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नए अध्ययन के मुताबिक हड़प्पावासी न सिर्फ मांसाहारी थे, बल्कि गोमांस उनका पसंदीदा भोज्य पदार्थ था!

शोध टीम ने पाँच हड़प्पा के विभिन्न स्थलों से 172 मिट्टी से बने बर्तनों के टुकड़ों को बरामद कर उन पर मौजूद वसा अवशेषों का विश्लेषण किया है।
नए अध्ययन के मुताबिक हड़प्पावासी न सिर्फ मांसाहारी थे, बल्कि गोमांस उनका पसंदीदा भोज्य पदार्थ था!
राखीगढ़ी। | चित्र साभार: अर्कियोलोजी.विकी 

एक हालिया जारी किये गए अध्ययन में कहा गया है कि सिन्धु घाटी के लोग मांस के शौक़ीन थे और यह उनके भोजन का एक बड़ा हिस्सा हुआ करता था इससे भी बड़ी बात यह है कि घाटी के निवासियों के बीच में अन्य प्रकार के मांस से अधिक गोमांस के उपभोग को प्राथमिकता दी जाती थी ये निष्कर्ष 9 दिसंबर को जर्नल ऑफ आर्कियोलॉजिकल साइंस में प्रकाशित एक नए अध्ययन में, जिसका शीर्षक ‘उत्तरपश्चिमी भारत में सिन्धु घाटी की सभ्यता के मिट्टी के बर्तनों में वसा अवशेष’ है, में निकलकर आये हैं 

जैसा कि इसके शीर्षक से पता चलता है, शोधकर्ताओं ने सिन्धु घाटी सभ्यता के दौरान इस्तेमाल में लाये जाने वाले मिट्टी के बर्तनों में मौजूद वसा (कोशिकाओं के तत्वों) के अवशेषों का अध्ययन किया था इस कालखण्ड को विशेष रूप से विकसित हड़प्पा काल (2600/2500 ईसा पूर्व से 1900 ईसा पूर्व) के तौर पर जाना जाता है इस अध्ययन का मकसद वसा अवशेषों के विश्लेषण के जरिये हड़प्पा वासियों की भोजन की आदतों की गहराई से जाँच-पड़ताल करने से था

यह अध्ययन भारत में बसे पांच गाँवों पर केन्द्रित था जो कि कभी इस सभ्यता के हिस्से के तौर पर थे, जिनमें आलमगीरपुर (यूपी), मसूदपुर (हरियाणा), लोहारी राघो (हिसार), खनक (भिवानी, हरियाणा), राखीगढ़ी (हरियाणा) और फरमाना (रोहतक, हरियाणा) थे शोधकर्ताओं के दल ने इन इलाकों से 172 मिट्टी के बर्तनों के टुकड़े बरमाद किये थे और उनपर मौजूद वसा अवशेषों के विश्लेषण को संचालित करने का काम किया था

प्राचीन मानव की भोजन की आदतों का पता लगाने के लिए मिट्टी के बर्तनों में मौजूद वसा विश्लेषण का काम एक शक्तिशाली औजार साबित हुआ है, जिसे दुनियाभर में कई महत्वपूर्ण पुरातात्विक अध्ययनों में इस्तेमाल में लाया जाता है अध्ययन के अनुसार “पुरातात्विक उत्खनन के दौरान प्राचीन एवं ऐतिहासिक दक्षिण एशियाई स्थलों की खुदाई से बरामद किये गये मिट्टी के बर्तन सर्वव्यापी प्राचीनतम कलाकृतियों में से एक हैं

इस अध्ययन में खेती करने के दौरान इस्तेमाल में लाये जाने वाले पौध उत्पादों की जैव विविधता एवं क्षेत्रीय भिन्नताओं को भी ध्यान में रखा गया है इसके अनुसार इस काल में गर्मियों और सर्दियों में पैदा होने वाली दोनों ही प्रकार फसलों को उगाया जाता था

यह अध्ययन उक्त अवधि में इन क्षेत्रों में रह रहे लोगों की खानपान की आदतों के एक महत्वपूर्ण पहलू पर प्रकाश डालता है इसमें कहा गया है कि “घरेलू पशुओं में से गाय-बैल/भैंस की संख्या काफी प्रचुर मात्रा में हुआ करती थी, क्योंकि औसतन 50% से 60% तक के बीच में जानवरों की हड्डियाँ इन्हीं जानवरों की पाई गईं, जबकि जानवरों के अवशेषों में भेड़/बकरियों का औसत 10% पाया गया था गाय बैलों की हड्डियों का उच्च अनुपात समूचे सिन्धु आबादी में बीफ की खपत को लेकर एक सांस्कृतिक प्राथमिकता को रेखांकित करता है, जिसमें बकरे/भेड़ की खपत इसके पूरक के तौर पर थी सिंधु घाटी की बस्तियों में पशुओं की हत्या की प्रथा से इस सामान्य पृवत्ति का खुलासा होता है कि गोजातीय एवं भेड़/बकरियों की प्रजातियों के लिए वृद्ध वयस्कों के बीच में माँस की भारी खपत के पूरक के तौर पर माध्यमिक-उत्पादों के उपभोग की पृवत्ति अपने व्यापक अस्तित्व में थी।

इस बात के भी प्रमाण मिले हैं कि खरगोश और पक्षियों को भी भोजन के तौर पर इस्तेमाल में लाया जाता था, लेकिन इस बात के बेहद कम सबूत थे कि उनके भोजन में मुर्गियां भी शामिल थीं इसमें कहा गया है कि बड़े आकार के मर्तबान और चार-कन्धों वाले मर्तबान का संबंध मदिरा और तेल जैसे तरल पदार्थों के भंडारण के लिए इस्तेमाल में लाया जाता रहा हो

इस अध्ययन का नेतृत्व अक्षिता सूर्यनारायणन द्वारा अपनी कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय की पीएचडी के सिलसिले में एक हिस्से के तौर पर किया गया था सूर्यनारायणन ने अपनी पीएचडी फरवरी में पूरी कर ली थी और वर्तमान में वे फ्रेंच नेशनल सेंटर फॉर साइंटिफिक रिसर्च में काम कर रही हैं इस अध्ययन के सह-लेखन का कार्य पुणे के डेक्कन कॉलेज के पूर्व उप-कुलपति वसंत शिंदे और बीएचयू के प्रोफेसर रविन्द्र एन. सिंह द्वारा संपन्न किया गया

अंग्रेजी दैनिक द इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक साक्षात्कार में सूर्यनारायणन ने कहा: “यह अध्ययन इस मामले में अनूठा है कि इसमें बर्तनों में मौजूद अवशेषों के अध्ययन का काम किया गया है आम तौर पर बीजों या पौधों के अवशेष तक पहुँच बन पाती थी लेकिन वसा अवशेषों के विश्लेषण के जरिये हम पूरे यकीन के साथ इस बात को कह सकते हैं कि गोमांस, बकरी, भेड़ और सुअर की खपत व्यापक स्तर पर की जाती थी, और विशेषकर गोमांस की

अंग्रेजी में प्रकाशित मूल लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

New Study Says Harappans ate Meat, Were Especially Fond of Beef

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