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न किसानों की आमदनी बढ़ी, न युवाओं को रोज़गार मिला, जनता का भरोसा कैसे जीतेंगे त्रिवेंद्र सिंह रावत?

किसान खेत-खेती छोड़ देते हैं और चुपचाप महानगरों की भीड़ में खोने के लिए निकल जाते हैं। सड़क के लिए संघर्ष हो, किसानों की मुश्किल हो, आंदोलनकारियों का गुस्सा हो, कर्मचारियों की निराशा हो, उत्तराखंड राज्य बनने के बाद से अब तक मूलभूत सुविधाओं के लिए जूझ रहा है।
त्रिवेंद्र सिंह रावत
एक सर्वे में त्रिवेंद्र सिंह रावत के कामकाज को मात्र 0.4 प्रतिशत लोगों ने पसंद किया

ऑल वेदर रोड परियोजना के लिए पहाड़-जंगल-पर्यावरण सब दरकिनार कर तेज़ी से कार्य करने वाले राज्य उत्तराखंड के सीमांत जिले चमोली के घाट ब्लॉक के लोग 45 दिनों से सड़क के लिए संघर्ष कर रहे हैं। दिसंबर की जबरदस्त ठंड में मानव-श्रृंखला बनाई, टंकी पर चढ़े, आमरण अनशन किया ताकि सड़क चौड़ी हो और उनका जीवन आसान बने। पहाड़ में अब भी सरकार से निराश होने पर गांव के लोग फावड़े-कुदाल लेकर खुद सड़क बनाने में जुट जाते हैं। पर्वतीय राज्य उत्तराखंड में ये निराशा इतनी गहरी हो चुकी है। किसान खेत-खेती छोड़ देते हैं और चुपचाप महानगरों की भीड़ में खोने के लिए निकल जाते हैं। 

सड़क के लिए संघर्ष हो, किसानों की मुश्किल हो, आंदोलनकारियों का गुस्सा हो, कर्मचारियों की निराशा हो, उत्तराखंड राज्य बनने के बाद से अब तक मूलभूत सुविधाओं के लिए जूझ रहा है।

सड़क की मांग को लेकर आंदोलन। फोटो साभार : सोशल मीडिया

सर्वे और सवाल

एबीपी न्यूज़-सी वोटर ने 15 जनवरी को एक सर्वे रिपोर्ट जारी की। ये सर्वे देश की सभी 543 लोकसभा सीटों पर 30 हज़ार से ज्यादा लोगों की प्रतिक्रिया और पिछले 12 हफ्ते के समय में करने का दावा किया गया है। सर्वे का सैंपल साइज़ बहुत अधिक नहीं है लेकिन इसके नतीजे पढ़ना दिलचस्प है। सर्वे में सबसे अच्छे तीन मुख्यमंत्रियों में बीजेपी शासित राज्य का कोई मुख्यमंत्री नहीं है। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत इस सूची में सबसे आखिरी स्थान पर आए हैं।

सर्वे के मुताबिक 27 फीसदी लोग उत्तराखंड सरकार के कामकाज से बहुत ख़ुश हैं, 23 फीसदी ख़ुश हैं। यानी उत्तराखंड सरकार के कामकाज से 50 प्रतिशत लोग खुश हैं जबकि 50 फीसदी लोग नाख़ुश हैं। साथ ही एनडीए शासित राज्यों में मुख्यमंत्रियों पर लोगों की प्रतिक्रिया ली गई। तो उत्तराखंड में मात्र 0.4 फीसदी लोग मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से ख़ुश नज़र आए। जबकि 46 फीसदी लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से ख़ुश मिले। हरियाणा और पंजाब के मुख्यमंत्री भी इस सूची में आखिरी स्थानों पर हैं।

हालांकि नारायण दत्त तिवारी के बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत ही ऐसे मुख्यमंत्री हैं जो अपना कार्यकाल पूरा करने की ओर बढ़ रहे हैं। 20 वर्ष और पांच सरकार (चार निर्वाचित) वाले राज्य ने 9 मुख्यमंत्री देखे हैं। नारायण दत्त तिवारी ने अपना कार्यकाल पूरा किया। बाकी सभी सरकारों में तख्ता पलट होते रहे। त्रिवेंद्र सिंह सरकार के समय में भी नेतृत्व परिवर्तन की अटकलें जब-तब हावी रहीं। कोरोना के समय ने नेतृत्व परिवर्तन की अटकलों को बंद कर दिया।

उत्तराखंड में अगले वर्ष विधानसभा चुनाव होने हैं। अपना कार्यकाल पूरा करने की दिशा में अग्रसर त्रिवेंद्र सिंह रावत क्या जनता का भरोसा जीत सके हैं?

त्रिवेंद्र सरकार के कामकाज पर एक पहाड़ी किसान की राय

पहाड़ के बीज, अनाज, कृषि और संस्कृति को सहेजने वाले किसान विजय जड़धारी कहते हैं कि सरकारें अपने फ़ैसले मनवाने के लिए हर तरीके आज़मा रही हैं। हमारी खेती अब भी अनिश्चित है। वे कहते हैं, “किसानों की आमदनी दोगुनी करने वाली बात तो कहीं देखने को नहीं मिली। ऐसा भी नहीं लगता कि अगले एक साल में आय दोगुनी हो जाएगी। यहां अगस्त के बाद छह महीने से बारिश नहीं हुई है। सींचित खेतों को छोड़ दें तो असिंतिच कृषि भूमि पर पहाड़ी गेहूं की बुवाई तो हुई ही नहीं। बारिश न होने की वजह से गेहूं, जौ, मसूर समेत रबी की फसलें इस बार नहीं बोयी जा सकीं। खेती को लेकर निश्चितता नहीं है। फ़सल बीमा जैसी योजनाएं भी कहीं धरातल पर नहीं हैं।”

प्रदेश की कुल सिंचित भूमि का लगभग 13 प्रतिशत ही पर्वतीय क्षेत्र में आता है। यहां ज्यादातर खेती बारिश पर निर्भर करती है।

विजय जड़धारी बताते हैं “डेढ़-दो साल पहले किसानों ने फ़सल का बीमा कराया था। किसानों को 70 रुपये, 40 रुपये जैसी रकम के चेक मिले। इसमें भी 35-40 रुपये बैंक का कलेक्शन चार्ज शामिल था। वह कहते हैं कि चारधाम सड़कें, बांध और हाईड्रो पावर प्रोजेक्ट पर सरकार बहुत तेजी दिखाती है। लेकिन गांव की सड़कें जस की तस हैं। बहुत बुरा हाल है।”

पहाड़ के युवाओं की उम्मीद

“रोज़गार?  पलायन?  अस्पताल? शिक्षा ? सड़क ? भू-कानून ? अभी भी वक्त है, कहीं देर ना हो जाए। रेवड़ी बांटना छोड़ दीजिए ”।

ये ट्विटर पर एक पहाड़ी युवा की प्रतिक्रिया है। उत्तराखंड अलग राज्य बनने के पीछे उद्देश्य यही था कि यहां की सड़क, शिक्षा, खेती, बिजली, पानी जैसी मूलभूत समस्याएं दूर होंगी। रोजगार मिलेगा। पलायन रुकेगा। ये सारी समस्याएं अब और मुश्किल दौर में पहुंच गई हैं।

यहां के लोगों की नाराज़गी इस बात पर भी है कि मुज़फ़्फ़रनगर गोली कांड, रामपुर तिराहा गोलीकांड समेत कई संघर्षों और लंबे आंदोलनों से गुज़रकर जिस राज्य को हासिल किया, मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत उसे दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी का तोहफ़ा बताते हैं। 2017 के विधानसभा चुनावों में प्रदेश में बैनरों, पोस्टरों और होर्डिगों और मीडिया में विज्ञापन चलाए गए “अटल जी ने बनाया, मोदी जी संवारेंगे”।

सरकार के मंत्री भी नाराज़, अफ़सरों पर ज़्यादा भरोसा

त्रिवेंद्र सरकार में मुश्किल ये है कि ज्यादातर मंत्री भी नाख़ुश हैं। कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज अधिकारियों की कॉन्फिडेंशियल रिपोर्ट लिखने के प्रावधान को लागू कराने की बात कह चुके हैं। अफ़सरों पर आरोप है कि वे मंत्रियों की बात नहीं सुनते। सतपाल महाराज, रेखा आर्य, मदन कौशिक, अरविंद पांडे जैसे राज्य के दिग्गज नेता ये शिकायत कर चुके हैं कि मंत्रियों की बैठकों में अधिकारी आते तक नहीं। मुख्यमंत्री पर अफ़सरों की बात मानने के आरोप लगते हैं।

सर्वे के सरोकार

प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष किशोर उपाध्याय एबीपी-सी वोटर के सर्वे पर भी सवाल उठाते हैं। उनके मुताबिक उत्तराखंड और हरियाणा दोनों ही जगह के हालात देखते हुए केंद्र की लीडरशिप भी इन राज्यों के मुखिया को बोझ के रूप में देख रही है और ये स्पॉन्सर्ड सर्वे लगता है। केंद्र की लीडरशिप को इन्हें कुर्सी से हटाने का बहाना चाहिए। किसी भी बड़े नेता को कोई प्यारा नहीं लगता। किशोर कहते हैं कि मीडिया के मौजूदा दौर को देखकर इस सर्वे के नतीजे इस रूप में पढ़े जाने चाहिए कि दिल्ली की लीडरशिप हरियाणा और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री को उतारना चाहती है।

किशोर उपाध्याय के मुताबिक दिल्ली में एनडीए शासित सरकार होने के चलते त्रिवेंद्र सिंह रावत के पास अच्छा मौका था लेकिन वे इसका इस्तेमाल नहीं कर पाए। उद्योगपतियों के लिए रेड कारपेट बिछायी और स्थानीय लोगों की अवहेलना की। उनके सलाहाकर से लेकर कई विभागों पर घोटाले के आरोप लगे हैं।

गैरसैंण पर दांव

जिस समय राज्य में नेतृत्व परिवर्तन की अटकलें तेज़ थीं, मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भराड़ीसैंण में विधानसभा सत्र के दौरान बेहद नाटकीय तरीके से गैरसैंण स्थित भराड़ीसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित कर दिया। उनके इस फ़ैसले की जानकारी साथी मंत्रियों तक को नहीं थी।

किशोर उपाध्याय कहते हैं “त्रिवेंद्र सिंह रावत को लग रहा था कि वे मुख्यमंत्री पद से हटाए जा सकते हैं, इसलिए उन्होंने गैरसैंण का मुद्दा छेड़ दिया। उनका ये फ़ैसला अब तक का सबसे अविवेकपूर्ण फ़ैसला है। एक छोटे से राज्य में दो राजधानियों का कोई मतलब नहीं। आपको पहाड़ों की समस्या जाननी है तो सर्दियों में पहाड़ पर रहिए और भराड़ीसैंण को शीतकालीन राजधानी घोषित करते। वे किस्मत के धनी हैं। इसके बाद कोविड और लॉकडाउन के चलते नेतृत्व परिवर्तन का मुद्दा टल गया।”  

त्रिवेंद्र सरकार के कार्यकाल में नैनीताल हाईकोर्ट ने कई मसलों पर राज्य सरकार के लिए फ़ैसलों पर सवाल उठाए। पूर्व मुख्यमंत्रियों के लिए सुविधाएं देने से जुड़े अध्यादेश से लेकर ताज़ा मामले में शिवालिक एलिफेंट रिजर्व की अधिसूचना निरस्त करने के सरकार के कई फ़ैसले पर नैनीताल हाईकोर्ट रोक लगा चुका है।

जैसा कि विजय जड़धारी कहते हैं “ किसान आंदोलन, किसान ही नहीं बल्कि लोकतंत्र की हिफाजत के लिए भी जरूरी है। लोकतंत्र में लोगों की आवाज सुनी जानी चाहिए।” त्रिवेंद्र सिंह रावत पर भी यही आरोप हैं कि वे लोगों की बात नहीं सुनते।

(देहरादून स्थित वर्षा सिंह स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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