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देशभर में लाखों आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं ने 'ललकार दिवस' मनाया

लगभग 3 लाख महिला कार्यकर्ता और सहायक लाल ड्रेस और लाल मास्क पहनकर सड़कों पर उतरीं। उनका कहना था कि इस माहमारी से लड़ने के लिए उन्हें अन्य सुविधा और लाभ तो क्या पिछले तीन महीनों के दौरान एक भी सुरक्षा किट या मास्क यहां तक की साबुन तक नहीं मिला है।
ललकार दिवस

आज देश कोरोना जैसी गंभीर महामारी से जूझ रहा है। इस संघर्ष में डॉक्टर और नर्स के साथ ही सबसे आगे रहने वाली लाखों आशा और आंगनवाड़ी कर्मचारी फ्रंटलाइन योद्धा है। जिन्हें सरकार और प्रधानमंत्री कोरोना योद्धा कहते हैं। शुक्रवार को लाखों आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और हैल्पर्स ने पूरे देश में प्रदर्शन किया। इसमें लगभग 3 लाख कार्यकर्ताओ और हेल्पर्स ने भाग लिया। सभी, लाल ड्रेस और लाल मास्क पहनकर अपने लिए मूलभुत सुरक्षा की मांग को लेकर सड़कों पर निकलीं। इस विरोध प्रदर्शन का आह्वान ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ आंगनवाड़ी वर्कर्स एंड हेल्पर्स (AIFAWH) द्वारा किया गया था। इस कार्यक्रम को “ललकार दिवस" के तौर पर मनाया गया ।

अधिकारियों द्वारा आंदोलन न करने की चेतावनी के बावजूद, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायकों, जो महामारी के प्रसार को रोकने के लिए सुरक्षा उपायों पर जनता को शिक्षित करते हैं, बहुत अनुशासित तरीके से, शारीरिक दूरी के सभी मानदंडों को रखते हुए, परियोजना मुख्यालय में ललकार दिवस मनाया। उन्होंने स्थानीय अधिकारियों के माध्यम से प्रधानमंत्री और महिला बाल विकास मंत्री को ज्ञापन सौंपा।

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AIFAWH ने बताया ये प्रदर्शन आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, झारखंड, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब, पांडिचेरी, राजस्थान, तेलंगाना, त्रिपुरा, तमिलनाडु सहित लगभग 22 राज्यों में हुआ।

इसके साथ ही कर्नाटक में आंदोलन और तेज़ करने के लिए 13 जुलाई से तीन दिनों का विरोध प्रदर्शन शुरू करने का भी ऐलान किया गया। हालंकि कर्नाटक में कुछ महीनों पहले भी वेतन सहित कई मांगो को लेकर हज़ारों की संख्या में इन कार्यकर्ताओ ने प्रदर्शन किया था। जिसके बाद सरकार ने इन्हें इनकी मांगे पूरा करने का आश्वासन दिया था। परन्तु आजतक सरकार ने इनकी समस्याओ पर कोई ध्यान नहीं दिया इसी वजह से ये कर्मचारी पुनः सड़क पर उतर रहे हैं।

आपको बात दें कि कोरोना और इस लॉकडाउन में इन कार्यकर्ताओ की भूमिका सबसे अग्रणी है। पूरे देश में 26 लाख आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और हैल्पर्स, आशा कार्यकर्ता हैं,जो अन्य फ्रंटलाइन योद्धा की तरह इस माहमारी में सबसे आगे होकर लड़ रही हैं। कोरोना से पूर्व भी ये महिलाएं 8 से 10 घंटे काम करती थीं लेकिन इनको आजतक सरकार कर्मचारी नहीं मानती है। इसलिए इन्हें वेतन नहीं मिलता है बल्कि सरकार इन्हे प्रोत्साहन राशि के रूप में कुछ मानदेय देती है। जो अलग अलग राज्य में अलग है। इनकी काफी समय से मांग है कि सरकार इन्हें सरकारी कर्मचारी समझकर इन्हें पूरा वेतन दे। क्योंकि ये चुनाव से लेकर स्वस्थ्य के क्षेत्र में कई जरूरी काम करती हैं।

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AIFAWH ने कहा कि आज भी ये कार्यकर्ता डोर-टू-डोर सप्लीमेंट्री ले जा रही हैं जिससे लाभार्थियों को पोषण मिले, कोरोना को लकेर जागरूकता का भी काम कर रहे है, रोगियों का सर्वेक्षण करना, उन्हें अस्पतालों में ले जाना, केंद्रों में रोगियों की निगरानी कर रही है। परन्तु सरकार इन श्रमिकों को सुरक्षा गियर नहीं दे रही है।

प्रदर्शन कर रही कार्यकर्ताओं का कहना था कि हम, आंगनवाड़ी वर्कर्स और हैल्पर्स, अन्य फ्रंटलाइन वर्कर्स के साथ, हाल के मानव इतिहास में सबसे बड़ी लड़ाई के बीच में हैं, हम कोरोना महामारी से लड़ रहे हैं। परन्तु हम, आशा कार्यकर्ताओं और सफाई कर्मचारियों सहित अन्य श्रमिकों के साथ, जिन्हें कभी उनके काम की मान्यता नहीं दी गई,  बहुत मामूली भुगतान किया जाता हैं। इनमें ज्यादातर महिलाएं हैं, जो विभिन्न सरकारी योजनाओं के तहत काम करती हैं -इ न सभी श्रमिकों ने सैकड़ों जीवन बचाने के लिए, महामारी को रोकने के लिए सर्वोत्तम संभव मानव रूपी किले का निर्माण किया है।

वो सवाल करते हुए कहती हैं देश के लिए किए जाने वाले इस अनौपचारिक कार्य को हम मुफ्त में करते हैं, बदले में हमें क्या मिल रहा है? हम दिन-रात जबरदस्त दबाव में काम कर रहे हैं, हम बहुत ही दबाव में काम कर रहे हैं, किसी भी वक्त संक्रमित होने का डर, हमारे साथ-साथ हमारे प्रिय जनों, घर में हमारे बच्चों और हमारे बुजुर्गों के भी संक्रमित होने के डर सदैव हावी रहता है। लोग सोचते हैं कि हम ‘‘कोरोना योद्धा’’ नहीं बल्कि ‘‘कोरोना कैरियर’’ हैं यानी कोरोना फैलाने वाले।

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आगे उन्होंने जो बताया वो चौंकाने वाला था कि इस गंभीर माहमारी से लड़ने के लिए उन्हें पिछले तीन महीनों के दौरान एक भी सुरक्षा किट या मास्क या साबुन नहीं मिला है। साथ उन्हें स्थिति से निपटने के लिए कभी कोई उचित प्रशिक्षण नहीं दिया गया। हमें मास्क और सैनिटाइटर खरीदने के लिए अपनी जेब से पैसे खर्च करने पड़े। इसके साथ ही दर्जनों वर्कर्स की कोरोना से संक्रमित होकर मृत्यु हो गई, बहुत से वर्कर ड्यूटी के दौरान बेहोश हुए और उनकी मृत्यु हुई लेकिन मौत का कारण पता लगाने के लिए उनका कभी भी टेस्ट नहीं किया गया।

आप सोचिए मोदी सरकार मीडिया में जिन्हें लागर कोरोना योद्धा बात रही है उन्हें न वेतन दिया जाता है और न कोई सुरक्षा किट। इसके बिना ही उन्हें सीधे मौत के मुंह में धकेला जा रहा है।

कर्मचारियों के मुतबिक 50 लाख करोड़ रुपये के बीमा की घोषणा बहुत धूमधाम से की गई, लेकिन इसमें आंगनवाड़ी वर्कर्स का ज़िक्र तक नहीं है।

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AIFAWH महसचिव ए आर सिंधु ने बयान जारी करते हुए कहा कि इसके साथ ही बच्चों को दिए जाने वाले पोषण के बजट को भी कम कर दिया गया। स्थिति इतनी गंभीर है कि यूनिसेफ ने चेतावनी दी है कि इस साल हमारे देश में पांच साल से कम उम्र के अतिरिक्त तीन लाख बच्चों (हर साल मरने वाले लगभग नौ लाख बच्चों) की मौत कुपोषण के कारण होगी, अगर हम पर्याप्त भोजन और पोषण सुनिश्चित नहीं करते हैं। हमारे यहाँ अधिकांश लोग गरीब हैं। लेकिन सरकार के बहुप्रचारित 'पैकेज' में इस पर पूरी तरह से चुप्पी है।

उन्होंने कहा 'बिहार और यूपी जैसे कई राज्यों में राज्य सरकारें सूखे राशन की आपूर्ति को रोकने और नकदी हस्तांतरण के साथ इसे बदलने की कोशिश कर रही हैं। इसलिए, AIFAWH ने मोदी सरकार की नीतियों के खिलाफ अखिल भारतीय मांग दिवस को "ललकार दिवस" या 'चुनौती दिवस' के रूप में मनाया है। हमने सरकार के इन जनविरोधी नीतियों को एक चुनौती के रूप में लिया है और इसी के ख़िलाफ़ हमने सरकार को ललकार है कि हम ये जन विरोधी नीतियों को नहीं चलने देंगे और न ही हम लाखों बच्चो को मरने देंगे।

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AIFAWH ने साफ किया की अगर उनकी मांगों को नहीं माना गया तो आने वाले दिनों में वो मोदी सरकार के खिलाफ अपना संघर्ष और तेज़ करेगी।

इनकी माँगें इस प्रकार हैं-

1. आईसीडीएस के लिए आर्थिक आवंटन को तत्काल दोगुना करो। लाभार्थियों को दिए जाने वाले पोषण आपूर्ति की मात्रा और गुणवत्ता बढ़ाओ।

2. आंगनवाड़ी वर्कर्स व हैल्पर्स को मजदूर के रूप में मान्यता दो, आंगनवाड़ी वर्कर्स को 30,000 और हैल्पर्स को 21000 रू प्रतिमाह न्यूनतम वेतन दो। मिनी आंगनवाड़ी वर्कर्स को समान वेतन दो। 45वीं और 46 वीं आईएलसी की सिफारिशों के अनुसार पेंशन, ईएसआई, पीएफ आदि प्रदान करो।

3. सभी आंगनवाड़ी वर्कर्स व हैल्पर्स के लिए सुरक्षात्मक उपकरण प्रदान करो, विशेषकर स्वास्थ्य क्षेत्र में। नियंत्रण क्षेत्रों और रेड जोन में लगे हुए वर्कर्स के लिए पीपीई किट दो। सभी फ्रंटलाइन श्रमिकों की बार-बार, निरंतर और फ्री कोविड -19 टेस्ट किए जाएं।

4. सभी फ्रंटलाइन श्रमिकों को 50 लाख रुपये का बीमा कवर दो जिसमें ड्यूटी पर होने वाली सभी मौतों को कवर किया जाए। पूरे परिवार के लिए कोविड -19 के उपचार का भी कवरेज दिया जाए।

5. पर्याप्त बजट आवंटन के साथ आईसीडीएस को स्थायी बनाओ। आईसीडीएस का किसी भी रूप में कोई निजीकरण नहीं किया जाए। आईसीडीएस में कोई नकद हस्तांतरण नहीं किया जाए। सभी मिनी केंद्रों को पूर्ण केंद्रों में बदलो।

6. कोविड -19 ड्यूटी में लगे सभी आंगनवाड़ी वर्कर्स व हैल्पर्स के लिए प्रति माह 25,000 रुपये का अतिरिक्त कोविड जोखिम भत्ता दिया जाए। सभी लंबित बकाया राशियों का तुरंत भुगतान किया जाए।

7. ड्यूटी पर रहते हुए संक्रमित हुए सभी लोगों के लिए न्यूनतम दस लाख रुपये का मुआवजा दिया जाए।

8. आंगनवाड़ियों में ईसीसीई शिक्षा को मजबूत किया जाए।

9. सभी के लिए भोजन, स्वास्थ्य सेवाएं, शिक्षा, आय, नौकरी और आश्रय सुनिश्चित करो।

10. काम के घंटो को बढ़ाकर 8 से 12 घंटे न किया जाए। श्रम कानूनों समाप्त नहीं किया जाए।

11. सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और सेवाओं का निजीकरण नही किया जाए।

12. कृषि व्यापार और ईसीए पर अध्यादेश तुरंत वापस लिया जाए।

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