार एक्ट लिंग के आधार पर भेदभाव करता है, जो कि संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है।

साल 1986 के अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने मैरी के हक़ में भारतीय उत्तराधिकार एक्ट को चुना। तब के चीफ जस्टिस पीएन भगवती और जस्टिस आरएस पाठक की पीठ ने फ़ैसला सुनाया कि अगर मृतक माता-पिता ने वसीयत नहीं छोड़ी है, तो उत्तराधिकार का फैसला भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम के तहत किया जाएगा। इस फ़ैसले ने सीरियाई ईसाई परिवारों में महिलाओं को संपत्ति पर बराबर अधिकार दिया। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद भी मैरी रॉय की लड़ाई ख़त्म नहीं हुई। अंत में 2009 में जा कर स्थानीय अदालत ने उनके पक्ष में डिक्री जारी की।

कैसी थीं मैरी रॉय?

मैरी को देश-विदेश में एक प्रख्यात शिक्षाविद तथा सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर जाना जाता है। उनकी पहचान कोट्टयम के समीप मशहूर पल्लीकूदम स्कूल के संस्थापक के रूप में भी है। उनका जन्म साल 1933 में हुआ था। मैरी ने चेन्नई के क्वीन्स मेरी कॉलेज से ग्रेजुएशन किया था। इसके बाद शादी एक बंगाली हिंदू से उन्होंने अंतर्जातिय विवाह कर लिया था। लेकिन ये शादी चली नहीं क्योंकि मैरी के पति शराबनोश थे और यही कारण था कि मैरी ने उन्हें छोड़ दिया। उसके बाद वो ऊटी चली गईं। अपने दो बच्चों के साथ अपने दिवंगत पिता की एक झोपड़ी में रहने लगीं। उनका कहना था कि परिवार में भयंकर कलेश थे और इसी वजह से उनकी मां और भाई ऊटी आ गए और उसे घर खाली करने का आदेश दिया। इसके बाद 1967 में उन्होंने कोट्टायम में पल्लीकूडम स्कूल शुरू किया। ये स्कूल ही मैैरी की कामयाबी की कहानी साबित हुआ। 2021 तक मैरी इस स्कूल के मैनेजमेंट में सक्रिय थीं।

मैरी को एक विदुषी भी थीं, उनकी हाज़िरजवाबी अक्सर लोगों को पसंद आती थी। मैरी रॉय सामाजिक मुद्दों पर मुखरता से अपनी बात रखने के लिए जानी जाती थीं। खासकर लैंगिक समानता और शिक्षा। वो शिक्षा को समाज से जुड़े सबसे अहम मुद्दे के रूप में देखती थीँ। शिक्षा के लिए उन्होंने अपना जीवन समर्पित कर दिया। उन्हें कई लोग शिक्षा के क्षेत्र में सामाजिक योद्धा भी कहते हैं। वो केरल में घर-घर जानी जाती रही हैं। यूं तो मैरी को शैक्षिक-सामाजिक मसलों पर ही बातचीत पसंद थी लेकिन वो राजनीतिक और आर्थिक मसलों पर भी खूब खुलकर अपनी बातें रखा करती थीँ। वो एक तरह से कम्युनिस्ट पार्टी के अच्छे कार्यों की सराहना भी करती थीं। तो वहीं वो इस पार्टी की आलोचक भी थीं।

मैरी बहुत साधारण जीवन जीती थीं, लेकिन उनकी शख्सियत बिल्कुल असधारण थी। वो जमीनी स्तर पर काम करने और समाज बदलने में विश्वास रखती थीं। वो खुद को किसी बदलाव का श्रेय नहीं देती थीं, उनका मानना था कि एक-एक इंसान अगर अपने हक़ की लड़ाई लड़े तो समाज अपने आप बदल जाएगा। शायद यही कारण है कि उनके निधन पर उन्हें याद कर केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन समेत दक्षिण भारत के तमाम बड़े नेताओं ने शोक व्यक्त किया। हालांकि मैरी हम सब की यादों में हमेशा अपनी कथनी और करनी से जिंदा रहेंगी।

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