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उत्तरी गोलार्ध में सर्दी की दस्तक के साथ ही क्या कोविड-19 के मामले बढ़ सकते हैं?

किसी वायरस और उसके चलते उत्पन्न होने वाले संक्रमण का मौसम से सीधा संबंध होता है या नहीं, इसका आकलन करने के लिए शोधकर्ताओं को साल में कई बार किसी खास इलाके में कई वर्षों तक इसके प्रसार का अध्ययन करना होता है।
उत्तरी गोलार्ध में सर्दी की दस्तक के साथ ही क्या कोविड-19 के मामले बढ़ सकते हैं?

जिस दिन नवीनतम कोरोनावायरस का पहली बार पता चला था, दुनिया के महीने अब उस घड़ी से कुछ ही दूरी पर है, जबकि सर्दी का मौसम एक बार फिर से आ चला है उत्तरी गोलार्ध क्षेत्र में यह तेजी से अपने पाँव पसार रहा है, वहीँ महामारी खत्म होने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे हैं क्या यह हालात को बदतर बना देगा?

हाल ही में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने आगामी सर्दियों के मौसम में कोविड-19 के मामलों में उछाल की संभावनाओं को लेकर चेताया है 

अपने वक्तव्य में डॉ. गुलेरिया ने कहा था “सर्दियों के मौसम में स्वाइन फ्लू के मामलों में भी उछाल देखने को मिला था और संभव है कि कोविड-19 में भी वैसा ही कुछ देखने को मिल सकता है जहाँ तक वायु प्रदूषण का प्रश्न है तो इस संबंध में आंकडें बताते हैं कि हवा में प्रदूषण से भी कोविड-19 की अधिकता बनी रह सकती है यह जानकारी इटली और चीन में किये जा रहे कुछ महीनों के अध्ययन पर आधारित है

हालाँकि जाड़े के मौसम में कोविड-19 के मामलों में उछाल की संभावनाओं को लेकर अभी कोई ठोस निष्कर्षों पर नहीं पहुँचा जा सका है यह सर्वविदित है कि श्वसन सम्बंधी वायरस संक्रमण के मामले सर्दियों में तेजी से बढ़ते देखे गए हैं, वो चाहे इन्फ्लूएंजा हो या अन्य कोरोनावायरस किस्में इस सबके बावजूद यह कहना जल्दबाजी होगी कि एसएआरएस-सीओवी-2 भी सीजन के अनुसार कम ज्यादा हो सकता है या नहीं अब तकरीबन साल भर होने को हैं और इस महामारी ने मौसमी बदलाव के दो चक्र पूरे कर लिए हैं

किसी वायरस और उसके चलते उत्पन्न होने वाले संक्रमण का मौसम से सीधा संबंध होता है या नहीं, इसका आकलन करने के लिए शोधकर्ताओं को साल में कई बार किसी खास इलाके में कई वर्षों तक इसके प्रसार के बारे में जानकारी जुटानी होती है। 

एसएआरएस-सीओवी-2 ने अभी तक इस तरह का कोई मौका नहीं दिया है इस बारे में अनुभव न होने के बावजूद शोधकर्ताओं ने एसएआरएस-सीओवी-2 के संक्रमण को लेकर मौसमी बदलावों के बारे में आकलन करने की कोशिशें की हैं, जिसके तहत दुनिया में कई जगहों पर संक्रमण की दर का अध्ययन का काम जारी है 

इस बारे में एक अध्ययन 13 अक्टूबर को जर्नल पीएनएएस (प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज ऑफ द यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका) में प्रकाशित हुआ है, जिसमें महामरी के शुरुआती चार महीनों में एसएआरएस-सीओवी-2 से पैदा होने वाले संक्रमण के विकास क्रम का अध्ययन किया गया है। यही वह दौर भी था जब अधिकतर देशों ने लॉकडाउन एवं अन्य रोकथाम के उपायों को उस समय तक अपने देशों में नहीं अपनाया था। इस अध्ययन में बताया गया है कि सबसे तेज गति से संक्रमण की दर उन जगहों पर देखने को मिली है जहाँ पर यूवी प्रकाश कम मात्रा में उपलब्ध थी। शोधकर्ताओं ने यह पूर्वानुमान भी लगाया है कि किसी भी हस्तक्षेप के बिना जाड़े के मौसम में मामले बढ़ सकते हैं जबकि गर्मियों में मामले कम हो सकते हैं।

उपरोक्त अध्ययन के अलावा लेबोरेटरी के अध्ययनों ने भी एसएआरएस-सीओवी-2 पर मौसमी प्रभाव के आकलन का प्रयास किया है जून में द जर्नल ऑफ़ इन्फेक्शस डिजीज में प्रकाशित एक अध्ययन में बताया गया था कि वायरस ठंडे और शुष्क मौसम और स्थानों को ज्यादा पसंद करता है जहाँ सीधे सूरज की रोशनी नहीं पहुँच पाती है यदि कृत्रिम यूवी रेडिएशन को अपनाया जाए तो भी वायरस को सतह एवं एरोसोल्स में भी निष्क्रिय करने में मदद मिल सकती है, खासकर यदि तापमान 40 डिग्री सेल्सियस के आसपास हो मौसम का मिजाज यदि गर्म या नम हो तो सतह पर वायरस को तेजी से घटते देखा गया है 

सर्दियों के मौसम में वायरस के संक्रमण के मामले में बढ़ोत्तरी की एक अन्य संभावना, इस सीजन में सामान्य जनजीवन में होने वाले बदलावों के कारण भी हो सकती है जाड़े में आमतौर पर लोग ज्यादातर घरों के अंदर ही रहते हैं, और कई जगहों पर तो समुचित हवा और प्रकाश की स्थिति काफी खराब होती है हीटर की मदद से कुछ हद तक तापमान को बढाया जा सकता है, लेकिन समुचित वेंटिलेशन की समस्या तो बनी ही रहती है

कुछ अन्य शोध के अनुसार छोटे-मोटे मौसमी कारक भी संक्रमण के फैलाव की दर पर अच्छा ख़ासा असर डालने में असरकारक हो सकते हैं प्रिन्सटन यूनिवर्सिटी के महामारीविद राचेल बेकर ने एक अन्य कोरोनावायरस के आंकड़ों के जरिये मौसमी असर के जलवायु प्रभाव को आंकने का प्रयास किया है शोधकर्ताओं ने पाया कि जलवायु में थोड़े से परिवर्तन से भी हर बदलते मौसम में भारी प्रकोप की संभावना बनी रहती है उनका यह मॉडल प्री-प्रिंट सर्वर मेडरिक्सिव (medRxiv) में प्रकाशित हुआ था इस बारे में बेकर का कथन था “यहाँ तक कि यदि छोटा-मोटा मौसमी प्रभाव भी घटित होता है तो भारी संख्या इस प्रसार के मुख्य चालक वे ढेर सारे लोग होंगे, जो संक्रमण के प्रति अभी भी संवेदनशील बने हुए हैं 

क्या सर्दियों के दौरान एसएआरएस-सीओवी-2 बेहतर ढंग से खुद को जीवित रख सकता है या मौसमी बदलावों से इस पर कैसा प्रभाव पड़ता है, के बारे में अभी भी जानकारी का स्तर काफी कमजोर बना हुआ है हालाँकि किसी मौसम में लोगों के रहन-सहन में आने वाले बदलावों से संक्रमण के विस्तार पर अवश्य ही असर पड़ने की संभावना रहती है

आगे जाकर भविष्य में जब और भी अधिक लोग वायरस के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता हासिल करने में सफल हो सकेंगे तो संक्रमण के प्रसार में मौसमी बदलाव अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं उन स्थानों पर जहाँ आबादी का एक बड़ा हिस्सा अभी भी इसके प्रति निरुपाय बना हुआ है, जबकि मौसमी बदलावों से वायरस के व्यवहार में होने वाले परिवर्तनों के बारे में जानकारी कुछ ख़ास नहीं है, तब तक महामारी से निपटने के लिए सामाजिक व्यवहार और स्वास्थ्य सुविधाओं के बुनियादी ढांचों की भूमिका बेहद अहम रहने वाली है 

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिेए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

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