मोदी-राज राष्ट्रीय एकता और जनमानस के जीवन के लिए गंभीर ख़तरा बना !
खबरों के अनुसार विपक्षी महागठबंधन ‘INDIA’ लोकसभा में मोदी सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पेश करने जा रहा है। बताया जा रहा है कि विपक्ष को ऐसा इसलिए करना पड़ रहा है ताकि मोदी जी को मणिपुर के सवाल पर संसद में बोलने के लिए बाध्य किया जा सके !
यह development भारत के संसदीय लोकतंत्र के स्वास्थ्य पर एक खौफनाक टिप्पणी है जहां एक सीमावर्ती राज्य के गृहयुद्ध जैसे हालात पर प्रधानमंत्री के लोकसभा में वक्तव्य मात्र के लिए विपक्ष को अविश्वास प्रस्ताव का असाधारण कदम उठाना पड़ रहा है।
दरअसल, मणिपुर 2महीने बाद आज भी जल रहा है और इस आग की आंच उत्तर-पूर्व ( NE ) के कई इलाकों में फैलने का खतरा मुंह बाए खड़ा है। ताजा खबरों के अनुसार एक समुदाय विशेष के लोग मिज़ोरम से भाग रहे हैं। मेघालय से भी झड़प की खबरें हैं। नगालैंड, असम के कुछ इलाकों में भी तनाव की रिपोर्ट है। हिंसा-प्रतिहिंसा की आग में पूरा पूर्वोत्तर भारत घिरता जा रहा है।
मणिपुर हिंसा में भाजपा की बीरेन सिंह सरकार न सिर्फ नाकारा साबित हुई है, बल्कि उसकी संलिप्तता भी अब कोई ढकी-छिपी बात नहीं है। यह पूरी तरह साफ हो जाने के बाद भी कि मणिपुर की सरकार न सिर्फ वहां के संकट का समाधान करने में नाकाम रही है, बल्कि स्वयं संकट का कारण है और उसके रहते वहां शांति बहाली असंभव है, केंद्र सरकार उसके खिलाफ कोई कार्रवाई करने को तैयार नहीं है।
देश के गृहमंत्री के बतौर अमित शाह तो कठघरे में हैं ही, स्वयं प्रधानमंत्री की प्रतिक्रिया से लोग हतप्रभ हैं। पहले करीब 80 दिन तो वे चुप्पी साधे पूरे मामले से अनजान बने रहे, महिलाओं को नंगा करके परेड कराने का खौफनाक वीडियो वायरल होने के बाद, जब पूरी दुनिया में थू-थू हो गई, सुप्रीम कोर्ट ने फटकार लगा दी, संसद सत्र में हंगामा होने जा रहा था, तब मुंह खोले, वह भी संसद की सीढ़ियों पर, उसके अंदर नहीं!
80 दिन बाद उन्होंने जो बयान दिया वह उनकी चुप्पी से भी भयानक है। शर्म और पीड़ा जैसे जुमलों की लफ्फाजी करते हुए उन्होंने जो कुछ कहा उसमें कोई sincerity नहीं है- छत्तीसगढ़, राजस्थान और दुनिया जहान से जोड़ते हुए मणिपुर की महिलाओं के लिए भी उन्होंने औपचारिक आंसू बहा दिए। यह मणिपुर के खौफनाक घटनाक्रम को, जिसके लिए सीधे तौर पर उनकी डबल इंजन सरकार जिम्मेदार है, generalise और dilute करने तथा diversion की शातिर कोशिश है!
सबसे shocking यह है कि एक सीमावर्ती राज्य के इतने गंभीर मसले पर वे संसद के अंदर मुंह खोलने तक को तैयार नहीं हैं। दरअसल, जिस खतरनाक रणनीति पर भाजपा सचेत ढंग से आगे बढ़ रही है, उनके पास offer करने के लिए, बोलने के लिए कुछ ठोस है ही नहीं !
असल सवाल तो जवाबदेही तय करने और राजनीतिक-प्रशासनिक नेतृत्व समेत उन सभी को punish करने का है जो हालात के इस मुकाम तक पहुंचने के लिए जिम्मेदार हैं।
कुकी समुदाय जो अब तक अपने लिए अलग प्रशासनिक व्यवस्था की मांग कर रहा था, मौजूदा घटनाक्रम के बाद अलग राज्य की मांग कर रहा है। जाहिर है वहां ठोस राजनीतिक पहल की जरूरत है और विश्वास-बहाली की पहली शर्त है कि मुख्यमंत्री को हटाया जाए। तभी शांति बहाल करने की कोई कोशिश कामयाब हो सकती है।
लेकिन अपने चुनावी गणित के चलते मोदी-शाह इसके लिए तैयार नहीं है।
इसीलिए प्रधानमंत्री के वक्तव्य में किसी निर्णायक एक्शन व राजनीतिक पहल की बात सिरे से नदारद थी और वे संसद में बोलने से भाग रहे हैं। सही बात तो यह है कि उनके बयान से clue लेते हुए गोदी मीडिया और भाजपा के IT सेल को मणिपुर की भयानक त्रासदी का सामान्यीकरण करने का तर्क मिल गया और वे diversion के अपने चिर-परिचित खेल में लग गए। भाजपाई प्रवक्ता और कार्यकर्ता राजस्थान और बंगाल में महिला उत्पीड़न को लेकर सक्रिय हो गए, जैसे यह मणिपुर में हो रही हैवानियत का justification हो !
अब यह साफ हो चला है कि मणिपुर की मौजूदा त्रासदी कोई अचानक पैदा हुआ संकट नहीं है, बल्कि इसके पीछे हिंदुत्व की लहर पैदा करने और एक समुदाय विशेष में अपना स्थायी वोटबैंक बनाने का सुस्पष्ट political design है।
यह संतोष की बात है कि मणिपुर की नृशंसता ने व्यापक जनमत की अंतरात्मा को झकझोरा है। वैसे तो पूरे देश में ही सरकार की किरकिरी हो रही है, पर ऐसे संकेत हैं कि महिलाओं और आदिवासियों के बीच सरकार की छवि को धक्का लगा है।
तमाम आदिवासी क्षेत्रों में मणिपुर के घटनाक्रम पर भारी आक्रोश है, जिनमें वे राज्य भी शामिल हैं जहां विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। तमाम राज्यों में उनके सड़क पर उतरने की खबरें आ रही हैं।
सबसे बड़ी खबर स्वयं मोदी- शाह गुजरात से है। मणिपुर में आदिवासी समाज पर हमलों के खिलाफ राज्य के 14 ज़िलों में स्थानीय आदिवासी संगठनों ने बंद का आह्वान किया था, जिसे कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और भारतीय ट्राइबल पार्टी ने भी समर्थन दिया। खबरों के अनुसार तापी, वलसाड, दाहोद, पंचमहल, नर्मदा और छोटा उदयपुर समेत कई ज़िलों में बंद का व्यापक असर रहा।
दरअसल, पहले से ही यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड को लेकर आदिवासियों के बीच हलचल थी। जगह-जगह विरोध के स्वर उठ रहे थे। अब मणिपुर प्रकरण ने आग में घी डालने का काम किया है। एक आदिवासी को राष्ट्रपति बनाकर पूरे समुदाय का एकमुश्त वोट हासिल करने की मोदी जी की योजना पर पानी फिर गया है।
ठीक इसी तरह महिलाओं के बीच भी तमाम schemes के माध्यम से पिछले सालों में प्रधानमंत्री मोदी बड़ी constituency बनाने में सफल हुए थे। वैसे तो कर्नाटक चुनाव से उसमें उतार के संकेत मिलने लगे थे, अब, पहले महिला पहलवानों के प्रकरण में सरकार ने जिस बेशर्मी से यौन हिंसा के आरोपी अपने सांसद का बचाव किया और मणिपुर में महिलाओं के साथ हैवानियत को लेकर कठघरे में खड़ी मणिपुर सरकार को जिस तरह संरक्षण दे रही है, उससे महिला-सुरक्षा के प्रश्न पर उसकी छवि तार-तार हो गयी है तथा उसके अपने जनाधार की महिलाओं के बीच भी नाराजगी और विभाजन के संकेत हैं।
ऐसा लगता है कि महिला पहलवानों वाले प्रकरण की तरह ही मणिपुर त्रासदी की handling में भी मोदी-शाह ने self-goal कर लिया है। जैसे बृजभूषण की नाराजगी से होने वाले कल्पित चुनावी नुकसान से डर कर सरकार ने अपनी थू थू करवाई, वैसे ही मणिपुर प्रकरण ने उसके गवर्नेंस के दावे को तार-तार कर दिया है और कथित डबल इंजन सरकार के बहुप्रचारित मॉडल को, जिसकी खूबियां गिनाते मोदी-शाह थकते नहीं थे, पूरी तरह ध्वस्त कर दिया है। डबल इंजन सरकार न सिर्फ विफल हैं, बल्कि डबल डिजास्टर और डबल ट्रेजेडी साबित हुई है।
अपने संकीर्ण राजनीतिक लाभ के लिए हमारे अति-विविधतापूर्ण समाज के विभिन्न समुदायों के बीच नफरत और विभाजन की संघ-भाजपा की राजनीति ने देश में जगह जगह जो landmines बिछाई हैं, मणिपुर उसी की सबसे ताजा झांकी है।
स्तंभकार प्रताप भानु मेहता कहते हैं, " अगर हम नैतिक रूप से संवेदनहीन मौजूदा शासन को, जो बेतुके झूठ फैलाने और अत्याचार पर आमादा है, उखाड़ नहीं फेंकते तो (मणिपुर की त्रासदी पर) शर्म और पीड़ा की बातें महज कोरी लफ्फाजी हैं।"
आज संघ-भाजपा की नफरती विचारधारा और विभाजनकारी राजनीति हमारी सदियों पुरानी सामाजिक-सांस्कृतिक एकता को छिन्न-भिन्न कर देने पर आमादा है। यह न सिर्फ देश के लोकतांत्रिक ढांचे बल्कि भारतीय जनमानस के जीवन और हमारी राष्ट्रीय एकता के लिए भी गंभीर खतरा बन गयी है। इसे सत्ता से बेदखल करने के लिए साहस के साथ खड़ा होना आज हर देशभक्त भारतीय का राष्ट्रीय कर्तव्य बन गया है।
(लेखक इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
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