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तेल का आयात कम करना अमीरों को सब्सिडी और गरीबों पर बोझ लादना है!

गरीबों के चावल को निजी स्वामित्व वाली इथेनॉल डिस्टिलरी कंपनी को रियायती दरों पर बेचा जाएगा। उद्योगों को सस्ता कर्ज दिया जाएगा और पर्यावरण मंजूरी से भी दी जाएगी छूट।
तेल का आयात कम करना अमीरों को सब्सिडी और गरीबों पर बोझ लादना है!

सवाल ये है कि क्या मोदी सरकार भारत के एथेनॉल मिश्रित पेट्रोल कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिए एल्कोहल के उत्पादन के लिए आबादी के सबसे गरीब तबके के लिए अनाज़ को निजी उद्योगों की ओर मोड़कर गरीबों की कीमत पर अमीरों को सब्सिडी दे रही है?

इससे भी अधिक: इथेनॉल बनाने के लिए, अनाज़ न केवल इन उद्योगों को रियायती दरों पर बेचा जाएगा, बल्कि इस उद्देश्य के लिए उनकी क्षमताओं का विस्तार करने वाली इकाइयों को भी अनिवार्य पर्यावरण मंजूरी की कोई जरूरत नहीं होगी।

इसके अलावा, मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने पहले ही सैकड़ों मौजूदा ऐसी औद्योगिक इकाइयों की पहचान कर चुकी है जिन्हें इथेनॉल बनाने के लिए बुनियादी ढांचे के विस्तार के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी। सरकार के दावों के अनुसार, पूरी कवायद, इथेनॉल के उत्पादन को बढ़ाने की है, जिसे अंततः भारत के तेल आयात बिल को कम किया जा सके और वाहनों के ईंधन के रूप में इस्तेमाल किए जाने वाले पेट्रोल के साथ उसे मिश्रित किया जा सके। 

इस बाबत 15 जून को, केंद्रीय खाद्य सचिव सुधांशु पांडे ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर घोषणा की थी कि राष्ट्र के स्वामित्व वाले भारतीय खाद्य निगम (FCI) से 78,000 टन चावल दिसंबर 2020 से नवंबर 2021 तक की अवधि के दौरान इथेनॉल उत्पादन के लिए निजी उद्योगों को रियायती दरों पर आवंटित किया जा चुका है। 

यह सिर्फ एक इशारा भर है कि भारत सरकार सार्वजनिक वितरण प्रणाली से संबंधित खाद्यान्नों का दुरुपयोग कर रही है और उन उद्देश्यों के लिए नहीं जिनके लिए इसका इस्तेमाल करना अनिवार्य है। जबकि आज जब देश एक बड़ी महामारी की चपेट में हैं और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत कवर नहीं होने वाली लोगों को इस खाद्यान्न की बड़ी जरूरत है, मोदी सरकार इसका इस्तेमाल बड़े उधयोगों को सबसिडी देने के रूप में कर रही है, "खाद्य अधिकार अभियान के निखिल डे ने न्यूज़क्लिक को उक्त बातें बताई। 

केंद्र सरकार के पास जमा खाद्यान्न का इस्तेमाल पहले सार्वजनिक वितरण प्रणाली को सार्वभौमिक बनाने के लिए किया जाना चाहिए ताकि देश के सभी लोगों को खाना खिलाया जा सके। इसके अलावा किसी अन्य उद्देश्य के लिए, जैसे कि इथेनॉल बनाना उसके लिए खुले बाजार से खाद्यान्न की खरीद की जानी चाहिए, जो इथेनॉल मिश्रित कार्यक्रम की व्यवहार्यता के बारे में एक स्पष्ट विचार देगा,” उन्होंने कहा।

अब, इसका नतीजा देखते हैं: खाद्य सचिव की घोषणा के एक दिन बाद, यानी 16 जून को, केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने एक अधिसूचना जारी कर चीनी निर्माण इकाइयों और डिस्टिलरी को अनिवार्य पर्यावरणीय मंजूरी से छूट दे दी गई, बशर्ते वे अपनी इकाइयों परियोजनाओं का विस्तार करना चाहते हैं या इथेनॉल के उत्पादन के लिए अपनी उनकी मौजूदा सुविधाओं का इस्तेमाल करना चाहते हैं। 

30 अप्रैल को, केंद्रीय उपभोक्ता के मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने विभिन्न श्रेणियों की 418 औद्योगिक इकाइयों की एक सूची को मंजूरी दी थी, जिसमें कम ब्याज वाली आर्थिक सहायता देकर खाद्यान्न के इस्तेमाल से इथेनॉल क्षमता बढ़ाने की बात की गई है। उसी दिन, यानी 30 अप्रैल को, खाद्य मंत्रालय ने एक नीति भी तय की कि एफसीआई से चावल 2,000 रुपये प्रति क्विंटल की दर से इथेनॉल उत्पादन के इच्छुक निजी खिलाड़ियों को उपलब्ध कराया जाएगा।

दूसरी ओर, केंद्र सरकार ने उसी दिन एक और नीति की घोषणा की, जिसमें राज्य सरकारों और सार्वजनिक क्षेत्र के निगमों को खुले बाजार बिक्री योजना (OMSS) के तहत चावल की किसी भी मात्रा की खरीद के लिए 2,200 रुपये प्रति क्विंटल का आरक्षित मूल्य तय किया गया, यह मूल्य सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए आवंटित मात्रा से अधिक की जरूरत पड़ने पर लागू होगा। 

यह बात भी उल्लेखनीय है कि 31 दिसंबर, 2019 से केंद्र सरकार ने पहले ही ओएमएसएस योजना के तहत चावल का आरक्षित मूल्य 2,785 रुपये प्रति क्विंटल से घटाकर 2,250 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया था। लेकिन अब, निजी इथेनॉल उत्पादकों को जो चावल मौजूदा घोषित सब्सिडी पर दिया जाएगा, उसका भुगतान कौन करेगा? उत्तर अभी अस्पष्ट है।

वर्ष 2025 तक, सरकार का लक्ष्य देश में इथेनॉल निर्माण सुविधाओं को दोगुना से अधिक करना है और 20 प्रतिशत तेल के सम्मिश्रण लक्ष्य को हासिल करना है। सरकार ने दावा किया है कि वर्ष 2013-14 और 2018-19 के बीच ईंधन-ग्रेड इथेनॉल का उत्पादन पांच गुना तक बढ़ा है।

इथेनॉल आपूर्ति वर्ष (यानि दिसंबर 2018 से नवंबर 2019 के बीच) देश में लगभग 189 करोड़ लीटर ईंधन-ग्रेड इथेनॉल का उत्पादन किया गया, जिससे 5 प्रतिशत सम्मिश्रण हासिल हुआ है। सरकार को उम्मीद है कि 2020-21 में तेल विपणन कंपनियों को 300 करोड़ लीटर से अधिक इथेनॉल की आपूर्ति होने की संभावना है, जो लगभग 8.5 प्रतिशत के सम्मिश्रण स्तर को हासिल करने में मदद करेगा। 2022 के अंत तक इसका उत्पादन 10 प्रतिशत तक बढ़ने की संभावना है।

इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल कार्यक्रम के लिए केंद्र सरकार द्वारा चावल के अलावा, मक्का और गन्ना भी उपलब्ध कराया जा रहा है। हालांकि, भारत में इथेनॉल के उत्पादन के लिए चावल की तरफ रुख पहली बार हुआ है, जिसकी तब काफी तीखी आलोचना हुई थी, जब पिछले साल केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय जैव ईंधन समन्वय समिति द्वारा इस बाबत निर्णय लिया गया था।

यद्यपि इस निर्णय की आलोचना की गई थी, खास जब यह निर्णय ऐसे समय में लिया गया जब अनुमानित भोजन की कमी हो रही थी और दुनिया 100 वर्षों में सबसे खराब महामारी का सामना कर रही थी जिसके परिणामस्वरूप आर्थिक गतिविधियां गिर रही थी या गिर रही हैं और अर्थव्यवस्थाओं सिकुड़ रही है। कृषि विशेषज्ञों के एक निश्चित वर्ग ने इसका समर्थन किया था।

हम पहले से ही ज्यादा खाद्यान्न पैदा करने वाली अर्थव्यवस्था हैं। भोजन की कमी का अंदेशा देना क्योंकि अनाज की एक निश्चित मात्रा को वैकल्पिक इस्तेमाल की अनुमति दी जा रही है, एक पुराना विचार है। हमारे पास यानि भारतीय खाद्य निगम के पास चावल का अतिरिक्त भंडार है। यदि इसकी एक निश्चित मात्रा को इथेनॉल के उत्पादन के ज़रीए निपटाया जाता है, तो यह पुराने स्टॉक को साफ करने में मदद करेगा। कृषि अर्थशास्त्र अनुसंधान संघ के अध्यक्ष डॉ प्रमोद कुमार जोशी ने उक्त बात कही, इस नीति का सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि देश बहुत अधिक विदेशी मुद्रा बचा पाएगा जो अन्यथा तेल आयात पर खर्च की जाती है।

हमेशा इस बात का तर्क दिया जाता है कि एफसीआई के गोदामों में भरे अनाज के भंडार के कारण भारत एक खाद्य अधिशेष अर्थव्यवस्था है, इस तथ्य के बावजूद कि देश में प्रति व्यक्ति खाद्यान्न की उपलब्धता हाल के वर्षों में या तो स्थिर रही है या घट गई है।

नई दिल्ली स्थित भारतीय कृषि सांख्यिकी अनुसंधान संस्थान के आंकड़ों के अनुसार, खाद्यान्न की प्रति व्यक्ति उपलब्धता वर्ष 2014 में 489.3 ग्राम प्रति दिन से घटकर 2018 में 484.3 ग्राम हो गई थी। इसी तरह, चावल की प्रति व्यक्ति उपलब्धता 2014 में 198 प्रति दिन ग्राम से कम होकर 2018 में 189 ग्राम हो गई थी। 

साथ ही, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के परिणाम दर्शाते हैं कि भारत में पोषण की स्थिति, विशेषकर महिलाओं और बच्चों में ठहराव की है। कई राज्यों ने बच्चों के बीच बढ़ते तीव्र कुपोषण की ओर इशारा करते हुए बचपन में अविकसित/स्टंटिंग, कमजोर/वेस्टिंग और कम वजन से संबंधित संकेतकों के बिगड़ने की सूचना दी है।

सरकार ने दावा किया है कि देश में 100 करोड़ लीटर इथेनॉल के निर्माण क्षमता से, कच्चे माल के रूप में चावल की आपूर्ति केवल एक अंतरिम उपाय के रूप में की जाएगी जब तक कि मक्का उत्पादन एक निश्चित सीमा तक नहीं पहुंच जाता जो विभिन्न प्लांट की आपूर्ति के लिए पर्याप्त होगा। हालांकि यह बात स्पष्ट नहीं होती है कि प्लांट को रियायती दरों पर चावल क्यों उपलब्ध कराया जा रहा है। सब्सिडी की लागत के अलावा, यह भी अनुमान है कि देश को इन संयंत्रों के संचालन की पर्यावरणीय लागतों को भी वहन करना होगा।

16 जून को जारी अधिसूचना में केंद्र सरकार ने एथनॉल उत्पादन करने वाले संयंत्रों का संचालन शुरू करने से पहले सक्षम अधिकारियों से कोई प्रमाण हासिल करने से भी छूट दे दी है। इसे स्व-प्रमाणन के माध्यम किया जाएगा! पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) अधिसूचना, 2006 को इन उद्योगों को परियोजनाओं की बी 2 सूची के तहत वर्गीकृत करने के लिए संशोधित किया गया है, जिन्हें स्थानीय पारिस्थितिकी पर उनके अनुमानित प्रभाव का पता लगाने के लिए पूर्व मूल्यांकन की जरूरत नहीं होगी। 

"यह संशोधन पर्यावरण मंजूरी प्रक्रिया में छूट लागू करने के मामले में कार्यकारी शक्तियों के विवेकाधीन इस्तेमाल का एक और उदाहरण है। यह एक बार फिर से पूरा दारोमदार परियोजना समर्थकों के स्व-प्रमाणन पर निर्भर हो जाता है और सरकार यह भी मान कर चल रही है कि वे यह काम ईमानदारी से करेंगे। पर्यावरण मंत्रालय ने पर्यावरण मंजूरी को दो-पक्ष के बीच का मसला बना दिया है, यानी सरकारी और निजी कंपनियों के बीच का मसला, जैसे कि उन्हें किसी खाली भौगोलिक क्षेत्र में इसे लागू करना है और इससे किसी पर प्रभाव नहीं पड़ेगा,” उक्त बातें नई दिल्ली नीति अनुसंधान केंद्र के कांची कोहली ने कही। 

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Modi Govt’s Policy to Reduce Oil Imports: Subsidise the Rich, Burden the Poor!

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