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तीरथ सिंह रावत सरकार के नए मंत्रिमंडल में ज़्यादातर चेहरे पुराने

कोविड वैक्सीनेशन, पर्यटन, रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य हर तरफ सवाल ही सवाल हैं। बहुत कम समय में उन्हें अपनी परफॉर्मेंस दिखानी पड़ेगी और ये तय होगा उनके मंत्रिमंडल, विभाग, सचिव, अफसरों के चयन से।
तीरथ सिंह रावत सरकार के नए मंत्रिमंडल में ज़्यादातर चेहरे पुराने

उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बनने के बाद तीरथ सिंह रावत के पहले कदम के रूप में इंतज़ार उनकी नई कैबिनेट को लेकर था। इससे उनकी चुनावी वर्ष की राजनीति की राह तय होनी है। शुक्रवार 12 मार्च को नई कैबिनेट ने शपथ ग्रहण किया। राज्यपाल बेबीरानी मौर्य की मौजूदगी में 11 विधायकों को मंत्री पद की शपथ दिलाई गई। इनमें सतपाल महाराज, बंशीधर भगत, डॉ हरक सिंह रावत, बिशन सिंह चुफाल, यशपाल आर्य, अरविंद पांडेय, सुबोध उनियाल और गणेश जोशी शामिल हैं।

डॉ धन सिंह रावत, रेखा आर्य और यतीश्वरानंद को राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार के तौर पर कैबिनेट में शामिल किया गया है। इस कैबिनेट की तस्वीर भी त्रिवेंद्र सरकार की कैबिनेट से काफी मिलती जुलती है। सात मंत्रियों को दोबारा मंत्रिमंडल में जगह मिली है। चार नए चेहरे हैं। बंशीधर भगत, बिशन सिंह चुफाल, गणेश जोशी और यतीश्वरानंद। नई कैबिनेट ज्यादा नई नहीं लगती।

मंत्रिमंडल का चुनावी गणित

चुनावी वर्ष में दल-बदल के समीकरणों को देखते हुए भी कैबिनेट को साधने की कोशिश की गई है। तीरथ की कैबिनेट में पांच कांग्रेसी चेहरे हैं। सतपाल महाराज, हरक सिंह रावत, यशपाल आर्य, सुबोध उनियाल और रेखा आर्य जिनका भाजपा और कांग्रेस में आना-जाना लगा रहता है।

राजनीतिक विश्लेषक भूपत सिंह बिष्ट कहते हैं कि हरीश रावत को मैनेज करने के लिए कांग्रेसियों को फिर मोर्चे में रखा गया है। ये पांचो चेहरे हरीश रावत के खिलाफ फोर्स के रूप में इस्तेमाल हो सकते हैं और उनके वोट बैंक में सेंध लगा सकते हैं।

ऩए पुराने चेहरों के राजनीतिक समीकरण भी जटिल हैं। विधानसभा चुनाव में तीरथ सिंह रावत का टिकट कटा था और सतपाल महाराज को पौड़ी के चौबट्टाखाल से टिकट मिला था। हरक सिंह रावत की राजनीति की शुरुआत से ही तीरथ सिंह रावत के धुर-विरोध माने जाते हैं। मसूरी से चार बार के विधायक गणेश जोशी को संभालना भी मुश्किल माना जाता है।

इससे पहले कैबिनेट मंत्री रहे मदन कौशिक को प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष बनाया गया है

शासकीय प्रवक्ता रहे मदन कौशिक को उत्तराखंड भाजपा का अध्यक्ष बनाया गया है। बंशीधर भगत से प्रदेश की कमान लेकर मंत्रिमंडल में जगह दी गई है। हरिद्वार जिले की विधानसभा सीटों से विधायक मदन कौशिक और यतीश्वरानंद का भी छत्तीस का आंकड़ा चलता है। राज्य के कद्दावर नेता बिशन सिंह चुफाल मंत्रिमंडल में आ गए हैं। भूपत बिष्ट बताते हैं कि वह त्रिवेंद्र सिंह रावत से काफी ज्यादा नाराज़ चल रहे थे। उनके ख़िलाफ 11 विधायकों को लेकर अमित शाह और जेपी नड्डा से मिलने दिल्ली गए थे।

तो अब निगाहें विभागों के बंटवारे पर टिकी हैं। त्रिवेंद्र सिंह रावत से ये शिकायत रही कि उन्होंने मुख्यमंत्री रहते हुए स्वास्थ्य, वित्त, गृह, लोक निर्माण विभाग जैसे कई अहम मंत्रालय और विभाग अपने पास रखे। इसलिए उनके अपने विभागों की परफॉर्मेंस बहुत अच्छी नहीं आंकी गई।

मातृशक्ति वाले राज्य में मात्र एक महिला मंत्री

मंत्रिमंडल में लैंगिक समानता दूर-दूर तक नहीं दिखाई देती। रेखा आर्य एक मात्र मंत्री हैं। जबकि पौड़ी के यमकेश्वर से विधायक ऋतु खंडूड़ी को भी मंत्रिमंडल में जगह मिलने के कयास लगाए जा रहे थे। उनकी छवि गंभीर नेता की है। परफॉर्मेंस के लिहाज से भी वह खरी उतरती हैं। पूर्व मुख्यमंत्री बीसी खंडूड़ी की बेटी भी हैं। तीरथ सिंह रावत मुख्यमंत्री बनने के बाद बीसी खंडूड़ी का आशीर्वाद लेने पहुंचे।

भूपत सिंह बिष्ट कहते हैं ऋतु खंडूड़ी अच्छा परफॉर्मेंस दे सकती थीं। मंत्रिमंडल का चुनाव ये दर्शाता है कि मुख्यमंत्री से ज्यादा इसमें संगठन की चली है। वह असंतोष को बढ़ाना नहीं चाहते थे। रेखा आर्य की परफॉर्मेंस भी बहुत अच्छी नहीं रही। अफसरों के साथ उनके बहुत झगड़े हुए। पूर्व मुख्यमंत्री ने मनमुटाव के चलते हरक सिंह रावत के विभाग वापस लिए थे। फिर शपथ ग्रहण का क्रम भी बताता है कि किस को महत्वपूर्ण विभाग मिलेंगे। चार नए मंत्रियों को शासन का अनुभव भी ज्यादा नहीं है।

समान प्रतिनिधित्व का मुद्दा

इससे पहले की कैबिनेट में पूरे राज्य का प्रतिनिधित्व भी नहीं झलकता था। 13 में से 8 ज़िलों से कोई मंत्री नहीं था। पौड़ी जिले और लोकसभा क्षेत्र का पलड़ा भारी था। कुमाऊं की उपेक्षा थी। पौड़ी से तीन, उधम सिंह नगर से 2, हरिद्वार से 1, टिहरी से 1 और अल्मोड़ा से 1 विधायक मंत्रिमंडल में थे। जबकि देहरादून, नैनीताल, उत्तरकाशी, चमोली, रुद्रप्रयाग, पिथौरागढ़, बागेश्वर और चंपावत से कोई विधायक मंत्री नहीं बना।

तीरथ सिंह रावत सरकार की कैबिनेट में पौड़ी से 3, उधमसिंह नगर से 2, देहरादून, नैनीताल, हरिद्वार, टिहरी, पिथौरागढ़ और अल्मोड़ा से एक-एक विधायक को जगह मिली है। पौड़ी का पलड़ा अब भी भारी है। जबकि उत्तरकाशी, चमोली, रुद्रप्रयाग, बागेश्वर और चंपावत के विधायकों में से किसी को मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली।

हरिद्वार कुंभ में महाशिवरात्रि पर नए मुख्यमंत्री ने लिया संतों का आशीर्वाद

तीरथ सिंह रावत की तीन चुनौतियां

मुख्यमंत्री बनने के बाद तीरथ सिंह रावत अपने राजनीतिक गुरू भुवन चंद्र खंडूड़ी से आशीर्वाद ले आए। हरिद्वार कुंभ में महाशिवरात्रि के स्नान पर्व पर साधु-संतों का आशीर्वाद ले आए।

कोविड काल में उनकी पहली चुनौती कुंभ और चारधाम यात्रा को सफल कराना ही होगा। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ये कह चुका है कि उत्तराखंड में वैक्सीनेशन की रफ़्तार धीमी पड़ गई है। महाशिवरात्रि पर 22 लाख से ज्यादा की भीड़ हरिद्वार में जुटी। ऐसे में सोशल डिस्टेन्सिंग का कोई मतलब ही नहीं रहा। साधु-संतों को मास्क पहनाया नहीं जा सका। कोविड के चलते राज्य में पर्यटन और उससे जुड़े लोगों का रोजगार ठप है। जिसे बहाल करना जरूरी है।

गैरसैंण को कमिश्नरी बनाने का फ़ैसला त्रिवेंद्र सिंह रावत पर भारी पड़ा। कुमाऊं और ख़ासतौर पर अल्मोड़ा में असंतोष भी है। अब इस कमिश्नरी का क्या होगा? ये तीरथ सिंह रावत को सोचना है। भूपत सिंह बिष्ट कहते हैं कि कमिश्नरी का फैसला वापस लेने पर जनता में ये संदेश जाएगा कि पहाड़ में राजधानी बनाना नहीं चाहते। गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी के तौर पर स्थापित करने के लिए वहां प्रशासनिक अमले को लाना होगा। इसलिए कमिश्नरी बनाना जरूरी होगा।

बेरोज़गारी इस राज्य का सबसे ज्वलंत मुद्दा हैं। आने वाले चुनाव में ये बड़ा मुद्दा होगा। पिछले चार सालों से पीसीएस की परीक्षाएं नहीं हुईं। फॉरेस्ट गार्डपरीक्षा का पेपर लीक हुआ और फिर दोबारा परीक्षा नहीं करायी गई। स्किल डेवलपमेंट और स्वरोजगार से जुड़ी योजनाएं तो लायी गईं लेकिन बैंकों में जाकर व्यवहारिक धरातल पर वे ध्वस्त हो गईं। कोविड काल में राज्य में वापस लौटे युवा दोबारा पलायन कर गए।

कांटों भरा ताज?

18 मार्च को उत्तराखंड सरकार के कार्यकाल के 4 वर्ष पूरे हो रहे हैं। दिसंबर-जनवरी तक राज्य में आचार संहिता लग जाएगी और अगले चुनाव में प्रवेश होगा। यानी नए मुख्यमंत्री के पास काम करने के लिए एक पूरा साल भी नहीं है।

उससे पहले उन्हें छह महीने के भीतर विधानसभा चुनाव लड़ना होगा। अल्मोड़ा की सल्ट सीट से विधायक रहे सुरेंद्र सिंह जीना की कोविड संक्रमण से मृत्यु हो गई और उऩकी सीट खाली है। कुमाऊं में भाजपा के विपरीत लहर चलने के संकेत मिल रहे हैं। तीरथ सिंह रावत पौड़ी से आते हैं। 2017 के चुनाव में पौड़ी के चौबट्टाखाल से उऩका टिकट कट गया था और सतपाल महाराज इस सीट से चुनाव लड़े। सतपाल महाराज ने ये स्पष्ट कर दिया है कि वो अपनी सीट खाली नहीं करने वाले। वह मंत्रिमंडल में शपथ ले चुके हैं। उधर, बद्रीनाथ से विधायक महेश भट्ट ने नए मुख्यमंत्री के लिए अपनी सीट छोड़ने का न्योता दे दिया है।

तो तीरथ सिंह रावत को छह महीने के भीतर विधानसभा चुनाव लड़ना और जीतना होगा। इसके साथ ही भाजपा की पौड़ी गढ़वाल लोकसभा सीट भी रिक्त हो गई। उसके लिए भी प्रत्याशी चुनना होगा।

भाजपा की अंदरूनी कलह के चलते चंद महीनों के लिए एक नया मुख्यमंत्री लाया गया। जिसका बोझ चुनाव के रूप में आम जनता पर भी पड़ेगा।

चुनाव के लिहाज से बड़े नाजुक समय में आप पूछ सकते हैं कि क्या तीरथ सिंह रावत को कांटों का ताज मिला है?  कोविड वैक्सीनेशन, पर्यटन, रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य हर तरफ सवाल ही सवाल हैं। बहुत कम समय में उन्हें अपनी परफॉर्मेंस दिखानी पड़ेगी और ये तय होगा उनके मंत्रिमंडल, विभाग, सचिव, अफसरों के चयन से। नई मंत्रिमंडल आपने देख ली है।

(लेखिका देहरादून स्थित स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार निजी हैं।)

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