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नया भारत: हम प्लास्टिक खरीदें तो जुर्म और उनका विधायक खरीदना भी गुनाह नहीं!

"पुराने भारत में, राजनीतिक वर्ग बेशर्म था जबकि नए भारत में, नियमों का उल्लंघन करने के लिए नियम बनाए जाते हैं।"
New India

मेरी एक क्रांतिकारी वामपंथी दोस्त कॉफ़ी शॉप की दीवार पर टंगे टीवी पर मुंबई में घट रही राजनीतिक घटनाओं को देख रही थीं जिसमें बिना सांस लिए एंकर रिपोर्ट कर रहा था। मैंने और उसने 23 नवंबर की सुबह को मिलने का कार्यक्रम बनाया था, जाहिर है हम इस बात से बिलकुल अनभिज्ञ थे कि देवेंद्र फडणवीस को उसी सुबह मुख्यमंत्री की शपथ दिला दी जाएगी और अजित पवार को उप-मुख्यमंत्री की।
"यह एक तख्तापलट है, एक संवैधानिक तख्तापलट," मैंने मसख़रेपन से कहा।

मेरी क्रांतिकारी दोस्त ने मेरी तरफ मुरझाई सी नज़रों से देखा और कहा, "आधी रात को जब दुनिया सो रही थी, तो भारत को नया जीवन और आज़ादी मिली थी।"

मैंने, "नेहरू," यानी भारत के पहले प्रधानमंत्री के प्रमुख भाषण को इन पंक्तियों से पहचाना और उसकी आवाज़ में कटाक्ष को नोट किया।
वह टीवी एंकर को फिर से सुनने लगी जिसमें वे साहब अनुमान लगा रहे थे कि फडणवीस और पवार को 145 विधायकों का समर्थन कैसे प्राप्त होगा। यह वह संख्या है जिसे उन्हें महाराष्ट्र विधानसभा में बहुमत जीतने के लिए जरूरत थी। मेरी नंबर गेम में कोई ज्यादा रुचि नहीं थी इसलिए, मैंने कहा, “आराम करो। क्योंकि विधायकों की निष्ठा को खरीदने और राजनीतिक दलों को विभाजित करने में कुछ दिन तो लगेंगे। ”
उसने इस पर थोड़ी सी भौं चढ़ाई और कॉफी का एक घूंट भर कर कुछ रहस्यमय तरीके से कहा, “हमें कचरे को कचरे के डब्बे में डालने को कहा जाता है। हमें प्लास्टिक का इस्तेमाल न करने को कहा जाता है। ”

"क्या कह रही हो?" मैंने पूछा, क्योंकि मैं महाराष्ट्र में उसकी टिप्पणी को राजनीतिक धोखाधड़ी की पृष्ठभूमि में समझने में असमर्थ था।
"हमारा प्लास्टिक का इस्तेमाल करना जुर्म, लेकिन वे विधायक खरीद सकते हैं," उसने कहा। "हमें कूड़ा नहीं फैलाना चाहिए, लेकिन उन्हे भ्रष्ट होने की आज़ादी हैं।"

मैंने कहा कि भारत के चुनावी इतिहास में ऐसा पहली बार तो नहीं हुआ है कि किसी राज्यपाल ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ऐसे व्यक्ति को दिला दी जिसके पास विधानसभा में बहुमत न हो। मैंने उन्हें उन राज्यपालों और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के बारे में याद दिलाया, जो केवल इंदिरा गांधी की बोली बोलने के लिए बहुत ही उत्सुक रहते थे।

"हाँ", उसने कहा। "लेकिन हमें बताया जा रहा है कि हम अब एक नए भारत में रह रहे हैं।"

मैंने अपनी क्रांतिकारी वामपंथी दोस्त की तरफ पलकें झपकाईं, लेकिन मैं अभी भी प्लास्टिक के खिलाफ अभियान और मुंबई के राजनीतिक घटनाक्रम के बीच संबंध का पता लगाने में असमर्थ था। हालात को न समझ पाने की मेरे क्षमता से नाराज़ होकर उसने कहा: "मुझे लगता था कि नए भारत का विचार तरक्की और विकास के बारे में था, जिसके बारे में जितना कम कहा जाए, उतना बेहतर है? क्या नए भारत की परिकल्पना भ्रष्टाचार और काली अर्थव्यवस्था के खतरे से निपटने से अधिक की बात नहीं है?”

मैंने अपनी क्रांतिकारी वामपंथी दोस्त से तुरंत नए भारत की उनकी धारणा के बारे में नहीं पूछा, क्योंकि मुझे बैंकों और एटीएम के बाहर हफ्तों तक लगी लंबी कतारों की वे छवियाँ याद हैं जब नवंबर 2016 में, मोदी ने उच्च मूल्यवर्ग के नोटों को हटाने के लिए अपने फैसले की घोषणा की थी। कतारों में मरने वाले लोगों की और रोज़गार पाने में असमर्थ दिहाड़ी मज़दूर और सुनसान पड़े बाज़ारों की तस्वीरें आज भी मेरे जेहन मैं घूम जाती हैं।

"मुझे अब जाकर बात समझ आई," मैंने कहा। उसके व्यंग्यात्मक लहजे की नकल करने की कोशिश करते हुए, मैंने कहा, "विधायकों का समर्थन खरीदने के लिए चेक या बैंक ड्राफ्ट का इस्तेमाल नहीं होता हैं।"

मेरा व्यंग्य उसके चेहरे पर मुस्कुरान भी नहीं ला सका। उसने कहा कि नए भारत के विचार में जो अंतर्निहित दर्शन था वह कि लोगों के व्यवहार को बदलना ताकि वे अपने स्वार्थ को छोड़ राष्ट्र के लिए सोचें, ताकि बड़े सार्वजनिक हित को साधने का काम किया जा सके। यह नए भारत की वैचारिक नींव थी, जिसमें नैतिकता, परोपकारिता और परिवर्तन को साथ साथ चलना था। उसने मोदी सरकार के उस अभियान की चर्चा की जिसमें लोगों से पूछा गया था कि जो एलपीजी सिलेंडर को बाजार मूल्य पर खरीद कर भुगतान स्वेच्छा से करना चाहते हैं और अपनी सब्सिडी वाले कनेक्शन को त्यागना चाहते हैं। करीब एक करोड़ लोगों ने अपनी गैस सब्सिडी का समर्पण किया था और गरीब परिवारों को सस्ते रसोई गैस का लाभ उठाने में सक्षम बनाया, उसने इसके लिए सरकारी आंकड़ों का हवाला दिया।

उसने कहा कि "हम सब को तो अपने व्यवहार को बदलना चाहिए," और फिर थोड़ा रुक कर कहा कि सिर्फ "उन्हें छोड़कर।"
आपका मतलब है "भाजपा" मैंने कहा, आखिरकार वह बात अब समझ आई कि उसने जब कहा था कि  "हमारा प्लास्टिक का इस्तेमाल करना जुर्म और उनका विधायक खरीदना भी गुनाह नहीं।" जाहिर है, हम भाजपा की वजह से पुराने भारत में फंस गए हैं - जब विधायकों को खरीदा जाता था, और खर्च की गई रकम को वापस कमाया जाता था। इसलिए, अब निवेश की वसूली के लिए नीतियाँ तैयार की जाती हैं। भ्रष्टाचार का घेरा बदस्तूर बरकरार है।

"यह पुराना भारत नए लेबल के साथ है," मैंने कहा।

मेरी क्रांतिकारी वामपंथी दोस्त ने कहा कि यह नया भारत पुराने समय में नहीं था। इस नए भारत की ऐसी विशेषताएं उस वक़्त मौजूद नहीं थीं, या यूं कहें कि 40 साल पहले नहीं थी। अपने दावे को संदर्भित करने के लिए उसने कहा कि वह इस बात का आसानी से पता लगा सकती है कि महाराष्ट्र में भाजपा का खेल क्या था। चूंकि अजित पवार राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के विधायक दल के नेता थे, इसलिए फडणवीस के समर्थन का एक पत्र भाजपा के पास यह दावा करने के लिए होगा कि राज्यपाल को कानूनी रूप से दोनों नेताओं को शपथ दिलाने का अधिकार था।

उसने कहा कि "पुराने भारत में, राजनीतिक वर्ग बेशर्म था जबकि नए भारत में, नियमों का उल्लंघन करने के लिए नियम बनाए जाते हैं।"
जाहिर है, वह इस बात की तरफ इशारा कर रही थे कि भाजपा ने धारा 370 को कैसे निरस्त किया था।

मेरी क्रांतिकारी वामपंथी दोस्त ने कहा कि यह सिर्फ कश्मीर के मामले में ही ऐसा नहीं किया गया है। चार साल तक, केंद्र सरकार ने जानबूझकर दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार की ताकतों को सीमित करने के लिए संविधान को गलत तरीके से पढ़ा, जब तक कि सुप्रीम कोर्ट ने फैसला नहीं दे दिया कि इसकी व्याख्या गलत की गई है। इसकी इस बात से भी पुष्टि हो जाती है कि कैसे जांच एजेंसियों द्वारा ‘उचित प्रक्रिया’ का इस्तेमाल कर राजनीतिक और वैचारिक प्रतिद्वंद्वियों को जेल में बंद किया जा रहा है।
 "यह कानून के शासन की अराजकता है। जाओ और पता करो" मेरी क्रांतिकारी वामपंथी दोस्त ने कहा।

फिर मैंने कहा “क्या महाराष्ट्र नए भारत का एक रूपक है?"

उसने जवाब में कहा, "भाजपा ने एक नहीं बल्कि कई मुद्दों जैसे धारा 370 और बालाकोट पर भारतीय वायु सेना के हमले पर महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव लड़ा था। क्या महाराष्ट्र के किसानों के लिए यह मायने रखता है कि जम्मू-कश्मीर पूर्ण राज्य है या केंद्र शासित प्रदेश? भाजपा ने शरद पवार जैसे नेताओं का अपमान किया, और क्षेत्रीय गर्व के नाम पर छाती पीटी। यह ध्रुवीकरण की राजनीति को लगातार आगे बढ़ा रही है – यह मुसलमानों या उस प्रमुख जाति को निशाना बना रही है जो उसकी तरफ नहीं है। उसने बताया कि आगे चलकर देश की आबादी का राष्ट्रीय रजिस्टर तैयार करने और अयोध्या विवाद पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को देखते हुए भविष्य में इसके परिणामों को भुगतने के लिए तैयार रहना होगा।

मेरी क्रांतिकारी वामपंथी दोस्त ने कॉफी कप को टेबल पर रखा और कहा, "मोदी का नया भारत एक अजीब भारत है।"

(एज़ाज़ अशरफ़ एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।)

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

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