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क्या एक देश एक राशन कार्ड प्रवासी मज़दूरों को राहत दे सकेगा?

हाल के एक आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को निर्देश दिया है कि वे प्रवासी मजदूरों को राशन उपलब्ध कराने के लिए नीतियां बनाएं। उसने एक देश एक राशन कार्ड प्रणाली लागू करने के लिए राज्यों को 31 जुलाई तक की अंतिम सीमा भी निर्धारित की है।
Ration card

यह स्वीकार करते हुए कि प्रवासी मजदूर अक्सर राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून (एनएफएसए) के तहत खाद्य सुरक्षा के दायरे से बाहर रह जाते हैं, सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सभी राज्य सरकारों को निर्देश दिया है कि वे उन प्रवासी मजदूरों को राशन उपलब्ध कराने के लिए नीतियां बनाएं, जिनके पास राशन कार्ड नहीं हैं। 

कोर्ट ने केंद्र को योजनाओं के लिए सूखे खाद्यान्न आवंटित करने का निर्देश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि सूखे अनाजों तथा कम्युनिटी किचेन के जरिये पके हुए भोजन का प्रावधान अनिवार्य रूप से तब तक जारी रहना चाहिए जब तक कि कोविड-19 महामारी खत्म नहीं हो जाती। 

इस आदेश का स्वागत करते हुए, राइट टू फूड कम्पेन (आरटीएफसी) ने एक बयान में कहा, “यह आदेश महत्वपूर्ण है क्योंकि देश में गंभीर आर्थिक विपत्ति है और एक वक्त की राहत बहुत अपर्याप्त है।...महामारी पर अंकुश लगाने के लिए पिछले वर्ष लागू किए गए लॉकडाउन प्रतिबंधों से लोगों के बीच अभूतपूर्व समस्याएं पैदा कर दी हैं और केंद्र तथा राज्य सरकारों के राहत पैकेज संकट की इस गंभीर प्रकृति का समाधान करने में अपर्याप्त रहे हैं। इसलिए, सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए इन आदेशों को जितना जल्द संभव हो, कार्यान्वित किए जाने की आवश्यकता है क्योंकि इनसे कुछ राहत प्राप्त हो सकती है। इसके साथ-साथ, आईसीडीएस, मिड डे मील को पुनर्जीवित करने की तथा सरकार द्वारा पीडीएस को सार्वभौमिक बनाये जाने की जरूरत है।

एनएफएसए के तहत लाभ की सुविधा हमेशा से काफी हद तक राशन कार्ड धारकों तक निर्भर रही है। मई, 2020 में वित मंत्री निर्मला सीतारमण ने घोषणा की कि सामाजिक कल्याण योजनाओं की पोर्टेबिलिटी सुनिश्चित करने के लिए एक देश एक राशन कार्ड (ओएनओआरसी) स्कीम आरंभ की जाएगी। जैसे ही यह स्कीम देश भर में लागू हो जाएगी, एनएफएसए के तहत राशन कार्ड धारी खुद ही देश में किसी भी उचित मूल्य दुकान (पीडीएस) से मासिक खाद्य राशन की सुविधा प्राप्त करने में सक्षम हो जाएंगे।

वर्तमान में, एनएफएसए के तहत खाद्यान्न की हकदारी केवल उस एफपीएस से प्राप्त की जा सकती है जिसके साथ कार्ड लिंक्ड है। ऐसा दावा किया गया है कि ओएनओआरसी स्कीम से पोर्टबिलिटी आएगी जो विशेष रूप् से प्रवासी मजदूरों के लिए लाभदायक साबित हो सकता है। वर्तमान में, राशन कार्ड होने के बावजूद वे अपनी एनएफएसए हकदारी की सुविधा प्राप्त करने में अक्षम  हैं क्योंकि जो कार्ड उनके पास है, वह उनके स्थायी पते के साथ लिंक्ड है। 

29 जून को सुप्रीम कोर्ट ने एक देश एक राशन कार्ड प्रणाली लागू करने के लिए राज्यों को तथा असंगठित मजदूरों के लिए एक राष्ट्रीय डाटाबेस बनाने के लिए केंद्र सरकार को 31 जुलाई तक की अंतिम सीमा भी निर्धारित की। बहरहाल, कार्यकर्ता अभी भी इस बारे में निश्चित नहीं हैं कि ओएनओआरसी स्कीम प्रवासी मजदूरो की समस्याओं का समाधान है या नहीं। 

आरटीएफसी के अनुसार, एनएफएसए (और प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना) के तहत खाद्य राशन की हकदारियों के साथ प्राथमिक मुद्दा यह है कि ये केवल वैसे लोगों के लिए हैं, जिनके पास वर्तमान में राशन कार्ड है। एनएफएसए के अनुसार, लगभग 67 प्रतिशत आबादी को इन कार्डों के तहत कवर किया जाना है। वर्तमान में केवल 60 प्रतिशत आबादी के पास एनएफएसए  के तहत राशन कार्ड हैं क्योंकि राशन कार्ड आवंटित करने के लिए सरकार जिस जनसंख्या डाटा का उपयोग करती है, वह 2011 से है।  

अगस्त 2020 में जारी एक बयान में, आरटीएफसी ने कहा था: सरकार ने तब से जनसंख्या में वृद्धि को शामिल नहीं किया है। इसके अतिरिक्त, जैसा कि कल्याणकारी योजनाओं में लक्ष्यीकरण का अनुभव रहा है, इसमें बहिष्करण अर्थात लोगों के बाहर रह जाने की गलतियां बनी रहती हैं, जहां कई खाद्य के लिहाज से असुरक्षित व्यक्ति पीडीएस से छूट जाते हैं। 

खासकर, एनएफएसए के शहरी क्षेत्रों में आरंभ होने के बाद यह ज्यादा सच है, जहां राशन कार्ड के लिए पात्रता का मानदंड स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया है और ऐसे बहुत से लोग हैं जिनके पास निवास सत्यापन या ऐसी चीजों के लिए आवश्यक दस्तावेज नहीं हैं।

ओएनओआरसी स्कीम के साथ एक अन्य मुद्दा जो कई अवसरों पर सामने आया है, वह यह है कि आधार-आधारित बायोमीट्रिक प्रमाणीकरण। आरटीएफसी के अनुसार, जब बायोमीट्रिक प्रमाणीकरण विफल रहता है तो गरीब और अधिक परेशान हो जाते हैं, ‘क्योंकि वे अपनी राशन हकदारियों को प्राप्त करने में अक्षम हो जाते हैं। सार्वभौमिक सार्वजनिक वितरण प्रणाली वक्त का तकाजा है क्योंकि करोड़ों लोग आर्थिक मंदी के कारण गरीबी की गर्त में चले गए हैं।

कार्यकर्ताओं और विशेषज्ञों के अनुसार, आधार आधारित टेक्नोलॉजी की जगह ओएनओआरसी को संपर्क रहित स्मार्ट कार्ड जैसी अधिक सरल और भरोसेमंद प्रौद्योगिकियों पर विचार करना चाहिए। जल्दीबाजी में पीडीएस की पुनर्संरचना से लोगों, खासकर, सबसे निर्बल लोगों की खाद्य सुरक्षा में व्यापक व्यवधान पैदा हो सकते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने इस तथ्य का भी संज्ञान लिया कि एनएफएसए के तहत पीडीएस का राज्य वार कवरेज 2011 की जनगणना के आधार पर निर्धारित किया गया था और तब से उसमें संशोधन नहीं किया गया है, जिसकी वजह से कई जरुरतमंद लोग उससे बाहर रह गए हैं। अदालत ने केंद्र सरकार को राज्य वार कवरेज पर फिर से विचार करने को कहा है।  

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें।

https://www.newsclick.in/Will-One-Nation-One-Ration-Card-Help-Migrant-Workers

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