Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

मुंबईः दो साल से वेतन न मिलने से परेशान सफाईकर्मी ने ज़हर खाकर दी जान

“बीएमसी के अधिकारियों ने उन्हें परेशान किया, उनके साथ बुरा व्यवहार किया। वेतन मांगने पर भी वे उस पर चिल्लाते थे।"

मुंबईः दो साल से वेतन न मिलने से परेशान सफाईकर्मी ने ज़हर खाकर दी जान
रमेश परमार के परिवार के सदस्य, साभारः इंडियन एक्सप्रेस

जहर खाने के बाद सफाईकर्मी 27 वर्षीय रमेश परमार की 23 दिसंबर को मौत हो गई। मौत से दो दिन पहले बीएमसी के गोरेगांव वेस्ट वार्ड ऑफिस में चूहे का जहर खा लिया था। बीएमसी के सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट विभाग में पिछले दो साल से वे कार्यरत थे और इन दो सालों में उन्हें एक महीने का भी वेतन नहीं मिला था। उन्हें पिता की जगह पर नौकरी मिली थी और पिछले करीब दो साल से महामारी में काम करते हुए वे किसी तरह अपना गुजारा कर रहे थे। एक बार भी वेतन न मिलने के कारण उन्होंने आत्महत्या का रास्ता चुना और मौत को गले लगा लिया।

इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए रमेश परमार के चचेरे भाई कहते हैं, “बीएमसी के अधिकारियों ने उन्हें परेशान कियाउनके साथ बुरा व्यवहार किया। वेतन मांगने पर भी वे उस पर चिल्लाते थे।"

परमार की मौत के बाद बीएमसी ने तत्काल राहत के तौर पर एक लाख रुपये का चेक जारी कर दिया। बीएमसी द्वारा की गई प्रारंभिक जांच से पता चला है कि परमार को अधिकारियों की लापरवाही के कारण वेतन नहीं मिला था। जांच के बाद तीन अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया।


ज्ञात हो कि मुंबई में रोजाना करीब 7,000 मीट्रिक टन कचरा निकलता है। बीएमसी में परमार जैसे लगभग 31,000 सफाईकर्मी हैं जो इस कचरे के प्रबंधन का काम करते हैं। इनमें स्वीपरकचरा लोड करने वालेमुकदम (जो चेक करते हैंऔर अन्य प्रकार के कर्मचारी हैं।


परमार ने 10वीं तक मुंबई के एक गुजराती माध्यम के स्कूल में पढ़ाई की थी। वह और उनके छोटे भाई कल्पेश जोगेश्वरी पूर्व में वेस्टर्न एक्सप्रेस हाईवे से सटी दलित बहुल बस्ती जनता कॉलोनी में किराए के मकान में रहते थे। उनके माता-पिता दोनों का निधन हो चुका है।


परमार के पिता जगदीश परमार ने लगभग 30 वर्षों तक एसडब्ल्यूएम विभाग में सफाईकर्मी के रूप में काम किया था। सितंबर, 2019 को 54 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो गई थी। वे इस समय तक गोरेगांव इलाके की एक बाढ़ वाली गली में काम करते रहे थे। एसडब्ल्यूएम विभाग के सेवा नियम के अनुसार काम के दौरान मरने वाले कर्मचारी की जगह पर उनके परिवार के एक सदस्य को नियुक्त करने का प्रावधान है और परमार को सितंबर, 2019 को उनके पिता के स्थान पर नौकरी मिली थी।


आंशिक रूप से विकलांग परमार को सबसे पहले गोरेगांव इलाके में झाडू लगाने का काम दिया गया था। हालांकिवे इस कार्य में अक्षम रहे और फिर उन्हें एसडब्ल्यूएम कार्यालय में तैनात कर दिया गया।


परमार की बड़ी बहन शीतल कहती हैं, “कोविड के दौरानरमेश नियमित रूप से कार्यालय जाता था। जब पिछले साल (लॉकडाउन के दौरानट्रेनें बंद हो गई थीं तो वह घर से ऑफिस (लगभग किमीपैदल जाते थे।”


बीएमसी द्वारा की गई जांच के अनुसार, 31 अगस्त, 2020 को पी-साउथ वार्ड के एक ऑडिट अधिकारी ने उनके सर्विस रिकॉर्ड से संबंधित कुछ सवाल उठाए। इन मुद्दों को नहीं सुलझाया गया और परमार अपने वेतन का इंतजार करते रहे। उन्हें 28,000 रुपये प्रति माह देने की व्यवस्था थी। परमार पी-साउथ वार्ड में कार्यरत थे।


परिवार का कहना है कि परमार अपने पिता के प्रॉविडेंट फंड जैसे बकाया सर्विस राशि से भी परेशान थे। नियम के अनुसार परमार को ये पैसा मिलना चाहिए था क्योंकि उनकी मां जीवित नहीं हैबड़ी बहन शीतल की शादी हो चुकी है और वह अपने भाई से बड़े थे।


शीतल कहती है, “दो साल में हमारे पिता के सर्विस फंड को क्यों नहीं जारी किया गयाजब भी रमेश ने पिता की फाइल को अपडेट करने को कहा तो अधिकारियों ने उन्हें कहा कि यह प्रक्रिया में है... वे यह भी कहते रहे कि उनकी सर्विस फाइल वरिष्ठ अधिकारियों को भेज दी गई है। हाल ही में उन्हें पता चला कि इस फाइल पर कुछ भी नहीं किया गया है। जिस दिन उन्होंने जहर पियाउस दिन भी उनकी फाइल की स्थिति के बारे में पूछा था।


परमार के चचेरे भाई महेंद्र कहते हैं, "कई बार वह कार्यालय में रोया था और अधिकारियों से कम से कम अपने पिता का बकाया देने का अनुरोध किया था।"


निलंबित किए गए अधिकारियों में प्रशासनिक अधिकारी अनीता नाइकक्लर्क पंकज खिलारे और हेड क्लर्क समीरा मांजरेकर शामिल हैं।


सफाईकर्मियों के एक संघ कचरा वाहतुक श्रमिक संघ के मिलिंद रानाडे ने कहा, “हमने कुछ अन्य कर्मचारियों के बकाया के भुगतान के लिए एसडब्ल्यूएम विभाग में शिकायत दर्ज की है …।”


एसडब्ल्यूएम की उप नगर आयुक्त डॉ संगीता हसनाले ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि परमार के पिता के सभी बकाया राशि का भुगतान एक सप्ताह में कर दिया जाएगा। हसनाले ने कहा, “बीएमसी की ऑडिट टीम उनके सर्विस डॉक्यूमेंट की जांच कर रही है। नागरिक निकाय सफाईकर्मियों से संबंधित मुद्दों को हल करने के लिए बदलाव करेगा।”


परमार की मृत्यु के बाद भुगतान और वेतन में देरी को लेकर सफाई कर्मियों द्वारा विरोध प्रदर्शन किया गया था।


महेंद्र का कहना है कि जहर खाने के बाद उसने शीतल को फोन किया था। उसने हमें उसकी तलाश करने के लिए फोन किया था। कुछ घंटों की खोज के बाद हमने उसे जोगेश्वरी रेलवे स्टेशन के पास बेहोश पड़ा पाया।


परमार को पहले जोगेश्वरी पूर्व में स्थित बालासाहेब ठाकरे ट्रॉमा सेंटर ले जाया गया। उनकी हालत बिगड़ने पर डॉक्टरों ने उसे परेल के केईएम अस्पताल ले जाने की सलाह दी, जहां उसकी मौत हो गई।


तीनों अधिकारियों को जेल भेजने की मांग करते हुए शीतल कहती हैं, “उम्मीद खत्म होने के बाद मेरे भाई ने मौत का रास्ता चुना। वह भुगतान में देरी के कारण टूट गया था।”

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest