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NCR : बुलडोज़र चला तो क़रीब 25 हज़ार लोग हो जाएंगे बेघर!

''यहां पांच हज़ार घर हैं और क़रीब 25 हज़ार लोग रहते हैं, अचानक से ये लोग एक रात में तो यहां नहीं बस गए, ये पूरी कॉलोनी बसा लेते हैं और फिर कहते हैं कि टूटेगी तो ये तो एक साजिश है।''
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दिल्ली-फरीदाबाद बॉर्डर के क़रीब यमुना की तलहटी में स्थित बसंतपुर, इस्माइलपुर और अगवानपुर में गुरुवार (21 सितंबर) को फरीदाबाद नगर निगम की तरफ से एक नोटिस चिपकाए जाने और सार्वजनिक तौर पर ऐलान करने की ख़बर मिली। जिसमें लोगों से पांच दिन के भीतर घर खाली करने को कहा गया। जिस नोटिस को चिपकाए जाने की बात कही जा रही है उसमें लिखा है :

'' सर्वसाधारण को सूचित किया जाता है कि डूब क्षेत्र में बसंतपुर, अगवानपुर, इस्माइलपुर में यमुना बांध के साथ बने अवैध निर्माण के खिलाफ लगातार शिकायतें प्राप्त होती रहती हैं, जिन पर निगम प्रशासन द्वारा कार्रवाई की जानी है, इसलिए आप सभी को सूचित किया जाता है कि आप सभी अपना सामान अपने आप पांच दिन के अंदर-अंदर स्वयं हटा लें, अन्यथा आपका जो नुकसान होगा उसके हर्जे एवं खर्चे के आप ख़ुद जिम्मेदार होंगे'' ।

स्थानीय लोग द्वारा दिखाया गया नोटिस

प्रशासन की तरफ से अगर ये कार्रवाई होती है तो एक साथ क़रीब पांच से सात हज़ार घर टूट जाएंगे और हज़ारों लोग बेघर हो जाएंगे। ये नोटिस मिलने के बाद इन इलाकों में क्या माहौल है ये जानने के लिए हमने इस्माइलपुर स्थित अटल चौक से लगे शिव एन्क्लेव पार्ट 3 के कुछ ब्लॉक का दौरा किया।

यमुना पुश्ता की सड़क के किनारे-किनारे जो दिखता है वो सड़क की तरफ मुंह करती दीवारों पर एक के बाद एक प्रॉपर्टी डीलर के विज्ञापन, उनके छोटे-बड़े ऑफिस और इन सबके बीच कुछ एक खेत। हम अटल चौक से नीचे की तरफ जाते हैं तो सड़क नहीं मिलती बल्कि एक कच्चा रास्ता मिलता है और बिजली के खंभों पर लिखे गलियों के नंबर। इन सब के बीच कुछ नए घर बन रहे थे तो कुछ पुराने घरों में ऊपर नई मंजिल बनाने का काम चल रहा था। लेकिन इन सबके बीच लोगों में एक बेचैनी भी दिख रही थी, हाथों में कुछ कागज लिए कुछ लोग आते दिखाई दिए। हमने उनसे पूछा कि वे कहां से आ रहे हैं तो पता चला कि प्रशासन की तरफ से जो घर तोड़ने के नोटिस जारी किए गए हैं उसी को लेकर एक मीटिंग थी। इन लोगों के अलावा भी घर के आगे कहीं चार लोग खड़े होकर इसी मसले पर बात कर रहे थे तो कहीं दस लोग जिन्हें देखकर लग रहा था कि वे बेहद परेशान हैं।

''सिंगल मदर हूं, घर टूट गया तो मैं दो बच्चों के साथ कहां जाऊंगी''

हम गली नंबर 12 में ऋतु देवी नाम की महिला से मिले, ऋतु को जब से नोटिस के बारे में पता चला है वे बेहद परेशान हैं, उन्होंने हमसे कहा कि ''मैं दिल्ली में एक ड्राइवर की जॉब करती हूं, सिंगल मदर हूं, मैंने जब ये ज़मीन ली थी मुझे नहीं पता था कि क्या मामला है। बस मुझे थोड़ी सस्ती ज़मीन जो मेरे बजट में आ रही थी मिल रही थी तो मैंने ले ली, फिर बड़ी मुश्किल से थोड़े-थोड़े पैसे जोड़-जोड़ कर अपना घर बनाया, अब अगर ये टूट गया तो मैं दो बच्चों के साथ कहां जाऊंगी। हमें डीलरों ने बोला था कि उनके दादा-परदादा की ज़मीन है। हमें कोई आइडिया नहीं था इन्होंने ये हमें बेच दिया और हम आ भी गए। लेकिन अब क्या होगा समझ नहीं आ रहा है क्योंकि अगर अब हमारा घर टूटता है तो हमारे पास इसके सिवा कुछ नहीं है। जो जमापूंजी थी वो तो हम लगा चुके, अब तो इस घर को गिराएंगे तो इस घर के साथ हमें भी गिरा दो। इसी में हम भी मर जाएं। हमारे पास बस यही एक ऑप्शन है हमारे पास दूसरा कोई और ऑप्शन नहीं है।''

वे आगे कहती हैं कि ''मन रो रहा है और दिमाग तो काम ही नहीं कर रहा है। कल जॉब पर जाऊं ना जाऊं, कहीं मैं घर पर दो बच्चों को छोड़कर जाऊं और पीछे से क्रेन आ जाए। मेरा कहना है कि अगर सरकारी ज़मीन है या खेती की ज़मीन है तो आपको पहले ही बताना चाहिए न। यहां इतनी सारी पुलिस चौकियां है जब घर बन रहे थे वो आकर बस एक बार कह देते कि ये ज़मीन अवैध है। इसे मत लो इस पर घर-मकान मत बनाओ। आपने बिकने भी दिया, बनने भी दिया, लोगों को रहने भी दिया, बिजली है, लोगों के पास मीटर हैं अब अचानक से आप कहते हो कि ये अवैध है। मेरे जैसी यहां बहुत सी सिंगल मदर हैं जो कमा रही हैं और अपना घर चला रही हैं। अब वो कहां जाएं? अब हम किसको बताएं, कोई समाधान नहीं बता रहा है। हम तो यहां तक कह रहे हैं कि अगर हमारा घर अवैध है तो तोड़ दो, लेकिन इसकी जगह कहीं और ज़मीन तो दे दो।''

इसी गली में हमें सचिन मिले। वे बताते हैं कि ''आप ख़ुद ही देखिए यहां कोई सुविधा नहीं है न सड़क है न कोई और सुविधा। हर साल बाढ़ आती है लेकिन फिर भी हम सरकार से कुछ नहीं चाहते हमें हमारे हाल पर छोड़ दिया जाए।''

12 नंबर गली से आगे बढ़े तो चारों तरफ खेत दिखाई देते हैं। इन खेतों को प्लॉट की शक्ल में काटा गया है और दो से तीन फुट ऊंची दीवार बना कर घेर दिया गया है जिससे साफ पता चलता है कि डीलर ने प्लॉट काट-काट कर बेच दिए हैं या बेचने के लिए प्लॉट की घेराबंदी कर दी है। और इन्हें खेतों से खड़े होकर कुछ दूरी पर बहुत ही शानदार इमारतें दिखाई देती हैं। महज़ कुछ ही दूरी के फासले में वैध और अवैध की बहस ने हज़ारों लोगों को बेघर होने के डर में डुबो दिया है।

प्लॉट, जिनकी चारदीवारी की गई है

यहां हमें सुमन देवी मिली, सुमन पिछले चार साल से यहां किराए के मकान में रह रही थीं, और यहीं उन्होंने अपना प्लॉट ख़रीदा है। वे बताती हैं कि ''50 गज का प्लॉट है, जिसे किस्त पर लिया था, जो सात लाख का पड़ा है।''

''अब तो मेरे पैसे डूब गए''

वे नोटिस के बारे में बताती हैं कि ''कल ही मुझे नोटिस के बारे में पता चला है, तब से दिमाग में यही चल रहा है कि हम लोग कहां जाएंगे। हमने जिससे प्लॉट लिया है उनसे जाकर कहा तो वे कहते हैं कि कहीं नहीं जाएगा प्लॉट। ऐसा कुछ भी नहीं होगा। ''सुमन कहती है कि मैं कोशिश करूंगी कि डीलर प्लॉट वापस ले ले और मेरे पैसे वापस कर दे, लेकिन मैं जानती हूं वो नहीं मानेगा।'' और फिर सुमन ने अपने आंसुओं को छुपाने की नाकाम कोशिश की और जैसे ही उनकी आंखों से आंसू गिरने लगे वे कहती हैं ''अब तो मेरे पैसे डूब गए, अब हम क्या कर सकते हैं।''

सुमन सिलाई का काम करती हैं और उनके पति भी कोई छोटा-मोटा काम करते हैं। वो हाथ जोड़कर प्रशासन से गुहार लगाती हुई कहती हैं कि ''हमने इतनी मेहनत से कमा कर जो पैसा प्लॉट में लगाया था उसे दिला दिया जाए।''

''कह रहे हैं कि ये डूब क्षेत्र है इसलिए इसे तोड़ेंगे''

आंसू सिर्फ सुमन देवी की आंखों में ही नहीं थे बल्कि जो मिला परेशान मिला। एक महिला कहती हैं, ''एक-एक पैसा जोड़कर घर बनाया, आज ऐलान कर दिया तोड़ने का। जिस वक़्त बन रहा था उस समय क्यों नहीं आए। उस समय कह देते नहीं बनने देंगे। लेकिन एकाएक कह रहे हैं कि तोड़ेंगे। हम यहां चार साल से रह रहे हैं। अब ऐलान कर रहे हैं कि तोड़ेंगे। कह रहे हैं कि ये डूब क्षेत्र है इसलिए इसे तोड़ेंगे। बाढ़ आई थी तो हम रोड़ पर थे। अब हम क्या करेंगे। ग़रीब आदमी हैं, आज अगर तोड़ देंगे तो क्या करेंगे हम।''

''अरविंद केजरीवाल के घर के करीब भी तो पानी आया था''

नोटिस में लिखा गया है कि डूब क्षेत्र में अवैध निर्माण की वजह से तोड़ा जा रहा है। इस साल जब यमुना में बाढ़ आई थी तो दिल्ली में लाल किला, राजघाट तक पानी पहुंच गया था। फरीदाबाद के इस इलाके में भी पानी भरा था। यहां हमें कुछ लोग घर के बाहर चारपाई पर बैठे इसी मुद्दे पर बात करते दिखे। हमने उनसे भी बात की तो एक बुजुर्ग बेहद नाराज़गी में कहने लगे ''लाल किला में भी पानी भर गया था। अरविंद केजरीवाल के घर तक पानी पहुंच गया था तो उसे भी तोड़ दो। लेकिन उसे नहीं तोड़ने। गरीब आदमी का घर तोड़ देंगे, ये ज़मीन सरकार की नहीं है ये किसानों और जमींदारों की ज़मीन है। जनता अपनी जान दे देगी लेकिन घर नहीं छोड़ेगी''

किसकी है ज़मीन ?

हमने जानना चाहा कि ये किसकी ज़मीन है तो जितने लोग उतनी बातें सुनने को मिली। एक स्थानीय बताते हैं कि ये ज़मीन सरकार ने किसानों को पट्टे पर दी थी। जबकि कुछ लोगों का कहना है कि ये ज़मीन सिंचाई विभाग की है। कुछ लोग तो इसे उत्तर प्रदेश सरकार की ज़मीन बताते हैं। वे कहते हैं कि नदी के एक तरफ का हिस्सा उत्तर प्रदेश का है और दूसरी तरफ का हिस्सा हरियाणा का। वहीं कुछ लोगों ने बताया कि यहां कुछ ज़मीन एयरफोर्स की भी है जिसपर कोई निर्माण नहीं हुआ है।

यहां सवाल उठता है कि जिसकी भी ज़मीन थी लेकिन एक दशक में किसने इस पर अवैध कॉलोनी बसा दी, किसने और कैसे ज़मीन बेच दी और मुनाफा कमा लिया? ऐसे में अब अगर ये आबादी उजड़ती है तो वे कहां जाएंगी?

बुचनी खातून आठ साल से यहां रह रही हैं

''किसके घर में कितना चावल लगता है वो सरकार को पता है और ये नहीं पता है कि इतनी बड़ी बिल्डिंग बन रही है।''

बिहार के मधुबनी की बुचनी खातून यहां अपने पूरे कुनबे के साथ रहती हैं। वे कहती हैं कि ''ये तो किसान की जगह है, ये किसान ने हमें दिलवाई है। सारे कागज बने हैं, पुश्ते के नीचे 15 साल से घर बने हैं। लोग रह रहे हैं, इतने दिन से सरकार को ये पता नहीं था? वे आगे कहती हैं कि ''किसके घर में कितना चावल लगता है वो सरकार को पता है और ये नहीं पता है कि इतनी बड़ी बिल्डिंग उठ रहा है, तो उस वक़्त तो कुछ नहीं किए। किसान बोले हमारी खेती की ज़मीन है। हम लोग ग़रीब आदमी ले लिए। कोई 20 गज़ लिया, कोई 40, तो कोई 50 गज़। ऐसे कर के सब ले लिया कि चलो झोपड़ी हो जाएगी रहने के लिए किराया नहीं भर पाएंगे। मेरे तो पति भी नहीं हैं। मैंने सफाई का काम करके एक-एक पैसा इसमें लगाया, मैं यहां आठ साल से रह रही हूं। किसी तरह से ईट जोड़कर रह रही हूं। अभी छत भी नहीं बना है। मेरा परिवार किसी तरह से इसी में रह रहा है। बहू हैं, छोटे-छोटे बच्चे हैं। अब अचानक ये सब सुन रहे हैं। हम सरकार से ही माफी मांगते हैं। हमें रहने दिया जाए। अब वही हैं जो या तो हमें उजाड़े, या बसाए''।

'' हमारी मदद कौन करेगा''?

रंजीत कुमार भी यहां 2016 से रह रहे हैं। रंजीत हम से ही सवाल करते हैं कि '' हमारी मदद कौन करेगा, क्योंकि हम जो देख रहे हैं उससे यही डर सता रहा है की हमारा घर छिन जाएगा। डर लग रहा है। हम बस यही चाहते हैं कि हमारा घर किसी तरह से बच जाए। कोई हमारा घर बचा ले।'' वे आगे बताते हैं कि ''किसी ग़रीब के घर अगर नोटिस आ जाएगा तो वो कैसे रह पाएगा। यहां ग़रीब तबका ही रह रहा है। दिहाड़ी कर रहा है। पांच सौ, छह सौ रुपये का काम कर रहा है। एक टाइम की रोटी खाकर किसी तरह से घर बनाया फिर अब क्या करेगा, सभी परेशान हो गए हैं।''

''यहां सात हज़ार घर हैं और क़रीब 25 हज़ार लोग रहते हैं''

नोटिस मिलने पर परेशान एक घर में जमा हुए कुछ लोग मीटिंग कर रहे थे और कोई रास्ता निकालने पर चर्चा कर रहे थे। यहां हमने सनी से बात की। वे बताते हैं कि ''20 तारीख को नोटिस आया हुआ है और उन्होंने चारों तरफ ऐलान भी करवाया कि पांच दिन में आप अपना सामान निकाल लें। आज उसी सिलसिले में हमने एक बैठक की थी। लोगों के दिमाग में तो इस वक़्त यही चल रहा है कि अपने घर को कैसे बचाएं। ये कुछ लोगों की बात नहीं है। यहां सात हज़ार घर हैं और क़रीब 25 हज़ार लोग रहते हैं।'' इसी मीटिंग में शामिल एक स्थानीय कहते हैं कि ''सब परेशान हैं कि कॉलोनी टूट जाएगी। थोड़े-थोड़े पैसे लगाकर ये सब बनाया था और अब नोटिस लगा दिया। कल तक बाढ़ से परेशान थे और अब नोटिस। मैं यहां दस साल से रह रहा हूं। घर टूट गया तो सड़क पर आ जाएंगे।'' इसी मीटिंग में एक और स्थानीय कहते हैं कि ''सरकार से हमारी अपील है कि हमारा साथ दे। पब्लिक परेशान है यहां क़रीब 25 से 30 हज़ार लोग हैं, नोटिस जब से लगा है तब से रात की नींद खो गई। पब्लिक इधर से उधर भाग रही है कि कैसे अपना मकान बचाएं।''

जगह-जगह लोग नोटिस के बारे में चर्चा करते हुए

यहां हमें आलम मिले वे इस इलाके के बारे में बताते हैं '' बसंतपुर गांव, इस्माइलपुर और अगवानपुर तीन गांव लगे हुए हैं, चार से पांच किलोमीटर में फैला हुआ है ये इलाका और यहां सात हज़ार से ज़्यादा ही घर होंगे कम नहीं। आज तक किसी ने इन्क्वारी तो नहीं की पर इससे ज़्यादा ही घर होंगे।''

इस इलाके में हमें ज़्यादातर यूपी-बिहार के लोग मिले और सभी ग़रीब और मध्यम वर्ग के कमाने-खाने वाले लेकिन जब से इलाके में नोटिस की बात फैली है लोग परेशान हैं और एक दूसरे से बस एक ही सवाल कर रहे हैं, क्या सच में हमारा घर टूट जाएगा? लोग अपने लेवल पर पंचायत कर रहे हैं। इलाके के पार्षद, विधायक यहां तक की सांसद कृष्ण पाल के घर के भी चक्कर लगा रहे हैं।

''ये पूरी कॉलोनी बसा लेते हैं और फिर कहते हैं कि टूटेगी''

यहां हमें मोहम्मद इम्तियाज़ मिले। इम्तियाज़ ने सुबकते हुए हमसे कहा कि ''यहां पांच हज़ार घर हैं और क़रीब 25 हज़ार लोग रहते हैं। अचानक से ये लोग एक रात में तो यहां नहीं बस गए। जब सरकार को ये अवैध कॉलोनी लग रही थी तो एक नोटिस सड़क पर होना चाहिए कि इस कॉलोनी में जो बसेगा वो अपने आप समझेगा। ये पूरी कॉलोनी बसा लेते हैं और फिर कहते हैं कि टूटेगी तो ये एक साजिश है। अगर ये ज़मीन बिकी है तो एक छोटे से डीलर से लेकर मंत्री तक बात जाती है, तभी वो कॉलोनी बसती है। ऐसा नहीं है कि एक आदमी के चाहने से इतनी ज़मीन बिक जाती है। और एक दिन में नहीं बिकती है, एक-दो-पांच साल लगते हैं। थोड़ी-थोड़ी करके जब पूरी बस्ती बस जाती है तब ये नोटिस भेजते हैं।''

आगे की बात इम्तियाज़ रोते हुए कहते हैं कि ''हम लोगों की पूरी जिंदगी की कमाई मकान में लग जाती है और उसके बाद सरकार का ऑर्डर आता है कि हम तोड़ देंगे। ये सरासर अन्याय है। मैं बुलडोज़र के आगे लेट जाऊंगा, मगर अपने घर को तोड़ने नहीं दूंगा।''

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नोटिस के मुताबिक तो पांच दिन पूरे हो चुके हैं लेकिन फिलहाल कोई कार्रवाई नहीं हुई है। कुछ लोगों ने बताया कि लगातार स्थानीय लोगों और पुलिस-प्रशासन के कुछ अधिकारियों के साथ हो रही मीटिंग की वजह से कुछ दिन और आगे बढ़ा दिए गए हैं।

परेशान लोग इस वक़्त बस इसी कोशिश में लगे हैं कि किसी भी तरह से इतने बड़े इलाके में बुलडोज़र चलने से रुक जाए, अब देखना होगा प्रशासन इन लोगों की बात सुनता है कि नहीं। और अगर प्रशासन का बुलडोज़र नहीं रुका तो एक बार फिर दिल्ली से सटे इलाक़े में एक बहुत बड़ी ग़रीब लोगों की आबादी के सामने तिनका-तिनका जोड़कर बने अपने आशियाने को टूटते देखने के सिवा और कोई चारा नहीं बचेगा।

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