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ओडिशा: स्कूलों को बंद करने का नोटिस, अब वापस लौटे प्रवासियों को अंधेरे में दिख रहा भविष्य

राज्य सरकार ने उन 12000 स्कूलों को बंद करने का फ़ैसला लिया है, जिनमें 20 से कम बच्चे हैं। इससे बड़ी संख्या में छात्रों के स्कूल छोड़ने का डर पैदा हो गया है, ख़ासकर जनजातीय बच्चों के साथ यह समस्या ज़्यादा बड़ी हो सकती है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि अब छात्रों को विलय के बाद बनाए गए नए स्कूलों तक पहुंचने के लिए ज़्यादा लंबी दूरी तय करनी होगी।
बच्चों के पालक और SMC के सदस्य मोल्लिपोसी प्राथमिक स्कूल को बंद किए जाने का विरोध कर रहे हैं, उन्होंने BEO को इस संबंध में आवेदन भी दिया है.
बच्चों के पालक और SMC के सदस्य मोल्लिपोसी प्राथमिक स्कूल को बंद किए जाने का विरोध कर रहे हैं, उन्होंने BEO को इस संबंध में आवेदन भी दिया है.

जब पूरे देश में लॉकडाउन लगाया गया था, तब दूसरे राज्यों में निर्माण क्षेत्र के मज़दूर के तौर पर काम करने गए, प्रवासी मजदूर भगबन हंसडा (42) और उनकी पत्नी रंदई हंसडा (36) लौटकर अपने गांव आ गए। उन्हें आशा था कि अब वे अपने गांव मोल्लिपोसी में रुककर आगे की जिंदगी गुजर-बसर कर सकते हैं। लेकिन सरकार द्वारा 20 से कम बच्चों वाले सभी स्कूलों को बंद करने के फ़ैसले के चलते उन्हें और उनके जैसे दूसरे प्रवासियों को अपने फ़ैसले पर फिर से सोचना पड़ रहा है।

ओडिशा के मूयरभंज जिले के मोल्लिपोसी गांव में रहने वाले भगबन कहते हैं, "हमने उस दौरान कई मुश्किलों का सामना किया। हमें लगा कि अगर हम अपने गांव वापस नहीं लौटेंगे, तो हम भूखे मर जाएंगे और कोई हमारे शव को पूछने वाला भी नहीं होगा।" वे आगे कहते हैं, "लेकिन आप ऐसे गांव में कैसे रह सकते हैं, जहां आपके बच्चे भविष्य में स्कूल में दाखिल तक नहीं हो सकते?"

गांव वापस लौटे एक और प्रवासी, 28 साल के मैसा तुडु भी ऐसी ही भावनाएं जताते हैं। वे एक युवा पिता हैं। उनके दो बच्चे हैं, मैसा लॉकडाउन के दौरान ही गांव वापस लौटे हैं। वह कहते हैं, "हम अपने बच्चे के स्कूल में दाखिले को लेकर चिंतित हैं। विलय के बाद जो स्कूल बनाया गया है, वह हमारे गांव से काफ़ी दूर है। अगर हमारे बच्चों के लिए यहां मौके नहीं होंगे, तो हमें एक बार फिर प्रवास के बारे में सोचना होगा।"

अपने गांव लौटकर वापस आए प्रवासी मज़दूर भगबन हंसडा अपने बेटे मुछिराम के साथ. भगबन अपने बेटे के स्कूल में दाखिले को लेकर चिंतित हैं।

2019 में काप्तिपाडा ब्लॉक के कलमगडिया पंचायत के मल्लिपोसी प्राथमिक विद्यालय में 18 छात्र थे। उसी साल प्राथमिक शाला से कक्षा पांच के पांच छात्र पास हो गए। इस तरह छात्रों की संख्या कम होकर 14 हो गई। 2020 में जब राज्य सरकारों ने 20 से कम छात्रों वाले सभी स्कूलों को बंद करने का फ़ैसला लिया, तब मोल्लिपोसी को भी नोटिस दिया गया। लेकिन तब तक वापस लौटे प्रवासी मज़दूरों के 12 बच्चों ने स्कूल में प्रवेश ले लिया था। अब इन बच्चों के माता-पिता स्कूल में अपने बच्चों के भविष्य को लेकर असमंजस में हैं।

राज्य द्वारा चलाए जाने वाले स्कूलों को बंद किया जाना

करीब 12000 प्राथमिक स्कूल, जिनमें 20 से कम छात्र हैं, राज्य सरकार के फ़ैसले के चलते उनका हाल मोल्लिपोसी प्राथमिक विद्यालय की तरह होने वाला है। स्कूल और जनशिक्षा मंत्री समीर रंजन दास ने एक इंटरव्यू में कहा था कि यह फ़ैसला कोरोना वायरस के चलते बनी स्थिति के कारण लिया गया है, लेकिन अब तक कोई भी आधिकारिक नोटिस नहीं दिया गया है।

अगर मौजूदा स्कूल बंद हो जाता है, तो विलय के बाद बनाए गए नए स्कूल तक पहुंचने के लिए बच्चों को पहाड़ी इलाके को पार कर के जाना होगा.

इस बीच स्कूल प्रबंधन समिति (SMC) और बच्चों के पालक स्कूल के चालू रहने या बंद होने को लेकर असमंजस में हैं। एक गैर लाभकारी संगठन शिक्षासंधान, जो शिक्षा के क्षेत्र में काम करता है, उसके द्वारा 81 स्कूलों के सर्वे में यह बात सामने आई है कि सरकार द्वारा स्कूलों को बंद किए जाने संबंधी नोटिफिकेशन के बाद प्रवासी मज़दूरों को अपने बच्चों को गांव के प्राथमिक विद्यालयों में दाखिल कराने में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।

शिक्षासंधान के सचिव और राइट टू एजुकेशन फोरम, ओडिशा के संयोजक अनिल प्रधान कहते हैं, "प्रवासी मज़दूरों के साथ-साथ, ग्रामीण क्षेत्रों के कई पालकों ने आर्थिक संकट और रोज़गार जाने के चलते अपने बच्चों को निजी स्कूलों से निकाल लिया है और उन्हें सरकारी स्कूलों में भर्ती करवा रहे हैं। लेकिन हमारे सर्वे के दौरान यह पता चला कि 65 स्कूलों में कोई एडमीशन ही नहीं हुए, क्योंकि उन्हें स्कूल बंद करने का नोटिस मिल चुका है। बच्चे या तो घर पर खाली बैठे हुए हैं और अपने माता-पिता की कृषि कार्यों में मदद करवा रहे हैं या फिर वे मज़दूरी में लग गए हैं।"

स्कूल छोड़ने के लिए मजबूर होने का डर

मोल्लिपोसी प्राथमिक विद्यालय करीबी रहवास क्षेत्र से तीन किलोमीटर दूर स्थित है। लेकिन अगर सरकार यह स्कूल भी बंद करती है, तो बच्चों को खेत, नाला और पहाड़ी क्षेत्र का एक हिस्सा पार कर विलय के बाद बनाए गए स्कूल पहुंचना होगा। मोल्लिपोसी प्राथमिक विद्यालय के SMC सदस्य दखिन तुडु कहते हैं, "नोटिस के मुताबिक़ अगर यह स्कूल बंद होता है और बच्चों को विलय स्कूल में जाने को मजबूर किया जाता है, तो उनके लिए वहां पहुंचना मुश्किल होगा। नया स्कूल उनके रहवास क्षेत्र से 4-5 किलोमीटर दूर है और माता-पिता अपने बच्चों को वहां भेजने से इंकार कर सकते हैं। इस बात की बहुत प्रबल संभावना है कि बच्चों को स्कूल छोड़ना पड़ेगा, खासतौर पर लड़कियों को।"

मोल्लिपोसी गांव की तरह ही रानीपोखरी पंचायत में भी लौटे हुए प्रवासी मज़दूरों को अपने बच्चों का भविष्य अंधेरे में दिखाई दे रहा है। रानीपोखरी पंचायत के पात्रशाही प्राथमिक विद्यालय में 2019 में 36 बच्चे थे। लेकिन CRCC (क्लस्टर रिसोर्स सेंटर कोर्डिनेटर) ने एक रिपोर्ट में कहा कि इस स्कूल में केवल 16 बच्चे दर्ज हैं। परिणामस्वरूप इस स्कूल को भी बंद किए जाने का नोटिस मिल गया।

बच्चों को नए स्कूल तक पहुंचने के लिए इस पानी की धारा को भी पार करना होगा. इस धारा में मानसून में बहुत ज़्यादा पानी बहता है.

गांव वालों, SMC सदस्यों और स्कूल के हेडमास्टर ने ब्लॉक एजुकेशन ऑफिसर (BEO) के पास जाकर गलती बताई। BEO ने ओडिशा एजुकेशन प्रोग्राम अथॉरिटी (OSEPA) के अधिकारियों के साथ बात करने का भरोसा दिलाया था, लेकिन अब तक कोई भी आधिकारिक पत्र नहीं मिला है।

पात्राशाही प्राथमिक विद्यालय की SMC के सदस्य और पालक कुएलु तुडु कहते हैं, "इस स्कूल के आगे चलने को लेकर हम बहुत तनाव में हैं। अगर यह स्कूल बंद होता है, तो हमें हमारे बच्चों को विलय के बाद बनाए गए नए स्कूल में भेजने में दिक्कत होगी, क्योंकि वह बहुत दूर है और बीच में पहाड़ी इलाका आता है। हमें डर है कि हमारे बच्चों को स्कूल छोड़ना होगा।"

इस बीच इन स्कूलों के SMC सदस्यों और पालकों ने एक आवेदन लिखकर राज्य सरकार से अपने फ़ैसले को वापस लेने और स्कूलों को दोबारा खोलने की अपील की है। शिक्षासंधान से जुड़े प्रधान कहते हैं, "अगर सरकार ने स्कूलों को बंद करने के अपने फ़ैसले पर दोबारा विचार नहीं किया, तो बड़ी संख्या छात्रों को स्कूल छोड़ना होगा।"

डिजिटल विभाजन

जब राज्य सरकार ने सरकारी स्कूलों के बच्चों के लिए ऑनलाइन शिक्षा शुरू की, तब जनजातीय इलाकों के बच्चे पूरी तरह अछूत हो गए। इंटरनेट कनेक्टिविटी की कमी, एंड्रॉयड फोन की उपलब्धता ना होने और उनके माता-पिता का डिजिटल ज्ञान कमजोर होने की वजह से यह बच्चे ऑनलाइन शिक्षा से दूर रह गए।

शिक्षासंधान के प्रोजेक्ट कोर्डिनेटर सुदर्शन मुदुली कहते हैं, “यहां दूसरे मुद्दे भी है। प्राथमिक कक्षा में जनजातीय बच्चों को संथाली भाषा में पढ़ाया जाता है, लेकिन ऐसा करना डिजिटल गैजेट्स में संभव नहीं है। इसलिए वे पूरी तरह अध्ययन से बाहर हो गए।” उन्होंने बताया कि जिन भाषायी शिक्षकों को इन स्कूलों में जनजातीय भाषा पढ़ाने के लिए नियुक्त किया गया था, उनके पास भी जनजातीय बच्चों को पढ़ाने के लिए स्मार्टफोन नहीं थे।

जैसा शिक्षासंधान ने बताया, जब कोरोना महामारी पर काबू पाने के लिए स्कूलों को बंद कर दिया गया, तो दूरदराज के गांवों में जनजातीय लड़के अपना समय पशु चराने, अपने माता-पिता की कृषि कार्यों में मदद करने और पहाड़ी इलाकों (बागड़) में बिताने लगे। वहीं लड़कियां घर परिवार के कामों या अपने भाई बहनों की देखरेख में लग गईं।

आसपास के गांव में पशु चराते बच्चे, क्योंकि कोरोना वायरस को रोकने के लिए स्कूलों को बंद कर दिया गया है।

हाल में राज्य सरकार ने बच्चों को टेलीविज़न और रेडियो के ज़रिए पढ़ाने का फ़ैसला लिया। मुदुली कहते हैं, “काप्तीपाडा ब्लॉक की नोटो पंचायत में बिजली की सुविधा ही नहीं है। यहां 739 परिवार रहते हैं, जिनमें से सिर्फ दो के पास ही टीवी है। जिन दो घरों में टीवी है, वे ऊंची जाति के लोगों के हैं और वे वंचित लोगों को अपने घरों में अंदर आने की अनुमित नहीं देते। जो प्रवासी मज़दूर लौटकर आ रहे हैं, उनके पास स्मार्टफोन हैं, लेकिन वे उनका उपयोग सिर्फ डॉउनलोड किए जा चुके वीडियो देखने में करते हैं। इस स्थिति में हम कैसे इन वंचित तबकों के लोगों को इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स की सहायता से शिक्षा देने के बारे में बात कर सकते हैं।”

भगबन हंसडा के बेटे, 11 साल के मुछिराम को अपने भविष्य के बारे में कोई अंदाजा नहीं है। वे भी अपने माता पिता के साथ गांव वापस लौटे हैं। फिलहाल उनका ज़्यादातर वक्त आसपास के खेतों में गाय चराने में गुजर रहा है। उन्होंने पिछले 6 महीनों से किताबों को हाथ नहीं लगाया है। वह कहते हैं, “अगर गांव का स्कूल नहीं खुला, तो मुझे विलय के बाद बने नए स्कूलों में जाने के लिए बोला जाएगा। लेकिन मुझे इस पहाड़ी क्षेत्र को पार करने में डर लगता है, यह मेरे लिए अब भी नया है, मैं ऐसी स्थिति में स्कूल ही छोड़ दूंगा।”

(लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं, यह उनके निजी विचार हैं)

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

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