Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

ख़बरों के आगे-पीछे: पन्ना प्रमुख की तर्ज़ पर अब लाभार्थी प्रमुख 

वरिष्ठ पत्रकार अनिल जैन अपने साप्ताहिक कॉलम में बांग्लादेश से लेकर पंजाब, दिल्ली और पूर्वोत्तर के राज्यों की राजनीति पर बात कर रहे हैं।
bjp
फ़ोटो साभार : पत्रिका

बांग्लादेश पर भारत की नाराज़गी बेअसर क्यों?

बांग्लादेश सरकार पर भारत सरकार की नाराजगी का कोई असर नहीं होता दिख रहा है। वहां हिंदू अल्पसंख्यकों पर कट्टरपंथी मुस्लिमों के हमले हो रहे हैं, उनके घरों को लूटा जा रहा है, उनमें आग लगाई जा रही हैं। हिंदू संतों की गिरफ्तारी को लेकर भारत सरकार ने आधिकारिक रूप से नाराजगी जरूर जताई है लेकिन तब भी बांग्लादेश सरकार ने इस्कॉन के संत चिन्मय प्रभु को रिहा नहीं किया है और उलटे उनके दो अन्य सहयोगियों को गिरफ्तार कर लिया है। दरअसल बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार का तख्ता पलट होने के बाद से हिंदू अल्पसंख्यकों का जो लगातार उत्पीड़न हो रहा है, उसे रुकवाना भारत की शक्तिशाली कही जाने वाली सरकार के लिए कोई मुश्किल काम नहीं है। लेकिन भारत सरकार के प्रयास सफल नहीं हो रहे हैं तो उसकी वजह यह है कि उसके प्रयासों में नैतिक बल नहीं है। यानी जो काम वह बांग्लादेश में रुकवाना चाहती है वही काम अपने देश में जोर-शोर से करवा रही है। यहां आए दिन किसी न किसी मस्जिद का सर्वे हो रहा है और उसके नीचे मंदिर तलाशे जा रहे हैं। सरकार समर्थक संगठनों की ओर से मुसलमानों के आर्थिक बहिष्कार की अपीलें सोशल मीडिया में की जा रही हैं। हिंदुओं इलाके में किसी मुसलमान के मकान खरीदने या किराए पर लेने का विरोध किया जा रहा है। सब्जी, फल या चूड़ी बेचने वाले मुसलमान को अपने मोहल्ले या कॉलोनी में घुसने से रोका जा रहा है और स्थानीय प्रशासन मूकदर्शक बना हुआ है। ऐसे में भारत सरकार की अपील को बांग्लादेश की सरकार क्यों गंभीरता से लेगी?

अब रुपये का गिरना फायदेमंद है! 

प्रधानमंत्री बनने से पहले नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब एक डॉलर की कीमत 63 रुपये के आसपास पहुंची थी। रुपये की गिरती कीमत को लेकर मीडिया ने हाहाकार मचा रखा था। खुद नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में देश भर में घूमते हुए कह रहे थे कि जैसे-जैसे रुपये की कीमत गिर रही है, वैसे-वैसे देश की प्रतिष्ठा भी गिर रही है। उसी दौर में उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर कटाक्ष करते हुए यह भी कहा था कि रुपये की कीमत प्रधानमंत्री की उम्र को छूने की ओर बढ़ रही है। उनके इन बयानों के कई वीडियो अब भी सोशल मीडिया में तैरते रहते हैं। बहरहाल अब मोदी के दस साल के शासन में रुपये की कीमत गिरते-गिरते 85 तक पहुंच गई है। मोदी तो अब रुपये की गिरावट पर कभी कुछ नहीं बोलते हैं लेकिन उनकी सरकार का कहना है कि रुपये की कीमत का गिरना देश की अर्थव्यवस्था के लिए लाभदायक है। वित्त राज्यमंत्री पंकज चौधरी ने एक सवाल के जवाब में कहा कि रुपये की गिरती कीमत से भारत को निर्यात में फायदा होगा। यानी भारत का जो माल दूसरे दूसरे देशों में जाता है उसकी कीमत ज्यादा मिलेगी क्योंकि डॉलर महंगा है। उन्होंने कहा कि कुल मिला कर इससे देश की अर्थव्यवस्था मजबूत होगी। दो साल पहले वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी कहा था कि दरअसल रुपया कमजोर नहीं हो रहा है बल्कि डॉलर मजबूत हो रहा है। इन बेहूदा बयानों पर अब मीडिया खामोश रहता है।

पूर्वोत्तर में घट रहा है भाजपा का दबदबा

भाजपा ने केंद्र में सरकार बनाने के बाद बड़ी सावधानी से पूर्वोत्तर को साधने का प्रयास किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भरोसेमंद राम माधव काफी समय तक वहां की जिम्मेदारी संभाले रहे। हिमंता बिस्वा सरमा को कांग्रेस से लाकर उन्हें महत्वपूर्ण भूमिका दी गई। एनडीए से अलग वहां एनईडीए यानी नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक एलायंस बनाया गया, जिसका जिम्मा हिमंता बिस्व सरमा को दिया गया। बाद में उन्हें असम का मुख्यमंत्री भी बनाया गया। लेकिन ऐसा लग रहा है कि अब इस गठबंधन में दरार आ रही है। सब कुछ पहले की तरह सामान्य नहीं है। मणिपुर में जातीय हिंसा के बाद हालात ज्यादा बदले है। भाजपा का शीर्ष नेतृत्व राज्य के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह को काबू करने में नाकाम रहा है और बीरेन सिंह अपने निजी राजनीतिक हितों की वजह से राज्य में हिंसा नहीं रोक पाए। इसका असर मिजोरम और मेघालय में दिख रहा है। मिजोरम की मिजो नेशनल फ्रंट की सरकार ने खुल कर बीरेन सिंह का विरोध किया है, जिसके जवाब में बीरेन सिंह ने मिजोरम की सरकार को देश विरोधी सरकार कहा है। इसके बाद से मिजो नेशनल फ्रंट के गठबंधन से अलग होने की चर्चा है। इसी तरह मेघालय में सत्तारूढ़ एनपीसी ने मणिपुर सरकार से समर्थन वापस ले लिया है। उसके सात विधायक हैं। मेघालय के मुख्यमंत्री कोनरेड संगमा और मिजोरम के मुख्यमंत्री लालदुहोमा तेवर दिखाते रहते हैं। पूर्वोत्तर की दूसरी प्रादेशिक पार्टियां भी हिमंता बिस्व सरमा के एकछत्र नेता वाले तेवर से परेशान रहती हैं। 

अकाली दल की राजनीति पर असर होगा

पंजाब में लंबे समय तक राजनीति की धुरी रहे शिरोमणि अकाली दल का असर लगातार कम होता जा रहा है। अब श्री अकाल तख्त ने पार्टी के प्रमुख सुखबीर बादल को तनखैया घोषित करने के बाद सजा सुना दी है। उन्हें स्वर्ण मंदिर सहित कई गुरुद्वारों में दो-दो दिन की सेवा करनी है। चूंकि उनके पैर में फ्रैक्चर है इसलिए मुश्किल सेवा नहीं दी गई है। लेकिन इससे बड़ी बात यह है कि श्री अकाल तख्त ने उनके दिवंगत पिता प्रकाश सिंह बादल को दिया गया 'फख्र ए कौम’ का खिताब भी छीन लिया है। इसका प्रदेश की राजनीति पर बड़ा असर होगा। अकाल तख्त ने दिखाया है कि वह दिवंगत व्यक्ति को भी उसकी किसी पुरानी गलती के लिए सजा सुना सकता है। गौरतलब है कि तनखैया घोषित होने के बाद सुखबीर बादल ने पार्टी के प्रमुख के पद से इस्तीफा दे दिया था और चार सीटों पर हुए उपचुनाव में भी हिस्सा नहीं लिया था। अकाली राजनीति के जानकारों का कहना है कि सजा सुनाए जाने और 'फख्र ए कौम’ का खिताब छीने जाने से बादल परिवार का असर घटेगा। पार्टी पर भी उसका दबदबा अब कम होगा और वोट की राजनीति पर भी असर होगा। हालांकि उनका कोई विकल्प अभी अकाली दल में नहीं है, इसलिए कुछ जानकारों का मानना है कि सजा भुगतने के बाद सुखबीर मजबूत होकर निकलेंगे और उनकी पार्टी फिर से पहले की तरह स्थापित होगी। दोनों में से जो भी स्थिति बनेगी उससे पंजाब की राजनीति बहुत प्रभावित होगी।

पन्ना प्रमुख की तर्ज पर अब लाभार्थी प्रमुख 

भाजपा ने राज्यों में कई किस्म के प्रमुख बना रखे हैं। उनमें से पन्ना प्रमुख सबसे चर्चित है। उनके बारे में हर आदमी जानता है। भाजपा ने मतदाता सूची के हर पन्ने का एक प्रमुख नियुक्त किया है। एक पन्ने पर जितने भी मतदाताओं के नाम होते हैं, उनसे संपर्क करने, उनमें से भाजपा समर्थकों की पहचान करने और उन्हें मतदान केंद्र पर लाकर वोट डलवाने की जिम्मेदारी पन्ना प्रमुख की होती है। अब खबर है कि भाजपा लाभार्थी प्रमुख बनाने जा रही है। दो साल बाद होने वाले उत्तर प्रदेश चुनाव को लेकर इसका फैसला किया गया है। लाभार्थी प्रमुख का काम होगा केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं का लाभ उठाने वाले लोगों से संपर्क रखना और उनका वोट डलवाना। गौरतलब है कि जातियों और समुदायों से अलग लाभार्थियों का एक अलग वोट बैंक बना है, जो आमतौर पर भाजपा या उसके गठबंधन को वोट देता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लगातार जीत में इस लाभार्थी वर्ग का बड़ा हाथ है। इसीलिए उस पर खास ध्यान देने का फैसला किया गया। इतना ही नहीं, खबर है कि भाजपा 'मन की बात प्रमुख’ भी नियुक्त करेगी। ये लोग प्रधानमंत्री मोदी के रेडियो पर प्रसारित होने वाले मासिक कार्यक्रम 'मन की बात’ से लोगों को जोड़ेंगे। उनके लिए यह कार्यक्रम सुनने का बंदोबस्त करेंगे और इसकी बातों का प्रचार करेंगे। भाजपा व्हाट्सऐप प्रमुख भी नियुक्त करने वाली है, जो व्हाट्सऐप समूहों का संचालन करेंगे। इन तीन श्रेणियों में भाजपा के करीब पांच लाख कार्यकर्ताओं को यह जिम्मेदारी दी जाएगी।

बेअदबी का मामला 'आप’ को भारी पड़ेगा

आम आदमी पार्टी के लिए उसके नेताओं की गिरफ्तारी कोई नई बात नहीं है। मुख्यमंत्री, मंत्री और विधायक या दूसरे नेता अक्सर गिरफ्तार होते रहते हैं। अभी हाल ही में एक विधायक नरेश बालियान गैंगेस्टरों से संबंध रखने और रंगदारी वसूलने के आरोप में गिरफ्तार हुए थे। इस मामले में वे जमानत पर रिहा हुए तो फिर संगठित अपराध में शामिल होने के कानून मकोका के तहत गिरफ्तार हो गए। लेकिन ऐसी गिरफ्तारियों को आम आदमी पार्टी शहादत बता देती है। उसके नेता कह देते हैं कि भाजपा की केंद्र सरकार उनको फंसा रही है। लेकिन पार्टी के एक विधायक नरेश यादव मुसलमानों के पवित्र ग्रंथ कुरआनशरीफ की बेअदबी के मामले मे दोषी ठहराए गए हैं और उन्हें दो साल की सजा हुई है। हालांकि उन्हें जमानत मिल गई है लेकिन यह मामला आम आदमी पार्टी को भारी पड़ेगा। नरेश यादव पंजाब के मलेरकोटला में कुरानशरीफ की बेअदबी के मामले मे दोषी ठहराए गए है। वहां कुछ समय पहले सड़कों पर कुरानशरीफ के फटे हुए पन्ने मिले थे। गौरतलब है कि सिख धर्म की बेअदबी के मामले मे पंजाब के पूर्व उप मुख्यमंत्री सुखबीर बादल अभी श्री अकाल तख्त की दी हुई सजा काट रहे है। उसी तरह इस्लाम में भी बेअदबी का मामला बहुत गंभीर माना जाता है। अभी तक आम आदमी पार्टी ने इसके दोषी विधायक पर कार्रवाई नहीं की है। अगर चुनाव में तालमेल नहीं होता है तो कांग्रेस इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाएगी और तब आम आदमी पार्टी को दिल्ली के मुसलमानों की नाराजगी भुगतनी पड़ सकती है।

दिल्ली में भी महिलाओं के खाते में पैसा जाएगा

दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार ने महिलाओं को हर महीने एक हजार रुपए नकद देने की योजना अभी तक शुरू नहीं की है। ऐसा लग रहा है कि आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल चुनाव नजदीक आने का इंतजार कर रहे थे। अब चुनाव महज दो महीने रह गए है तो उनकी पार्टी की सरकार इसकी शुरुआत करने जा रही है। केजरीवाल ने कहा है कि जल्दी ही इस योजना के लिए रजिस्ट्रेशन शुरू होगा। जाहिर है कि यह योजना महिलाओं को नकद रुपए देने की बाकी राज्यों की योजनाओं की तरह ही वोट लेने की रणनीति का हिस्सा है। केजरीवाल ने इस योजना की घोषणा जेल जाने से पहले की थी। वे इस साल मार्च में जेल गए थे और जेल जाने से पहले उनकी सरकार ने जो बजट पेश किया था उसमें इसकी घोषणा की गई थी। लेकिन उसके बाद नौ महीने से सरकार चुनाव नजदीक आने का इंतजार कर रही है। पहले कहा जा रहा था कि केजरीवाल जेल चले गए हैं इसलिए योजना शुरू करने में देरी हो रही है। लेकिन उनको जेल से छूटे हुए भी कई महीने हो गए और इसकी शुरुआत नहीं हुई। वैसे भी वे जेल मे थे तब भी सरकार कामकाज कर रही थी और बजट में घोषित इस योजना को लागू करने की तैयारी कर सकती थी। बहरहाल, अब चुनाव आ गए हैं तो माना जा रहा है कि जनवरी के पहले हफ्ते में पैसा महिलाओं के खाते में डाला जाएगा और फिर मतदान से ठीक पहले दूसरी किस्त खाते में जाएगी।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. विचार व्यक्तिगत हैं. )

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest