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क्या मोदी और मुकेश अंबानी के रिश्ते में खटास आ रही है?

आरजेपीएल के पास वर्तमान में लगभग 1,30,000 संचार टावर हैं जो 35 करोड़ से अधिक ग्राहकों को वॉइस और डेटा सेवाएं प्रदान करने के लिए रिलायंस जियो के डिजिटल नेटवर्क की रीढ़ हैं, जो इसे भारत का सबसे बड़ा मोबाइल नेटवर्क ऑपरेटर बनाता है।
modi ambani
Image Courtesy : The Financial Express

प्रधानमंत्री मोदी और देश के सबसे अमीर व्यक्ति और रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड के चेयरमैन मुकेश अंबानी के बीच रिश्ते में खटास आती नज़र आ रही है। हाल ही में आय विभाग द्वारा रिलायंस के खिलाफ उठाए कुछ कदमों के संबंध में कुछ लोग अलग ही कहानी कह रहे हैं जबकि कुछ लोग इसे एक साधारण विवाद मान रहे हैं जिसका समाधान जल्द ही हो जाएगा।

बिजीनेस स्टैंडर्ड में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, आईटी विभाग ने दो अलग-अलग बुनियादी ढांचा कंपनियों में रिलायंस जियो के टॉवर और ऑप्टिक फाइबर नेटवर्क की संपत्ति के डिमर्जर की अपनी आपत्तियों के बाद सुप्रीम कोर्ट का रुख करने की योजना बनाई है। इसे 20 दिसंबर 2019 को नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (एनसीएलएटी) द्वारा ठुकरा दिया गया था। आय विभाग की याचिका पर एनसीएलएटी में जस्टिस एस मुखौपाध्याय और ए.आई.एस. चीमा ने सुनवाई की और उसका निपटान किया।

रिलायंस जियो जोकि आरआईएल का हिस्सा है इसने रिलायंस जियो इन्फोकॉम प्राइवेट लिमिटेड और जियो डिजिटल फ़ाईबर्स प्राइवेट लिमिटेड को इक्विटी पूंजी के इनफ्यूजन को रद्द कर अप्रैल 2019 में अलग (डिमर्जर) कर दिया था और इन्हें आरआईएल से कर्ज़ आधारित दो कंपनी बना दी थी।

पेरेंट कंपनी यानि आरआईएल ने कहा कि दोनों कंपनियों की देनदारी और संपत्ति भिन्न है। और आगे कहा कि दोनों ही कंपनियां अलग-अलग क्षेत्र में व्यापार करती है। जुलाई के महीने में रिलायंस जियो ने अपनी टावर इकाई को ब्रुकफील्ड इन्फ्रास्ट्रक्चर पार्टनर एलपी, जो एक केनाडियन इनवेस्टमेंट फंड है, को 25,215 करोड़ रुपए में बेच दिया था। उस समय आरआईएल के मुख्य वित्त अधिकारी वी श्रीकान्थ यह कहते सुने गए कि बरुकफील्ड टावर कंपनी के 100 प्रतिशत शेयर की मालिक होगी।

आरजेपीएल के पास वर्तमान में लगभग 1,30,000 संचार टावर हैं जो 35 करोड़ से अधिक ग्राहकों को वॉइस और डेटा सेवाएं प्रदान करने के लिए रिलायंस जियो के डिजिटल नेटवर्क की रीढ़ हैं, जो इसे भारत का सबसे बड़ा मोबाइल नेटवर्क ऑपरेटर बनाता है।

सितंबर 2016 में अपनी सेवाएं शुरू करने वाली रिलायंस जियो ने 30 साल तक आरजेपीएल के टावरों के मुख्य किरायेदार के रूप में हस्ताक्षर किए थे। देश के दूरसंचार क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा और अर्थव्यवस्था में मंदी के चलते अपने कर्ज के बोझ को कम करने के लिए भारती एयरटेल और वोडाफोन आइडिया ने भी कॉरपोरेट संस्थाओं को टावर परिसंपत्तियों से अलग कर दिया है।

आरजेआईपीएल को खरीदने के लिए ब्रुकफील्ड को एनसीएलएटी द्वारा दी गई मंजूरी का केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) के आईटी विभाग ने विरोध किया गया है, जो भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग का अंग है – रिलायंस जियो के प्रस्ताव में 65,000 करोड़ रुपये के वरीयता वाले शेयरों को रद्द करके उन्हे कर्ज़ में बदलने से डी-मर्जर कंपनी का मुनाफा काफी कम हो जाएगा। इसके चलते राजकोष राजस्व को एक बड़ा नुकसान होगा और अगर यह चोरी नहीं तो कर चुकाने का बड़ा उलंघन माना जाएगा। आईटी विभाग ने यह आरोप लगाया।

रिलायंस जियो ने इन आरोपों का खंडन किया है। बिज़नेस स्टैंडर्ड द्वारा रिलायंस समूह को भेजे गए एक ई-मेल के संबंध में प्रतिक्रिया नहीं दी गई है।

एनसीएलएटी ने "सबूतों की कमी" के चलते आईटी विभाग की याचिका को खारिज कर दिया। अपने आदेश में, न्यायमूर्ति मुखोपाध्याय और न्यायमूर्ति चीमा ने उल्लेख किया: कि "बिना रेकॉर्ड (में) जाए... और बिना कोई सबूत के (या उनकी पुष्टि) ... ट्रिब्यूनल के सामने लाए गए आरोप, आयकर विभाग के समक्ष यह रास्ता खुला नहीं था कि याचिकाकर्ता कंपनियों और उनके संबंधित शेयरधारकों और लेनदारों के बीच व्यवस्था की समग्र योजना कंपनी के शेयरधारकों को अनुचित लाभ देकर… कर का उलंघन कर रही है।"

यह अभी देखा जाना बाकी है कि देश की सर्वोच्च अदालत के समक्ष आईटी विभाग की अपील कितनी मजबूत होगी और अपने साक्ष्य को पुख्ता करने के लिए वे कौन से सबूत पेश करेंगे, जिससे आरआईएल की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी, आरजियो और ब्रुकफील्ड के बीच प्रस्तावित लेन-देन से सरकारी ख़जाने को नुकसान हुआ है साबित होगा, यह देखते हुए कि ट्रिब्यूनल ने विभाग की याचिका को सबूतों के अभाव में खारिज कर दिया गया था।

हालांकि एनसीएलएटी ने डी-मर्जर को मंजूरी दे दी है, लेकिन साथ ही आईटी विभाग को लेन-देन की जांच करने और अलग हुई इन दो कंपनियों के कर से संबंधित मुद्दों को उठाने की अनुमति भी दे दी है। क्या इससे यह पता चलता है कि रिलायंस जियो की टैक्स उल्लंघन संबंधित मुसीबतें अभी दूर नहीं हुई हैं?

आईटी विभाग ने दावा किया है कि रिलायंस (RIL) डी-मर्जर के जरिए उस पूरी योजना को अप्रत्यक्ष रूप से अंजाम देना चाहती है जिसे वह सीधे कानून के तहत नहीं कर सकती थी। उन्होंने कहा, “अलग हुई (डिमर्जड) कंपनी ने अपने शेयरधारकों को परिसंपत्तियों को अप्रत्यक्ष रूप से जारी किया है, जिसका इस्तेमाल लाभांश वितरण कर के (भुगतान) से बचने के लिए किया गया है जिसे अन्यथा आयकर अधिनियम की धारा 2 (22) (ए) के तहत लागू होना था। यह आगे बताया गया कि यह योजना धारा 2 (19 एए) की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करती है जो कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत कंपनियों के 'डिमर्जर' के अर्थ को परिभाषित करती है, और इसे केवल एक निर्दिष्ट डिमर्जर के रूप में संदर्भित किया जा सकता है जो कानून की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करता है, ऐसा दावा “आईटी विभाग ने अपनी याचिका में किया है।

एनसीएलएटी के समक्ष अपने बयान में विभाग ने आगे तर्क दिया है कि: “प्रतिभूतियों के प्रीमियम की साथ-साथ वरीयता शेयरों को ऋण में बदलना शेयरधारकों (और) आयकर विभाग के हित के लिए हानिकारक है क्योंकि वरीयता शेयरधारकों को भुगतान तभी किया जाता है जब कंपनी लाभ में हो... जबकि, ऋण पर ब्याज का भुगतान लाभ पर किया जाता है इसलिए इसके रूपांतरण के परिणामस्वरूप कंपनी के हाथों में कर चुकाने योग्य लाभ कम होगा, जो कि ब्याज का भुगतान करता है और वह अंतत आयकर विभाग के हितों के खिलाफ होगा।"

आगे यह भी कहा गया है कि प्रस्तावित लेनदेन "आयकर विभाग पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा... क्योंकि इन परिवर्तित ऋणों पर ब्याज को संबंधित कंपनियां खर्च के रूप में दावा करेंगी और इसके परिणामस्वरूप टैक्स कम हो जाएगा क्योंकि लाभ की दर कम दिखाई जाएगी।"

आईटी विभाग के दावों को खारिज करते हुए, एनसीएलएटी ने फैसला सुनाया कि … सिर्फ इस एक तथ्य के आधार पर कि एक योजना के परिणामस्वरूप कर देयता में कमी हो सकती है, उसकी वैधता को चुनौती देने के लिए एक मज़बूत आधार नहीं बनता है।” एनसीएलएटी ने विभाग को तब उचित कदम उठाने की भी अनुमति दी, यदि "व्यवस्था की समग्र योजना का कोई हिस्सा कर से बचने के लिए है या आयकर के प्रावधानों के खिलाफ है"।

आईटी विभाग की आपत्तियां और सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष न्यायाधिकरण के फैसले को चुनौती देने का निर्णय सरकार द्वारा आरआईएल, इसके अध्यक्ष और उसके परिवार के सदस्यों के मामलों में बढ़ती जांच की पृष्ठभूमि को दर्शाता है।

मार्च 2019 में, विभाग ने काले धन (अघोषित विदेशी आय और संपत्ति) और कर अधिनियम, 2015 के तहत मुकेश अंबानी की पत्नी नीता अंबानी और उनके तीन बच्चों को उनकी कथित अघोषित विदेशी आय और संपत्ति के लिए नोटिस दिया है। इसे इंडियन एक्सप्रेस ने प्रकाशित किया था।

दिलचस्प बात यह है कि अक्टूबर में के.वी. चौधरी को आरआईएल के बोर्ड में एक स्वतंत्र निदेशक "अतिरिक्त निदेशक - गैर-कार्यकारी निदेशक" के रूप में नियुक्त किया गया था। वह पूर्व केंद्रीय सतर्कता आयुक्त (सीवीसी) थे और सीबीडीटी के प्रमुख भी थे। चौधरी और उस समय उनके अधीन काम करने वाले अधिकारी, अन्य बातों के अलावा, धन की अवैध लेन देन और आरआईएल और इससे जुड़ी कंपनियों के खिलाफ आरोपों की जांच कर रहे थे।

सीबीडीटी के अध्यक्ष और आईटी विभाग की जांच शाखा के अध्यक्ष के रूप में, चौधरी के विभाग ने प्रभावशाली व्यक्तियों और कॉर्पोरेट समूहों, जैसे सहारा इंडिया परिवार और आदित्य बिड़ला समूह के खिलाफ कई संवेदनशील मामलों की जांच की थी- दोनों पर भ्रष्टाचार, रिश्वत और काले धन को कब्ज़ाने का आरोप था जिसे अंततः सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था। (इसका विवरण Loose Pages: Court Cases That Could Have Shaken India; Recalling Birla-Sahara Papers and Kalikho Pul’s Suicide Note by Sourya Majumder में हैं: जो इस लेख के एक लेखक परंजॉय गुहा ठाकुरता जिन्होंने नवंबर में किताब भी प्रकाशित की थी। 2018; www.loosepages.in देखें।)

चौधरी और उनके अधिकारियों ने सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के केंद्रीय कैबिनेट मंत्री नितिन गडकरी और हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता वीरभद्र सिंह से जुड़ी फर्मों की गतिविधियों की भी जांच की थी। इन दोनों पर आय के ज्ञात स्रोतों से अकूत संपत्ति अर्जित करने का आरोप लगाया गया था।

चौधरी के ही नेतृत्व में, आईटी विभाग ने शराब और रियल एस्टेट व्यापारी गुरदीप सिंह उर्फ पोंटी चड्ढा (जो नवंबर 2012 में एक गोलीबारी के दौरान मारे गए थे, जहां उनके भाई मौजूद थे) के वित्तीय गतिविधियों/मामलों की जांच की थी; उन्होंने मांस निर्यातक और कथित हवाला ऑपरेटर मोईन कुरैशी की गतिविधियां भी जांची, और; मुकेश अंबानी के भाई अनिल अंबानी की 2 जी दूरसंचार स्पेक्ट्रम घोटाले में अन्य हाई-प्रोफाइल मामलों में कथित संलिप्तता की भी जांच की थी।

2015 में चौधरी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली कैबिनेट की नियुक्ति समिति द्वारा सीवीसी नियुक्त होने वाले भारतीय राजस्व सेवा के पहले अधिकारी बने। जनवरी 2017 में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष गैर-सरकारी संगठन कॉमन कॉज़ द्वारा दायर एक अंतर्वादीय आवेदन में यह बताया गया था कि जब 2014 में सहारा समूह के कार्यालयों पर छापा मारा गया था तब चौधरी पर जांच और अगली कार्रवाई सहित सीबीडीटी के सदस्य द्वारा किए जा रहे कार्य की निगरानी का व पर्यवेक्षी प्रभार था।” (खंडन: इस लेख के लेखक परंजॉय कॉमन कॉज की गवर्निंग काउंसिल में हैं।)

एक जांच अधिकारी के रूप में, चौधरी के पास भ्रष्टाचार, रिश्वत और काले धन को कब्जाने के आरोपों के सबूत थे। इस तरह के सबूतों में दावा किया गया था कि उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में मोदी ने हो सकता है सहारा समूह से जुड़े व्यक्ति से धन स्वीकार किया हो। कथित रूप से एक ही समूह से पैसा पाने वाले अन्य लोगों में मध्य प्रदेश के भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री और छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और रमन सिंह, महाराष्ट्र में भाजपा की पदाधिकारी, शाइना एनसी और दिल्ली की पूर्व कांग्रेस मुख्यमंत्री दिवंगत शीला दीक्षित शामिल थीं।

कॉमन कॉज़ याचिका ने दावा किया था कि इन आरोपों से संबंधित साक्ष्य को केंद्रीय जांच ब्यूरो या सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्थापित काले धन पर विशेष जांच दल के साथ साझा नहीं किए गए और चौधरी के अधीन इसे आईटी विभाग की एक "गंभीर चूक" माना जाए।

याचिका में आगे दावा किया गया कि जब चौधरी प्रभारी थे, तो आईटी विभाग ने अक्टूबर 2013 में आदित्य बिड़ला समूह के परिसर जब्त साक्ष्य को किसी अन्य एजेंसी के साथ साझा नहीं किया था और न ही विभाग के निष्कर्षों पर कोई "सार्थक कार्रवाई" की थी।

सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी 2017 में बिड़ला-सहारा पेपर्स की जांच का आदेश देने से इनकार कर दिया था।

हालांकि, यह मालूम नहीं है कि भारत की सबसे बड़ी निजी कॉर्पोरेट इकाई के निदेशक होने के नाते अपने नवीनतम अवतार में चौधरी क्या रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड को आयकर विभाग के साथ अपने कर विवाद पर सलाह देंगे।

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। .

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

Is the Modi-Mukesh Ambani Relationship Souring? Can Chowdary Help?

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