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मंकीपॉक्स से भारत को फ़िलहाल ख़तरा नहीं है लेकिन तैयारी की है ज़रूरतः प्रो.शाहिद जमील

प्रो. जमील ने कहा कि, “मैं कहना चाहूंगा कि भारत के लिए यह इस समय चिंता का कारण नहीं है, लेकिन जल्दी ही हो सकता है। हमें सतर्क रहने और विभिन्न सार्वजनिक स्वास्थ्य उपायों को लागू करने की आवश्यकता है।”
Monkey Pox

नई दिल्ली: भारत में मंकीपॉक्स के पांच मामलों के सामने आने के बाद चेतावनी और स्वास्थ्य संबंधी सलाह नियमित रूप से अपडेट की जा रही हैं। हम अभी भी नहीं जानते कि भारत में यह बीमारी कितनी गंभीर होगी। निगरानी, जागरूकता और सार्वजनिक स्वास्थ्य सावधानियां इस पर रोक लगाने के लिए कारगर साबित होंगी।

प्रख्यात वायरोलॉजिस्ट और अशोक विश्वविद्यालय के त्रिवेदी स्कूल ऑफ बायोसाइंसेज के वर्तमान निदेशक शाहिद जमील से जब इस बीमारी से भारत के सामने आने वाले खतरे के बारे में सवाल किया गया तो उन्होंने न्यूज़क्लिक को बताया कि, "इस समय, भारत में केवल पांच ज्ञात मामले हैं, ये खतरा कम है। लेकिन ये मामले (और विश्व स्तर पर) सामुदायिक स्तर पर आधारित नहीं हैं, बल्कि उन लोगों में पाए गए जिन्होंने इलाज कराया था। दुनिया में वास्तविक संख्या बहुत अधिक हो सकती है। विश्व में देखें तो 17,000 से अधिक ज्ञात मामले हैं।”

प्रो. जमील ने कहा कि, “मैं कहना चाहूंगा कि भारत के लिए यह इस समय चिंता का कारण नहीं है, लेकिन जल्दी ही हो सकता है। हमें सतर्क रहने और विभिन्न सार्वजनिक स्वास्थ्य उपायों को लागू करने की आवश्यकता है।”

वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने पहले ही इसे वैश्विक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित कर दिया है, भारत प्रारंभिक चरण में है और इसको लेकर आत्मसंतुष्ट होने का जोखिम नहीं उठा सकता है। COVID-19 महामारी के दौरान सीखे गए सबक का इस्तेमाल मंकीपॉक्स के खिलाफ लड़ाई में किया जा सकता है। इस पर प्रो. जमील कहते हैं, "हमें गलती नहीं करनी चाहिए। हालांकि मंकीपॉक्स मुख्य रूप से छूने और नजदीकी संपर्कों के जरिए फैलता है बावजूद इसके यह शरीर के तरल पदार्थ और बूंदों (यानी सतही संदूषण) के जरिए भी फैलता है। अधिक जनसंख्या घनत्व वाले स्थानों में इस तरह के संक्रमण बहुत तेजी से फैल सकते हैं। भारतीय शहर भीड़भाड़ वाले हैं और इस श्रेणी में आते हैं।”

COVID-19 से सीखे गए अहम पहलू और उन्हें मंकीपॉक्स के खिलाफ कैसे लागू किया जाए के सवाल पर प्रो. जमील ने कहा, “COVID -19 से मिले अहम सबक में है कि समस्या की जल्दी पहचान की जाए, आत्मसंतुष्ट न रहा जाए, सार्वजनिक स्वास्थ्य उपायों (जांच, दूरी और इलाज) में जल्दी की जाए, स्पष्ट रूप से संवाद किया जाए, उपलब्ध सर्वोत्तम उपकरणों का उपयोग किया जाए और नीति निर्धारित करने के लिए डेटा का इस्तेमाल किया जाए। ये सभी मंकीपॉक्स पर भी लागू होते हैं।"

प्रो. जमील का मानना है कि इस स्तर पर खतरे की धारणा से निपटने के लिए भारत की तैयारी उचित तरीके से होनी चाहिए। हालांकि, उन्होंने कुछ बिंदुओं पर प्रकाश डालते हुए कहा, “अब तक, मैं 'हां' में कहूंगा क्योंकि रिपोर्ट की गई संख्या कम है। लेकिन चूंकि इसमें तेजी से फैलने की क्षमता है, इसलिए हमारे पास एक स्पष्ट और समन्वित योजना होनी चाहिए। किसी भी मामले का पता चले इससे पहले भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने 31 मई 2022 को देश में मंकीपॉक्स को लेकर दिशा-निर्देश जारी किया। यह काफी अच्छा कदम है, लेकिन जब सामुदायिक संक्रमण की बात आती है तो आगंतुकों पर बहुत अधिक ध्यान हमें संतुष्ट कर सकता है। हमने COVID -19 के दौरान इसे देखा है।”

जबकि मंकीपॉक्स वायरस के लिए टीकाकरण और इसकी विभिन्न संभावनाएं दुनिया भर में चर्चा में हैं कि क्या COVID-19 के टीकों के दौरान हासिल की गई तकनीकी प्रगति, भारत की मदद कर सकती है? इस संबंध में कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा, "भारत की ताकत वैक्सीन के विकास में नहीं बल्कि निर्माण में है। हम उपलब्ध तीसरी पीढ़ी के चेचक के टीके (जिसे मंकीपॉक्स के खिलाफ भी इस्तेमाल के लिए मंजूरी दी गई है) की बड़ी मात्रा में लाइसेंस और उत्पादन करने के लिए उस ताकत का लाभ उठा सकते हैं। नए टीकों पर शोध करने और उन्हें बाजार में लाने में समय लगेगा। दुनिया के लिए फिर से उसी तरह की पूंजी की व्यवस्था करना मुश्किल होगा जैसा उसने कोविड -19 टीकों के लिए किया था, खासकर अधिकांश अर्थव्यवस्थाएं चल रही महामारी से प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुई हैं।”

जब उनसे सुझावों के बारे में पूछा गया कि सरकार और नीति निर्माता मंकीपॉक्स से निपटने के लिए इसका इस्तेमाल कर सकते हैं तो प्रो. जमील ने कहा, "समय से पहले जारी किए गए दिशानिर्देशों से परे तैयारी के प्रमुख तत्व परीक्षण करना, पता लगाना, अलग-थलग रखना और इलाज करना शामिल होगा।" इसके अलावा, उन्होंने पुणे स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (एनआईवी) से अलग परीक्षण सुविधाओं को बढ़ाने की ओर इशारा किया। प्रोफेसर ने कहा, “ COVID -19 के दौरान, देश भर में कई प्रयोगशालाओं ने पीसीआर परीक्षण क्षमता विकसित की। इससे पहले, ICMR ने 50 से अधिक मेडिकल कॉलेजों में वायरोलॉजी इकाइयां स्थापित की हैं। लैबरेट्री कंटेनमेंट में प्रशिक्षण और परीक्षण उनकी क्षमताओं को बढ़ा सकता है और परीक्षण का तेजी से विस्तार कर सकता है। एनआईवी एक प्रशिक्षक और गुणवत्ता नियंत्रण भूमिका निभा सकता है।"

उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि मंकीपॉक्स के लिए सीवेज के पानी का परीक्षण (जैसे COVID -19 के लिए सफलतापूर्वक किया गया) उन शहरों के लिए लागू किया जा सकता है जहां अधिक जनसंख्या घनत्व के कारण सबसे अधिक जोखिम है। शहरों में (गांवों के विपरीत) वर्किंग सीवेज सिस्टम भी है। सीवेज में वायरस सामुदायिक संचरण का एक अच्छा संकेतक है जो सार्वजनिक स्वास्थ्य को लेकर योजना बनाने वालों का मार्गदर्शन कर सकता है और प्रकोप को नियंत्रित करने में मदद कर सकता है।

प्रो. जमील ने सुझाव दिया कि भारत और निम्न तथा मध्यम आय वाले देशों (एलएमआईसी) के लिए बवेरियन नॉर्डिक वैक्सीन के निर्माण और लाइसेंस देने के लिए भारत के वैक्सीन निर्माण शक्ति का इस्तेमाल करना चाहिए। साथ ही भारत के जेनेरिक फार्मा इंडस्ट्री का भी इस्तेमाल करना चाहिए। और भारत और अन्य निम्न और मध्यम आय वाले देशों (एलएमआईसी) के लिए टेकोविरिमैट (एफडीए द्वारा मंजूर की गई दवा) के लाइसेंस और निर्माण पर बल देना चाहिए।

प्रोफेसर जमील ने अंत में कहा, “भविष्य के लिए सबसे अहम तैयारी देश में एक मजबूत और अच्छी तरह से वित्त पोषित संक्रामक रोग अनुसंधान कार्यक्रम है। ऐसा लगता है कि वायरस बढ़ी हुई फ्रीक्वेंसी पर उभर रहा है। हम अनुसंधान के माध्यम से ही नियंत्रित कर सकते हैं।"

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल लेख को नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं-

“Monkeypox Not a Threat to India Currently; Can Quickly Become One”- Shahid Jameel

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