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भारत
राजनीति
क्या नगालैंड के 'अशांत क्षेत्र' होने की सच्चाई केवल सरकारी नोटिफिकेशन से मान लेनी चाहिए?  
नगालैंड पिछले छह महीने से अशांत क्षेत्र की कठोरता में जी रहा था। 30 जून को इसकी मियाद पूरी होने वाली थी। फिर से इसकी मियाद अगले छह महीने के लिए बढ़ा दी गयी है।
अजय कुमार
10 Jul 2020
Nagaland
image courtesy : TNT

हिंदुस्तान की बहुत बड़ी आबादी के लिए नगालैंड महज़ एक राज्य का नाम है। एक ऐसे राज्य का नाम जिसे हिंदुस्तान का हिस्सा तो माना जाता है, लेकिन उस हिस्से को महसूस नहीं किया जाता। पिछले महीने की अंतिम तारीख को गृह मंत्रालय ने पूरे नगालैंड को अशांत क्षेत्र घोषित कर दिया। लेकिन इस खबर पर कोई हो हल्ला नहीं हुआ। नगालैंड पिछले छह महीने से अशांत क्षेत्र की कठोरता में जी रहा था। 30 जून को इसकी मियाद पूरी होने वाली थी। फिर से इसकी मियाद अगले छह महीने के लिए बढ़ा दी गयी है। यानि अगले छह महीने तक फिर से नगालैंड को अशांत क्षेत्र की वजह से लागू हुई अफ्सपा जैसे कठोर कानून की देख-रेख में जीना पड़ेगा।

इसकी जानकारी भी हमे मिली हैं तो केवल एक सरकारी नोटिफिककेशन से। इसमें लिखी बातों के अलावा नगालैंड का मौजदा हाल कैसा है? इसके बारे में हम कुछ भी नहीं जानते। उन कारणों के बारें में कुछ भी नहीं जानते जिनकी वजह से नगालैंड को अशांत क्षेत्र घोषित किया है।  जानते हैं तो केवल यह बात की नगालैंड के राज्यपाल ने केंद्र सरकार से कहा “सशस्त्र गिरोहों द्वारा दिन-प्रतिदिन संवैधानिक रूप से निर्वाचित राज्य सरकार की वैधता को चुनौती दी जा रही है।” तथा वह “संविधान के अनुच्छेद 371ए (1)(बी) के तहत राज्य में संवैधानिक दायित्वों से दूर नही रह सकते है”। इसलिए राज्य को अशांत क्षेत्र घोषित कर देना चाहिए। हमे केवल सरकार का पक्ष का पता है बाकि सारे पक्ष हमारी जानकारी से ग़ायब हैं।

उत्तर पूर्वी भारत के लोगों का हमेशा से यही दर्द रहा है कि उन्हें अपने ही देश में पराया जैसा लगता है। अरुणाचल पर जब चीन कब्जा जमाने आता है तभी हिंदुस्तान का मानस हमारी तरफ देखता है। हम माने या ना माने लेकिन हकीकत यही है कि जब लोगों की बजाए महज भूखंड की चिंता की जाती है तो उस भूखंड में रहने वाले लोगों के साथ अपनेपन का रिश्ता नहीं बनता है, अलगाव रिश्ता बनता है। और अफ्स्पा जैसे कानून का इस्तेमाल करने में कोई हिचक भी नहीं होती। ऐसे क्षेत्र अगर अशांत क्षेत्र के तौर पर घोषित कर दिए जा रहे हैं तो कई सारे कारणों में एक कारण यह भी है कि उनका देश ही उनकी तरफ उस तरह से ध्यान नहीं दे रहा है जिस तरह से अपने राज्य के लोगों पर ध्यान दिया जाना चाहिए।

इस वैचारिक पृष्ठभूमि में नगालैंड से जुड़ी खबर को समझने की कोशिश करते हैं। केंद्र सरकार ने नगालैंड को अगले 6 महीने के लिए अशांत क्षेत्र यानी डिस्टर्ब एरिया के तौर पर घोषित कर दिया है। केंद्र सरकार ने नगालैंड को अगले छह महीने के लिए ‘अशांत क्षेत्र’ (Disturbed Area) घोषित कर दिया है।  मंत्रालय ने इससे जुड़ा नोटिफिकेशन भी जारी कर दिया है। नोटिफिकेशन कहता है –

“नगालैंड राज्य की सीमा के भीतर आने वाला क्षेत्र ऐसी अशांत और ख़तरनाक स्थिति में है, जिससे वहां नागरिक प्रशासन की सहायता के लिए सशस्त्र बलों का प्रयोग करना आवश्यक है.” अब आप पूछेंगे कि अशांत क्षेत्र का मतलब क्या है? अशांत क्षेत्र कहते किसे है?

जैसा कि नाम से स्पष्ट है कि वह इलाका जहां की स्थितियां सामान्य नहीं है। राज्य की प्रशासनिक आलाकमान के नियंत्रण से बेकाबू हैं। जिसे काबू करने के लिए कुछ कठोर कदम उठाने की जरूरत है। इन्हीं सब प्रवृत्तियों के आधार पर गृह मंत्रालय किसी इलाके को अशांत क्षेत्र का दर्जा देता है। सशस्त्र बल विशेष शक्तियां अधिनियम The Armed Forces (Special Power) Act यानी AFSPA यानी अफस्पा कानून की धारा तीन के तहत केंद्र सरकार या राज्य के गवर्नर को यह शक्ति होती है कि अगर उन्हें राज्य या राज्य के किसी इलाके की स्थिति इतनी चिंताजनक, खतरनाक, असामान्य दिखे कि उसे संभालना मुश्किल हो रहा है या राज्य की रोजाना की कार्यवाहियों की बस की बात ना हो तो अफ्सपा के तहत शक्तियों का इस्तेमाल करने की इजाजत मिल जाती है। अफ्स्पा एक ऐसा कानून है जो सर्च, अरेस्ट और फायर करने के लिए सैन्य बलों को बेलगाम शक्ति देता है।

इसके बाद आपका सवाल होगा कि आखिरकार नगालैंड में इसका इस्तेमाल क्यों किया जा रहा है? तो इसे समझने के लिए बैकग्राउंड में चलते हैं। नगालैंड की इनसरजेंशी दुनिया की सबसे पुरानी इंसर्जेंशियों में से एक है। उत्तर भारत की घरेलू राजनीति की दांव पेच की वजह से हम कश्मीर की दर्दनाक हालातों से तो रूबरू हो लेते हैं लेकिन उत्तर पूर्वी भारत में तकरीबन 16000 वर्ग किलोमीटर में फैले नगालैंड की परेशानियां हमारी मन मस्तिष्क का हिस्सा नहीं बन पाती।

मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में केंद्र सरकार और नगा सशस्त्र विद्रोहीयों के बीच बातचीत का सिलसिला आगे बढ़ा। साल 2019 के अक्टूबर महीने में नगालैंड के प्रमुख अलगाववादी दल नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल नगालैंड इसाक मुइवाह के साथ दिल्ली में बातचीत हुई। यहां समझने वाली बात यह है कि नगालैंड में कई अलगवादी दल है। सरकार का कहना है कि वह NSCN (IM) समेत सभी गुटों से बात करेगी, लेकिन समझौता वो एक ही करेगी। इसका एक पक्ष भारत सरकार होगा और दूसरा, सारे नगा गुट। इसे आसान मायने में इस तरह समझिये कि बहुत सारे नगा गुट है।  NSCN (IM) को ही अगुआ मानकर बातचीत की जा रही है।  केंद्र सरकार का प्रस्ताव था कि

भारत के संविधान में निहित संप्रभुता के भाव को सभी पक्ष मान्यता देंगे।  मतलब उन्हें मानना पड़ेगा कि वह भारत के अंग हैं।
 
- नगा गुट हथियार का रास्ता छोड़ देंगे। सरकार हथियार का रास्ता अख़्तियार किये हुए लोगों का पुनर्वास करेगी

-  नगा गुटों द्वारा हथियार का रास्ता छोड़ देने के बाद  AFSPA हटा लिया जाएगा।  सेना ज़रूरी होने पर ही दखल देगी।

-  नगालैंड राज्य की सीमाओं में कोई बदलाव नहीं होगा। ये नगा शांति समझौता का वह हिस्सा है जिसे लेकर सबसे अधिक चिंता है। ऐसा इसलिए क्योंकि नगा जनजातियां केवल नगालैंड में ही नहीं रहती। पूर्वोत्तर के बहुत सारे इलाके में रहती हैं। और शुरू से इनकी मांग ग्रेटर नगालिम की रही है।  

-  मणिपुर और अरुणाचल के नगा बहुल इलाकों में नगा टेरेटोरियल काउंसिल बनाए जाएंगे। ये काउंसिल ऑटोनोमस यानी स्वायत्त होंगे, माने राज्य और केंद्र सरकार के अधीन नहीं होंगे।

- एक ऐसी संस्था भी बनाई जाएगी जो अलग-अलग राज्य में बसे नगाओं के सांस्कृतिक जुड़ाव का काम करेगी।  इस संस्था में नगा जनजातियों के प्रतिनिधि बैठेंगे और ये राजनीति से दूर रहेगी।  

इस बातचीत में केंद्र सरकार के सामने उन्होंने तीन मांगें रखी। पहली मांग थी अरुणाचल मणिपुर और असम की तरह नगा समुदाय की सामाजिक और सांस्कृतिक मान्यताओं को संरक्षण दिया जाए। दूसरी मांग थी कि नगा समुदाय के राजनीतिक प्रतिनिधित्व को बढ़ाया जाए। केंद्र सरकार ने इन दो मांगों को तो मान लिया लेकिन तीसरी मांग पर सहमति नहीं बनी। तीसरी मांग थी की नगालैंड कॉलेज झंडा और अलग संविधान दिया जाए। तभी से नगालैंड और केंद्र सरकार के बीच गतिरोध बना हुआ है। और गतिरोध की अभी तक समाप्ति नहीं हुई और फिर से नगालैंड में अशांत क्षेत्र की मियाद बढ़ा दिया गया है।

न्यूज़क्लिक से बातचीत के दौरान नंदिता हक्सर कहती हैं कि कश्मीर से आर्टिकल 370 को हटाए जाने के बाद इस समझौते को होने में दिक्कत आ रही है। नगा गुट पहले से ज्यादा कठोर मांग रख रहे हैं। उन्हें लग रहा है कि कहीं उनका भी हश्र कश्मीर जैसा न हो इसलिए अलग संविधान और झंडे की मांग कर ली जाए। यहां यह समझने वाली बात है कि पहले नगा आंदोलन की मांग सारे नगा कौम को एक करने से जुड़ी होती थी। जिसमें बर्मा यानी आज के म्यांमार से जुड़े नगा भी हुआ करते थे। बाद में जाकर यह केवल भारत के नगाओं तक सीमित हो गया। और इनकी मांग केवल भारत के नगाओं को एक करने तक रह गयी। लेकिन कश्मीर ने शायद उन्हें सजग करने का काम किया है।

नंदिता हक्सर आगे कहती हैं कि इन गुटों का अलावा एक आम नगा यही चाहता है कि सभी नगा एक राज्य के अंदर रहें। एक ज़मीन पर साथ रहें। उनकी एक ही सीमा हो। यह मांग शुरू से लेकर आज तक बनी हुई है। बस अंतर इतना हुआ है कि अब यह भारतीय राज्य की प्रभुता भी स्वीकारने के लिए तैयार है और म्यांमार के नगा इसमें शामिल नहीं है।

तकरीबन 90 फीसदी से अधिक नगा बापटिस्ट चर्च से जुड़े हैं। नगा समझौते में इनकी भी अहम भूमिका है। नगा आंदोलन से इनकी दो असहमतियां रही हैं। पहली यह नगा आंदोलन के साम्यवादी और समाजवादी मकसद के समर्थक नहीं है। दूसरा यह लड़ाई के बजाय शांति से समझौता चाहते हैं। इनका प्रभाव देखते हुए शुरू में ही नगा आंदोलन ने अपने आपको सोशलिस्ट बनाने का फैसला ले लिया था। इसलिए इन्होंने शुरुआत में इस आंदोलन को नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड का नाम दिया था।

नंदिता हक्सर कहती हैं कि नगा और कश्मीरी समुदाय को डेवलपमेंट शब्द से बहुत चिड़ हैं। केंद्र को लगता है इसके जरिये वह दूर हो रहे लोगों को अपनी तरफ से लाती है लेकिन ऐसा नहीं है। नगाओं के बीच अमीर और गरीब की खाई है। और बढ़ती जा रही है। इसे कोई नहीं एड्रेस करता है। प्रवास की वजह से गाँव के गाँव खाली हो रहे हैं। नगा गांवों की तो कोई बात ही नहीं करता। मुझे नहीं लगता कि नगा गुट ग्रामीण नागाओं की बात रखते भी हैं। पहाड़ी गांव में पानी की किल्लत है। जलवायु परिवर्तन की वजह से फसलें बर्बाद हो रही हैं। लोग मजदूरी के लिए गाँव छोड़ने के लिए मजबूर हो रहे हैं। गाँव खाली हो रहे हैं। समझौता होना तो जरूरी है लेकिन जरूरी यह भी है कि आम नगाओं की जिंदगी को कोई सुनें। ताकि नगा जिंदगी पटरी पर आ जाए।  

लेकिन जो हुआ है वह इसका बिलकुल उलट है। नगालैंड को अशांत क्षेत्र घोषित कर दिया गया। नगालैंड का इतिहास संघर्ष भरा रहा है।  इस संघर्ष में वर्तमान कभी भी खबर की तरह नहीं जुड़ता है।  जुड़ता है तो हमेशा इतिहास की तरह से। इसलिए अभी भी इस सवाल का जवाब मुकम्मल तौर पर ढूढ़ना मुश्किल है कि नगालैंड को अशांत क्षेत्र क्यों घोषित किया गया?

Nagaland
Discrimination With Nagaland
Constitutional right
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Disturbed Areas
AFSPA

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