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तिरछी नज़र: सोनम वांगचुक को तो जेल जाना ही था!

सोनम वांगचुक बहुत बड़े देशद्रोही हैं। जो देश के ख़िलाफ़ षड़यंत्र रच रहे थे। बच्चों के लिए स्कूल खोले। वैज्ञानिक खोजें कीं। पर्यावरण पर काम किया। सैनिकों के लिए अपने पैसे से सोलर ऊर्जा से गर्म रहने वाले आवास बनवाये…
SONAM CARTOON
कार्टूनिस्ट सतीश आचार्य के X हैंडल से साभार

 

सरकार जी ने अभी बीस एक दिन पहले एक ‘देशद्रोही’, ‘दुर्दान्त आतंकवादी’ को गिरफ्तार किया है। और लेह से गिरफ्तार कर के उसे जोधपुर की जेल में सड़ने के लिए डाल दिया।

उसका नाम सोनम वांगचुक है।

मुझे तो उसके नाम से ही समझ आता है कि वह कोई देशद्रोही ही है, आतंकवादी ही है। ऐसा ‘चीनियों’ जैसा नाम किसी ऐसे आतंकवादी का ही हो सकता है जिसका चीन से संबंध हो। ऐसा चीनियों जैसा नाम किसी देशद्रोही का ही हो सकता है। वह अपना नाम कोई सुरेंदर, योगेंदर, नरेंदर जैसा नहीं रख सकता था क्या? या फिर अमित, अजीत, अजय जैसा कुछ। नाम कोई भी हो, अपने नाम के आगे पीछे योगी, साधु, संत या बाबा लगा कर भी तो देशभक्त बना जा सकता है।

चलो नाम की बात छोड़ो, काम की बात करते हैं। भई नाम तो माँ बाप ने रख दिया। पर काम तो आपने तो अपने आप चुना। ये सोनम वांगचुक भाईसाब कर क्या रहे हैं? पता चला है इंजीनिरिंग पढ़ी थी। इंजीनियरिंग पढ़ी थी तो देश के उत्थान में लगते। ऐसे पुल बनाते जो बनते ही टूट जाते। ऐसी सड़कें बनाते जो उद्धघाटन का नारियल फोड़ते ही क्रेक कर जातीं। पहली बारिश में सारी बह जातीं। देश के लिए किसी कंस्ट्रक्टिव काम में लगते, यह क्या ही डिस्ट्रक्शन में लग गए।

कर क्या रहे हैं, बच्चों को पढ़ा रहे हैं। आज कल के काल में पढ़ाना तो वैसे भी देशद्रोह है। यह पढ़ाना लिखाना जुर्म है आज कल। और सोनम वांगचुक पढ़ा भी किनको रहे हो, गरीब बच्चों को। ऐसे बच्चों को जो फेल हो गए हों। यह तो बहुत ही बड़ा देशद्रोह है। अरे भाई, देशप्रेमी हो और स्कूल खोलना ही है तो कोई ऐसा स्कूल खोलो जिसमें लाखों की फीस हो और अमीरों के बच्चे पढ़ते हों। ऐसे देशप्रेमी देश भर में लाखों की संख्या में फैले हुए हैं और धड़ल्ले से स्कूल चला रहे हैं। लेकिन सोनम वांगचुक जैसे देशद्रोही, जो गरीब बच्चों को पढ़ाएं, और वे बच्चे पढ़ लिख कर सरकार जी से नौकरी मांगें, बेरोजगारी बढ़ाएं, यह सरकार जी को बिल्कुल भी पसंद नहीं हैं। यह सरकार जी को बिल्कुल भी पसंद नहीं है।

कहते हैं यह सोनम वांगचुक एक वैज्ञानिक भी है। विज्ञान के मामले में कई खोज भी की हैं। बताओ जरा, सोनम वांगचुक ने भला ऐसा कोई बादल बनाया है जो रडार के सामने आ जाये तो रडार हवाई जहाज को न देख सके। या फिर ऐसी रडार जो बादलों के पार न देख सके। नहीं ना। या फिर नाले की गैस से खाना बनाने की विधि खोजी हो।  ए प्लस बी होल स्क्वायर में से एक्स्ट्रा टू ए बी निकाला है? और उसका इस्तेमाल भी किया हो। या फिर...। बताओ ऐसा क्या किया है उसने कि सरकार जी उसको वैज्ञानिक मानें। अरे छोड़ो यार, दो चार छोटी मोटी खोज कर दी होंगी और अपने को वैज्ञानिक समझ बैठे हैं। ऐसे वैज्ञानिकों को तो हमारे सरकार जी जूती पर रखते हैं। समझे क्या?

यह देशद्रोही पाकिस्तान भी हो आया। यू एन की मीटिंग के लिए गया था। और वह मीटिंग थी पर्यावरण पर। पर्यावरण से ध्यान आया, हमारे तो सरकार जी कब का बता चुके हैं, पूरे देश को बता चुके हैं, यह पर्यावरण वर्यावरण कुछ नहीं होता है। वह तो हम बूढ़े हो रहे हैं इसलिए सर्दी गर्मी ज्यादा लगती है। इस सोनम वांगचुक ने वहाँ जा कर सरकार जी की थ्योरी का समर्थन तो नहीं ही किया होगा। हो गई ना देशद्रोह की बात। वहाँ जा कर पर्यावरण की धज्जियाँ उधेड़ता और सरकार जी की बात को रखता तो होती देशप्रेम की बात।

असलियत में पर्यावरण तो बहाना था। असली मकसद तो पाकिस्तान जाना था। अरे पाकिस्तान जाना है तो यू एन के आमंत्रण की क्या जरूरत है। बिना निमंत्रण के नहीं जा सकते थे क्या? बिना निमंत्रण जाते और बिरयानी खा कर आ जाते। उससे आपकी देशभक्ति भी बची रहती है और पूरा आई टी सेल आपकी प्रशंसा करता। देशभक्ति बचाने के लिए एक और चीज है। अगर पाकिस्तान जाओ तो जिन्ना की मज़ार पर फूल चढ़ा कर आओ, सिर नवा कर आओ। 

एक बात और, हमें यह वीडियो या फोटो भी ढूंढनी है कि कहीं ये सोनम वांगचुक पाकिस्तान में किसी पाकिस्तानी से हाथ तो नहीं मिला रहे। हम पाकिस्तानी खिलाड़ियों के साथ खेल तो सकते हैं, उनके बल्ले से निकला हुआ कैच तो पकड़ सकते हैं, उनके द्वारा फेंकी गई गेंद पर चौक्का, छक्का तो मार सकते हैं। पर हाथ नहीं मिला सकते हैं। साथ साथ खेलना कूदना देशप्रेम है और हाथ मिलाना देशद्रोह। यह देश का न्यू नॉर्मल है।

सोनम वांगचुक बांग्लादेश के मोहम्मद यूनुस जी से भी मिला। कई साल पहले मिला। ये मोहम्मद यूनुस वही हैं जिन्होंने बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद वहाँ की सत्ता सम्हाली थी। दोनों, सोनम वांगचुक और मोहम्मद यूनुस ने क्या बातचीत की होगी? यही ना कि तख्तापलट कैसे करना है और उसके बाद सत्ता की बागडोर कैसे सम्हालनी है। और कोई बातचीत तो वे दोनों कुछ कर ही नहीं सकते थे। और मिले भी कब, 2020 में। बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन से चार साल पहले। न जाने कब से खिचड़ी पका रहे थे ये दोनों। लेकिन हमारे देश के सरकार जी के दिमाग़ में एक ही बात समाती है कि दो दो बुद्धिजीवी मिलेंगे तो उनकी सत्ता परिवर्तन की बात ही करेंगे। जिसके दिमाग़ में चौबीस घंटे सत्ता ही घूमती रहती है, वह और कोई बात सोच ही कैसे सकता है।

इल्जाम तो यह भी है कि सोनम वांगचुक हमारे देश की सेना को भी पटा रहे हैं। सेना को लेह लद्दाख के ठंडे बर्फीले मौसम में रहने के लिए सोलर पावर से गर्म रहने वाले टेंट बना रहे थे। वह भी अपने पैसे से। यह तो पक्का देशद्रोह का काम था। पहले आप अपना प्रपोजल सरकार को भेजते। सरकार को अच्छा लगता तो वह प्रोपोजल पर विचार करने के, उसको पास करने की रिश्वत मांगती। फाइल विभिन्न मंत्रालयों में जाती, सबकी फीस लगती। ले दे कर सरकार प्रपोजल पास करती। सरकार पास करती और हमारे अडानी जी बनाते। यह होता है देशप्रेम। सबको अपना हिस्सा मिलता। जो लोग शहीद सैनिकों के ताबूत में कमीशन खा गए, वो इसमें नहीं खाते!

सोनम वांगचुक बहुत बड़े देशद्रोही हैं। जो देश के खिलाफ षड़यंत्र रच रहे थे। पहले तो चीनियों जैसा नाम रखा, फिर बच्चों के लिए स्कूल खोले। वैज्ञानिक खोजें कीं। पर्यावरण पर काम किया। पाकिस्तान गए। नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद युसूफ से मिले। और सैनिकों के लिए अपने पैसे से सोलर ऊर्जा से गर्म रहने वाले आवास बनवाये। इतना ज्यादा देशप्रेम में कोई करता है। जरूर ही देशद्रोह में किया होगा।

सरकार जी ने अच्छा ही किया। सोनम वांगचुक को देशद्रोह और आतंकवाद की ऐसी धाराओं में गिरफ्तार किया है कि अब सारी जिंदगी जेल में ही गुजरेगी। बच्चू स्कूल चलाना, पर्यावरण, वैज्ञानिक खोज, विश्व प्रसिद्ध लोगों से मिलना, सैनिकों के लिए सुविधाएं बनाना, सब भूल जायेगा जब लेह जैसे ठंडे इलाके में रहने वाले सोनम वांगचुक की बाकी जिंदगी जोधपुर जैसे गर्म इलाके की जेल में गुजरेगी। हाँ, सबक सिखाने के लिए सरकार जी को एक काम और. करना चाहिए। जेल की सेल में हीटर और लगवा देने चाहियें।

और सरकार जी उसका ऐसा उत्पीड़न करना कि आगे आने वाली पीढ़ियां भी याद रखें। आपके उत्पीड़न की कहानियां भी देश वैसे ही सुनाये जैसे अंग्रेजों के उत्पीड़न की सुनाई जाती हैं। सचमुच, सरकार जी हैं तो सब मुमकिन है।

(इस व्यंग्य स्तंभ के लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

 

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