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क्या OIL ने असम में हायड्रोकॉर्बन प्रोजेक्ट के लिए पर्यावरणीय अनुमतियां हासिल करने के लिए जानकारियां छुपाईं?

ऑयल इंडिया लिमिटेड के एक प्रवक्ता का कहना है कि सभी प्रक्रियाओं का पालन करते हुए केंद्र सरकार को पूरी जानकारी उपलब्ध कराई गई है। साथ में उनके सभी सवालों के जवाब भी दिए गए हैं।
OIL

नई दिल्ली: सार्वजनिक क्षेत्र की दिग्गज कंपनी 'ऑयल इंडिया लिमिटेड (OIL)' पर तेल शोधन और विस्तार प्रोजेक्ट के लिए पर्यावरणीय अनुमति हासिल करने के क्रम में जानकारी छुपाने का आरोप लगा है। यह प्रोजेक्ट असम के तिनसुकिया के वर्षा वनों में स्थित है। ऊपर से जब केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय संबंधित अनुमतियां OIL को दे रहा था, तब मंत्रालय ने जैव विविधता प्रभाव आंकलन करवाए जाने की अनिवार्यता को भी नजरंदाज़ किया। इतना ही नहीं, मंत्रालय ने प्रोजेक्ट को जनसुनवाई से बचने की सहूलियत भी दी।

यह प्रोजेक्ट असम के मेछाकी ब्लॉक में स्थित है। इसके तहत मेछाकी, मेछाकी एक्सटेंशन, बाघजन और तिनसुकिया एक्सटेंशन में तेल-गैस विकास शोधन और उत्पादन शामिल है। पर्यावरणीय अनुमतियां 9 अप्रैल 2020 को दी गई थीं। यह दूसरी बार है, जब किसी दूसरे प्रोजेक्ट पर हुई जनसुनवाईयों के नतीज़ों के आधार पर OIL को असम में तेल शोधन के लिए जरूरी अनुमतियां दी गई हैं।

17 सितंबर को राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण की पूर्वी शाखा ने इन आरोपों के जवाब में पर्यावरण मंत्रालय से जवाब मांगा है।

पर्यावरणीय वकील रित्विक दत्ता कहते हैं, "मेछाकी प्रोजेक्ट पर्यावरणीय तौर पर संवेदनशील और संकटग्रस्त इलाके में प्रस्तावित है। मेछाकी ब्लॉक, डिबरू साईखोवा राष्ट्रीय उद्यान और मागुरी-मोटापंग आर्द्रभूमि के बेहद पास स्थित है। यह ब्लॉक देहिंग पतकई ऐलिफेंट रिज़र्व में पड़ता है। यह इलाका बेहद कम संख्या में बचे सफेद पंखों वाले वुड डक (बतख का एक प्रकार) का निवास स्थल है। मेछाकी ब्लॉक में कुछ आरक्षित वन भी हैं, जो व्यापक स्तर की जैव विविधता को सहारा देते हैं। जब प्रोजेक्ट के लिए पर्यावरणीय अनुमति ली जा रही थी, तो इन तथ्यों को छुपाया गया था।"

पर्यावरणीय प्रभाव आंकलन (एनवॉयरनमेंटल इम्पैक्ट एसेसमेंट- EIA) प्रक्रिया के फॉर्म-1, जिसे केंद्र सरकार के पास फरवरी, 2017 में जमा किया गया था, उसमें प्रोजेक्ट को लगाने वाले OIL ने पर्यावरणीय संवेदनशीलता से संबंधित सभी खानों में 'ना' भरने का विकल्प चुना। उन खानों में दूसरी चीजों के साथ-साथ यह सवाल पूछे गए थे कि क्या संबंधित इलाका आर्द्रभूमि और जंगलों के लिए पर्यावरणीय तौर पर संवेदनशील है? क्या प्रोजेक्ट का इलाका संरक्षित और संवेदनशील-संकटग्रस पेड़-पौधों और जंतुओं की प्रजातियों का निवास स्थल है? क्या इलाके में वनसंपदा समेत दुर्लभ संसाधन पाए जाते हैं?

इसके अलावा, OIL ने इस सवाल पर भी ना में जवाब दिया कि क्या प्रस्तावित प्रोजेक्ट किसी मौजूदा प्रोजेक्ट के पास में स्थित है? यह जानकारी इस तथ्य के बावजूद छुपाई गई कि मेछाई प्रोजेक्ट, एक मौजूदा प्रोजेक्ट का विस्तार है, जिसके तहत OIL ने 16 नए तेल के कुएं के साथ पाइपलाइन और उत्पादन उपकरण लगाने का प्रस्ताव दिया है। फलस्वरूप, इस प्रोजेक्ट के लिए कोई भी पर्यावरणीय प्रभाव आंकलन अध्ययन नहीं किया गया।

जानकारी छुपाने के एवज में, पर्यावरण प्रभाव आंकलन (EIA) संसूचना, 2006 के हिसाब से पर्यावरणीय अनुमतियां को रद्द हो जाना चाहिए। कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार द्वारा जारी किए गए इस नोटिफिकेशन के मुताबिक़, "किसी आवेदन की 'जांच या विश्लेषण या मूल्यांकन या उस पर फ़ैसला' लेने के लिए, जानबूझकर, 'छुपाई गई जानकारी या गलत या बहकाने वाली जानकारी' या आंकड़े देने से संबंधित आवदेन रद्द हो जाएगा। साथ में पहले से दी गई पर्यावरणीय अनुमतियां भी खारिज हो जाएंगी।"

जिस क्षेत्र में इस प्रोजेक्ट को प्रस्तावित किया गया है, वहां बड़़ी विविधता वाले वन्यजीव रहते हैं। इनमें तेंदुआ, हुलक लंगूर, रीसस मैकेकी बंदर, पिग-टेल्ड बंदर, धीमा लोरेस (बंदर की ही एक प्रजाति), मलयन बड़ी गिलहरी, बार्किंग डियर और पानी में रहने वाली जंगली भैंसे रहती हैं। राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने असम के वर्षावनों में स्थित बाघजन तेल कुएं में लगी आग के बाद एक विशेषज्ञ समिति बनाई, जिसने क्षेत्र में इन प्रजातियों की मौजूदगी की पु्ष्टि की है।

खैर OIL ने कभी जैव विविधता कानून, 2002 के तहत जरूरी जैवविविधता पर प्रभाव आंकलन अध्ययन नहीं किया। जैव विविधता का विश्लेषण ना करने से सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश का भी उल्लंघन हुआ है। सितंबर, 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश जारी करते हुए डिबरू साईखोवा राष्ट्रीय उद्यान के आसपास हायड्रोकॉर्बन की खोज के लिए खुदाने करने की स्थिति में, राज्य जैव विविधता बोर्ड से जैव प्रभाव विश्लेषण करवाए जाने को अनिवार्य कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश ''टीएन गोडावर्मन थिरुमुलपद बनाम् भारत संघ" (I.A. 3934 in W.P (C) 202, 1995 मामले में दिया था।

ऊपर से केंद्र सरकार की "पर्यावरण मूल्यांकन समिति (EAC)" ने मेछाई प्रोजेक्ट के लिए अपनी वीटो शक्ति का इस्तेमाल करते हुए प्रोजेक्ट को जनसुनवाई की अनिवार्यता से भी बचा दिया। यह सहूलियत 2017 के मार्च महीने के आखिर में हुई EAC की बैठक में दी गई थी। OIL ने EAC को बताया था कि 26 दिसंबर, 2016 को एक जनसुनवाई पहले ही हो चुकी है, जो इसी तरह के एक प्रस्ताव पर प्रोजेक्ट एरिया में हुई थी। इसके बाद EAC ने EIA नोटिफिकेशन, 2006 के पैरा (ii) में अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए जनसुनवाई की अनिवार्यता को इस प्रोजेक्ट के लिए हटा दिया। लेकिन असल में 26 दिसंबर, 2016 को जो जनसुनवाई हुई थी, वह OIL के एक दूसरे प्रोजेक्ट- खागरिजन तेल और गैस फील्ड के लिए हुई थी।

OIL के एक दूसरे प्रोजेक्ट, जिसमें तिनसुकिया जिले में सात नए हायड्रोकॉर्बन खोज कुएं खोले जाने थे, उसके लिए 11 मई को पर्यावरणीय अनुमतियां दी गईं। इसके लिए भी जनसुनवाई की अनिवार्यता को हटा दिया गया था। OIL को 6 साल पुराने एक दूसरे प्रोजेक्ट की जनसुनवाई की जानकारी को ताजा प्रोजेक्ट में लगाने की अनुमति दी गई थी।

सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च की कांची कोहली के मुताबिक़, "पर्यावरणीय सहमतियां, सरकार और प्रोजेक्ट को प्रस्तावित करने वाले पक्ष के बीच द्विपक्षीय मामला नहीं होता। इन फ़ैसलों के नतीज़े स्थानीय सामाजिक-पर्यावरणीय पृष्ठभूमि से जुड़े होने चाहिए, जिन्हें अच्छे विज्ञान से प्रेरित होना चाहिए और जिनके लिए जनता के सामने जानकारी सार्वजनिक की जानी चाहिए। जनसुनवाई इन सब चीजों को निश्चित करती है।"

जब हमने OIL में संपर्क किया, तो वहां के एक प्रवक्ता ने कहा कि पर्यावरण मंत्रालय को इस प्रोजेक्ट की जानकारी देने के क्रम में सभी प्रक्रियाओं का पालन किया गया है।

OIL के प्रवक्ता त्रिदिव हजारिका ने न्यूज़क्लिक से कहा, "केंद्र सरकार से इस प्रोजेक्ट के लिए जरूरी पर्यावरणीय सहमतियां मिलना ही यह दिखाता है कि हमने अपने पास मौजूद सभी जानकारियां उनको उपलब्ध करवाई थीं। अगर उनमें कोई कमी होती, तो पर्यावरण मंत्रालय ने अनुमति ही नहीं दी होतीं। कोई पर्यावरण अनुमति रातों-रात नहीं मिल जाती, एक निश्चित अवधि में कई तरह की बातचीत होती है। पर्यावरण मंत्रालय की तरफ से कुछ सवाल पूछे गए थे और हमने सभी सवालों के जवाब दिए थे।"

न्यूज़क्लिक की तरफ से पर्यावरण मंत्रालय के अधिकारियों को एक प्रश्नावली ई-मेल कर दी गई है। प्रश्नावली पर्यावरण मंत्रालय के सचिव रामेश्वर प्रसाद गुप्ता को भी भेजी गई है, जिसमें यह सवाल भी पूछा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के हिसाब से जैव विविधता प्रभाव आंकलन ना किए जाने के बावजूद, किस आधार पर OIL को पर्यावरणीय अनुमतियां दी गई थीं। अभी सवालों के जवाब आना बाकी है।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Did OIL Conceal Facts to Obtain Environmental Clearance for Hydrocarbon Expansion Project in Assam?

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