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मुंबई : आरे कॉलोनी में पेड़ों की कटाई को लेकर हो रहे प्रदर्शन की वजह क्या है?

मुंबई की आरे कॉलोनी में पेड़ों की कटाई को लेकर हो रहे प्रदर्शन के बीच शनिवार को धारा 144 लागू कर दी गई है और विरोध कर रहे लोगों को गिरफ़्तार किया जा रहा है।
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Image courtesy: Bharatvarsh

मुंबई: मुंबई पुलिस ने आरे कॉलोनी में पेड़ों की कटाई को लेकर हुए प्रदर्शन के बीच शनिवार सुबह कॉलोनी और उसके आसपास के इलाकों में दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 144 लागू कर दी, जिसके बाद 29 लोगों को गिरफ्तार भी किया गया है। पुलिस ने इलाके की घेराबंदी कर ली है और किसी को वहां आने की अनुमति नहीं है।

अधिकारी ने बताया कि अप्रिय घटनाओं को रोकने के लिए अतिरिक्त पुलिस कर्मियों को भी वहां तैनात किया गया है। पुलिस अधिकारी ने बताया कि 29 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। इनमें से छह महिलाएं हैं। इनमें से कई ने मौके पर तैनात आरे पुलिस के साथ हाथापाई की थी। अधिकारियों ने बताया कि पुलिस ने शुक्रवार रात से अभी तक 38 प्रदर्शनकारियों के खिलाफ भारतीय दंड विधान (आईपीसी) की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया है।

एक अन्य अधिकारी ने बताया कि पेड़ों की कटाई के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे 60 से अधिक लोगों को हिरासत में लिया गया था। हिरासत में लिए गए लोगों में शिवसेना की प्रियंका चतुर्वेदी भी शामिल हैं।

हाईकोर्ट द्वारा याचिका ख़ारिज करने के बाद प्रदर्शन तेज़

दरअसल शुक्रवार को बंबई हाईकोर्ट ने उत्तरी मुंबई के हरित क्षेत्र में मेट्रो की पार्किंग बनाने के लिये पेड़ों की कटाई के खिलाफ दायर चार याचिकाओं को ख़ारिज कर दिया था। इसके कुछ घंटों बाद मुंबई मेट्रो रेल निगम लिमिटेड (एमएमआरसीएल) ने देर रात पेड़ों की कटाई शुरू कर दी।

एमएमआरसीएल द्वारा पेड़ों की कटाई शुरू करते ही सैकड़ों पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन कर उन्हें रोकने की कोशिश की। मुंबई पुलिस के एक प्रवक्ता ने कहा, ‘हमने आरे कॉलोनी, गोरेगांव नाके और उसके आसपास के इलाकों में सीआरपीसी की धारा 144 लगा दी है।’

उन्होंने बताया कि आईपीसी की धारा 358, 332, 143 और 149 के तहत 38 प्रदर्शनकारियों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। अधिकारियों ने बताया कि पार्किंग बनाने के लिए की जा रही पेड़ों की कटाई के खिलाफ प्रदर्शन करने सैकड़ों लोग यहां एकत्रित हुए थे। भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस को बल का प्रयोग भी करना पड़ा।

उन्होंने बताया कि स्थिति बिगड़ने पर पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लेना शुरू किया। पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने प्रशासन की आलोचना करते हुए दावा किया कि अब तक लगभग 200 पेड़ काटे जा चुके हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि मेट्रो निगम दस अक्टूबर से पहले काम खत्म करना चाहता है। इसी दिन राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) में मामले की सुनवाई होनी है।

पर्यावरण कार्यकर्ता स्टालिन डी ने कहा, ‘एनजीटी 10 अक्टूबर को इस मामले पर सुनवाई करेगा और हमें वहां से कुछ राहत मिलने की उम्मीद है। लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि वे सुनवाई से पहले ही पेड़ों की कटाई का काम खत्म करना चाहते हैं।’

हाईकोर्ट ने क्या कहा?

इससे पहले बंबई हाईकोर्ट ने आरे कॉलोनी को वन क्षेत्र घोषित करने और वहां पेड़ों की कटाई संबंधी बीएमसी का एक फैसला रद्द करने से इंकार करते हुए शुक्रवार को कहा कि पर्यावरणविद ‘नाकाम’ रहे हैं। बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) ने हरित क्षेत्र में मेट्रो कार शेड के लिए 2,600 पेड़ों को काटने की मंजूरी दी थी।

अदालत ने बीएमसी के वृक्ष प्राधिकरण की मंजूरी के खिलाफ याचिका दायर करने वाले शिवसेना पार्षद यशवंत जाधव पर 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया। जाधव खुद भी वृक्ष प्राधिकरण के सदस्य हैं। मुख्य न्यायाधीश प्रदीप नंदराजोग और न्यायमूर्ति भारती डांगरे की पीठ ने गोरेगांव की आरे कॉलोनी के संबंध में एनजीओ और पर्यावरण कार्यकर्ताओं द्वारा चार याचिकाओं को ख़ारिज कर दिया। गोरेगांव महानगर का प्रमुख हरित क्षेत्र है।

खंडपीठ ने आरे कॉलोनी को हरित क्षेत्र घोषित करने के संबंध में गैर सरकारी सगठन वनशक्ति की याचिका भी ख़ारिज कर दी। अदालत ने कार्यकर्ता जोरु बथेना की याचिका को भी ख़ारिज कर दिया जिसमें आरे कॉलोनी को बाढ़ क्षेत्र घोषित करने का अनुरोध किया गया था और मुंबई मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन को कार शेड बनाने के लिए आरे कॉलोनी में 2,656 पेड़ काटने की बीएमसी की मंजूरी को भी चुनौती दी गई थी।
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अदालत ने कहा कि पर्यावरणविदों ने इसलिए याचिकाएं दायर की क्योंकि कानून के तहत अपनायी जाने वाली प्रक्रिया से उनका संपर्क खत्म हो चुका है। घड़ी की सुइयों को वापस नहीं घुमाया जा सकता। हम कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते क्योंकि याचिकाकर्ताओं को अब उच्चतम न्यायालय जाना है।

अदालत ने कहा कि वृक्ष प्राधिकरण की निर्णय लेने की प्रक्रिया निष्पक्ष, पारदर्शी और तर्क पर आधारित थी। पर्यावरणविद ना केवल धारा के विरूद्ध जा रहे थे बल्कि गुण-दोष के आधार पर भी नाकाम रहे।

अदालत ने उल्लेख किया कि इस मुद्दे पर वृक्ष प्राधिकरण के सदस्यों की राय में कोई भिन्नता नहीं थी कि क्या पेड़ों को प्रत्यारोपित किया जा सकता है या नहीं। अदालत ने एमएमआरसीएल के वकील आशुतोष कुंभकोनी की इन दलीलों पर भी ध्यान दिया कि प्राधिकरण ने संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान में 20,900 पेड़ लगाए हैं।

अदालत ने कहा, 'यह मामला उच्चतम न्यायालय और राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के समक्ष लंबित है। इसलिए हम याचिका को एक जैसा मामला होने के कारण ख़ारिज कर रहे हैं, न कि गुण-दोष के आधार पर।'

क्या है आरे कॉलोनी का पूरा विवाद?

दरअसल मुंबई के जिस इलाके में पेड़ काटने के खिलाफ विरोध हो रहा है उसे 'आरे मिल्क कॉलोनी' के नाम से भी जाना जाता है। डेयरी उद्योग को बढ़ावा देने के लिए इस इलाके को देश की आजादी के कुछ समय बाद ही बसाया गया था। 4 मार्च 1951 को पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने पौधारोपण करने के साथ आरे कॉलोनी की नींव रखी थी।

पेड़ों से ढका यह इलाका 3,166 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है। धीरे-धीरे आरे में पेड़ों की संख्या बढ़ी और बाद में यह इलाका संजय गांधी नेशनल पार्क से जुड़ गया। इसे बाद में आरे जंगल, छोटा कश्मीर, मुंबई का फेफड़ा जैसे नामों से भी पहचान मिली। बताया जाता है कि बहुत सारी फिल्मों की शूटिंग भी इसी इलाके में होती है।

इस इलाके पर खतरा तब शुरू हुआ जब मुंबई में मेट्रो ने दस्तक दी। साल 2014 में वर्सोवा से घाटकोपर तक मेट्रो की शुरुआत हुई। इसी के साथ मेट्रो का जाल बढ़ाने की बात होने लगी और मेट्रो को कार पार्किंग के लिए जगह की जरूरत महसूस हुई। इसके लिए आरे में करीब 2000 से ज्यादा पेड़ काटकर मेट्रो के लिए हजारों करोड़ की परियोजना शुरू करने की बात हुई।

इसे लेकर हर तरफ पेड़ों को काटे जाने का विरोध होने लगा। पर्यावरण संरक्षण के पक्ष में काम करने वालीं कई संस्थाओं और लोगों ने इसके खिलाफ आवाज उठाई लेकिन वन विभाग की ओर से कहा गया कि आरे का इलाका कोई जंगल नहीं है। जब इसकी स्थापना हुई थी तो इसे व्यावसायिक उद्देश्य के लिए इस्तेमाल करने की ही योजना बनाई गई थी। बीएमसी ने साल 2019 में मुंबई मेट्रो रेल कॉरपोरेशन को करीब ढाई हजार पेड़ काटने की इजाजत दे दी।

इसके बाद हाईकोर्ट में सितंबर महीने में याचिका दायर की गई कि इस इलाके के पेड़ नहीं काटे जाएं और इसे पर्यावरण के लिए महत्वपूर्ण इलाका घोषित किया जाए। अक्टूबर महीने में हाईकोर्ट की ओर से यह कहते हुए याचिका ख़ारिज कर दी गई कि आरे जंगल नहीं है। अब आरे को बचाने के खिलाफ हाईकोर्ट में पुनर्विचार याचिका या फिर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की जा सकती है।

रवीना टंडन, श्रद्धा कपूर, स्वरा भास्कर और लता मांगेशकर समेत तमाम फिल्मी कलाकारों ने भी पेड़ काटे जाने का विरोध किया है। वहीं, मेट्रो के समर्थन में ट्वीट करने के चलते अमिताभ बच्चन को आलोचना भी झेलनी पड़ी थी।

दरअसल कुछ दिनों पहले अमिताभ बच्चन ने ट्वीट किया था, ‘मेरे एक मित्र को आपात चिकित्सकीय मदद की आवश्यकता थी। उसने अपनी कार के बजाए मेट्रो से जाने का फैसला किया... वह बहुत प्रभावित होकर लौटा... उसने कहा कि यह अधिक तेज, सुविधाजनक और सबसे बढ़िया है... प्रदूषण के लिए समाधान... और पेड़ लगाएं... मैंने अपने बगीचे में पेड़ लगाए थे... क्या आपने लगाए?’

इसके बाद मुंबई मेट्रो रेल कॉरपोरेशन लिमिटेड के प्रबंध निदेशक अश्विनी भिड़े ने मेट्रो परियोजना की प्रशंसा करने के लिए अमिताभ बच्चन की सराहना की। उन्होंने ट्वीट किया, ‘बच्चन साहब, मेट्रो की महत्ता संक्षिप्त में बताने के लिए धन्यवाद।’

इसके बाद अमिताभ बच्चन का विरोध शुरू हो गया। अमिताभ बच्चन के घर के बाहर प्रदर्शन भी किया। इस दौरान प्रदर्शनकारियों ने ‘आरे को बचाओ’ और ‘बगीचों से जंगल नहीं बनते’ जैसे नारों वाले बैनर और पोस्टर पकड़ रखे थे।

राजनीति भी हुई तेज़

आरे जंगल को लेकर हो रही कार्रवाई पर राजनीति भी तेज हो गई है। सबसे बड़ी बात यह है कि शिवसेना भी इस मुद्दे पर राज्य सरकार के खिलाफ है। वहीं, विपक्षी दल ने भाजपा-शिवसेना गठबंधन वाली राज्य सरकार पर निशाना साध रहे हैं।

शिवसेना नेता आदित्य ठाकरे ने भी एमएमआरसीएल की ताजा कार्रवाई की आलोचना करते हुए कहा कि वह ‘धूर्तता और तेजी से’ एक पारिस्थितिकी तंत्र को काट रहा है जो कि ‘शर्मनाक और घिनौना’ है।

महाराष्ट्र विधानसभा में वर्ली से अपनी किस्मत आज़मा रहे ठाकरे ने कहा, ‘मुंबई मेट्रो3 (चरण) जिस ताकत के साथ एक पारिस्थितिकी तंत्र को धूर्तता और तेजी से काट रही है, वह शर्मनाक और घिनौना है। क्यों ना इन्हें पीओके में तैनात कर पेड़ों के बजाए आतंकवादी ठिकाने तबाह करने का काम दिया जाए?’

ठाकरे ने ट्वीट किया,‘मेट्रो3 परियोजना का काम गर्व के साथ पूरा किया जाना चाहिए। मुंबई मेट्रो3 का इसे रात के अंधेरे में, कड़ी सुरक्षा के बीच धूर्तता से करना शर्मनाक है...’

इस बीच, विपक्षी दल राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी (राकांपा-NCP) और कांग्रेस ने भी शिवसेना और भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि भगवा दल आरे कॉलोनी में पेड़ों की रक्षा करने में नाकाम रहे हैं। ठाकरे पर तंज कसते हुए राकांपा ने कहा कि ‘फर्जी पर्यावरण प्रेमी’ तब कहां थे जब पेड़ों को काटा जा रहा था।

राकांपा के प्रवक्ता नवाब मलिक ने ट्वीट किया, 'आरे में पेड़ों की कटाई कुछ नहीं बल्कि मुंबई वासियों को लाचार बनाकर मार डालना है। शिवसेना पिछले 25 साल से परेशानी का कारण बनी हुई है। अब, वह भाजपा के साथ गठबंधन करके आम मुंबई वासियों को तकलीफ दे रहे हैं।'

मलिक ने ठाकरे और भाजपा को टैग करते हुए लिखा, 'कहां हैं वे पर्यावरण प्रेमी जो पेड़ों की कटाई के बीच प्लास्टिक पर प्रतिबंध का समर्थन कर रहे हैं।'

राकांपा के एक और नेता धनंजय मुंडे ने पेड़ों की 'हत्या' की निंदा करते हुए राज्य सरकार पर इसके खिलाफ प्रदर्शन करने वाले लोगों की आवाज़ को 'दबाने' का आरोप लगाया। राकांपा की सांसद सुप्रिया सुले ने सरकार पर अड़ियल रवैया अपनाने का आरोप लगाते हुए कहा कि मुख्यमंत्री कार्यालय से इसी की ही उम्मीद थी।

सुले ने ट्वीट किया, ‘आरे कॉलोनी की पेड़ों की कटाई पर अड़ियल रवैया अपना रही है। एक ओर जलवायु परिवर्तन पर बात करना और दूसरी ओर रात को चुपचाप पेड़ काटना सही नहीं है। मुख्यमंत्री कार्यालय से मुंबई हरित क्षेत्र को बचाने के लिए सामने आने की बजाय यही करने की उम्मीद थी।’

दूसरी ओर कांग्रेस ने शिवसेना से पूछा कि क्या उसके लिये भाजपा के साथ गठबंधन, पेड़ों को बचाने से ज्यादा महत्वपूर्ण है। महाराष्ट्र कांग्रेस के प्रवक्ता सचिन सावंत ने ट्वीट किया, 'शिवसेना यही समय है। आप सरकार में हैं, इसे बंद करा सकते हैं। क्या महायुति (महागठबंधन) पेड़ों के बड़े नुकसान से अधिक महत्वपूर्ण है?'

सावंत ने ठाकरे पर हमला करते हुए पूछा, ‘केम छो आरेफॉरेस्ट।’ दरअसल आदित्य ठाकरे ने वर्ली इलाके में बैनर लगाए हैं जिसपर लिखा है ‘केम छो वर्ली?’ आम आदमी पार्टी की प्रवक्ता प्रीति शर्मा मेनन ने भी पेड़ों की कटाई को ‘आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन’ बताया है।

कांग्रेस नेता मिलिंद देवड़ा ने भी इस मुद्दे को लेकर राज्य सरकार पर निशाना साधा। उन्होंने ट्वीट में लिखा, 'मुंबई में पेड़ काटना अपने फेफड़ों में चाकू गोदने जैसा है। शहर जब अपनी कोस्टलाइन और ग्रीन कवर खत्म करता है तो वह कयामत का दिन करीब बुला रहा है।'

स्वराज इंडिया के अध्यक्ष योगेंद्र यादव ने भी ट्वीटकर विरोध जताया। उन्होंने लिखा, 'ऐसे समय में जब जलवायु संकट साफ नजर आ रहा है। महाराष्ट्र सरकार पेड़ गिराने पर जोर दे रही है। यह बहुत ही चिंताजनक बात है।' शिवसेना नेता संजय राउत ने भी एक कार्टून ट्वीट कर विरोध जताया।

(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)

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