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मोदी के कार्यकाल में “काले धन” का क्या हुआ?

साल 2014 में भाजपा ने अपनी चुनावी घोषणा में दावा किया था कि मात्र 100 दिन के भीतर ही देश में काले धन की एक-एक पाई को वापस लाया जाएगा।
Modi

साल 2014 के लोकसभा चुनावों के पहले सभी टीवी चैनलों से लेकर चाय की टपरियों पर काले धन की चर्चा होती थी। कांग्रेस सरकार की हार में भ्रष्टाचार और काले धन के मुद्दे की बड़ी भूमिका थी। लेकिन बीते सालों से इस मुद्दे पर कहीं कोई बात होती नहीं दिखती। क्या देश में काले धन की समस्या कम हो गई है या खत्म ही हो गई है? आखिर देश में फ़िलहाल काले धन की स्थिति क्या है? इसपर बात करने से पहले आप वर्तमान प्रधानमन्त्री के कुछ बयान याद करिए, लोकसभा चुनावों से पहले उन्होंने कहा था- एक बार ये जो चोर-लुटेरों के पैसे विदेशी बैंकों में जमा हैं ना, उतने भी हम रुपये ले आए ना, तो भी हिंदुस्तान के एक-एक ग़रीब आदमी को मुफ़्त में 15-20 लाख रुपये यूँ ही मिल जाएँगे."

उन्होंने ये भी कहा था कि “किसी को पता नहीं है कि देश का कितना काला धन बाहर है. लेकिन वादा करता हूं कि भारत के गरीबों का पैसा जो बाहर गया है, उसका मैं पाई-पाई वापस ले आऊंगा."

भाजपा ने अपने चुनावी घोषणा में भी दावा किया था कि मात्र 100 दिन के भीतर ही देश में काले धन की एक - एक पाई को वापस लाया जाएगा, लेकिन कमाल की बात है कि काला धन लाना तो दूर, भाजपा सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में संसद में ये भी कह दिया कि हमें नहीं मालूम विदेश में कितना काला धन है? मतलब भारत सरकार को ये ही नहीं मालूम कि विदेश में कितने भारतीयों का कितना काला धन है। आज भी भारत सरकार की काले धन को लेकर यही स्थिति है। लेकिन हाल ही में एक रिपोर्ट आई है जिसमें खुलासा हुआ है कि स्विस बैंकों में भारतीयों का काला धन पिछले एक साल में 50 फीसदी बढ़ चुका है। वैसे में ये जानना बनता है कि काला धन क्या है, क्या इसे भारत लाना नामुमकिन है?

स्विट्ज़रलैंड की केंद्रीय बैंक ने कहा है कि उनके यहाँ साल 2021 के दौरान, यानी केवल एक साल में भारतीय कंपनियों और भारतीय लोगों का पैसा 50 प्रतिशत बढ़कर 30500 हज़ार करोड़ हो चुका है। पिछली साल यानी 2020 में ये पैसा महज 20,700 करोड़ रुपये हुआ करता था।  कुलमिलाकर वर्तमान में जो पैसा स्विस बैंकों में जमा है, वो पिछले 14 सालों में सबसे बड़ा आंकड़ा है।

यहाँ एक बात ध्यान देने की है कि स्विस बैंक हर साल अपने यहाँ जमा धन की घोषणा करता है।  भारतीयों के जिस धन की घोषणा यहाँ की गई है वो सीधे-सीधे जमा किया हुआ धन है, लेकिन इसमें वो धन शामिल नहीं है जो भारतीयों द्वारा दूसरे देशों में बनाई गई फर्जी कंपनियों या नाम बदलकर स्विस बैंकों में जमा किया गया है. असली काला धन उसी हवाला के तरीके से स्विस बैंकों में पहुँचता है. सवाल ये है कि आखिर भारत का कितना पैसा विदेशों में जमा है? इसका पहला जवाब ये है कि जिसका नाम ही ब्लैक मनी है तो उसका ठीक ठीक अनुमान कैसे संभव है? इसकी कोई एकाउंटिंग तो होती नहीं है? लेकिन फिर भी कुछ संस्थानों ने लंबी स्टडी के बाद इसका अनुमान लगाया है।

कांग्रेस की सरकार ने तीन संस्थानों को ब्लैक मनी का अनुमान लगाने का काम दिया था। इनमें से एक सरकारी संस्था नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ पब्लिक पॉलिसी ऐंड फ़ाइनेंस ने बताया कि साल 1997 से लेकर साल 2009 के बीच गया पैसा देश की पूरी जीडीपी का लगभग सात प्रतिशत हो सकता है।  इसी तरह नेशनल काउंसिल ऑफ़ अप्लाइड इकॉनॉमिक रिसर्च ने बताया कि साल 1980 से 2010 के बीच भारत के बाहर जमा होने वाला काला धन- करीब 384 अरब डॉलर से लेकर 490 अरब डॉलर के बीच था।  सुप्रीम कोर्ट के चर्चित वकील राम जेठमलानी ने भी इस पर अपना अनुमान बताया था, उनका कहना था कि भारत का करीब 90 लाख करोड़ रुपया विदेशों में जमा है।  

अगर बात सिर्फ स्विस बैंकों की करें वर्तमान में भारतीयों का 30500 हज़ार करोड़ रुपया स्विस बैंकों में जमा है। एक वक्त था जब केवल स्विस बैंकों में ही भारतीयों का पैसा साल 2006 में 41400 करोड़ पहुँच गया था. लेकिन बाद में कांग्रेस सरकार ने कुछ प्रयास किये और ये आंकड़ा नरेंद्र मोदी की सरकार बनने तक घटकर 14 हजार करोड़ पर पहुँच गया था, लेकिन पिछले आठ साल में जबकि नरेंद्र मोदी खुद सरकार में हैं तब ये आंकड़ा घटने के बजाय दोगुने से अधिक बढ़ गया है। स्विस बैंकों में भारतीयों का पैसा जो मोदी सरकार की शुरुआत में 14 हजार करोड़ रुपये हुआ करता था, वो 2021 आते-आते 30,500 करोड़ पर पहुँच गया है।

इसलिए सबसे पहले तो यही जानना जरूरी है कि ब्लैक मनी आखिर किसे कहते हैं- पूरी दुनिया में ब्लैक मनी की कोई एक परिभाषा नहीं बन सकी है लेकिन मोटा माटी ब्लैक मनी उसे कहा जाता है जिसपर कि सरकार को टैक्स नहीं दिया गया है। अब इसे साधारण तरीके से समझते हैं, मानकर चलिए आपने किराए पर घर लिया, आपने अपने मकान मालिक को बीस हजार रुपये किराए के रूप में दिए, लेकिन ये पैसे उसने कैश में लिए, जब आपका मकान मालिक इनकम टैक्स भरता है तो वो इसके बारे में बताता ही नहीं है कि रेंट से उसे कितनी इनकम आ रही तो ये ब्लैक मनी ही मानी जाएगी क्योंकि इसपर टैक्स नहीं दिया गया, एक तरह से ये जायज पैसा है लेकिन फिर भी ये ब्लैक मनी में आएगा। लेकिन ऐसा नहीं है कि कालाधन इसी तरह का है?

असली काला धन दरअसल बड़े उद्योगपतियों के हाथों में कैद है। जैसे किसी उद्योगपति ने किसी खदान का ठेका लिया और इसके बदले पचास करोड़ रिश्वत दी। तो ये जो पचास करोड़ रूपये ब्लैक मनी बन जाते हैं, ना तो इसे उद्योगपति कहीं दिखाएगा न रिश्वत लेने वाला। अब इतने पैसे को वो घर में तो रखेगा नहीं, इसलिए ऐसे पैसे के बदले वो सोना या जवाहरात ले लेगा या जमीन ले लेगा। फिर कागज पर दिखाएगा कि डेढ़ लाख की जमीन ली है, लेकिन ज़मीन आती है करोड़ों की, अब डेढ़ लाख तो कागज पर दिखा देगा बाकी पैसा ब्लैक मनी वाला दे देगा। इस तरह ब्लैक मनी से सरकार के टैक्स को बड़ा नुकसान होता है, अगर इसपर टैक्स मिलने लगे तो देश के विकास के लिए बहुत अधिक पैसा मिल जाएगा।

BBC की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत के चीफ इकनोमिक एडवाइजर रहे- अरविंद विर्मानी ने ब्लैक मनी पर कहा है कि जो केंद्र और राज्य सरकारें खर्च करती हैं, उसका लगभग लगभग 30 प्रतिशत बीच में ही ग़ैर क़ानूनी संपत्ति में तब्दील हो जाता है।” क्योंकि रिश्वत ही इतनी चलती हैं। रिश्वत का पैसा ब्लैक मार्किट में चला जाता है।  जितनी बड़ी मार्किट रियल वाली होती है, उतनी ही बड़ी मार्केट ब्लैक मनी की है।

यही कारण है कि मोदी सरकार ने जुलाई 2021 में लोकसभा में कह दिया कि "पिछले 10 वर्ष में स्विस बैंक में छिपाए गए काले धन का हमारे पास कोई आधिकारिक आँकड़ा नहीं है." उल्टा स्विस बैंकों में भारतीयों का पैसा और अधिक ज्यादा बढ़ा है। पिछले 14 सालों में जितना पैसा स्विस बैंकों में जमा नहीं हुआ, जितना अब हुआ है।

ब्लैक मनी के पैसे का इस्तेमाल- भ्रष्टाचार, ड्रग्स के व्यापार, हथियारों की तस्करी करने में, हवाला में, यहाँ तक अपराध और आतंक की दुनिया में भी होता है। पर ऐसा नहीं है कि ये पैसा कोई कैश में है, कैश में तो बहुत लिमिटेड है, ये पैसा बेनामी जमीनों, गोल्ड और लग्जरी चीजों में अधिक है। इसलिए नोटबंदी के फैसले को बेवकूफाना भरा फैसला माना गया क्योंकि जितना पैसा कैश में मिला, उससे अधिक पैसा तो नए नोट छापने में लग गया।

नरेंद्र मोदी जब सरकार में नहीं थे तो दावा करते थे कि एकबार प्रधानमन्त्री बना दो, सौ दिन के अन्दर ब्लैक मनी ला दूंगा, लेकिन उनकी बातें हवा हवाई साबित हुईं। सरकार के ये बस में ही नहीं है कि ब्लैक मनी को इतनी जल्दी कंट्रोल कर ले, ये बातें जनता को बहकाने के लिए ठीक हैं, लेकिन जिन लोगों ने ब्लैक मनी के बारे स्टडी की है, वे जानते हैं कि ये कितना मुश्किल काम है।

जैसे कि भारत में काले धन की अर्थव्यवस्था पर प्रोफ़ेसर अरुण कुमार ने एक किताब- Understanding the Black Economy and Black Money in India लिखी है। BBC के अनुसार- वे मानते हैं कि सरकार के पास ये जवाब नहीं होगा कि ब्लैक मनी का कितना पैसा, कहाँ पर है क्योंकि जिस तरह से पैसे के सोर्स को छिपाया जाता है, पैसा कहाँ से आ रहा है, ये पता नहीं होता, इसी तरह ये भी नहीं पता होता कि कितना पैसा कहाँ से चलकर कहाँ जा रहा है। मान लीजिए पैसा पहले केमन आइलैंड गया, फिर बरमुडा, फिर वहाँ से उसे ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड भेजा गया, वहाँ से पैसा जमैका गया और फिर उसे स्विट्ज़रलैंड भेजा गया। अब कैसे पता चलेगा कि किसका पैसा है, ये कहाँ कहाँ गया।”

अब आप स्विट्ज़रलैंड की सरकार को कैसे कहेंगे कि ये पैसा भारत का है? और कैसे साबित करेंगे कि जो पैसा स्विट्ज़रलैंड की बैंकों में जमा है वो अवैध ही है? ब्लैक मनी है, ना सरकार इसे साबित कर सकती है और न स्विट्ज़रलैंड से ये पैसा भारत आ सकता है। जो भाजपा एक वक्त विपक्ष में थी तब उसके लिए ये कहना आसान था कि हमें चुनो, हम सब पैसा वापस ले आएँगे, लेकिन अब जब भाजपा सरकार है तो ना केवल स्विट्ज़रलैंड की बैंकों में दोगुनी गति से भारत का पैसा बढ़ रहा है बल्कि सरकार भी अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिए कह रही है कि ना तो हमें मालूम है कि कितना ब्लैक मनी है और ना स्विट्ज़रलैंड की बैंकों में जमा सारा पैसा ब्लैक मनी है।

शुरू में जब भाजपा सरकार आई तो SIT का गठन किया गया कि ये कमिटी कालाधन वापस लाएगी, ब्लैकमनी क़ानून भी बनाया गया. बेनामी कानून भी बनाया गया। लेकिन कुछ नहीं हुआ, जब ये कानून लाए गए तो मीडिया में इसे मास्टरस्ट्रोक कहा गया, जब नोटबंदी आई तो कहा गया कि ये ब्लैक मनी के ख़िलाफ़ वॉर है, जब बाद में रिपोर्ट आईं तो पता चला कि नोटबंदी न केवल असफ़ल फैसला था बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को ड़ुबाने में सबसे बड़ा हाथ नोटबंदी का रहा। लेकिन आज मीडिया में कहीं इस सवाल पर कोई चर्चा नहीं है। उस दौर को याद करिए जब कांग्रेस का समय था, तब जनता भी पूछ रही थी कि काला धन कब आएगा, पार्टियाँ भी पूछ रहीं थीं काला धन कब आएगा, मीडिया भी पूछ रही थी कि काला धन कब आएगा. लेकिन आखिरी बार का याद करिए जब प्रधानमंत्री ने किसी मंच से काले धन के बारे में बात की हो, उस आखिरी शो को याद करिए जब हिंदू मुस्लिम बहस की जगह मीडिया ने काले धन पर बात की हो।

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