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एनईपी : यूजीसी के पाठ्यक्रम पर क्या कहते हैं छात्र और शिक्षक संगठन?

शिक्षाविदों का कहना है कि नए पाठ्यक्रम लंबे समय से प्रभावी ऑनर्स पाठयक्रमों की जगह ले लेंगे, जिन्होंने अब तक छात्रों को एक दृढ़ अनुशासन के तहत पढ़ाई करने की सीख दी है।
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शिक्षकों और छात्रों का कहना है कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने हाल ही में स्नातक पाठ्यक्रमों के लिए जो पाठ्यक्रम और क्रेडिट फ्रेमवर्क जारी किया है, वह विसंगतियों से भरा हुआ है और उच्च शिक्षा की गुणवत्ता से गंभीर रूप से समझौता करता है। शिक्षकों और छात्र की ओर से यह आरोप तब आया जब क्रेडिट फ्रेमवर्क में यह स्पष्ट हो गया कि नए बहु-विषयक पाठ्यक्रमों में दाखिले और कोर्स से बाहर निकलने के कई बिंदु होंगे, जो कुल मिलकर सभी छात्रों के लिए अनिवार्य रूप से मूल्य वर्धित पाठ्यक्रमों के साथ प्रमुख और छोटे पाठ्य कार्यक्रमों का एक संयोजन होगा।

इसकी रूपरेखा में कहा गया है कि छात्र क्रमशः दो, चार और छह सेमेस्टर पूरा करने के बाद प्रमाण पत्र, डिप्लोमा और डिग्री ले पाएंगे। 

इसके अलावा, एक छात्र को तब डिग्री मिलेगी जब वह ऑनर्स कोर्स के तहत शौध के लिए समर्पित चौथा वर्ष पूरा करेगा। “जो छात्र पहले छह सेमेस्टर में 75 प्रतिशत और उससे अधिक अंक हासिल करेंगे और स्नातक स्तर पर शोध करना चाहते हैं, वे चौथे वर्ष में एक शोध का पाठ्यक्रम चुन सकते हैं। उन्हें विश्वविद्यालय/कॉलेज के किसी एक फ़ेकल्टी सदस्य के मार्गदर्शन में शोध परियोजना या शोध निबंध लिखना होगा। कोई भी शौध/निबंध प्रमुख विषय यानि मेजर सबजेक्ट में ही होगा। शोध परियोजना/शोध प्रबंध से 12 क्रेडिट सहित 160 क्रेडिट हासिल करने वाले छात्रों को यूजी डिग्री (शौध के साथ ऑनर्स) से सम्मानित किया जाएगा। 

फ्रेमवर्क कहता है कि "पाठ्यक्रम में लेक्चर क्रेडिट, ट्यूटोरियल क्रेडिट और प्रेटिकल क्रेडिट का संयोजन होगा। उदाहरण के लिए, चार-क्रेडिट वाले पाठ्यक्रम होंगे, जिसमें सप्ताह में एक से दो घंटे के तीन लेक्चर होंगे, और प्रेटिकल के लिए सप्ताह में एक से दो घंटे के तीन लेक्चर होंगे जो क्षेत्र-आधारित, शिक्षण/परियोजना या प्रयोगशाला कार्य, या प्रति सप्ताह कार्यशाला गतिविधियां होंगी। 15 सप्ताह की अवधि के एक सेमेस्टर में, चार-क्रेडिट पाठ्यक्रम 45 घंटे के लेक्चर और 30 घंटे के प्रेक्टिकल के बराबर है। इसी तरह, लेक्चर के लिए आवंटित तीन क्रेडिट वाले चार-क्रेडिट पाठ्यक्रम और ट्यूटोरियल के लिए एक क्रेडिट में प्रति सप्ताह तीन घंटे का लेक्चर और प्रति सप्ताह एक घंटे का ट्यूटोरियल होगा।

शिक्षा के नए फ्रेमवर्क पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए, रुद्राशीष चक्रवर्ती, जो दिल्ली विश्वविद्यालय की एकेडमिक काउंसिल के पूर्व सदस्य हैं, ने कहा कि एनईपी के तहत चार वर्षीय स्नातक कार्यक्रम की संशोधित संरचना और विश्वविद्यालयों को तदनुसार उस पर कार्रवाई करने का स्पष्ट निर्देश देना एक बड़ी आपदा है। उन्होंने कहा कि यह भारत में उच्च शिक्षा क्षेत्र को गंभीर संकट में डाल देगा। 

बहु-विषयक पाठ्यक्रमों की शुरुआत की ओर इशारा करते हुए, उन्होंने कहा कि नए पाठ्यक्रम लंबे समय से प्रभावी ऑनर्स कार्यक्रमों की जगह लेंगे, जिन्होंने छात्रों को दृढ़ अनुशासन में पढ़ने की सीख दी थी। चक्रवर्ती, जो डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट के सदस्य भी हैं, ने न्यूज़क्लिक को बताया, "देश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों, विशेष रूप से दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रमुख ऑनर्स पाठ्यक्रम, स्नातक कार्यक्रमों में आगे रहे हैं। विभिन्न ऑनर्स पाठ्यक्रमों के छात्रों को मुख्य अनुशासन के पूरक के रूप में विभिन्न विषयों का अनुसरण करने के साथ-साथ ऑनर्स में दृढ़ अनुशासन की सीख मिलती थी। यह लंबे समय से जांचा-परखा कार्यक्रम रहा है और इसके जरिए दशकों से बेहतरीन दिमाग तैयार हुए हैं। ऑनर्स पाठ्यक्रमों की पाठ्यक्रम सामग्री में किसी भी किस्म की कमी का मतलब शिक्षा की गुणवत्ता से समझौता करना होगा, और छात्रों को गुणवत्तापूर्ण और सस्ती सार्वजनिक वित्तपोषित उच्च शिक्षा से वंचित करना होगा।”

उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि नया शिक्षा का नया फ्रेमवर्क मौजूदा कार्यक्रमों के क्रेडिट घटक को कम करता है बल्कि मास्टर्स कार्यक्रमों को भी बेमानी बना देता है। उन्होंने कहा, "प्रस्तावित संरचना आठ सेमेस्टर में 160 क्रेडिट घंटे की बात करती है, जो वास्तव में, दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा अनुमोदित 176 घंटे से कम है। हालांकि, प्रस्तावित एफवाईयूपी का सबसे व्यापक हमला स्नातकोत्तर या मास्टर पाठ्यक्रमों को नकारा बनाना है। दस्तावेज़ में प्रस्ताव है कि पीजी या स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों को मौजूदा दो वर्षों से घटाकर केवल एक वर्ष कर दिया जाए। इसके अलावा, पीजी को निरर्थक बना दिया गया है क्योंकि एक छात्र चार साल के स्नातक कार्यक्रम को पूरा करने के बाद सीधे पीएचडी के लिए आवेदन कर सकता है। यह अकादमिक रूप से अव्यावहारिक है क्योंकि यह किसी भी छात्र के लिए पीजी स्तर पर आवश्यक शैक्षणिक मजबूती को दरकिनार करता है जो पीएचडी करना चाहता है।

एकेडमिक्स फॉर एक्शन एंड डेवलपमेंट टीचर्स एसोसिएशन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजेश झा ने न्यूज़क्लिक को बताया कि यूजीसी नई शिक्षा नीति के नाम पर विश्वविद्यालयों में अराजकता फैला रहा है। उन्होंने कहा, 'जहां तक चार साल के अंडरग्रेजुएट कोर्स की बात है तो कृपया मुझे बताएं कि इन कोर्स से सबसे पहले कौन बाहर निकलेगा। हमेशा दलित, आदिवासी और महिलाएं ही होंगी जिन पर परिवारों का दबाव होगा कि वे कोर्स छोड़ दें। क्या उन्हें कोई नौकरी मिलेगी?”

उन्होंने आगे टिप्पणी करते हुए कहा कि, “आप विश्वविद्यालयों से पाठ्यक्रम सामग्री तय करने की स्वायत्तता छीन रहे हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय को अपने ऑनर्स कोर्स के लिए, जामिया मिलिया इस्लामिया अपने मास कम्यूनिकेशन के लिए और एएमयू अपने इतिहास विभाग के लिए जाना जाता था। यूजीसी को लगता है कि एक साइज़ सबके लिए फिट है का सूत्र यहां काम कर सकता है, लेकिन इसका विफल होन तय है। कुल मिलाकर, आप क्रेडिट की संख्या कम करके गुणवत्ता से समझौता कर रहे हैं। फिलहाल मैं हफ्ते में पांच क्लास लेता हूं, लेकिन नई व्यवस्था में अब मुझे सिर्फ तीन क्लास लेनी होंगी। छात्र क्या सीखेंगे?"

स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया के महासचिव मयूख बिस्वास ने न्यूज़क्लिक को बताया कि वह शिक्षा के नए फ्रेमवर्क को लागू करने के परिणामस्वरूप स्कूल छोड़ने वालों की बढ़ती संख्या को लेकर आशंकित हैं। उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि उच्च शिक्षा का दृष्टिकोण ज्ञान से बाजार की ओर स्थानांतरित हो गया है जहां सस्ते श्रम की उपलब्धता पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। “एफवाईयूपी शुरू करना ओबीसी, एससी/एसटी और अन्य वंचित समुदायों के छात्रों के लिए सबसे हानिकारक होगा। यह शिक्षकों और छात्रों के वर्षों के संघर्ष, जिसके माध्यम से उच्च जाति-बहुल शिक्षा में 50 प्रतिशत आरक्षण को लागू करने काम किया गया था नदारद हो जाएगा। जाति, धार्मिक स्थिति, वर्ग और लिंग जैसे सामाजिक कारक किसी भी छात्र के शिक्षा से बाहर होने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे, जिसे केवल व्यक्तिगत कारणों के रूप में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है, तब जब यह उन्हें उनके भविष्य की शैक्षणिक और रोजगार की संभावनाओं में गंभीर नुकसान पहुंचेगा। इसके परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में वंचित तबके के छात्र शिक्षा व्यवस्था से बाहर हो जाएंगे, अंततः सभी संसाधनों पर एकाधिकार वाले विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग इसमें रह जाएंगे। 

बिस्वास ने चौथे साल में शोध कार्यक्रम को लेकर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा, "मेरा मतलब है कि छात्र कुछ प्रकार के दस्तावेज़ीकरण और कागजी कार्रवाई कर सकते हैं लेकिन चौथे वर्ष में शोध की उम्मीद करना एक नौटंकी है। विश्वविद्यालयों में शोध के लिए शिक्षक कहां हैं? विश्वविद्यालयों में रिक्तियां बढ़ रही हैं, और फिर भी कोई भर्ती नहीं हो रही है। शौध में मदद  के लिए पुस्तकों और पत्रिकाओं के साथ पुस्तकालय कहाँ हैं। संसद के मौजूदा सीजन में लोकसभा में सरकार ने एक जवाब में कहा है कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों में 33 प्रतिशत रिक्तियां हैं।

ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन के महासचिव एन॰ साईबालाजी ने न्यूज़क्लिक को बताया कि डॉ॰ बी॰ आर॰ अम्बेडकर की वह चेतावनी जिसमें जातिवाद के संस्थागत निज़ाम का जिक्र किया था वह अब हमें परेशान करने के लिए सामने खड़ी है, जो नए चार साल के ढांचे में पाई गई है। “अब तक, शिक्षा प्रदान करना एक संवैधानिक जिम्मेदारी थी। नया शिक्षा ढाँचा कहता है कि आप उस स्तर तक की शिक्षा खरीद सकते हैं जिसे आप वहन कर सकते हैं। यह कहना बहुत आसान है कि एक छात्र काभी भी शिक्षा से बाहर और वापस आ सकता है, लेकिन हमारा अनुभव बताता है कि जो छात्र जो डिग्री छोड़ देता है, उसके लिए अपने अन्य बैचमेट जो कक्षा में रह जाते हैं के मुक़ाबले नौकरी पाने के मौके कम हो जाते हैं।”

मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित रिपोर्ट को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करेंः

NEP: UGC’s Curriculum and Credit Framework Compromises Quality, say Teachers and Student Bodies

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