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मध्य प्रदेश: मुश्किल दौर से गुज़र रहे मदरसे, आधे बंद हो गए, आधे बंद होने की कगार पर

जब से एनडीए सरकार ने देश चलाने की जिम्मेदारी संभाली है तब से ही देश के मदरसों को केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर से ‘स्कीम फॉर प्रोवाइडिंग क्वालिटी एजुकेशन मदरसा’ से मिलने वाला अनुदान बंद कर दिया गया।
Madarasa
मदरसों के सामने आईं आर्थिक चुनौतियाँ

मध्य प्रदेश के करीब 1700 मदरसे इन दिनों बहुत मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं। इस बार केंद्र में जब से एनडीए सरकार ने देश चलाने की जिम्मेदारी संभाली, तब से ही देश के मदरसों को केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर से स्कीम फॉर प्रोवाइडिंग क्वालिटी एजुकेशन मदरसा से मिलने वाला अनुदान बंद कर दिया गया। इसका असर यह हुआ कि मध्यप्रदेश में संचालित होने वाले अधिकांश मदरसे बंद हो गए या बंद होने की कगार पर हैं। केंद्र से अनुदान बंद होने से मध्यप्रदेश सरकार ने भी मदरसा अनुदान से अपनी नजर फेर ली है। प्रदेश के मदरसों में तालीम हासिल करने वाले करीब दो लाख बच्चे शिक्षा से वंचित हो रहे हैं। उनकी पढ़ाई छूट रही है, जो राइट टू एजुकेशन के कानून का उल्लंघन है। 

दरअसल जब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी और अर्जुन सिंह केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय का भार संभाल रहे थे, तब उन्होंने मदरसों के लिए विशेष रूप से स्कीम फॉर प्रोवाइडिंग क्वालिटी एजुकेशन मदरसा (एसपीक्यूईएम) योजना शुरू की थी। जब अटल बिहारी वाजपेई प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने भी इस स्कीम को बहुत अच्छी तरह चलाया। यूपीए एक और दो में भी यह स्कीम सुचारू रूप से चली। लेकिन जब 2014 में पुनः एनडीए की सरकार ने सत्ता संभाली, तब से मदरसों को मिलने वाला अनुदान बिना किसी सूचना और जानकारी के बंद कर दिया गया। इस अनुदान में प्रति मदरसा करीब 72 हजार रुपए की राशि दी जाती है, जिसमें शिक्षकों का मानदेय के साथ ही मदरसों का सारा खर्चा चलता है। इसमें केंद्र और राज्य सरकार का 60 और 40 का अनुपात होता है। 

आधुनिक मदरसा कल्याण संघ के प्रदेश महासचिव मोहम्मद शोएब कुरैशी बताते हैं कि केंद्र सरकार ने वर्ष 2015 से अपने हिस्से की राशि जारी नहीं की है। नतीजतन राज्य सरकार ने भी अपने हिस्से की राशि रोक दी है। करीब 7 सालों से रुके अनुदान के चलते प्रदेश भर में मदरसा संचालकों को मुश्किल दौर से गुजरना पड़ रहा है। अब तो सरकार की उदासीनता के चलते हालत यह हो गई है कि मदरसे में पढ़ाने वाले 4000 से अधिक शिक्षक आर्थिक तंगी के कारण जीवन यापन के लिए ट्यूशन क्लासेस से लेकर मजदूरी तक करने लग गए हैं। अब जब पढ़ाने वाले शिक्षक बिना तनख्वाह के पढ़ाएंगे, तो उनका पढ़ाने में कितना मन लगेगा। लिहाजा छात्रों की संख्या में लगातार गिरावट आने लगी। इस तरह मदरसे बंद होते जा रहे हैं।

मदरसों में धार्मिक शिक्षा के साथ दी जाती है सामान्य शिक्षा

आधुनिक मदरसा कल्याण संघ के प्रमुख प्रोफेसर मोहम्मद हलीम खान कहते हैं कि मदरसों में छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के साथ ही धार्मिक शिक्षा भी दी जाती है। उन्होंने कहा, मदरसों में भी सामान्य स्कूलों की तरह हर विषय पढ़ाया जाता है, सिर्फ यहां कुरान और हदीस भी साथ में पढ़ाया जाता है, जिससे छात्र अपने धर्म के बारे में ठीक से जान सके। यानी मदरसों में धार्मिक शिक्षा के साथ सामान्य शिक्षा भी छात्रों को दी जाती हैं, ताकि वे अन्य बच्चों के साथ प्रतियोगिता में शामिल हो सके। लगता है सरकार को यह मंजूर नहीं। प्रो. हलीम ने कहा कि मदरसों में अक्सर कमजोर वर्ग के छात्र ही पढ़ने आते हैं, उनकी पढ़ाई छूट रही है। एक तरफ शिक्षा के अधिकार कानून के तहत अगर मां-बाप बच्चे को स्कूल न भेजे, तो उन पर कार्रवाई होती है, दूसरी तरफ जब सरकार ही मदरसों को बंद करने पर आमादा है, तो उनसे कौन सवाल पूछेगा! हम लोग अनुदान न मिलने को लेकर इंदौर हाईकोर्ट भी गए हैं, वहां पिटीशन दाखिल किया है। मुझे उम्मीद है हाईकोर्ट से हमें न्याय मिलेगा और बच्चों की पढ़ाई जारी रहेगी। प्रो. हलीम खान ने बताया, मदरसों में पढ़ाने वालों को बहुत मामूली मानदेय दी जाती है। प्रति शिक्षक सिर्फ 6 हजार रुपए, वह भी न मिलें, तो फिर वे कैसे पढ़ाएंगे। हमारे पास अनुदान के अलावा मदरसों के खर्चे के लिए पैसे लाने का दूसरा कोई जरिया नहीं है। चंदा करके लम्बे समय तक मदरसा चलाना मुश्किल हो रहा है।

अपने ही मुल्क में हो गए बेगाने

हाफिज जुनैद अहमद कहते हैं कि मानदेय बंद होने से परिवार का गुजारा मुश्किल हो गया है। किराए के घर पर रहने वालों को मस्जिद में पनाह लेनी पड़ रही है। मकान मालिक कब तक बर्दाश्त करेगा। मां-बहनों, बच्चों के इलाज का खर्च हैं। कोरोना ने तो और कबाड़ा कर रखा है। मुफ्त में इलाज की सुविधा पर उन्होंने कहा, साहब हर जगह भेदभाव के शिकार होते है हम लोग। अपने ही मुल्क में बेगानों की तरह जी रहे हैं। हम किसानों की तरह सड़क पर आंदोलन भी नहीं कर सकते, तुरंत हमें आतंकवादी साबित कर जेल में डाल दिया जाएगा। हम लोग केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री सभी से मिले, परंतु समस्या का समाधान नहीं निकला। इससे ज्यादा हम लोग और क्या कर सकते हैं। मीडिया ही एक उम्मीद बची है, शायद हमारी परेशानी मीडिया के जरिए ऊपर तक पहुंचे और हमारे साथ न्याय हो। मदरसा बहुत गरीब बच्चों के लिए शिक्षा का जरिया है।सरकार से यही कहना चाहते हैं कि बच्चों से शिक्षा का हक मत छीनो। उन्होंने आगे कहा “कोरोना में कितने अपने बिना इलाज के अल्लाह को प्यारे हो गए। क्योंकि हमारे पास इलाज के लिए पैसे नहीं थे। जुनैद अहमद ने एक चौकाने वाली बात यह बताई कि माली हालत खराब होने के चलते बहुत लोगों को अपना घर तक बेचना पड़ रहा है। उन्होंने कहा परिवार का खर्चा निकालने के लिए अब यही कर रहे हैं।

किराए के भवन वाले मदरसे हो चुके हैं बंद

आधुनिक मदरसा कल्याण संघ के प्रदेश महासचिव मोहम्मद शोएब कुरैशी बताते हैं कि अनुदान न मिलने की वजह से उन मदरसों की फजीहत ज्यादा हो गई, जो किराए के भवन में संचालित हो रहे थे। वे प्रायः बंद ही हो गए। इसके अलावा शिक्षकों को मानदेय अदा न कर पाने से पढ़ने और पढ़ाने वाले शिक्षकों का रुझान कम हुआ। शिक्षकों को मानदेय नहीं, यात्रा भत्ता नहीं, कोई सुविधा नहीं, खाली पेट कब तक पढ़ाएंगे। लिहाजा एक के बाद एक पढ़ाना छोड़ रहे हैं। हम लोग अपनी समस्या को लेकर केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी साहब से मिले, उसका भी कोई परिणाम नहीं निकला। सबसे अफसोस की बात यह है कि बच्चों का भविष्य प्रभावित हो रहा है। यहां तक कि लॉकडाउन के समय मध्यान्ह भोजन की राशि भी अन्य स्कूलों के बच्चों की तरह मदरसों के बच्चों के खाते में नहीं आई। इसे लेकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र भी लिखा। परंतु सरकार की तरफ से कोई पहल नहीं हुई। भूख तो सभी बच्चों को समान रूप से लगती है। हम लोग पत्र लिखते-लिखते थक चुके हैं। बहुत से शिक्षक तो पढ़ाना छोड़कर किराने का दुकान खोलकर बैठ गए।

शोएब ने कहा, मदरसों के बारे में सरकार जानकारी जरूर मांगती है। पिछले दिनों संचालित उर्दू मदरसों को मिलने वाले शासकीय अनुदान का संपूर्ण ब्यौरा मांगा गया। जिसमें मदरसों को कितना अनुदान प्राप्त हो रहा है, पढ़ाने वालों के पते, संपर्क सूत्र, पदस्थापना आदि का पूर्ण विवरण मांगा जाता है। अल्पसंख्यक समुदाय के बच्चों के लिए किए गए कार्यों का भी ब्यौरा मांगा जाता है। लेकिन हमारी तरफ से जो पत्र लिखे जाते हैं, उसका जवाब नहीं आता।

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