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जनगणना पर नक़वी को पसंद नहीं आया मुख्यमंत्री योगी का बयान!

जनगणना को लेकर योगी आदित्यनाथ के बयान पर नकवी का जवाब सियासी महकमें में खूब घूम रहा है, वहीं विश्व जनसंख्या दिवस पर जारी रिपोर्ट के अनुसार अगले साल तक भारत की जनसंख्या चीन से ज्यादा हो सकती है।
Yogi and  Naqvi

सर्वधर्म हिताय-सर्वधर्म सुखाये... इस पंक्ति के ज़रिए हिंदुस्तान में भाईचारे और आपसी सौहार्द का पैमाना तय किया जाता है, लेकिन छोटी-छोटी चीज़ों का राजनीतिकरण और उनका ध्रुवीकरण करना जैसे मौजूदा राजनीतिक दलों का पेशा हो गया हो।

राजनीतिक दलों का यही पेशा इन दिनों जनगणना कानून को हथियार बनाकर धार्मिक उन्माद को बढ़ावा देने की पूरी कोशिश कर रहा है। जैसे बीते सोमवार यानी 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस था, इस दिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ लखनऊ में आयोजित एक कार्यक्रम में संबोधित करने पहुंचे थे। इस दौरान उन्होंने कहा कि ''जब हम परिवार नियोजन और जनसंख्या स्थिरीकरण की बात करते हैं तो हमें इस बात को ध्यान में रखना होगा कि जनसंख्या नियंत्रण का कार्यक्रम सफलता पूर्वक आगे बढ़े लेकिन जनसांख्यिकी असंतुलन की स्थिति पैदा न हो जाए। ऐसा न हो कि किसी वर्ग की आबादी की बढ़ने की गति और उसका प्रतिशत ज़्यादा हो और कुछ जो मूल निवासी हों उन लोगों की आबादी का स्थिरीकरण में हमलोग जागरूकता के माध्यम से एन्फ़ोर्समेंट के माध्यम से जनसंख्या संतुलन की स्थिति पैदा करें।'

शायद ही इस बात की व्याख्या करने की ज़रूरत है कि योगी आदित्यनाथ के बयान में "किसी वर्ग और मूल निवासी’’ जैसे शब्दों का क्या मतलब है। यही कारण है कि मोदी कैबिनेट में मंत्री और पूर्व राज्यसभा सांसद मुख्तार अब्बास नकवी को भी योगी की ये बात पसंद नहीं आई और उन्होंने भी एक बयान जारी कर दिया। नकवी ने कहा कि बेतहाशा जनसंख्या विस्फोट किसी मज़हब की नहीं, बल्कि मुल्क की मुसीबत है, इसे ज़ाति धर्म से ज़ोड़ना जायज़ नहीं है।

अब सवाल ये है कि जो मुख्तार अब्बास नकवी कल तक भाजपा की हर हां में हां मिलाते थे, चाहे वो मुस्लिमों के खिलाफ बात हो या फिर पक्ष में.. आज वही सिर्फ योगी आदित्यनाथ के एक बयान से नाराज़ हो गए। इसके पीछे भी कई कारण बताए जा रहे हैं, जैसे पिछले दिनों मुख्तार अब्बास नक़वी का राज्यसभा से कार्यकाल खत्म हो गया, जिसके कारण उन्हें मंत्री पद से भी इस्तीफा देना पड़ा उन्हें उम्मीद थी कि वो फिर से राज्यसभा के लिए उम्मीदवार हो सकते हैं लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

अब ख़बरें आ रही हैं कि मुख्तार अब्बास नकवी को उपराष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाया जा सकता है, कि इस बात में कितनी सच्चाई है ये तो आने वाला वक्त तय करेगा, लेकिन ये बात भी सच है कि पिछले दिनों हुए रामपुर लोकसभा के लिए उपचुनावों में भी नक़वी को टिकट दिए जाने की बात चल रही थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कहने का मतलब ये भाजपा के एजेंडे में शायद अब नकवी फिट नहीं बैठ रहे हैं।

नकवी ने जब ट्वीट कर योगी आदित्यनाथ के बयान का जवाब दिया तो ख़ुद को फिल्म क्रिटिक कहने वाले कमाल आर खान ने एक रिट्वीट किया। उन्होंने कहा कि "बहुत देर कर दी मेहरबां आते-आते। जनाब मुख्तार अब्बास नकवी अब तीर कमान से निकल चुका है, अब आपको ये कहने से कुछ नहीं होने वाला। अभी तो देखते जाइए कि मुसलमानों पर और क्या-क्या इल्ज़ाम लगेगा। आप किसी भी पार्टी में हों, मुसलमान तो आप रहोगे ही! आपको शुभकामनाएं।’’

फिलहाल आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश लॉ कमिशन ने उत्तर प्रदेश जनसंख्या बिल 2021 का एक ड्राफ्ट सौंपा है। समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, ड्राफ्ट में दो बच्चों की बात कही गई है।

ख़ैर... राजनीति से थोड़ा दूर चले तो संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट कहती है कि अगले साल भारत जनसंख्या के मामले में चीन को पीछे छोड़ सकता है। रिपोर्ट के अनुसार मौजूदा वक्त में भारत की कुल आबादी 1.412 अरब है, जबकि चीन की आबादी 1.426 करोड़ है। नवंबर 2022 में दुनिया की आबादी 8 अरब हो जाएगी।

यूएन की एक रिपोर्ट के अनुसार 1950 के बाद वैश्विक आबादी सबसे धीमी गति से बढ़ रही है। 2020 में एक फीसदी की गिरावट आई थी। संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के मुताबिक 2030 तक दुनिया की आबादी 8.5 अरब हो जाएगी और 2050 में 9.7 अरब।

अमेरिका की प्यू रिसर्च सेंटर के अध्ययन में पता चला है कि भारत में धार्मिक समूहों की प्रजनन दर में काफी कमी आई है। जिसका नतीजा ये रहा कि साल 1951 से लेकर अबतक देश की धार्मिक आबादी और ढांचे में मामूली अंतर आया है।

रिपोर्ट के अनुसार भारत में सबसे ज्यादा जनसंख्या हिंदू और मुसलमानों की है, जो दोनों को मिलाकर 94 प्रतिशत यायी 120 करोड़ के करीब होती है। वहीं ईसाई, सिख और बौद्ध और जैन धर्मों के अनुयायी भारतीय जनसंख्या का महज़ 6 प्रतिशत हिस्सा हैं।

फिलहाल भारत को लेकर संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट भी डराने वाली है, लेकिन सवाल ये है कि भारत में जो जनगणना साल 2021 में होनी थी वो क्यों नहीं हुई। और सवाल ये भी है कि जब ये जनगणना होती है तो सिर्फ दलितों, अति पिछड़ों और सवर्णों को क्यों गिना जाता है, ओबीसी की गिनती क्यों नहीं की जाती?

इन सभी सवालों का जवाब भारत में नफा-नुकसान की राजनीति भी है, क्योंकि ओबीसी को मिलने वाले आरक्षण के खिलाफ कब सवर्ण जातियों की आवाज़ें बुलंद हो जाएं कुछ कहा नहीं जा सकता जिससे केंद्र में बैठी सरकार की गद्दी पर आंच आ सकती हैं।

हालांकि आपको याद होगा कि उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में कैसे योगी आदित्यनाथ ने 80 बनाम 20 का नारा दिया था, जो अब सच होता भी दिखा दे रहा है, कहने का अर्थ ये है कि कहीं न कहीं भाजपा अब अपनी राजनीति को सिर्फ हिंदुओं तक ही सीमित रखना चाहती है, जिसका उदाहरण आप सत्ताधारी दल की ओर से लोकसभा और राज्यसभा या फिर किसी राज्य की विधानसभा में सदस्यों की गिनती से देख सकते हैं जो फिलहाल शून्य है।

हालांकि इस बात की पुष्टि के लिए अभी थोड़ा इंतज़ार और किया जा सकता है... लेकिन अगर एनडीए की ओर से मुख्तार अब्बास नकवी को उपराष्ट्रपति का उम्मीदवार नहीं बनाया गया तो भाजपा की सिर्फ हिंदुओं के लिए राजनीति पर पुख्ता मुहर लगाई जा सकती है।

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