Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

मुज़फ्फ़रनगर की किसान महापंचायत उत्तर प्रदेश चुनाव में बन सकती है भाजपा के लिए मुसीबत

जाट-मुस्लिम एकता एवं आक्रामक तेवर अपनाए विपक्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की संभावनाओं को धूमिल कर सकते हैं।
muzaffarnagar mahapanchayat

उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में 5 सितम्बर को “अल्ला-हू-अकबर” और “हर हर महादेव”, के जयकारे के बीच हुई किसान महापंचायत में प्रदेश की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार के खिलाफ गांव-जवार के आक्रोश का लाभ उठाने और उसके खिलाफ विभिन्न जातियों एवं धार्मिक समुदायों के किसानों को एकजुट हो जाने मांग की गई।

2013 में हुए साम्प्रदायिक दंगों से दहल गए इस शहर में आयोजित किसान महापंचायत मुस्लिम एवं जाटों को एकजुट कर सकती है और अगले साल फरवरी में होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए बड़ी मुश्किल खड़ी कर सकती है। 

पश्चिम उत्तर प्रदेश के इस जिले में संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले हुई महापंचायत में लाखों किसानों ने शिरकत की थी। संयुक्त मोर्चा, जो 40 किसान संगठनों का एक मुख्य संगठन है, जिसके तहत किसान केंद्र सरकार से तीन विवादस्पद कृषि कानूनों को रद्द करने एवं पैदावार पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की वैधानिक गारंटी देने की मांगों को लेकर दिल्ली की सीमा पर पिछले वर्ष से ही प्रदर्शन कर रहे हैं, उसने राज्य की सत्ता से योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार को उखाड़ फेंकने की शपथ ली है।

राकेश टिकैत ने किसानों द्वारा महापंचायत में दो धार्मिक समुदायों के नारे लगने के बारे में कहा, “टिकैत साहिब के समय में भी किसानों की ऐसी बैठकों में ‘अल्लाहू अकबर’ और ‘हर हर महादेव’ के नारे लगा करते थे। हम उस रवायत को जिंदा करना चाहते हैं।” राकेश भारतीय किसान यूनियन के नेता एवं किसानों के दिग्गज नेता महेन्द्र सिंह टिकैत के छोटे बेटे हैं। 

किसान महापंचायत के आयोजकों ने अपने को किसी भी राजनीतिक दल से अलग करते हुए ‘मिशन उत्तर प्रदेश’ की बुनियाद रखी और कहा कि किसानों, युवाओं, कारोबारियों, कार्यकर्ताओं एवं देश को “बचाने” के लिए ऐसी बैठकें चुनाव के पहले पूरे सूबे में आयोजित की जाएंगी। 

ऐसी संभावना है कि तीन कृषि कानूनों के विरुद्ध जारी आंदोलन उत्तर प्रदेश में भी चुनाव का एजेंडा तय करने जा रहा है, जहां विधानसभा की कुल 403 सीटें हैं और जो लोक सभा में सबसे अधिक 80 प्रतिनिधि भेजता है। 

यह पूछने पर कि क्या ऐसी बैठकें विधानसभा चुनाव परिदृश्य पर भी असर डालेंगी, राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी/रालोद) के तीन स्थानीय नेताओं, जिन्होंने पूरे दिन चली महापंचायत में भाग लिया था ने कहा, “इंतजार करें, अभी कुछ भी कहना जल्दीबाजी होगी।” उनमें से दो मेरठ गांव के एक पूर्व एवं एक मौजूदा प्रधान हैं, जो सरकार के खिलाफ अधिक मुखर नहीं थे सिवाए अपने स्थानीय विधायक के प्रति विरोध जताने एवं गन्ने के मूल्य की समीक्षा न किए जाने से अपनी नाराजगी जताने के।

तीनों रालोद नेताओं का कहना था कि अगर उत्तर प्रदेश सरकार चुनाव के पहले गन्ने के दाम बढ़ा देती है तो किसानों का एक बड़ा हिस्सा भाजपा का समर्थन करेगा। गन्ने के दाम तय करने वाली समिति की इसी हफ्ते एक बैठक हो भी चुकी है और किसान बेहतर दाम एवं अपने बकाये के भुगतान की आस लगाए हुए हैं।

इस महापंचायत के मद्देनजर सरजमीनी नेताओं की चुप्पी के बारे में वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक रविन्दर राणा ने न्यूजक्लिक से कहा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जारी अनेक विकास परियोजनाओं ने सभी पार्टी के ऐसे नेताओं को फायदा पहुंचाया है। 

राणा कहते हैं, “लिहाजा वे अपने पते तब तक नहीं खोलेंगे जब तक कि विपक्षी पार्टियां अनेक कारणों ने उनके पक्ष में कोई लहर न पैदा कर दें: तब तक वे अपने संपर्क और आमदनी के स्रोत को खोना नहीं चाहते; उन्हें राजनीतिक गिरफ्तारियों एवं उत्पीड़न का खौफ है; उन्हें अगले चुनाव में टिकट से भी हाथ धोना पड़ सकता है, अगर भाजपा दोबारा सत्ता में आती है तो।”

राणा आगे कहाते हैं, “विपक्षी पार्टियों द्वारा आक्रामक अभियान न शुरू किए जाने के अभाव में सत्ताधारी भाजपा को बढ़त मिलती दिख रही है। भाजपा की चुनावी रणनीति ‘साम, दाम, दंड और भेद’ के सिद्धांत के ईर्द-गिर्द घूमती है। सरकार विरोधी मत के तोड़ में केसरिया पार्टी वही कर रही है, जो वह बेहतर करती है-धार्मिक आधार पर समाज का ध्रुवीकरण करना। वह तालिबान को एक समस्या बनाने का प्रयास कर रही है और अफगानिस्तान की घटनाओं को अपने चुनावी वृतांत में ढाल रही है। पहले की तरह ही, तथाकथित मुख्यधारा का मीडिया अपने अफगानिस्तान पर कवरेज के साथ भाजपा के नैरेटिव को बढ़ाने में मदद ही कर रहा है।” 

राणा के मुताबिक बड़ी संख्या में खेती-किसानी के धंधे से लगे होने के बावजूद जाट समुदाय के मतदाताओं के एक बड़े हिस्से का समर्थन भाजपा को प्राप्त है। अपने हिन्दुत्व की विचारधारा के कारण भाजपा को पहले से ही गैर जाटव दलितों एवं गैर यादव ओबीसी के बड़े हिस्से का समर्थन प्राप्त है। 

राणा कहते हैं, “इसलिए भाजपा को तभी मुश्किल हो सकती है, जब विपक्ष अधिक आक्रामक होता है और चुनाव का कोई नैरेटिव सेट करता है। समाजवादी पार्टी-जो प्रदेश में मुख्य विपक्षी पार्टी है-वह भाजपा के इस वृतांत को चुनौती देने में फेल हो गई है कि आंदोलनरत किसानों में केवल हरियाणा, पंजाब एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश जाट एवं सिख हैं।”, वे आगे बताते हैं, “सपा, यादवों की पार्टी है, जिनमें अधिकांश लोग किसान हैं पर वह प्रदर्शनों में अपने समुदाय को बड़ी संख्या में भाग लेने एवं भाजपा के नैरेटिव को बदलने के लिए लामबंद करने में विफल रही है।”

भाजपा की फिलहाल बढ़त के बावजूद, राणा क्षेत्र में किसानों के प्रदर्शन को मुख्य जगह लेने के साथ बीच जाट एवं मुस्लिम किसानों में फिर से एक रिश्ता पनपता हुआ देखते हैं। उनका कहना है, “(किसान) आंदोलन ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के राजनीतिक वातावरण को बदल दिया है। किसानों की बैठकों की शुरुआत के साथ पश्चिमी उत्तर प्रदेश क्षेत्र के जाट एवं मुसलमानों के बीच की खाई को पाटने का काम हो रहा है, इसे देखते हुए आगामी विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए आसान नहीं होने वाला है। यह जाट-मुस्लिम एकता शायद रालोद की मदद करे।”

केसरिया पार्टी को 2014 एवं 2019 के लोक सभा चुनावों में बहुत बड़ी कामयाबी मिली थी। उसकी 2017 के विधानसभा चुनाव में भी बड़ी जीत हुई थी। जाट बहुल पश्चिमी उत्तर प्रदेश, इसे कुल 136 में से 105 सीटें मिली थीं, जो भाजपा के लिए काफी अहमियत रखती हैं। 2017 के विधानसभा चुनावों में, भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) 403 में से 324 सीटों पर प्रचंड विजय मिली थी। एनडीए ने 2019 के लोकसभा चुनाव में भी प्रदेश की 80 लोक सभा सीटों में से 64 पर जीत हासिल की थी। 

ऑल इंडिया किसान सभा के नेता पी कृष्ण प्रसाद भी महसूस करते हैं कि किसानों के अपनी मांगों के समर्थन में प्रदर्शन एवं ऐसी महापंचायतों का आयोजन एक व्यापक आंदोलन का हिस्सा है, जो भाजपा के साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण को तोड़ने में मदद करेगा। न्यूजक्लिक से बातचीत में उन्होंने कहा, “मुजफ्फरनगर में 2013 के सांप्रदायिक दंगे ने किसानों को और कामगार वर्गों के लोगों को उनके धर्म एवं सम्प्रदायों के आधार पर बांट दिया था-जिससे भाजपा को सत्ता में आने में मदद मिल गई थी। अब किसान महापंचायत ने साम्प्रदायिक विभाजन के खिलाफ कामगार वर्ग की एकजुटता को प्रतीकत्व प्रदान कर दिया है।” 

उत्तर प्रदेश योजना आयोग के पूर्वी सदस्य और शामली के पूर्व किसान नेता सुधीर पंवार महसूस करते हैं कि महापंचायत एक विषम समय में आयोजित की गई है और इसका आगामी चुनाव पर अवश्य ही असर पड़ेगा। वे कहते हैं “यह पंचायत फसल कटाई के मौसम से पहले आयोजित की गई थी,जब मुद्रास्फीति एवं बेरोजगारी बढ़ रही है। इसमें नेताओं के भाषण में सही स्वर निकले चाहिए।”  

पंवार का कहना था कि महापंचायत के लिए मुजफ्फरनगर का चुनाव बिल्कुल सटीक था क्योंकि “यह जाट किसानों एवं मुस्लिमों में सद्भाव बना कर उन्हें भाजपा के खिलाफ एक राजनीतिक चुनौती के रूप में पेश करेगा। महापंचायत में भाग लेने आए अधिकतर किसान सूबे के मुख्तार बदले जाने की उम्मीद से रोमांचित दिखाई दे रहे थे।” 

भाजपा की राज्य ईकाई ने पंचायत को राजनीतिक रूप से प्रेरित बताते हुए कहा कि इससे पार्टी की संभावनाओं पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा। राज्य में भाजपा के प्रवक्ता हरीश चंद्र श्रीवास्तव ने न्यूजक्लिक से कहा, “यह चुनाव को ध्यान में रख कर किया गया राजनीति से प्रेरित एक आयोजन था। पर इन झूठे वृतांतों से उप्र के किसान नहीं रीझनेवाले, उनका महापंचायत के आयोजकों से कोई वास्ता नहीं है, क्योंकि वे किसी संकट में नहीं हैं।”

आत्मविश्वास से भरे श्रीवास्तव ने कहा, “उत्तर प्रदेश के किसान जानते है कि राज्य सरकार ने इस साल एमएसपी की दर पर 56.41 लाख मीट्रिक टन गेंहू की खरीद की है, जबकि सूबे की अन्य सरकारें महज 8 लाख टन मीट्रिक टन गेंहू ही खरीदती रही थीं। किसान सरकार की उपलब्धियों से अच्छी तरह अवगत हैं।” उन्होंने दावा किया कि राज्य सरकार ने किसानों को गन्ने की बकाया राशि 1.42 लाख करोड़ रुपये से अधिक का भुगतान कर दिया है। उन्होंने कहा कि आदित्यनाथ ने पिछले हफ्ते घोषणा की थी कि अगले महीने से गन्ने की खरीद दर में सरकार बढ़ोतरी करेगी। 

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने 4 अगस्त को केंद्र एवं उत्तर प्रदेश समेत 11 गन्ना उत्पादक राज्यों से किसानों की बकाया राशि के भुगतान की स्थिति जानने के लिए उनसे जवाब तलब किया था। इसके पहले, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 7 जुलाई को एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार से जवाब मांगा गया था, जिसमें दावा किया गया था कि गन्ना उत्पादकों का सरकार के यहां 12,000 करोड़ रुपये बकाया हैं। 

अंग्रेजी में प्रकाशित मूल लेख को पढ़ने के लिए नीच दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

https://www.newsclick.in/Muzaffarnagar-Kisan-Mahapanchayat-Might-Affect-BJP-UP-Polls

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest